लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-153
सौंदर्य प्रतियोगिता के आयोजक जोश में थे। मीडिया की तरफ से उन्हें उम्मीद से अधिक प्रचार मिल रहा था। बड़े प्रयासों के बाद प्रतिष्ठित निर्णायक मिले थे। उस पर भी ठाकुर रविशंकर प्रभु तो गोल्ड मैडल थे। ठाकुर साहब की किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में शायद यह पहली और आखरी हाजिरी थी। सभी निर्णायक हरेक प्रतिभागी की अच्छे तरीके से परख कर सकें इसके लिए एक अनोखी व्यवस्था की गयी थी। ड्रॉ निकाल कर प्रत्येक जज को पांच-पांच प्रतिभागी सौंप दिए गये थे। जज अपने-अपने प्रतिभागी को नंबर देंगे उन नंबरों का महत्व अधिक होगा, वे पूरे नंबर गिने जाएंगे और बाकी जज जो नंबर देंगे उनमें से आधे नंबर उन प्रतिभागियों के खाते में आएंगे।
फाइनल की शाम एकदम ग्लैमरस, जगमगाती हुई थी। कार्यक्रम के एंकर ने कार्यक्रम की भूमिका, आयोजकों की मेहनत, निर्णायकों का परिचय और उनकी विशेषताओं का बखान करने के बाद असली कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
मंच पर बायीं और दाहिनी तरफ तीन-तीन कुर्सियों को सजाया गया था।दाहिनी तरफ तीन जज और बायीं तरफ तीन जज और एक एंकर को बैठना था। सभी जजों के बैठ जाने के बाद उनके ड्रॉ की शुरुआत हुई। केतकी का नाम ठाकुर रविशंकर प्रभु की टीम में शामिल हुआ। उसके साथ इस टीम में शामिल बाकी पांच प्रतिभागी घबरा गयीं क्योंकि ठाकुर साहब से नंबर पाना आसान काम नहीं था। सभी जजों को एक खास पेपरशीट दी गयी थी। उसमें सबसे ऊपर अपनी टीम की छह प्रतिभागियों के नाम और उसके नीचे बाकी 24 प्रतिभागियों के नाम लिखे गये थे। एक-एक जज की प्रतिभागियों के नाम पुकारे जाने लगे। प्रतिभागी आकर अपना-अपना परिचय दे रही थीं। जज उनके लिए प्रोत्साहन के शब्द बोलकर नंबर दे रहे थे। इस परिचय राउंड में ठाकुर साहब की टीम का नंबर सबसे आखिर में था। वे अपना चेहरा निर्विकार रख कर प्रत्येक प्रतिभागी की बातें गंभीरता के साथ सुन रहे थे। वे अपना बांया हाथ बार-बार अपने सिर पर फेर रहे थे। उनके चेहरे से यह समझना मुश्किल था कि वे प्रतिभागी के प्रदर्शन पर खुश हैं या नाराज। उनकी टीम में सबसे आखिर में नाम पुकारा गया केतकी का। अचानक पेपर शीट पर ध्यान गड़ाए ठाकुर साहब के ध्यान में आया कि इस युवती ने तो अभी बोलना शुरू ही नहीं किया है। वह आयी भी या नहीं? उन्होंने सिर उठाकर देखा तो देखते ही रह गये। सौंदर्य प्रतियोगिता में बिना बालों वाली लड़की? इंपॉसिबल। वे अंचभित अवस्था में ही थे कि केतकी उनके पास गयी और उनके पैर छुए और वापस अपनी जगह पर आकर खड़ी हो गयी। उसने बोलना शुरू किया, लेकिन ठाकुर साहब का ध्यान वहां था ही नहीं। वह अपने ही विचारों में खोए हुए थे।
‘गुड इवनिंग। मैंने गुजराती में पढ़ाई-लिखाई की है। मैं अंग्रेजी में ठीक से बात नहीं कर पाऊंगी इस लिए मैंने हिंदी में बोलना पसंद किया है। मेरा नाम केतकी जानी है और मैं एक टीचर हूं। एक एलोपेशियन बहुत कुछ कर सकती है। वह अपने बाल गंवाती है विश्वास या आत्म सम्मान नहीं, यही साबित करना मेरा मकसद है। शुक्रिया।’ अपने दोनों हाथ जोड़कर केतकी वापस जाने को ही थी कि ठाकुर साहब ने गंभीर लेकिन चिढ़े हुए स्वरों में कहा, ‘रुकिए, ये प्रतियोगिता है...यहां सहानुभूति या चापलूसी के नंबर नहीं हैं। समझीं आप?’
‘जी नहीं सर, आप समझाने की कृपा करेंगे?’
‘सबसे पहले आपने मेरे चरणों को स्पर्श किया। किसी भी प्रतिभागी ने ऐस नहीं किया। यह चापलूसी नहीं है?’
‘जी नहीं, मैं खुद एक शिक्षक हूं। मेरे लिए गुरू तो ईश्वर और माता-पिता के समान हैं। किसी को चापलूसी लगे, मगर ये मेरे संस्कार हैं।’
दर्शकों ने तालियां बजायीं।
‘ यह प्लेइंग टू गैलरी वाली ट्रिक है। और बालों के बगैर सौंदर्य प्रतियोगिता में आने के पीछे सहानुभूति बटोरने के अलावा और क्या कारण हो सकता है?’
‘सर मैं सौंदर्य को बाहरी नहीं, अंदरूनी खूबसूरती मानती हूं। संस्कार, व्यक्तित्व और दूसरों के प्रति समानता-अनुकंपा को असली खूबसूरती मानती हूं...’
‘आपकी खूबसूरती की व्याख्या में मुझे दिलचस्पी नहीं है। बिना बालों के यहां आने के पीछे मकसद क्या है?’
‘सिर्फ बाल ही सुंदरता को परिभाषित करते हैं, ऐसा न कहीं लिखा है, और न मैं मानती हूं।मुझे बगैर बालों के बापू, सरदार वल्लभ भाई पटेल खूबसूरत ही नहीं प्यारे भी लगते हैं और पूजनीय भी उनके कार्यों और विचारों से... ’
एक बार फिर दर्शकों के बीच तालियों की गड़गड़ाहट हुई। सामने की कतार से किसी ने कहा, ‘अनुपम खेर भी प्यारे लगते हैं।’
इसमें से एक भी तर्क से ठाकुर साहब सहमत नहीं हुए। उन्होंने अपना बायां हाथ सिर पर रख कर जोर से दबाया। केतकी के नाम के सामने इंट्रोडक्शन राउंड के नंबरों के खाने में उन्होंने जीरो लिख दिया। शून्य। फिर जेब से रुमाल निकाल कर पसीना पोंछा. सामने रखे हुए ग्लास से पानी पिया। बाकी के जज अपने-अपने हिसाब से केतकी को नंबर देने लगे। लेकिन मन ही मन वे भी समझ गये थे कि ठाकुर साहब केतकी से नाराज हैं। मंच के पीछे की तरफ खड़ी बाकी प्रतिभागियों में से बहुतों को लगा कि ये तो गयी काम से। टकली। ठाकुर साहब के सामने होशियारी दिखाने चली थी। चलो, एक तो आउट हो ही गयी। आयोजकों में से एक युवा तन्ना केतकी से मिलने के लिये आये, ‘केतकी, आपका भविष्य मुझे उज्जवल दिखायी दे रहा है। आप बहुत आगे जाने वाली हैं। आपका व्यक्तित्व अनोखा है। लेकिन एक अनुरोध करूं क्या?’
‘अवश्य, कहिए। अनुरोध करने की जरूरत नहीं। मैंने इस प्रतियोगिता के किसी नियम को तोड़ा है क्या?’
‘नहीं। आप सबकुछ ठीक कर रही हैं। लेकिन ठाकुर रविशंकर के साथ वादविवाद करना छोड़ दें। जो कहें, चुपचाप सुन लें। जहां जरूरी हो वहीं, और जितने कम शब्दों में हो सके, उत्तर दें। प्लीज।’
‘सर, मेरे लिए यह प्रतियोगिता जीतना बहुत जरूरी नहीं है। लेकिन मेरे बालों के बारे में यदि कोई कुछ कहेगा तो मुझे उत्तर देना ही होगा। ये मेरे स्वाभिमान का सवाल है। इतना नहीं तो मेरे साथ-साथ बाकी एलोपेशयन लोगों के भी प्रश्न है। मुझे अपमानित होता देखकर कहीं वे निराश न हो जाएं, मुझे इस बात की भी चिंता है। मुझे नहीं लगता कि मैंने कोई गलत व्यवहार किया है।’
केतकी गलत बात तो कह ही नहीं रही थी। तन्ना ने केतकी को ऑल द बेस्ट कहा और बाहर निकल गये। उन्होंने फोन करके मुख्य आयोजकों से कहा, ‘मैं केतकी से मिला। हम कुछ नहीं कर सकते। आप ठाकुर साहब को संभालिए। केतकी जो कह रही है वह सही है, ऐसा वह मानती है और मैं भी। ’
तन्ना मंच की ओर मुड़े। दर्शकों के मनोरंजन के लिए हल्का-फुल्का संगीत बज रहा था। दूसरा टैलेंट राउंड था। उस राउंड के शुरू होने से पहले ही छह आंखें केतकी को खोज रही थीं। उसकी प्रतीक्षा में थीं। भावना, प्रसन्न शर्मा और...एनडी। वह केतकी को लगातार फोन लगा रहा था लेकिन वह उसका फोन काट रही थी इसलिए उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। उसकी आंखें लाल हो रही थीं। लेकिन उसके मवालीगिरी से बिना डरे, उसकी परवाह किए बगैर केतकी सेकंड राउंड की तैयारी में जुटी थी। उसके लिए यह राउंड बहुत कठिन था। हरेक प्रतिभागी को डांस या फिर गाना, जो चाहें उसके हिसाब से कॉस्ट्यूम और म्यूजिक ट्रैक की जानकारी पहले से ही देनी थी। केतकी ने गाना पसंद किया था। गाना और डांस, उसे दोनों ही अच्छी तरह से नहीं आता-ऐसा उसका मानना था,फिर भी गाना वह ठीक से गा पाएगी। केतकी की पसंद सुन कर सभी को आश्चर्य हुआ, क्योंकि सभी को उसकी आवाज के बारे में मालूम था। ठाकुर रविशंकर भी अचरज में पड़ गये। मंच पर पहुंचने के बाद केतकी ने दो बातें बताईं...एक लाइट कम से कम हों...मानो अलसुबह का समय हो उस तरह...और एकदम शांति होनी चाहिए। किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।उसके कहे मुताबिक स्टेज पर अंधेरा कर दिया गया। बाद में धीरे-धीरे डिम लाइट का प्रकाश फैलता गया और तब केतकी ने गाना शुरू किया, ‘वैष्णव जन तो तेणे कहिए
जे पीड पराई जाणे रे
परदुःखे उपकार करे तो ए
मन अभिमान न आणे रे...’ गाने का किसी भी तरह का कोई प्रशिक्षण न लेने के बावजूद शुद्ध और निर्मल भाव से गाये हुआ बापू के प्रिय भजन से वातावरण मंत्रमुग्ध हो गया..लोग तल्लीन हो गये...इतने कि गाने की आखिरी लाइन कब आयी किसी को पता ही नहों चला। भजन समाप्त होने के बाद भी लोग भजन में ही खोये हुए थे। पांच-छह पल ऐसे ही गुजर गये और फिर किसी ने तालियां बजाना शुरू किया। तालियों की गड़गड़ाहट बढ़ने लगी। ठाकुर रविशंकर ने भी ताली बजाने के लिए हाथ ऊपर किये लेकिन फिर देखा कि आजू बाजू के निर्णायकों की नजर उन पर है तो उन्होंने चालाकी से उस हाथ से पेपर शीट सामने खींच कर उसमें केतकी के नाम के सामने तीन नंबर लिख दिये।
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
---