Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 142 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 142

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 142


जीवन सूत्र 406 प्राण और अपान वायु को सम करने का अभ्यास


भगवान श्री कृष्ण और जिज्ञासु अर्जुन की चर्चा जारी है।

जो प्राण और अपान वायु को सम करते हैं। जिनकी इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि अपने वश में हैं,जो मोक्ष-परायण है तथा जो इच्छा,भय और क्रोध से सर्वथा रहित हैं,वे साधक सदा (सांसारिक बंधनों से)मुक्त ही हैं।

(28 वें श्लोक से आगे का प्रसंग: पांचवें अध्याय का समापन 29 वां श्लोक)

ज्ञान के माध्यम से प्राण वायु की साधना की जा सकती है।


जीवन सूत्र 407 मन की उड़ान और बुद्धि के विलास पर विवेक की लगाम



मन की उड़ान और बुद्धि के विलास पर विवेक की लगाम लगाई जा सकती है लेकिन आखिर प्रश्न आता है इससे भी आगे। वह है भक्ति का। संपूर्ण सृष्टि का नियंता। ईश्वर, एक ऐसी व्यवस्था जो पूरे ब्रह्मांड को एक सुनिश्चित स्तर पर संतुलित रखती है और सृष्टि का यह चक्र गतिमान रहता है।


जीवन सूत्र 408 मन, बुद्धि और विवेक से भी परे उस ईश्वर के साथ तादात्म्य के लिए चाहिए भक्ति


मन, बुद्धि और विवेक से भी परे उस ईश्वर के साथ तादात्म्य के लिए चाहिए भक्ति। इसे और स्पष्ट करते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं: -

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।

सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति।।5/29।।

हे अर्जुन,मेरा भक्त मुझे सब यज्ञों और तपों का भोक्ता(अंतिम ध्येय),सम्पूर्ण लोकों का महा ईश्वर तथा सम्पूर्ण प्राणियों का सुहृद् अर्थात स्वार्थरहित दयालु,शुभचिंतक और कृपालु जानकर परम शांति को प्राप्त होता है।



जीवन सूत्र 409 ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता का स्मरण


एक ऐसी सर्वोच्चता जो हमारी कल्पनाओं से भी परे है,वह सर्वशक्तिमान परम सत्ता और उनकी भक्ति यह हमारे अंतःकरण की निर्मलता और अहंकार भाव से रहित होने के लिए अत्यंत आवश्यक है।ऐसे ईश्वर का स्मरण ही मनुष्य के भीतर एक नया विश्वास जाग्रत करता है।


जीवन सूत्र 410 ईश्वर सबके हैं


ईश्वर सबके हैं।उन्हें सृष्टि के कण-कण से लेकर ब्रह्मांड के विशाल आकाशीय पिंडों तक से सरोकार है।ईश्वर के मन में सबके प्रति वही दया भाव है।वे हमें वही देते हैं जो हमारे सर्वाधिक अनुकूल होता है।वहीं तात्कालिक हानि, पीड़ा और दुख के कारण हम उस परम सत्ता के अस्तित्व पर संदेह करने लगते हैं।भक्त कभी यह नहीं कहता कि ईश्वर केवल उसके हैं और न वह यह चाहता है कि ईश्वर की कृपा बस उसी को प्राप्त हो या वह ईश्वर का सबसे बड़ा भक्त है। उसके मन में यह भाव भी नहीं आता कि भगवान सब से प्रेम करेंगे तो उसके प्रति प्रेम कम हो जाएगा।ईश्वर ऐसे अक्षय पात्र हैं जिनकी कृपा उनके द्वारा सबको सदा बांटते रहने से भी कम नहीं होती।

जरा अलग हटके:तुम अगर साथ दो

तुम्हारे साथ से

निकल आती हैं राहें

घोर मुश्किलों में भी

और हिम्मत रहती है

एवरेस्ट की सी चढ़ाई में भी

एक साथी के साथ होने की।

तुम्हारे अहसास से

निकल आती हैं राहें

लंबे समुद्री सफर में

तूफानों की रात में

रास्ता भटक जाने के बाद

उम्मीद के प्रकाश स्तंभ की।

तुम्हारी याद से

निकल आती हैं राहें

मीलों पसरे अंधकार में

निरुत्साह मन को भी

फिर उठ खड़े होने को

जुगनू की एक चमक की।

डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय