जीवन सूत्र 221 जहां परोपकार भावना है वहां है यज्ञ
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है: -
दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते।
ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति।।4/25।।
इसका अर्थ है,अन्य योगी लोग देवताओं की पूजन वाले यज्ञ का ही अनुष्ठान करते हैं और दूसरे योगी लोग ब्रह्मरूप अग्नि में ज्ञानरूपी यज्ञ के द्वारा अपनी आत्मा को परमात्मा को समर्पित कर हवन करते हैं।
जीवन सूत्र 222 यज्ञ का आयोजन लोक कल्याण के निमित्त किया जाता है
मनुष्य की वैयक्तिक पूजा उपासना के साथ-साथ उसके द्वारा यज्ञ का आयोजन लोक कल्याण के निमित्त किया जाता है।यज्ञ में परोपकार भाव होता है इसलिए परिवार के सदस्यों के साथ साथ अन्य लोगों को भी इसमें आमंत्रित किया जाता है।
जीवन सूत्र 223 यज्ञ से फैलती हैं सकारात्मक तरंगें
यज्ञ में मूल्यवान, सुगंधित और लाभदायक वस्तुओं की मंत्रयुक्त आहुति से सूक्ष्म अग्नि कणों और धुएं के माध्यम से वातावरण में सकारात्मक तरंगें फैलती हैं। इससे आसपास के वातावरण को एक सीमा तक स्वच्छ एवं शुद्ध रखने में अवश्य सहायता मिलती है।यह भी व्यापक शोध का विषय होना चाहिए कि यज्ञ से निकलने वाले धुएं में किस सीमा तक वातावरण में व्याप्त सूक्ष्म जीवाणुओं को निष्प्रभावी करने की क्षमता हो सकती है।इस कार्य में कहां तक इसका व्यापक उपयोग हो सकता है।
जीवन सूत्र 224 यज्ञ से बढ़ती है सामूहिकता की भावना
यज्ञ का आयोजन लोगों के समूह में एकत्रण,परोपकार के कार्य,आध्यात्मिक चर्चा और आनंद का विषय तो होता ही है।
जीवन सूत्र 225 आत्म यज्ञ मन और विचारों की शुद्धि हेतु आवश्यक
यजमान द्वारा किया जाने वाला यज्ञ अभीष्ट फल की प्राप्ति से भी आयोजित होता है। विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित यज्ञ के मूल में प्राय:यही भावना होती है।इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने ज्ञान रूपी यज्ञ की चर्चा की है जिसमें ब्रह्म रूपी अग्नि में आत्म तत्व को अर्पित करने से कल्याण होता है।यह सूक्ष्म यज्ञ हम अपने दैनिक कार्यों के साथ-साथ परमात्मा का निरंतर ध्यान करते हुए और अपने दैनिक कार्यों तथा प्रतिदिन के दायित्वों का संपादन करते हुए भी कर सकते हैं।यह आत्म यज्ञ हमारे मन और विचारों की शुद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक है।
(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)
(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय