रामानुजन के शोध कार्य का आरंभ उनके स्कूल के विद्यार्थी-काल से ही मानना चाहिए। रामानुजन तब तेरह वर्ष के रहे होंगे, स्कूल में पढ़ते समय ही उन्होंने अध्यापकों से विचित्र प्रश्न पूछने एवं गणितीय अभ्यासों के सरल हल निकालने आरंभ कर दिए। जैसा हम पहले बता चुके हैं, उनके घर में दो युवा विद्यार्थी रहते थे। उन विद्यार्थियों से उन्होंने पुस्तकालय से कुछ अन्य पुस्तकें लाने का आग्रह किया। जो पुस्तकें उन्होंने लाकर दीं, उनमें एस. एल. लोनी की ‘ट्रिगोनोमेट्री’ भी थी। (यह पुस्तक भारतीय स्कूलों में बीसवीं शताब्दी के छठे दशक के बाद तक प्रयोग होती रही है।) इस पुस्तक के भाग 2 में कुछ अध्याय थोड़े उच्च स्तर के हैं। उन्होंने इस पुस्तक पर अच्छा अधिकार कर लिया।
गणितीय अध्ययनों में संख्याओं (numbers), फलनों (functions), स्थिर-राशियों (constants), चर राशियों (variables), फंक्शनलों (functionals) आदि का प्रयोग होता है। इनके अतिरिक्त गणितीय विचारों का मूलभूत आधार है अंतरिक्ष। यह माना जाता है कि एक गणितज्ञ का मस्तिष्क संख्याओं और अंतरिक्ष में विचरण करता है। स्थिर राशियों में कुछ विशेष रूप से बहुत महत्त्व की हैं। आरंभ से ही रामानुजन का मन संख्याओं और स्थिर राशियों के विशाल उपवन में विचरने लगा था। छोटी आयु में ही उन्होंने गणित में विशेष स्थान रखने वाली संख्याएँ ‘पाई’ (ग) एवं ‘ई’ (e) का ज्ञान कॉलेज स्तर की पुस्तकें पढ़कर प्राप्त कर लिया था।
एस.एल. लोनी की त्रिकोणमिति के अतिरिक्त आरंभिक काल से ही जिस अन्य पुस्तक को उन्होंने इन विद्यार्थियों के माध्यम से प्राप्त कर लिया था, वह थी जॉर्ज शूब्रिज कॉर की ‘ए सिनोप्सिस ऑफ एलिमेंटरी रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइड मैथेमेटिक्स’। दो भागोंवाली इस पुस्तक की विशेष भूमिका रामानुजन के जीवन में रही। पहला भाग, जो रामानुजन के हाथ लगा, सन् 1880 का प्रकाशन था तथा दूसरा भाग 1886 में छपा था। दुर्भाग्य से ये पुस्तकें अब प्राप्य नहीं हैं।
प्रो. रिचर्ड एस्की ने लिखा है कि इसमें विभिन्न सूत्र, गणितीय तादात्म्य और प्रमेय दिए गए हैं; परंतु विशेषता यह है कि उनमें से लगभग सभी को लिख भर दिया गया है, उनको सिद्ध नहीं किया गया है। प्रत्येक अध्याय में सूत्र एवं साध्य क्रमानुसार हैं, परंतु अध्याय के नंबर 100, 200 आदि हैं और लगातार नहीं हैं। बीच-बीच में कुछ नंबर छोड़ दिए गए हैं। उनका अनुमान है कि ऐसा कदाचित् इसलिए किया गया है कि आगे आने वाले संस्करणों में छूटे हुए स्थानों पर सामग्री दी जा सके। सब मिलाकर लगभग 1300 स्थान रिक्त हैं। अंतिम सूत्र की संख्या 6165 है। वास्तव में उसमें लगभग 4865 सूत्र हैं। ये सूत्र बीजगणित, त्रिकोणमिति, एनालिटिकल ज्यामिति एवं कैलकुलस विषयों पर हैं।
प्रो. शेषु अय्यर एवं श्री आर. रामचंद्र राव ने रामानुजन के जीवन में कॉर की पुस्तक का स्थान बताते हुए लिखा है—"यह वह पुस्तक थी, जिसने उनकी विलक्षण बुद्धि को प्रज्वलित कर दिया। वह उसमें दिए प्रत्येक सूत्र को सिद्ध करने में जुट गए। चूँकि उन्हें कोई अन्य पुस्तक उपलब्ध नहीं थी, अतः जहाँ तक उनका संबंध है, प्रत्येक हल अपने आप में नवीन एवं एक शोध था।”
गणित की यह विशेषता है कि जब तक उसके किसी साधारण-से-साधारण निष्कर्ष को समुचित रूप से सिद्ध नहीं कर दिया जाता, उसको मान्यता तो क्या, स्वीकार भी नहीं किया जाता। रामानुजन अपनी विलक्षण गणितीय प्रतिभा से कॉर के सूत्रों की उपपत्तियाँ (proofs) लिखते थे। स्कूल में विद्यार्थी रहते-रहते उनकी शोध-जिज्ञासा इतनी प्रज्वलित हो गई थी कि वह केवल इन सूत्रों को सिद्ध ही नहीं करते थे बल्कि वह उनके विस्तारीकरण (generalization) को भी सिद्ध करने का प्रयास करते थे।
कॉर की पुस्तक में दिए सूत्रों की उपपत्तियाँ एवं नवीन सूत्रों को रामानुजन ने अनुमानतः सन् 1904 से एक ने रजिस्टर में साफ-साफ लिखना आरंभ कर दिया था। वह लंबे पृष्ठों पर हरी स्याही से लिखते थे। यही रजिस्टर बाद में ‘रामानुजन की नोट बुक’ नाम से जाना गया। इनका एक संकलन मुंबई के ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ ने प्रकाशित किया है। प्रो. जी. एन. वाटसन के अनुसार, इंग्लैंड जाने से पूर्व भारत में रामानुजन द्वारा दिए गए सूत्रों/निष्कर्षों की संख्या 3,000 से 4,000 के बीच थी।
स्कूल छोड़ने के बाद उनके जीवन में पूरे पाँच वर्ष का समय ऐसा आया, जब न उनके पास नौकरी थी, न ही वह एक विद्यार्थी थे, न किसी अध्यापक अथवा शोधकर्ता से संबंध था और न ही उनके पास कोई साधन थे। परंतु वह गणित-सृजन में पूरे मनोयोग से लगे रहे। इस समय ट्यूशन से उनकी आय मात्र पाँच रुपए प्रति माह थी। माता-पिता, मित्र एवं संबंधी उनकी गणित की प्रतिभा से परिचित थे। उन्हें गणित में लगे रहने की पूरी छूट थी और वित्तीय कठिनाइयों के रहते भी पूरा प्रोत्साहन मिलता था। संभवतः यह समय रामानुजन को भावनात्मक, बौद्धिक एवं सौंदर्य की तुष्टि प्रदान करने वाला रहा। वह स्लेट लेकर जमीन पर बैठे रहते और सब सुध-बुध खोकर गणित में डूबे रहते।
कहा जाता है कि रामानुजन ने उसी समय त्रिकोणमितीय फलनों (sine, cosine, etc.) का वह श्रेणीबद्ध विस्तार (series expansions) निकाल लिये थे, जो ‘ऑयलर’ के नाम से गणितज्ञों को पहले ही ज्ञात थे।