शीर्षक = बेरंग दुनिया
दीवार पर टंगी एक तस्वीर को नम आँखों से काफी देर देखने के बाद, आखिर कार उस तस्वीर को उतार कर अपने सीने से लगाते हुए, राहुल वही पास पड़ी कुर्सी पर बैठ जाता है
उस तस्वीर को अपने सामने रखता है कि तब ही उसकी आँखों से आंसू टप टप कर उस तस्वीर पर गिर जाते है, जिन्हे साफ करते हुए राहुल कहता है " माँ, काश की तुम आज यहां मेरे पास, अपने बेटे के पास होती, तो मेरी आँखे नम तो जरूर होती लेकिन उन्हें साफ करने के लिए तुम मेरे पास होती और वो आंसू भी ख़ुशी के होते ना की आज की तरह तुम्हारी याद में निकल रहे होते
माँ, तुम्हे कैसे बताऊ आज मेरे पास वो सब कुछ है जिस जिस की भी प्रार्थना तुम सुबह शाम भगवान के चरणों में बैठ कर किया करती थी, मेरा नाम है, मेरे पास पैसा है, बीवी है बच्चें है, ज़िन्दगी के सारे खूबसूरत और हसीन रंग में देख चुका हूँ, लेकिन तुम्हारी कमी की वजह से जिंदगी के सारे रंग बेरंग से मालूम पड़ते है
काश की तुम ईश्वर ने इन सब के साथ साथ ये दुआ भी मांगती की वो तुम्हारी उम्र भी लम्बी कर दे ताकि तुम उन दुख भरे दिनों के बाद जो आज ईश्वर ने हमें सुख भरे दिन दिखाए है उनका आनंद तुम भी ले पाती
तुमने सारी जिंदगी एक शराबी पति की मार सेह कर गुज़ारती, मेरे साथ साथ उसका खर्च भी उठाती, तुम्हारे हाथो की लकीरें घिस गयी थी दूसरों के घरों के बर्तन माँझ माँझ कर तुम्हारी कमर झुक सी गयी थी दूसरों के घरों की झाड़ू लगा लगा कर, लेकिन तुमने कभी हिम्मत नही हारी और न ही मुझे कभी हारने दिया और न अपने बाप जैसा बनने दिया
माँ देखो आज तुम्हारी उसी मेहनत का फल मुझे मिल रहा है, तुमने जो ख्वाब मुझे दिखाया था बड़ा आदमी बनने का और साथ ही अच्छा इंसान भी देखो तुम्हारी कोशिश कामयाब रही, बड़ा आदमी तो मैं अपनी मेहनत से बन गया पता नही अच्छा आदमी हूँ की नही लेकिन हाँ तुम्हारी सीख पर चलने की कोशिश करता रहता हूँ, ताकि ये मुझे अच्छा इंसान भी बना दे
माँ, तुम होती तो आज मेरी ये बेरंग सी जिंदगी कैनवास पर बनी किसी पेंटिंग जैसी रंगीन होती जिसमे अनेको रंग होते है
माँ आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है, काश की तुम इतनी जल्दी मुझे छोड़ कर भगवान के पास न जाती, काश की तुम भी आज ऐशो आराम की जिंदगी जीती जो मैं ज़ी रहा हूँ, पर अफ़सोस शायद जितना लगाव तुम्हे ईश्वर से था उससे कही ज्यादा ईश्वर को तुमसे था इसलिए तो देखो तुम्हे पास बुला लिया
राहुल और भी ना जाने क्या कुछ कह रहा होता है, अपनी माँ की तस्वीर से तब ही उसके कमरे मैं उसकी पत्नि शीतल आती और कहती " राहुल, समय हो गया है, सब लोग हमारा इंतजार कर रहे होंगे, आपने जो माँ के नाम से गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनवाया है आज उसका उदघाटन है, आइये अब चलते है "
अपनी पत्नि की बात सुन राहुल कहता है " मैं माँ को लेने आया था, भले ही माँ आज नही है लेकिन उसकी ये तस्वीर मुझे उसके होने का एहसास दिलाती है, आज मैं जो कुछ भी बन पाया हूँ, जिंदगी के हसीन रंगों को जी पाया हूँ इन सब का श्रय मेरी माँ को ही जाता है, जिसकी जिंदगी में भले ही कोई रंग न था, पति था वो बेवड़ा, घर था वो टपकता रहता था, साडिया थी वो भी दूसरों की पुरानी बेरंग उतरने लेकिन फिर भी उसने मुझे इस काबिल बना दिया की मैं अपनी जिंदगी में रंग भर पाया उसने अपने हालातों के चलते मुझे हालातों से समझौता करना नही सिखाया बल्कि अपने हालातों को बदलने का हौसला दिया,मुझे अपने बाप जैसा और गली के अन्य बच्चों जैसा नही बनने दिया आज मैं जो कुछ भी हूँ अपनी माँ की बदौलत हूँ उसकी दिखाई राह पर चलने के कारण "
पास ख़डी शीतल उसे देख रही थी और फिर वो उसके साथ स्कूल के उदघाटन में चली जाती है
समाप्त....