Man's shame... in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | मर्द की शर्म...

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मर्द की शर्म...

"सर!हमें सिंहपुर जाना होगा,सुना है उस लाखन सिंह डकैत का वहीं आना जाना है",हवलदार खूबचन्द ने इन्सपेक्टर अखिलेश यादव से कहा....
"लाखन...!सिंहपुर आता है,वो भला क्यों?उसका वहाँ कोई सगा सम्बन्धी रहता है क्या?जिससे वो उससे मिलने जाता है वहाँ,"इन्सपेक्टर अखिलेश यादव बोले...
"जी!नहीं सर! एक औरत है रामकली,वो उसके यहाँ जाता है,दोनों के बहुत चर्चे हैं उस गाँव में",हवलदार खूबचन्द बोला....
"ओह...समझा! चलो फिर देर किस बात की है,चलो निकलते हैं अभी"
और फिर इतना कहकर इन्सपेक्टर अखिलेश यादव कुछ हवलदारों के साथ जीप में बैठकर निकल पड़े सिंहपुर गाँव की ओर,चौमासा चल रहा था इसलिए उन्हें सिंहपुर पहुँचने में बहुत दिक्कत हुई,कच्चा रास्ता था,जगह-जगह जीप कीचड़ भरे गड्ढों में फँस रही थी,कीचड़ भरे रास्ते को पार करके वो उस महिला रामकली का पता पूछते पूछते उस के कच्चे खपरैल छाएं घर के सामने जा पहुँचे,फिर इन्सपेक्टर अखिलेश यादव धड़ाधड़ एक हवलदार के साथ रामकली के घर में घुस गए,क्योंकि दरवाजा पहले से खुला हुआ था, इन्सपेक्टर अखिलेश यादव ने देखा कि घर के आँगन में एक औरत पटरे पर बैठी बर्तन माँज रही थी,उसके हाथ राख से सने थे,उसकी धोती घुटने तक ऊपर चढ़ी थी,जिससे उसकी चमकदार और कोमल पिंडलियाँ दिख रहीं थीं,उसके पाँव में पाजेब नहीं थीं,ना पैरों में चप्पल थीं,उसने अपने लम्बे बालों का जूड़ा बनाया हुआ था,गले में काला धागा था,माथे पर बड़ी सी कुमकुम की बिन्दी और हाथों में काँच की चूड़ियाँ थीं,उसने हरे रंग की पीली किनारी की धोती पहनी थी जिसका पल्लू सिर से सरककर पीठ पर आ गया था,कुल मिलाकर वो अपनी साधारण सी सँज-धज में निहायत ही खूबसूरत लग रही थी,एक पल को इन्सपेक्टर अखिलेश यादव उसे देखता ही रह गए,
दरअसल पुलिस मुख्यालय के दबाव से अखिलेश यादव बेहाल थे,क्योंकि विभाग को डाकू लाखन सिंह जिंदा या मुर्दा किसी भी हाल में चाहिए था, ऐसा न होने पर उनकी नौकरी के जाने का खतरा था, ऊपर से डाकू लाखन सिंह के बचाव के आरोप में मुकदमा चलाए जाने की धमकी भी उन्हें दे दी गई थी क्योंकि पुलिस विभाग को शक था कि इन्सपेक्टर यादव लाखनसिंह से रिश्वत लेते हैं तभी उसे पकड़ नहीं पा रहे हैं,ऐसे में कोई भी व्यक्ति सुकून से कैसे बैठ सकता था? इन्सपेक्टर साहब का उठना-बैठना, सोना, खाना-पीना सब दूर्भर हो गया था,उन्हें कुछ भी नहीं सूझता था,बस एक ही बात आँखों के सामने घूमती रहती थी कि कब लाखन सिंह उनकी पकड़ में आए.....
