Jaadu Jaisa Tera Pyar - 5 in Hindi Love Stories by anirudh Singh books and stories PDF | जादू जैसा तेरा प्यार - (भाग 05)

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जादू जैसा तेरा प्यार - (भाग 05)

प्रिया अब सामान्य हो चुकी थी, पर अभी भी उसने किसी को कुछ नही बताया था.....अनिकेत,सौम्या और मिहिर क्लास में जा चुके थे पर मैं अभी भी प्रिया के पाया ही था.....उसके रोने का कारण पूंछने की हर सम्भव कोशिश करने के बाद असफल होकर यूं ही उसके पास बैठा हुआ कभी उसको,तो कभी बास्केटबॉल के उस खाली पड़े कोर्ट को निहार रहा था......तभी अचानक से प्रिया ने अपना मौनव्रत तोड़कर बोलना शुरु किया

प्रिया- "पता है वैभव.....मैं बहुत अकेला फील कर रही हूँ खुद को......"

मैं- "आख़िर ऐसा भी क्या हुआ?"

प्रिया- "वैभव ,सिर्फ तुम पे ट्रस्ट करके अपने दिल की बात बता रही हूँ,प्लीज शेयर मत करना किसी से

मेरे हां में सिर हिलाने के बाद उसने आगे बताना आरम्भ किया

"वैभव....मेरी फैमिली में बहुत प्रॉब्लम्स है.....मॉम डैड बस दुनिया को दिखाने के लिये साथ हैं......रियलिटी यह है कि उनमें जरा भी नही पटती, और उनके अपने अपने ईगो के सैटिस्फैक्शन में मैं हमेशा से पिसती आई हूँ"

मैंने यह सुनकर हैरानी से प्रिया की ओर देखा,एक बार फिर से वह कुछ भावुक हो गयी थी, आंखों में फिर से झिलमिलाते आंसू लिए हुए उसने बोलना जारी रखा।

"मेरी मॉम की शादी उनकी मर्जी के बिना हुई थी,घर वालो के प्रेशर में.....एक्चुअली वो किसी और से शादी करना चाहती थी,किसी से वह सच्चा प्यार करती थी.....पर नाना जी उनके लव के अगेंस्ट थे, उनकी हार्ट्स प्रॉब्लम्स की वजह से मॉम उनका विरोध भी न कर पाई,और फिर सब कुछ नाना जी की इच्छा से हुआ.......शादी के बाद माँम ने हालातों से कम्प्रोमाइज करने की भी काफी कोशिश की,वह डैड के साथ सामान्य होने की कोशिश भी कर रही थी,फिर एक हादसा हुआ.....उन्हें अचानक से पता चला कि जिन से वह प्रेम करती थी,उन्होंने माँम के वियोग में सुसाइड करके अपनी जान दे दी है,तब मॉम प्रेग्नेंट थी, इस हादसे से उन्हें गहरा सदमा लगा.....बस तभी से उनकी मौत का दोष मॉम ने पापा के साथ रिश्ते पर थोप डाला...…...कुछ समय बाद मेरी बर्थ हुई,मेरे आने से मॉम डैड के रिश्ते को जोड़ने की एक वजह तो आई,पर उसके बावजूद भी सब कुछ ठीक नही हुआ....डैड भी मॉम की इग्नोरेंस की वजह से धीरे धीरे चिड़चिड़े होते गए......और आज स्थिति यह है कि एक घर मे रहते हुए भी दोनो एक दूसरे से मिलना,बात करना तक पसन्द नही करते......बस किसी फंक्शन,पार्टी में दुनिया को दिखाने के लिए साथ खड़े होते है.......यार मेरी क्या गलती इस सब में.....मैं चाहती हूँ वो नॉर्मल रहे.....तंग आ गयी हूँ उनके रोज रोज के झगड़े से........काफी कोशिश की उनमें पैच अप कराने की पर सब बेकार......मेरी भी फीलिंग्स है न वैभव.....किस से रोऊँ मैं जा के.......मेरा भी मन करता है न और फैमिलीज की तरह हम भी एक हैप्पी फैमिली बन के रहे....पर कोई नही समझता मुझे........"

फिर एक बार फूट फूट के रो पड़ी थी प्रिया।

सच में काफी उलझी हुई प्रॉब्लम थी उसकी,एक लड़की का सबसे बड़ा सपना होता है 'हैप्पी फैमिली'.......और उस बेचारी की फैमिली में से तो हैप्पी वर्ड्स ही गायब सा हो गया था.....तो क्या करती वह रोने के सिवाय।

"मैं समझता हूँ न तुझे प्रिया......सब ठीक होगा ,भगवान पर भरोसा रखो बस....." मैंने उसके आंसू पोंछते हुए सहानुभूति जताई........और हां,आज फर्स्ट टाइम हमारे ग्रुप में से किसी ने उसको उसका नाम लेकर पुकारा था,बजाय चटखनी के ।

प्रिया को इमोशनली सपोर्ट की बहुत जरूरत थी,उसके अभाव में वह टूट रही थी।
"पता है प्रिया, तुम तब भी लकी हो ,जो तुम्हारे पास फैमिली है,भले ही उनकी आपस मे न पटती हो......पर तुम पर तो वो दोनो ही जान छिड़कते हैं न.........फैमिलीज की वैल्यू तो उनसे पूंछो जिनकी फैमिली होती ही नही है.....न कोई हाल पूंछने वाला न कोई चिंता करने वाला........"
बोलते बोलते मेरे ही शब्द मेरे ही सीने में घाव कुरेदने लगें।

"हां यार,वो तो है.....पर क्या सच मे ऐसे लोग भी होते होंगे.....कैसे जीते होंगे बेचारे" बड़ी ही मासूमियत से प्रिया ने खेद व्यक्त किया।

"जी लेते है,दुनियाभर के दुखों और अभावों से लड़ते हुए......जैसे मैं जी रहा हूँ।" मैंने रूंधे गले से जबाब दिया।
मैने प्रिया के आंसू तो बन्द करा दिए थे,पर अब आंसुओ का वही सैलाब मेरी ही आंखों पर नजर आ रहा था।

"तूम जी रहे हो....क्या मतलब?"

हैरानी के साथ प्रिया ने मुझे घूरते हुए सबाल किया।

"हां प्रिया ,यह सच है......दुनिया मे मेरा कोई भी नही.....अनाथ हूँ मैं......मेरे माता पिता बचपन मे ही छोड़ कर चले गए थे।"

आज मैने पहली बार इस कॉलेज में अपने किसी दोस्त को सच बताया था,जिसको सुनकर मानों प्रिया को 440 वाल्ट का करंट सा लग गया था

"क...क्या....मगर तुमने तो हम सब से कहा था ,कि तुम्हारे पेरेंट्स काफी गरीब है,तुम्हारे पापा रिक्शा चलाते है"

थोड़ी देर चुप रहने के बाद मैंने जबाब दिया

" प्रिया,मैं नही चाहता था कि यहां पर लोग मुझे सहानुभूति वाली नजरों से देखे,मुझ पर तरस खाएं......क्योंकि सहानुभूति हमें कमजोर बनाती है......और मैं कमजोर नही बहादुर बन के जीना चाहता हूँ.......बहुत कुछ अचीव करना चाहता हूँ......"

"ओह माय गॉड......वैभव......त...तुम"

प्रिया अब अपने सारे दुख भूल चुकी थी......मेरे स्ट्रगल के सामने उसे अपनी प्रॉब्लम्स बहुत छोटी नजर आ रही थी.....टकटकी लगाकर वह लगातार मेरा चेहरा देख रही थी.....पर उसकी नजरों में मेरे लिए सहानुभूति नही एक सम्मान था.....अपने दुखों,अपने अभावो से लड़ते हुए अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ने वाले एक योद्धा के प्रति जैसा सम्मान होना चाहिए ठीक वैसा ही।

तो इस तरह से अपने दुख दर्द एक दूसरे से शेयर करते हुए हम भावनात्मक रूप से एक दूसरे से जुड़ने लगे थे.....।

(कहानी आगे जारी रहेगी)