Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 154 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 154

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 154

जीवन सूत्र 456 विचलन के तूफान को रोकें उठने से पहले ही


परमात्मस्वरूप में मन(बुद्धि समेत) को उचित तरीके से स्थापन कर इसके बाद और कुछ भी चिन्तन न करें।

अर्जुन ने पूछा: -सिद्ध साधकों के लिए तो यह आसान है कि वह परमात्मा के सिवाय और किसी भी चीज का चिंतन करें लेकिन साधारण मनुष्य का तो बार-बार ध्यान विषयों की ओर जा सकता है।

श्री कृष्ण: तुमने ठीक कहा अर्जुन! मन की स्वाभाविक स्थिति चंचलता की है।व्यावहारिक जीवन में मनुष्य को ऐसी अनेक परिस्थितियों से गुजरना होता है,जहां उसके सामने अनेक विकल्प होते हैं। जीवन पथ पर चलते हुए कहीं प्रलोभन होता है तो कहीं पर सीमित प्रयत्न से अधिक परिणाम प्राप्त करने और अपने संसाधन को बचाने की चुनौती होती है।


जीवन सूत्र 457 मन की संभावित चंचलता को रोकने की चुनौती


अर्जुन: ऐसे में क्या उपाय है प्रभु? ईश्वर साधना का मार्ग छोड़ देना या फिर मन को ईश्वर से भटकने की स्थिति में हठात रोक देना।

भगवान श्रीकृष्ण ने समझाया: स्वाभाविक है कि मनुष्य का मन विषयों की और दौड़ेगा। मन केवल अपने साथ यहां वहां नहीं भटकता बल्कि यह इंद्रियों को भी खींचता है। ऐसे में मनुष्य अपने स्वाभाविक कर्मों का विस्मरण कर लक्ष्य से भटक जाता है।


जीवन सूत्र 458 बलपूर्वक रोकने के बदले विवेक से निर्णय होने दें


अतः जिनके मन भटक रहे हैं,वे हठात रोकने के बदले ऐसी स्थिति निर्मित करें कि मन को विवेक से निर्णय लेते हुए उन विषयों की निस्सारता का बोध हो जाए और बलपूर्वक रोकने के बदले मन स्वयं इंद्रियों को विषयों की ओर आकर्षित होने से रोक दे।

अर्जुन:-समझ गया प्रभु बलपूर्वक रोकने से अच्छा है,स्वेच्छा से मन को यहां-वहां भटकने ही न देना।

अर्जुन को फिर गुरु द्रोण के शब्द याद आने लगे। केवल पालथी मोड़कर आसन जमाकर योग और ध्यान का अभ्यास करना ही योग नहीं है। तुम्हें धनुर्विद्या पसंद है न अर्जुन?

अर्जुन: जी आचार्य!



जीवा सूत्र 459 अपने प्रिय कार्य का अभ्यास भी योग है

गुरु द्रोण:तो इस अभ्यास में ही योग है। जब तुम अपने लक्ष्य के संधान में डूब जाओगे तो यही योग है।

श्री कृष्ण ने अर्जुन के मन की बात जान ली और हंसते हुए कहने लगे:-तुम्हारा तो हर क्षण योगयुक्त है अर्जुन।जब धनुष बाण धारण किए हो तब भी और चाहे धनुष बाण के बिना सामान्य कामकाज कर रहे हो तब भी।


दिवस के 460 विषयों से ध्यान हटाना हर स्थिति में आवश्यक

विषयों से ध्यान हटाए रखना तो हर स्थिति में आवश्यक है।

अर्जुन के हाथ श्रद्धा में अनायास जुड़ गए।उसने कहा- जी जनार्दन!



आज का प्रसंग गीता के इस श्लोक पर आधारित है:-

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।

ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।(6/26)।

इसका अर्थ है-यह स्थिर न रहने वाला और चंचल मन जिस-जिस शब्दादि विषय के माध्यम से संसार में विचरता है,उस-उस विषय से रोककर अर्थात हटाकर इसे बार-बार परमात्मा में ही लगाएँ।

(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय