Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 172 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 172

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 172

जीवन सूत्र 531 अच्छे कर्मों का अवसर मिलता है मानव देह को


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है:-

इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।

एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः।

क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत।

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम।(13/2 एवं 3, गीता प्रेस)।


इसका अर्थ है,भगवान कृष्ण कहते हैं-हे कौन्तेय!यह शरीर क्षेत्र कहा जाता है और इसको जो जानता है,तत्त्व को जानने वाले लोग उसे क्षेत्रज्ञ कहते हैं।हे भारत ! तुम समस्त क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ मुझे ही जानो। क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ अर्थात विकार सहित प्रकृति का और पुरुष का जो ज्ञान है,वही वास्तव में ज्ञान है,ऐसा मेरा मत है।

शरीर को क्षेत्र इसलिए कहा जाता है,क्योंकि जिस तरह खेत में बीज बोए जाने पर समय आने पर फल प्रकट होता है,उसी तरह हमारे शरीर में बोए गए सद्कर्मों और संस्कारों के बीज से समय आने पर उत्तम फल प्रकट होते हैं।

जीवन सूत्र 532 हमारा शरीर ब्रह्मांड शक्तियों की प्रतिकृति


हमारा शरीर पंचमहाभूतों अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। यह क्षेत्र कर्म करने के लिए है। हमारे अच्छे कर्म होंगे तो इसके अनुसार हमारा भावी जीवन ईश्वर की कृपा वाला और सुखी होगा।


जीवन सूत्र 533 अपार संभावनाओं से युक्त है मनुष्य


वास्तव में मानव देह प्राप्त होने का ही अर्थ यह है कि मनुष्य के सामने एक संभावना है।वह है प्रारब्ध अर्थात अपने पूर्व जन्म के कर्म के विपरीत प्रभावों को काटने और बदलने की।


जीवन सूत्र 534 अपने अच्छे आज से बुरा कल और भविष्य की अनहोनी को टालें


वर्तमान क्रियमाण कर्मों को ज्ञान और विवेक के साथ अच्छे कार्यों में लगाने की। ऐसा करने पर इतना तो निश्चित हो जाएगा कि हमारे संचित कर्म जो जन्मांतर के लिए निर्धारित हो जाते हैं,वे सुधरते जाएंगे।


जीवन सूत्र 535 परमात्मा हम से सीधे जुड़े हैं


अगर मानव शरीर क्षेत्र है तो उसे जानने वाला ज्ञान तत्व स्वयं परमात्मा हैं, क्योंकि परमात्मा कण-कण में व्याप्त हैं। अगर शरीर प्रकृति है और मूल रूप से उसमें होने वाली जड़ता है तो उसे सक्रिय और सार्थक कार्यों में मोड़ने वाला चेतन तत्व हमारे भीतर आत्मा और उसके नियंत्रण कर्ता परमपिता परमात्मा ही हैं।



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय