Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 169 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 169

Featured Books
Categories
Share

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 169

जीवन सूत्र 517 जीत के लिए झोंकने होंगे सारे संसाधन


गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-


तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व

जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।

मयैवैते निहताः पूर्वमेव

निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।(11/33)।


इसका अर्थ है:-

इसलिये तुम युद्धके लिये खड़े हो जाओ और यशको प्राप्त करो।हे अर्जुन, तुम शत्रुओंको जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोगो। ये सभी( विपक्षी योद्धा गण) मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं। हे सव्यसाची,तुम निमित्तमात्र बन जाओ।

इसके पूर्व श्लोक में अर्जुन को समझाते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि मैं लोगों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ।प्रतिपक्ष की सेना में जितने योद्धाओं को तुम देख रहे हो,वे सब तुम्हारे युद्ध नहीं करने पर भी नाश को प्राप्त होंगे।

जीवन सूत्र 518 जो होना होता है वह होकर रहता है


इस श्लोक के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि वास्तव में जो कार्य हम करना चाहते हैं,वह पहले से ही निर्धारित है और उस कार्य को संपन्न होना ही है। यही कारण है कि भगवान कृष्ण,अर्जुन को केवल निमित्त अर्थात माध्यम बनने के लिए कहते हैं।प्रथम दृष्टया यह प्रतीत हो सकता है कि यह श्लोक भाग्यवाद की वकालत करता है कि जब सब पहले से तय है और जो होना है वही होने वाला है और उसमें परिवर्तन नहीं हो सकता है तो फिर व्यर्थ की कवायद क्यों? वास्तव में ऐसा नहीं है।भगवान कर्म की अवधारणा पर ही बल दे रहे हैं।

सूत्र 519 अवश्यंभावी घटनाएं होकर रहती हैं

यहां भगवान का आशय यह है कि जो घटनाएं कार्य-कारण संबंध या प्रारब्ध या अन्य कारणों से अगर अवश्यंभावी हैं,तो वे घटित होकर रहेंगी।हम ऐसी घटनाओं से किनारा कर लेना चाहते हैं जो गलत है। अपने रोजमर्रा के जीवन में हम ऐसी अनेक परिस्थितियों से पलायन कर जाते हैं कि हम माध्यम न बनें और इस तरह से हम किसी संभावित झंझट और अपयश से बच जाएंगे। वास्तव में ईश्वर इस तरह की निर्णायक स्थितियों में हमें अपनी सार्थक,धर्मसंगत भूमिका निभाने का एक अवसर देते हैं और हम हैं कि उसे स्वीकार नहीं करते हैं।भगवान इसी बात के लिए हमें सचेत करते हैं। इस श्लोक में भगवान का तात्पर्य कर्तापन के अभिमान को छोड़ने से है।अगर हम यह भाव मन में ले आएं कि 'मैं' यह करने जा रहा हूं तो सफलता में व्यवधान हो सकता है लेकिन अगर हम ईश्वर की ओर से कोई कार्य अपने हाथ में लें तो न सिर्फ हमारी प्रेरणा व उत्साह में बढ़ोतरी होती है बल्कि हमारी कार्यक्षमता में भी असाधारण सुधार होता है।


जीवन सूत्र 520 अच्छे कार्यों के लिए बनाना होता है निमित्त


हां कार्य को निमित्त बनकर करने में हम लापरवाही और आलस्य न बरतें इसलिए भगवान ने अर्जुन को सव्यसाची कहा है, अर्थात बाएं हाथ से बाण चलाने में भी सक्षम अर्थात आवश्यकता पड़ने पर हमें अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करना होगा, जैसे अर्जुन को समय आने पर दाएं और बाएं दोनों हाथों से बाण चलाने पड़े थे।


डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय





(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय