Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 103 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 103

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 103


जीवन सूत्र 216 भगवान की बनाई इस सृष्टि में सब कुछ ब्रह्मयुक्त है


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने वीर अर्जुन से कहा है:-

ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।

ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4/24।।

इसका अर्थ है,जिस यज्ञ में अर्पण भी ब्रह्म है, हवी(हवन में डाली जाने वाली सामग्री) भी ब्रह्म है और ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा ब्रह्मरूप अग्निमें आहुति देने की क्रिया भी ब्रह्म है,अर्थात जिस मनुष्य की ब्रह्म में ही कर्म-समाधि हो गई है,तो (निश्चय ही) उसके द्वारा प्राप्त करने योग्य फल भी ब्रह्म ही है।

भगवान की बनाई इस सृष्टि में सब कुछ ब्रह्मयुक्त है।चंद्र तारों से लेकर सूक्ष्मदर्शी से ही दिखाई देने वाले अत्यंत सूक्ष्म जीव तक।ये सब सृष्टि के विकास की उस प्रक्रिया का परिणाम है, जिसने सत्व, रजस और तमस गुणों की साम्यावस्था टूटने पर अनेक तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।उस परम सत्ता की इसमें प्रधान भूमिका है। यह सब कुछ बन जाने के बाद उसमें प्राण फूंकने जैसी बात है। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति ने घर तो बनवा लिया।महंगे फर्नीचरों और आंतरिक सज्जा करने वालों की सहायता से अपने घर को अत्यंत सुशोभित कर दिया।


जीवन सूत्र 217 घर में बिखरा हो आनंद


लेकिन यह घर आनंदपूर्ण और चैतन्य बनेगा कैसे?जब इसमें रहने वाला व्यक्ति आनंद भाव से भरा हो।इस घर की प्रत्येक वस्तु को देखकर मन में प्रसन्नता का भाव रखने वाला हो।


जीवन सूत्र 218 सभी प्राणी के प्रति हो प्रेम भावना


न सिर्फ इस घर में रहने वाले बल्कि बाहर से आने वाले व्यक्तियों के प्रति भी प्रेम भाव रखता हो।


जीवन सूत्र 219 घर के केंद्र में हो ईश्वर का ध्यान


इस घर को स्वयं के अहंकार के बदले ईश्वर की कृपा से निर्मित एक अमूल्य भेंट समझता हो।किसी हवेली के बदले एक झोपड़ी ही बना सका तब भी उसमें रहकर ईश्वर की कृपा से प्राप्त उस अलौकिक आनंद को अनुभव करता हो।



जीवन सूची 220 हमारे अस्तित्व का हर क्षण ईश्वर की आराधना हो


ऐसा दृष्टिकोण रखने पर व्यक्ति स्वयं का नहीं रह जाता। महान संत रामकृष्ण परमहंस कहते हैं कि मेरा चलना- फिरना मां काली की प्रदक्षिणा हो। मेरा भोजन करना मां काली के द्वारा दिए गए प्रसाद को ग्रहण करना हो…..। जब हर कहीं अपने पुरुषार्थ से कार्य करते हुए व्यक्ति को ब्रह्म या ईश्वर तत्व का ध्यान रहे, तो हर चीज यज्ञमय बन जाती है।



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय