Agnija - 152 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 152

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अग्निजा - 152

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-152

वैसे देखा जाए तो केतकी मुंबई को फाइनल राउंड की बहुत अधिक चिंता नहीं थी। शनिवार सुबह दस बजे रिपोर्टिंग टाइम था और रिहर्सल शुरू हो चुकी थी। केतकी को बची हुई 29 प्रतिभागियों की बहुत फिक्र नहीं थी लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि उनके अलावा छह और लोग भी थे, जो उसकी हार-जीत का फैसला करने वाले थे। वे छह माने फाइनल राउंड के जज थे। ये सभी अपने-अपने क्षेत्र के जाने-माने लोग थे। सोनल गोदरेज प्रसिद्ध समाज सेविका थी और उच्च वर्ग में उनका बड़ा नाम था। अनिता वालुचा देश की प्रमुख सौंदर्य प्रतियोगिता की रनर-अप रह चुकी थीं। मिलिंद कसबेकर फैशन फोटोग्राफर थे। उनकी चर्चा उनकी तस्वीरों के साथ-साथ उनके फ्लर्ट स्वभाव के लिए भी होती थी। यतीन कपूर एक टीवी सीरियल के कारण घर-घर पहचाने गये थे लेकिन काम की खोज कर रहे थे। प्रकाश डिसूजा किसी समय में मेल मॉडल थे। अब उनकी मॉडलिंग की चर्चा कम होती है और उनके होमोसेक्सुअल होने की खबरें पेज थ्री पार्टियों में अधिक हो रही थी। और इन पांच लोगों में से सबसे अलग, सभी मायनों में एक आदरणीय नाम था ठाकुर रविशंकर ‘प्रभु’ का। ठाकुर रविशंकर यानी सुप्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय बांसुरी वादक और गायक। वह पेंटिंग्स भी बनाते थे। उनकी पेंटिंग्स कम ही होती थीं लेकिन जब किसी चैरिटीशो के लिए एकाध पेंटिंग बनाते तो लोग आफरीन कहे बिना रह नहीं पाते। अपने कला क्षेत्र में अद्भुत प्रभुत्व के कारण कलाजगत में उनका उपनाम प्रभु पड़ गया था। ठाकुर रविशंकर प्रभु की वाणी और व्यवहार बहुत अदब वाला था। वचन के पक्के और सच्चे। लंबी दाढ़ी, सिर पर बढ़े हुए लंबे बाल और विशाल भाल पर एक बड़ा टीका ये उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी। इस वजह से सबसे अलग दिखाई देते थे। उन्हें फोटोसेशन या इंटरव्यू के लिए मनाना टेढ़ी खीर थी। अपने कमरे से तैयार होकर ही बाहर निकलते थे। अपने कमरे में किसी को भी प्रवेश नहीं देते थे। इस वजह से इस प्रतियोगिता में जज के रूप में उनका राजी हो जाना बहुत बड़ी बात थी। जज मंडली में ठाकुर प्रभु मानो राजा थे, बाकी उनके दरबारी। संयोग से केतकी इन छह में से किसी को भी पहचानती नहीं थी, न ही उनके बारे में कुछ जानती थी। इसकी जरूरत भी नहीं थी। सभी निर्णायकों को प्रतिभागियों के प्रोफाइल और फोटो भेज दिए गये थे। पांच निर्णायकों ने उत्सुकतावश सभी की फाइलें देखीं लेकिन ठाकुर रविशंकर प्रभु ने एक भी फाइल खोलकर नहीं देखी, वह जरूरी नहीं समझते थे।

पहले दिन रैम्प वॉक की कोरियोग्राफी में नासिक की मोहिनी बार-बार गलतियां कर रही थी तो परेशान होकर ग्रूमिंग टीचर ने कड़े शब्दों में उसे फटकार लगायी। इसे सुनकर मोहिनी रोते हुए अपने कमरे में चली गयी और उसके बाद पंद्रह मिनट का ब्रेक हो गया। केतकी को कुछ भी खाना-पीना नहीं था लेकिन उसने आराम करना छोड़, वह मोहिनी के कमरे में गयी। ‘अरे, ऐसे प्रसंग तो जीवन में कई आते हैं। इस लिए कोई मैदान थोड़े छोड़ देता है। तुम्हारी गलती पर तुम्हारे माता-पिता डांटते हैं न? इस तरह भागते रहे तो जीवन में कहीं भी पहुंच नहीं पाएंगे हम। चलो मेरे साथ, तुम्हें तुम्हारे प्रिय व्यक्ति की कसम।’

‘आई हेट यू। तुम बिलकुल मेरी बड़ी बहन की तरह समझाती हो। ’

‘तो अपनी दीदी से बात कर लो।’

‘कैसे करूं? दो साल पहले एक एक्सीडेंट में उसका...’  इतना कह कर मोहनी केतकी के गले लग गयी। उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरते हए केतकी बोली, ‘तो अपनी दीदी का मान रखने के लिए बाहर आओ।’

केतकी ने बाहर आकर ग्रूमिंग टीचर को यह बात बतायी कि मोहिनी थोड़ी ही देर में बाहर आ रही है। टीचर को राहत मिली। नहीं तो तो सबकुछ नए सिरे से करना पड़ जाता। नई कोरियोग्राफी करनी पड़ती। वहीं दूर एक कोने में पांच छह युवतियां आपस में फुसफुसा रही थीं, ‘एक आउट हो रही थी लेकिन इस टकली को भी होशियारी दिखानी थी। अपने आपको बहुत होशियार समझती है। लेकिन यहां उसे कुछ भी नहीं मिलेगा और इस बात की सबसे अधिक खुशी मुझे होने वाली है।’

‘हां, लेकिन अपना एक प्रतिस्पर्धी तो बढ़ा दिया न इस टकली ने...’

तीसरी ने अपना सुर मिलाया, ‘वो सब तो ठीक है, पर यह कितनी बेशरम है। सिर पर एक भी बाल नहीं, पलकों पर भी नहीं और चली है ब्यूटी क्वीन बनने।’

ग्रूमिंग टीचर पानी पीने के लिए उठीं और उन्होंने घड़ी पर नजर दौड़ायी। केतकी ने पर्स में से मोबाइल निकाल कर देखा। भावना और प्रसन्न के मैसेज थे। उस अननोन नंबर के तीन मिस्ड कॉल दिखायी दिए। नेट चालू किया, तो मैसेंजर पर किसी एनडी का मैसेज था, ‘मेरे क्लाइंट के वूमन फॉर्मलवियर, पंजाबी, पैंट-कुरते इत्यादि की शूटिंग सिंगापुर में है। इंट्रेस्टेड इन मॉडलिंग?’ केतकी ने उत्तर दिया, ‘नो’।  दो मिनट के भीतर ही उसी नंबर से मोबाइल बजने लगा। केतकी को गुस्सा आ गया। फोन उठाते साथ वह बोली, ‘वॉट द हेल डू यू वॉंट?’

‘आई वॉंट यू...योर लव...क्यारे मळीश?’

‘तू...तू गुजराती है?’ सामने से फोन कट गया।

पंद्रह मिनट का ब्रेक समाप्त होने की घंटी बजी और फिर से सभी एकत्र हो गयीं। केतकी कुछ देर दरवाजे पर ही खड़ी रही। मोहिनी को अपने कमरे से बाहर निकलते देख कर उसे अच्छा लगा। उसने मोहिनी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘थैंक्यू मोहिनी।’

‘नो, आई मस्ट थैंक्यू दीदी।’

पहले दिन की ग्रूमिंग रात को साढ़े दस बजे तक चली। निकलते समय आदेश मिला कि कल सुबह आठ बजे फ्रेश होकर ब्रेक फास्ट लेकर यहां आना है। सभी खूब थक गयी थीं। केतकीने मोहिनी के साथ थोड़ा सा खा लिया। वह भी थक गयी थी। नींद की जरूरत थी। भावना को फोन किया पर उसने उठाया नहीं। दो-तीन बार लगाकर देखा। प्रसन्न को लगाया तो उसका भी स्विच ऑफ जा रहा था। उसे आश्चर्य हुआ। बात हो पाती तो अच्छा लगता। लेकिन उस समय भावना और प्रसन्न को उससे बात ही नहीं करनी थी। वे दोनों पुकु और निकी को लेकर उससे मिलने बाई रोड निकल चुके थे। वे केतकी को सरप्राइज देने वाले थे। उसी समय एनडी सोच रहा था कि यह पंछी तो कुछ ज्यादा ही चालाक निकला। मॉडलिंग के जाल में भी नहीं फंसा। अब क्य किया जाए?

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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