चेहरे के विपरीत चेहरा
हाँ! घर से दूर बड़े महानगर में हूँ, हाँ बड़े महानगर में! देखे भी हो कभी या सिर्फ सुना और पढा हीं है। हाँ सच कह रहा हूँ महानगर में रहने आया हूँ पढने और खूब बड़ा इंसान बनने आया हूँ। छोड़ो तुम क्या जानों महानगर क्या होता है तुम्हें तो वो गाँव की कच्ची सड़को के हिचकोले फूस की झोपड़ीयों से टपकते पानी, और खूली नाली कि बदबू और बिना बिजली के अँधेरे में ही रहना पसंद है तुम्हें तो चोरी कर दूसरों के खेत से चने और गन्ने खाने से फुर्सत मिले तब न महानगर के बारे में जानोंगे।
अच्छा बताओं न महानगर कैसा होता है ...
महानगर की क्या बात बताउ तुम्हें महानगर साफ सुथरा शहर होता है और चौड़ी चौड़ी सड़के और सड़को के किनारे भी बत्ती और गगनचुंबी इमारते होती है। बड़ी बड़ी बसे ऑटो और ओला चलती है सड़क पर और गाड़ियां भी बुक हो जाती है मोबाइल से और तो और मेट्रो भी यहाँ चलती है वह भी ए.सी वाली खैर तुम क्या जानो दोस्त गाँव में तो ट्रेन की पटरी भी नही।
यहाँ बहुत सारे प्रसिद्ध विधालय और विश्व विधालय है यहाँ बच्चे यहाँ कपड़े अपने मन पसंद के पहनते है यहाँ न कोई रोकता है और न रोक सकता है, न कोई टीचर पिट सकता है यहाँ के बच्चे स्वतंत्र होते है तकनिकी ज्ञान से परिपूर्ण होते है।
हमें तो खूब मन लगता है रात रात भर यहाँ पार्टी चलती है और घूमना फिरना खाना पीना होता है दोस्त। यहाँ रात मैं भी चकाचौंध प्रकाश होता है यहाँ बङे बङे ब्रांड का अपना शो रूम होता है और उसकी सजावट ऐसे जैसे शादी का स्क्थथल सजा हो, लोग रात-रात घूमते फिरते नजर आते है।
तब तो तुम सच में स्वर्ग में हो दोस्त...
हाँ यार। किंतु इस स्वर्ग में भीड़ के बावजूद अकेलापन कटाने को तेज रफ्तार से दौड़ता रहता है, रात में प्रकाश होने के बावजूद लड़कियों के इज्जत बीच सड़क पर लूट ली जाती है, बड़ी बड़ी इमारतों के मालिक मजदूरों के मजदूरी लूट लेते है, बड़े बड़े विधालय व्यापार कर रहे है शिक्षा के नाम पर शिक्षक अश्लील हरकते करते पकड़े जाते है मेट्रो पार्क सफर करने के लिए नही वासना बुझाने की जगह बनती जा रही है यहाँ रोड दुर्घटना होने पर कोई रुकता नही बल्कि भाग जाता है यहाँ खूबियाँ दम तोड़ देती है रुचियाँ अंदर दफन हो जाती है ।।
घर नही होता है यहाँ किसी का सबका डेरा होता है दो महीना या दो साल वाला। रिश्ते हर वक्त यहाँ दम तोड़ देती है क्योंकि बुनियादी ढांचा खोखली होती है। चेहरे के विपरीत चेहरा का अंबार दिखता है कई चहेरे अपने के होते है किंतु कोई अपना न होता है।
यार वह हिचकोले खाते सड़के, झोपड़ी से टपकती बारिश की बूँदे वो अँधेरे में जुगनू के साथ खेलना वो चोरी के चने और गन्ने, गुरु जी का कान पकड़ना, माँ के हाथ से दो निबाला खाना, पिता जी के साथ घूमने जाना यही विकास है स्वर्ग है और यहीं अपनापन का एहसास है।