लेकिन जब उन्होंने उस औरत को देखा तो वें उसे देखकर अपनी सारी परेशानियाँ भूल गए,लेकिन फिर उन्हें याद आया कि वें तो ड्यूटी पर हैं,किसी औरत के रूप के जादू में डूबकर वो अपना कर्तव्य भला कैसें भूल सकते हैं? इसलिए इन्सपेक्टर साहब ने उस औरत से पूछा....
"तुम ही रामकली हो"
उस औरत का हाथ काम करते करते रूक गया और वो अपनी धोती से पिंडलियों को ढ़कते हुए खड़ी होकर बोली....
"हाँ! हम ही रामकली हैं,का कौन्हौं बात हो गई का?"
"हाँ!लाखन सिंह को जानती हो"इन्सपेक्टर ने पूछा...
"ना!हम ना जानित हैं कौन्हौं लाखन सिंह को",वो बोली....
उसका उत्तर सुनने के बाद इन्सपेक्टर अखिलेश यादव ने उसके घर का जायजा लेना शुरू किया,वो उसके घर को देखने लगे,जिसमें वह औरत रहती थी,वहाँ खपरैलों वाली दो तीन कोठरियाँ थी,आँगन कच्चा था चौमासा होने से सब जगह की मिट्टी गीली थी,पिच पिच मची हुई थी सब जगह,कोठरियों की सारी दीवारेँ काई से भरीं थीं, खपरैल पर एक बाँस की डलिया रखी थीं जिसमें लाल मिर्चें सूखने को रखीं थीं,एक कोठरी में शायद बकरियाँ बँधी थीं जिनकी मिमियाने की आवाजें आ रही थीं....
फिर इन्सपेक्टर अखिलेश ने उससे पूछा.....
"क्या करता है तुम्हारा मर्द"?
"वो तो बीमार है,बीच वाली कोठरी में पड़ा है"वो बोली...
"खर्चा कैसे चलता है"?इन्सपेक्टर ने पूछा....
"मजदूरी करके"वो बोली.....
तब इन्सपेक्टर अखिलेश यादव बोलें.....
"लाखन सिंह की खैरात पर चल रहा है ना इस घर का खर्चा"
"ना!हुजूर !वो हमारा क्या लागे हैं जो हमें खर्चा देगा"रामकली बोली....
"बुला अपने आदमी को बाहर उससे कुछ पूछताछ करनी है"इन्सपेक्टर अखिलेश बोलें....
और रामकली को अपने आदमी को बाहर बुलाने की जरूरत नहीं पड़ी,एक बूढ़ा बीमार सा आदमी कमर झुकाए हुए खुदबखुद बाहर आकर बोला....
"का बात है रामकली?
"उससे क्या पूछता है,मुझसे पूछ कि क्या बात है"?
"तो हुजूर! आप ही बता दीजिए की क्या बात है"?रामकली के पति ने कहा....
"नाम क्या है तुम्हारा"?इन्सपेक्टर यादव ने पूछा.....
"जी! घीसू "वो बोला...
तब इन्सपेक्टर यादव बोले....
"तुम ही इसके आदमी हो?"
गहरी साँस छोड़ते हुए, झुकी गर्दन और नीची आँखों से गहरे अफसोस में वो बोला....
"हाँ, हुजूर!मैं ही वो अभागा हूँ"और पसलियाँ दिख रही छाती पर वो पर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, जैसे कि अपनी औरत की नादानी को माँफ करने के लिए विनती कर रहा हो....
फिर इन्सपेक्टर यादव ने घीसू से कहा ....
"आओ मेरे साथ बाहर आओ कुछ पूछताछ करनी है"
फिर घीसू इन्सपेक्टर के साथ बाहर आने लगा तो रामकली बोली...
"कहाँ जाते हो,अगर तुमने कुछ बताया तो वो हम सबकी चमड़ी उधड़वा लेगा"
फिर घीसू के पाँव रुक गए,जैसे अपनी औरत की धमकी से वो डर गया हो, लेकिन जब इन्सपेक्टर यादव ने अपनी कड़क आवाज में कहा.....
"रुक क्यों गए?चलो!
तो वह फिर से आगें बढ़ने लगा, निर्दोष होते हुए भी वो ऐसा करने लगा,फिर पुलिस की जीप में उसे बैठाकर पुलिसवाले उसे गाँव से काफी दूर एकांत में ले आएं,वहाँ दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं पड़ रहा था,एकान्त बीहड़ था,राइफलधारी हवलदार भी साथ में खड़े थे,इन्सपेक्टर यादव के बहुत पूछने पर भी घीसू मुँह नहीं खोल रहा था....
फिर इन्सपेक्टर अखिलेश यादव ने हवलदारों को घीसू के हाथ पैंर बाँधने का आदेश दिया और बोले पेड़ से बाँधकर इसकी सुताई करो और ना कुबूले तो दौड़ा दौड़ाकर गोली मार देना,पुलिस विभाग से कह दिया जाएगा कि इनकाउंटर में मारा गया.....
इतने में जैसे ही हवलदार खूबचन्द घीसू के हाथ-पैर बाँधने को हुआ तो घीसू ने केवल इतना कुबूला कि....
"हुजूर!डाकू लाखन सिंह मेरी घरवाली के पास आता है, मगर मुझे खुद पता नहीं चलता कि वो कब आता है?"
काफी देर की चुप्पी के बाद सिर्फ इतना बोलने पर, जिसका कोई खास मतलब नहीं था,घीसू पर इन्सपेक्टर अखिलेश यादव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने उसे कसकर एक झन्नाटेदार झापड़ रसीदकर कहा....
"तेरी औरत के साथ पराया मर्द सोता है और तुझे पता ही नहीं चलता और हद है कि इस पर तुझे जरा भी शर्म नहीं आती,तेरी जगह और कोई आदमी होता तो अपनी औरत के ऐसे कुकर्म पर चुल्लू भर पानी में डूबकर अपनी जान दे देता"....
इस पर घीसू इन्सपेक्टर यादव से बोला....
"हुजूर! जब गरीब पर गरीबी आती है ना तो हर मर्द की शर्म चूल्हे में चली जाती है,रामकली मेरी दूसरी औरत है,गरीब विधवा थी सो मैं उस पर चुनरी डालकर अपने घर ले आया,मेरी पहली औरत से चार बेटियाँ और एक बेटा है,बेटा शहर में पढ़ता है,उसकी पढ़ाई का खर्चा रामकली ही उठाती है और चार बेटियों को रामकली की कमाई ने ही उनके ससुराल पहुँचाया,मैं ठहरा तपेदिक का मरीज,मेहनत मजदूरी मुझसे होती नहीं,घर का सारा खर्चा रामकली ही उठाती है इसलिए वो लाखन सिंह हमारे घर आता है,जब वो मेरी औरत के साथ बंद कोठरी में बिस्तर पर होता है तो मेरे सीने पर साँप लोटते हैं,लेकिन पेट की आग ने मेरी आँखों का पानी मार दिया है,मेरी लाज शर्म सब भाड़ में चली गई,मर्द की शर्म औरत की इज्जत से होती है लेकिन मैं खुद अपनी औरत की इज्जत का दुश्मन बन बैठा हूँ,पेट की आग ने मुझ जैसे मर्द की शर्म को मार दिया है,आप गरीब होते तब समझते कि रोटी क्या क्या नहीं करवा लेती.....
फिर घीसू की बात सुनकर इन्सपेक्टर अखिलेश यादव ने उसे जाने दिया,ड्राइवर से जीप कस्बें की ओर ले जाने को कहा,तब हवलदार खूबचन्द ने उनसे पूछा...
"सर!लाखन सिंह को अब कैसे पकड़ेगे"?
तब इन्सपेक्टर अखिलेश यादव बोले...
"वो बाद में देखा जाएगा अभी यहाँ से चलो,मुझे बहुत घुटन हो रही है,"....

समाप्त....
सरोज वर्मा....