रात का प्रथम पहर आधे से ज्यादा बीत चुका था।चारो तरफ वातावरण शांत और खामोश था।दूर दूर तक किसी तरह की आवाज नही कोई आहट नही।कोई शोर नही।कुत्तों के भोकने की आवाजें भी नही आ रही थी।
सुरेश खाट पर लेटा हुआ अपने बारे में ही सोच रहा था।आज वह जिंदगी के दोराहे पर आकर खड़ा हो गया था।एक रास्ता बेहद टेड़ा मेडा और झंझटों से भरा हुआ था।उस रास्ते का अंत विभा के पास जाकर होता था।दूसरा रास्ता बिल्कुल सीधा और सपाट था जिसका अंत निशा के पास जाकर होता था।पहले रास्ते मे सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होने का खतरा था।दूसरे में सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ने को थी।
एक पुरुष और दो औरते।पुरुष था,सुरेश।और दो औरते थी।विभा और निशा।
निशा खिलती हुई कली थी।जबकि विभा मुरझाया हुआ बासी फूल।निशा यौवन की दहलीज पर खड़ी थी।अभी उसकी जवानी से सुगन्ध आना शुरू हुई थी।उसके रग रग में खुशबू भरी थी।जबकि विभा की जवानी ढल चुकी थी।उसके यौवन को चूस लिया गया था।उसके बदन में खुशबू बची ही नही थी।अब विभा का गन्धहीन बासी शरीर रह गया था।
निशा ,समाज जी नजरो में उसकी पत्नी थीं।सुरेश ने अग्नि को साक्षी मानकर समाज के सामने उससे फेरे लिए थे।उसने जीवन भर निशा के साथ साथ निभाने की कसमें खाई थी।जबकि विभा पर उसका सामाजिक,नैतिक या कानूनी रूप से कोई हक नही था।
सुरेध,विभा से अगर सम्बन्ध रखना चाहे तो रख सकता घ।पर अवैध रूप से और चोरी छिपे।यह सम्बन्ध जायज नही थे।नाजायज थे।ये सम्बन्ध कब तक दबे छुपे रह सकते थे।एक नए एक दिन तो लोगो को पता चल ही जाता और तब समाज मे उसकी बदनामी होती।लोगो कज नजरो में वह गिर जाता।और कज बात तय छोड़िए वह अपनी पत्नी निशा की ही नजरो में गिर जाता।
कुछ दूरी पर पोलिस जा थाना था।दूर से पुलिस जे घण्टे की ठान ठन कज आवाज सुनाई पड़ी।यह रात के बारह बजने की उदघोषणा थी।पुलिस के घण्टे की आवाज सुनकर वह सोच विचार कज दुनिया से बाहर निकल आया और चोंक पड़ा। बारह बजने का मतलब था,विभा के बच्चे कब के सो चुके होंगे।पति से झगड़ा चल रहा था।इसलिए वह आता नही था।अब विभा कभी भी उसके कमरे में आ सकती थी।उसके आने का मतलब था।उसके साथ वासना का खेल खेलना।पहले सुरेश यह खेल खेलता रहा था।पर अब निशा के साथ धोखा नही करना चाहता था। कैसे बचा जाए विभा से।वह सोचने लगा।और एक तरकीब उसे सूझी।वह तुरंर कमरे से बाहर आया।उसने कमरा बन्द करके टाला लगाया।
उसके कमरे के ऊपर जाने के लिए सीढ़ी नही थी।वह दीवार का सहारा लेकर जैसे तैसे कमरे की छत पर चढ़ गया।
अंधेरी रात।चारो और अंधेरा पसरा था।वह छुपकर ऊपर से देखने लगा।उसे पदचाप सुनाई पड़ी।सीढ़ियों पर चलने की आवाज।विभा धीरे धीरे सीढ़ी चढ़कर ऊपर आयी।वह छत पर चलकर सुरेश के कमरे के पास चली आयी।दरवाजा बंद देखकर उसने धक्का दिया।कई बार के बाद भी दरवाजा नही खुला तब बाली,"दरवाजा बंद क्यो कर लिया।"
आवाज नही आई तब उसने कुंडी खटखटाने के लिए हाथ उठाया तो चोक गयी।दरवाजे पर ताला लगा था।
"कहा गया/"
विभा ने छत पर चारो तरफ देखा।पर व्यर्थ।
तब वह बड़बड़ाई"पति को धोखा देकर तुझे तन सोपत्ति रही।पर तु बेवफा निकला।
वह हताश वापस लौट गई