Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 97 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 97

Featured Books
Categories
Share

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 97


जीवन सूत्र 186 निश्चित लक्ष्य के साथ किए जाने वाले कार्य ' कर्म '

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है -

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।

तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4/16।।

इसका अर्थ है,(हे अर्जुन!)कर्म क्या है और अकर्म क्या है,इस पर विचार कर निर्णय लेने में बुद्धिमान मनुष्य भी मोहित हो जाते हैं।अतः वह कर्म-तत्त्व मैं तुम्हें भलीभाँति कहूँगा,जिसको जानकर तू अशुभ(अर्थात इस संसार के कर्म बन्धन)से मुक्त हो जाएगा।

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मों को संपन्न करने के समय आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों पर चर्चा की है।


जीवन सूत्र 187 बिना आसक्ति और फल की कामना के किए जाने वाले कार्य-अकर्म

अनेक बार ऐसा होता है,जब मनुष्य यह नहीं जान पाता है कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो कर्म की श्रेणी में आते हैं और ऐसे कौन से कार्य हैं जो विकर्म की श्रेणी में आते हैं।आखिर मनुष्य के वे कौन से कर्म हैं जो सात्विक भाव होने के कारण और आसक्ति के त्याग के कारण अकर्म बन जाते हैं।


जीवन सूत्र 188 कर्म मनुष्य का सबसे बड़ा सहायक


आगे के श्लोकों में इस अवधारणा की चर्चा करने की पूर्वपीठिका के रूप में श्री कृष्ण ने बताया है कि वह कर्मतत्व इतना प्रभावशाली है कि मनुष्य को संसार के समस्त मोह बंधनों से मुक्त कर देता है।


जीवन सूत्र 189 कर्मों में ही है मुक्ति


यह सीधे-सीधे मनुष्य की मुक्ति का मार्ग है और इस जीवन के साथ-साथ इस जीवन के पार भी उसकी मोक्ष की यात्रा में सहायक है।दार्शनिक और सैद्धांतिक बातों को आचरण में उतारना सदैव से कठिन रहा है।यहां किसी चमत्कार की कामना कर अपने जीवन के कल्याण और लाभ प्राप्ति के निमित्त मार्ग ढूंढने वालों को भी उनकी आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिलती है।


जीवन सूत्र 190 अच्छा कर्म करने वालों पर ही होती है अनायास कृपा


उस परमसत्ता की अनेक मनुष्यों पर अनायास कृपा के भी अनेक उदाहरण मिलते हैं।तथापि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि कर्म मार्ग को सुदृढ़ करने से स्वत: ही वह मार्ग उपस्थित हो जाएगा, जिसमें मनुष्य के सार्थक जीवन का कल्याण अंतर्निहित है। जीवन के मार्ग पर चलते रहने के समय यह भाव मन में रखना अत्यंत आवश्यक है कि अगर मनुष्य की आस्था उस परम सत्ता में है तो वह हमारे मन का करने के साथ-साथ पहले वह करते हैं जो वास्तव में हमारे लिए, हमारी परिस्थिति के लिए और हमारे संपूर्ण पूर्व कार्यों के आकलन के हिसाब से आवश्यक होता है।

(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय