Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 78 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 78

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 78

जीवन सूत्र 107-108 भाग 77


जीवन सूत्र 107: मन और बुद्धि में हो तालमेल


गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।

एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्।।3/40।।

इसका अर्थ है, हे अर्जुन!इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि इस काम के वास-स्थान कहे गए हैं।यह काम इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि के द्वारा ही ज्ञान को ढककर मनुष्य को मोहित करता है।

भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम काम के निवास स्थान और उनकी उत्प्रेरक भूमिका के संकेत को एक सूत्र के रूप में लेते हैं। वास्तव में मनुष्य की तीव्र कामनाएं इंद्रियां, मन और बुद्धि से संबंधित हैं। इन्हें कामनाओं का निवास स्थान भी कहा गया है।

मनुष्य की एक ही इंद्री हो और उसके एक ही विषय की ओर ध्यान जाए तो बात अलग है लेकिन यहां तो पांच कर्मेंद्रियां पांच ज्ञानेंद्रियां हैं और विशेष रूप से ज्ञानेंद्रियों के विषय मनुष्य को बार -बार कामनाओं की ओर मोड़ते हैं। यहां हमारा मन भी इंद्रियों के विषय का अनुगामी हो जाता है और वह इंद्रियों के कार्य व्यापार का समर्थन करता है।


जीवन सूत्र :108: मन को बुद्धि पर हावी न होने दें


मन और बुद्धि के इस द्वंद्व में प्राय: बुद्धि पराजित हो जाया करती है क्योंकि बुद्धि हमारे मन को विषय की ओर भागने से रोकने का सुझाव देती है लेकिन इसमें परिश्रम और आकर्षण है,इसलिए हमारा मन बुद्धि की नहीं सुनता और मनमाने ढंग से आचरण पर उतर आता है। उदाहरण के लिए हमारी जिह्वा को स्वादिष्ट भोजन पसंद है और शरीर के लिए आवश्यक न होने पर भी केवल स्वाद के कारण मनुष्य का मन उसे ग्रहण करने को तत्पर हो उठता है।यहां बुद्धि का कोई परामर्श भी काम नहीं आता। कुल मिलाकर इस तीव्र कामना ने ज्ञान को ढक लिया है और फिर मनुष्य मनमाना आचरण करने पर उतर आता है।ऐसी स्थिति में इंद्रियों को उनके अभीष्ट विषयों के प्रति हर स्थिति में अनुगामी व्यवहार से सचेत रहने की आवश्यकता है। ऐसा कर पाना कठिन अवश्य है लेकिन अभ्यास से यह सुगम हो जाएगा।


(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय