Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 106 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 106

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 106


जीवन सूत्र 236 यज्ञ भी सहायक है कर्म बंधनों से मुक्ति में

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से गीता में कहा है:-

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे।

कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे।।4/32।।

इसका अर्थ है,इस प्रकार और भी बहुत तरह के यज्ञ वेद की वाणी में विस्तार से कहे गए हैं।उन सब यज्ञों को तू कर्मों से संपन्न होने वाला जान।इस प्रकार जानकर यज्ञ करने से तू कर्मबन्धन से मुक्त हो जाएगा।

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यज्ञ के विभिन्न प्रकारों की ओर संकेत करते हुए कहा है कि इन्हें विधि पूर्वक किए जाने से मनुष्य सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है।


जीवन सूत्र 237 यज्ञ का विधिपूर्वक होना आवश्यक


यज्ञ कोई भी किया जाए,लेकिन इनका निर्धारित रीति से पूरा किया जाना आवश्यक है।वेदों में यज्ञमय जीवन की कामना की गई है।द्रव्य यज्ञ से लेकर श्वांसो की गति के माध्यम से संचालित होने वाले यज्ञ तक भगवान कृष्ण ने जिन-जिन यज्ञ का उल्लेख किया है,वे सब क्रिया आधारित हैं।


जीवन सूत्र 238 क्रिया से अधिक महत्वपूर्ण है यज्ञ में सात्विक भाव


इन यज्ञों को करने के लिए एक अनुशासन और व्यवस्था चाहिए।मानव का वही कार्य उपयोगी है जो स्वार्थ के बदले परमार्थ पर आधारित हो और वही यज्ञ सफल है जिसका परिणाम ईश्वर की प्राप्ति में सहायक हो।

आचार्य सत्यव्रत ने आज की ज्ञान चर्चा में इस श्लोक की चर्चा की।विवेक ने पूछा,"गुरुदेव अगर कोई कर्म निर्धारित अनुष्ठान और प्रक्रियाओं के अंतर्गत संचालित नहीं हो पा रहा है तो क्या वह निरर्थक हो जाएगा?क्या कोई कार्य यज्ञरूप में ही मान्य है?"

आचार्य सत्यव्रत: हमारे सारे कार्य अगर यज्ञरूप दृष्टिकोण से किए जा रहे हैं तो क्रिया भेद या अनुष्ठान की किसी प्रक्रिया में कमी या अंतर के कारण निष्फल नहीं होगा।किसी भी क्रिया का परिणाम शून्य नहीं हो सकता है। प्रत्येक अच्छे कार्य में निर्धारित अनुकूल परिणाम अवश्य अंतर्निहित होता है।भले ही प्रारंभिक रूप से हम इसे अनुकूल और सफल ना मानें।

विवेक:जब एक ही तरह के कार्य के लिए दो लोगों को अलग-अलग फल मिलता हुआ दिखाई देता है तो मनुष्य भाग्य को दोष देता है।भाग्य से ही तो यह अंतर उत्पन्न हुआ।



जीवन सूत्र 239 कर्म से भाग्य भी बदलना संभव



आचार्य सत्यव्रत: ऐसा नहीं है।अच्छे कर्म बड़ी सीमा तक पूर्व निर्धारित भाग्य को बदलने में सक्षम होते हैं और पहले का लिखा हुआ मिटने में भी सहायता करते हैं।


जीवन सूत्र 240 वर्तमान कार्यों में सबसे अधिक शक्ति


वास्तव में सफलता की यह भिन्नता उसके कार्यों के पूर्व संचित लेखे के साथ-साथ वर्तमान काल में कार्य के प्रति उसकी गंभीरता और गहराई पर निर्भर करती है।




(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय