Mangalsutra - 3 in Hindi Motivational Stories by Stylish Aishwarya books and stories PDF | मंगलसूत्र - 3

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मंगलसूत्र - 3

मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंद

संत कुमार की स्त्री पुष्पा बिल्कुल फूल-सी है, सुंदर, नाजुक, हलकी-फुलकी, लजाधुर, लेकिन एक नंबर की आत्माभिमानिनी है। एक-एक बात के लिए वह कई-कई दिन रूठी रह सकती है। और उसका रूठना भी सर्वथा नई डिजाइन का है। वह किसी से कुछ कहती नहीं,लड़ती नहीं, बिगड़ती नहीं, घर का सब काम-काज उसी तन्मयता से करती है बल्कि और ज्यादा एकाग्रता से। बस जिससे नाराज होती है उसकी ओर ताकती नहीं। वह जो कुछ कहेगा, वह करेगी, वह जो कुछ पूछेगा, जवाब देगी, वह जो कुछ माँगेगा, उठा कर दे देगी, मगर बिना उसकी ओर ताके हुए। इधर कई दिन से वह संत कुमार से नाराज हो गई है और अपनी फिरी हुई आँखों से उसके सारे आघातों का सामना कर रही है।

संत कुमार ने स्नेह के साथ कहा - आज शाम को चलना है न?

पुष्पा ने सिर नीचा करके कहा - जैसी तुम्हारी इच्छा।

- चलोगी न?

- तुम कहते हो तो क्यों न चलूँगी?

- तुम्हारी क्या इच्छा है?

- मेरी कोई इच्छा नहीं है।

- आखिर किस बात पर नाराज हो?

- किसी बात पर नहीं।

- खैर, न बोलो, लेकिन वह समस्या यों चुप्पी साधने से हल न होगी।

पुष्पा के इस निरीह अस्त्र ने संत कुमार को बौखला डाला था। वह खूब झगड़ कर उस विवाद को शांत कर देना चाहता था। क्षमा माँगने पर तैयार था, वैसी बात अब फिर मुँह से न निकालेगा, लेकिन उसने जो कुछ कहा था। वह उसे चिढ़ाने के लिए नहीं, एक यथार्थ बात को पुष्ट करने के लिए ही कहा था। उसने कहा था जो स्त्री पुरुष पर अवलंबित है, उसे पुरुष की हुकूमत माननी पड़ेगी। वह मानता था कि उस अवसर पर यह बात उसे मुँह से न निकालनी चाहिए थी। अगर कहना आवश्यक भी होता तो मुलायम शब्दों में कहना था,लेकिन जब एक औरत अपने अधिकारों के लिए पुरुष से लड़ती है, उसकी बराबरी का दावा करती है तो उसे कठोर बातें सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस वक्त भी वह इसीलिए आया था कि पुष्पा को कायल करे और समझाए कि मुँह फेर लेने से ही किसी बात का निर्णय नहीं हो सकता। वह इस मैदान को जीत कर यहाँ एक झंडा गाड़ देना चाहता था जिसमें इस विषय पर कभी विवाद न हो सके। तब से कितनी ही नई-नई युक्तियाँ उसके मन में आ गई थीं, मगर जब शत्रु किले के बाहर निकले ही नहीं तो उस पर हमला कैसे किया जाए।

एक उपाय है। शत्रु को बहला कर, उसे पर अपने संधि-प्रेम का विश्वास जमा कर, किले से निकालना होगा।

उसने पुष्पा की ठुड्डी पकड़ कर अपनी ओर फेरते हुए कहा - अगर यह बात तुम्हें इतनी लग रही है तो मैं उसे वापस लिए लेता हूँ। उसके लिए तुमसे क्षमा माँगता हूँ। तुमको ईश्वर ने वह शक्ति दी है कि तुम मुझसे दस-पाँच दिन बिना बोले रह सकती हो, लेकिन मुझे तो उसने वह शक्ति नहीं दी। तुम रूठ जाती हो तो जैसे मेरी नाड़ियों में रक्त का प्रवाह बंद हो जाता है। अगर वह शक्ति तुम मुझे भी प्रदान कर सको तो मेरी और तुम्हारी बराबर की लड़ाई होगी और मैं तुम्हें छेड़ने न आउँगा। लेकिन अगर ऐसा नहीं कर सकती तो इस अस्त्र का मुझ पर वार न करो।

पुष्पा मुस्करा पड़ी। उसने अपने अस्त्र से पति को परास्त कर दिया था। जब वह दीन बन कर उससे क्षमा माँग रहा है तो उसका हृदय क्यों न पिघल जाए।

संधि-पत्र पर हस्ताक्षरस्वरूप पान का एक बीड़ा लगा कर संत कुमार को देती हुई बोली - अब से कभी वह बात मुँह से न निकालना। अगर मैं तुम्हारी आश्रिता हूँ तो तुम भी मेरे आश्रित हो। मैं तुम्हारे घर में जितना काम करती हूँ, इतना ही काम दूसरों के घर में करूँ तो अपना निबाह कर सकती हूँ या नहीं, बोलो।

संत कुमार ने कड़ा जवाब देने की इच्छा को रोक कर कहा - बहुत अच्छी तरह।

- तब मैं जो कुछ कमाउँगी वह मेरा होगा। यहाँ मैं चाहे प्राण भी दे दूँ पर मेरा किसी चीज पर अधिकार नहीं। तुम जब चाहो मुझे घर से निकाल सकते हो।

- कहती जाओ, मगर उसका जवाब सुनने के लिए तैयार रहो।

- तुम्हारे पास कोई जवाब नहीं है, केवल हठ-धर्म है। तुम कहोगे यहाँ तुम्हारा जो सम्मान है वह वहाँ न रहेगा, वहाँ कोई तुम्हारी रक्षा करनेवाला न होगा, कोई तुम्हारे दु:ख-दर्द में साथ देने वाला न होगा। इसी तरह की और भी कितनी ही दलीलें तुम दे सकते हो। मगर मैंने मिस बटलर को आजीवन क्वाँरी रह कर, सम्मान के साथ जिंदगी काटते देखा है। उनका निजी जीवन कैसा था,यह मैं नहीं जानती। संभव है वह हिंदू गृहिणी के आदर्श के अनुकूल न रहा हो, मगर उनकी इज्जत सभी करते थे, और उन्हें अपनी रक्षा के लिए किसी पुरुष का आश्रय लेने की कभी जरूरत नहीं हुई।

संतकुमार मिस बटलर को जानता था। वह नगर की प्रसिद्ध लेडी डॉक्टर थी। पुष्पा के घर से उसका घराव-सा हो गया था। पुष्पा के पिता डॉक्टर थे, और एक पेशे के व्यक्तियों में कुछ घनिष्ठता हो ही जाती है। पुष्पा ने जो समस्या उसके सामने रख दी थी उस पर मीठे और निरीह शब्दों में कुछ कहना उसके लिए कठिन हो रहा था। और चुप रहना उसकी पुरुषता के लिए उससे भी कठिन था।