Jaadu Jaisa Tera Pyar - 9 in Hindi Love Stories by anirudh Singh books and stories PDF | जादू जैसा तेरा प्यार - (भाग 09)

Featured Books
Categories
Share

जादू जैसा तेरा प्यार - (भाग 09)

कॉलेज में पूरे तीन बीतने वाले थे, यह समय कैसे बीत गया पता ही न चला.....पढ़ाई,कैरियर,और पॉकेट मनी जुटाने के संघर्ष में जीवन क्या होता है,वह तो जैसे भूल ही गया था मैं।

बचपन से कभी रिश्तों को महसूस ही नही किया था,इसलिए रिश्तों के उन अहसासो से अनजान सा हो गया था मैं......कभी सोचने को वक्त ही न मिल सका,खुद के बारे में,खुद से जुड़े हुए लोगो के बारे में ,प्रिया के बारे में......
आज जब प्रिया अहसास दिला के गयी कि वह हद से ज्यादा मुझे समझती है....तब कहीं जा कर उसके साथ बिताए तीन साल अचानक से किसी फ़्लैश बैक की तरह दिमाग पर छाने लगे थे.....उसका हेल्पिंग नेचर.....पढ़ाई से लेकर जीवन जीने के तरीकों के बारे में मुझे मोटिवेट करना.......ड्रेसिंग सेंस से लेकर तमाम शहरी कल्चर्स के कायदे मुझे सिखाना......घर से रोज मेरे लिए लंच बॉक्स में एक्सट्रा लंच लाना.......इन स्वार्थी दुनिया में इतना अपना पन कौन दे सकता है भला.......वक्त और हालातों के मारे हुए मेरे बेचारे दिल ने शायद जीवन के संघर्ष में खुद को इतना व्यस्त कर लिया था कि आज तक कभी फील नही कर पाया था यह सब........आज प्रिया की एक एक क्वालिटी,उसके साथ तीन सालों में बिताया हुआ एक एक पल......आंखों से ओझल होने का नाम ही नही ले रहा था.....कुछ ही दिनों बाद कॉलेज छूटने से ज्यादा प्रिया का साथ छूटने का अहसास मुझे अचानक से ही भावुक कर रहा था........अचानक से यह क्या हो गया था मुझे.....पहले तो कभी ऐसा नही हुआ था...कुछ भी समझ नही आ रहा था मुझे...कहीं यह प्यार तो नही.......।

यस......आई एम इन लव........इस एक छिपी हुई फीलिंग्स को दिल के किसी कोने से निकल कर आने में काफी वक्त लगा, पर जब यह निकल कर बाहर आई,तो मानों मेरी दुनिया ही बदलने लगी......मेरे सोचने का अंदाज, मेरी फीलिंग्स......हर तरफ एक नयापन था.......सब तरफ से अब बस एक ही नाम कानो में गूंजता हुआ महसूस हो रहा था......प्रिया।

कॉलेज में कैम्पस प्लेसमेंट सेल का आयोजन किया जा रहा था।
प्रिया को छोडकर हम चारों दोस्तो का अच्छी मल्टीनेशनल कम्पनीज में सिलेक्शन हो गया......प्रिया को एमबीए करना था,इसलिए उसने कैम्पस में पार्टीशिपेट नही किया था।

हम सब खुश थे.......सिवाय मेरे.....अच्छा खासा पैकेज मिलने के बावजूद भी मैं काफी असमंजस में था......कारण थी प्रिया.......उसका भरोसा......उसकी समझ.....

तीन सालों में मैं उसको इतना तो समझ ही चुका था कि वह अनर्गल कुछ भी नही बोलती......उसका सेंस ऑफ ह्यूमर गजब का था......और साथ मे उसकी डिसीजन्स मेकिंग भी।

हमारे ज्वाइनिंग लेटर्स हम सभी को अलॉट हो चुके थे....फाइनल एग्जाम्स के रिजल्ट के बाद ज्वाइन करना था, मेरी जॉब लोकेशन मुम्बई अलॉट हुई थी।

और फिर धीरे धीरे एग्जाम शुरू हो गए.....हम सब अच्छी परसेंटेज की होड़ में जीतोड़ मेहनत में जुट गए.....

उस दिन लास्ट एग्जाम था.....सुबन हम पांचों फ्रेंडस ने एक दूसरे को एग्जाम के लिए बेस्ट ऑफ लक बोला....और एग्जाम के बाद कॉलेज कैंटीन में मिलने के प्रॉमिस के साथ ही हम सब अपने अपने एग्जाम रूम में एंटर हो गए।

और फिर लास्ट एग्जाम भी फिनिश हो चुका था.....हम सब कॉलेज कैंटीन में एक साथ बैठे कुल्हड़ वाली चाय के साथ समोसे का आनन्द ले रहे थे.......चेहरे पर जबदस्ती स्माइल लाने की झूठी कोशिश करने में जुटी प्रिया का असल उदास चेहरा मैं उसकी आँखों मे झांक कर भली भांति पढ़ पा रहा था।

अनिकेत,सौम्या और मिहिर की बातें मुझ पर प्रभाव नही डाल पा रही थी......कुछ देर दिमागी ऊहापोह से जूँझने के बाद मैंने आखिरकार अपना निर्णय सबको सुना ही दिया....जिसकी कल्पना शायद प्रिया के अलावा किसी और ने नही की थी......

"दोस्तो काफी सोचने के बाद मैंने एक डिसीजन लिया है कि मैं यह जॉब ज्वाइन नही करूंगा"

मेरा फैंसला सुन कर वह तीनो एकदम से शॉक्ड हो गए,और मेरी ओर आंखे फाड़ते हुए एक सूर में चीख पड़े
"क्या?"
मैने प्रिया की ओर देखा ,उसने अपनी आंखों की पलको को झपकाते हुए मुझे आश्वस्त किया.....जैसे कह रही हो कि बिल्कुल सही निर्णय।

"वैभव ,पागल हो गया है क्या.....तुझे पता भी है....विप्रो में सिलेक्ट हुआ है तू.....हाइएस्ट पैकेज मिला है तुझे कॉलेज में.....लोग मरते है उस कम्पनी के लिए......और तू इतनी जल्दी जॉब न करने का भी डिसीजन ले बैठा"

अनिकेत ने मुझे समझाने की कोशिश की।

"हां यार वैभव.....बहुत ही गलत डिसीजन है तुम्हारा.....अगर ये जॉब ज्वाइन नही करी न....,तो देखियो पछताओगे तुम......यार चटखनी समझाओ न इसे "

सौम्या ने भी अपना मत रखते हुए प्रिया को वैभव को समझाने का इशारा करते हुए कहा।

बदले में प्रिया मुस्कुराई और बोली
" वैभव ने एकदम सही डिसीजन लिया है......मैं तो कहती हूँ हम सब मिलकर अपना कोई बिजिनेस स्टार्ट करते है.....देखना हम सब सक्सेस होंगे उसमें।"

यह सब देख सुन कर अनिकेत का पारा हाई होने लगा था,वह बुरी तरह भड़क पड़ा था मुझ पर.....
"यार तुम दोनों के दोनों पागल हो गए हो लगता है....सरासर आत्महत्या कर रहे हो.....यार वैभव प्रिया तो ऑलरेडी अरबपति है,उसे क्या नीड जॉब की....पर तुम....भूल गए क्या अपने हालात......लगता है दिमाग ठिकाने नही तुम्हारा......खुद तो डूबोगे ही हमें भी साथ डुबाओगे.......जा रहे है हम...जब ठोकर लगेगी तब खुलेगी बुद्धि...बाय"

मेरे निर्णय से खफा सौम्या और अनिकेत जाते जाते मिहिर को भी अपने साथ खींच ले गए.....और एक बार फिर कैन्टीन की उस टेबल पर बैठे रह गए हम दोनों....
मैं और प्रिया।

(कहानी आगे जारी रहेगी)