चांदनी शौक में ही थी कि तभी शालिनी की नजर उस पर पड़ती है और वो भी कंफ्यूज हो जाती है। शालिनी चांदनी से पूछती है–" क्या हुआ?"
चांदनी सामने की ओर इशारा करती है, शालिनी चांदनी के इशारे की ओर देखती है तो उसे कुछ दिखाई नहीं देता है सिवाय दो लड़कों के जो एक बरगद के पेड़ के नीचे खड़े आपस में बाते कर रहे थे। शालिनी फिर चांदनी से पूछती है–" कुछ भी तो नहीं है वहा।"
" वो लड़के देख रही है।" चांदनी की बात सुन शालिनी की नजर भी उन दोनो लडको पर जाती है और वो कहती है–" हा तो..."
चांदनी कहती है–" ये दोनो मुझे कल रात जंगल वाले रास्ते पर मिले थे जब मैं बेहोश हो गई थी।"
शालिनी कुछ सोचते हुए कहती है–" अच्छा तो ये है वो दोनो जिसने तेरी मदद की थी। वॉव यार, लड़के तो बड़े हैंडसम है और आदत के भी अच्छे है, अकेली लड़की देखकर भी इनकी नीयत नही बिगड़ी। आज के टाइम में ऐसे लड़के मिलते कहा है?"
शालिनी की बात सुन चांदनी का चहरा शर्म से लाल हो जाता है। शालिनी उसे छेड़ते हुए कहती है–" अरे अब तुझे क्या हुआ, तेरे ये गाल टमाटर की तरह लाल क्यूं हो रहे है?"
" तू ना अपना दिमाग मत चला, चल अब यहां से बरना वो देख लेंगे।"
" देख लेंगे तो क्या हुआ? ये तो और भी अच्छा है, इसी बहाने मेरी मुलाकात जो हो जाएगी।"
शालिनी की बात सुन चांदनी उसे घूरकर देखने लगती है और फिर कुछ नही कहती है। इससे पहले कि रितिक की नजर उन दोनो पर पड़ती, शालिनी चांदनी को लेकर हवेली की ओर चली जाती है। जिन दो लड़कों की ये बात कर रही थी वो कोई और नहीं बल्कि अमर और रितिक थे। वे दोनो सुबह सुबह सैर पर निकले थे। करन ने उन्हें बताया था कि मैदान के पास ही एक भव्य मंदिर बना हुआ है इसीलिए ये दोनो यहां चले आए। आखिरकार वे दोनो ठहरे इंसान, कहते है जैसे जैसे कलयुग बढ़ता जा रहा है, इंसान का भगवान की आस्था से मन हटता जा रहा है, जिसके कारण इन दोनो ने मंदिर के अंदर जाने की बजाए बाहर से ही दर्शन कर लिए। रितिक अमर से कहता है–" ये जगह तो काफी सुंदर है, चारो ओर हरियाली और ठंडी हवा, शहर की भीड़ भाड़ से दूर ये लोग यहां पर कितने सुख शांति से रहते है और ये सामने वाला मंदिर तो काफी ऊर्जावान है, मुझे यहां तक इसकी पॉजिटिव एनर्जी का एहसाह हो रहा है।"
अमर कहता है–" हा इसमें हैरानी वाली कोई बात नही है, जहा भगवान का वास होता है वहा ऐसी ही ऊर्जा फैली होती है, चल आजा, मंदिर के अंदर चलते है।"
रितिक हा में अपना सर हिलाता है उसके बाद वे दोनो मंदिर के अंदर चले जाते है। मंदिर के अंदर जाते ही उन दोनो को काफी अच्छा महसूस होता है। आस पास की पॉजिटिव एनर्जी से उनका मन एकदम शांत हो गया था। जल्द ही वे दोनो गर्भ गृह में पहुंच जाते है और शिवलिंग के आगे अपना माथा टेक लेते है। वही पास ही में एक पुजारी वहा रखे चढ़ावे को इकट्ठा कर कर रहे थे। उन्होंने भागबा रंग का कुर्ता और धोती पहनी हुई थी, उनके गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर चंदन का तिलक लगा हुआ था। जब उनकी नजर उन दोनो पर पड़ती है तो वो उन दोनो से कहते है–" तुम दोनो को पहले तो कभी नहीं देखा यहां?"
" जी पुजारी जी, हम कल ही यहां आए है।" रितिक जवाब देते हुए कहता है और पुजारी जी हामी में अपना सिर हिला देते है
अमर कहता है–" ये मंदिर समान मंदिरों से काफी अलग है, इस मंदिर में से एक अलग प्रकार की दिव्यता झलकती है।
अमर की बात सुन पुजारी जी के चहरे पर एक मुस्कान उभर आती है और वो कहता है–" लगता है तुम्हे शास्त्रों के बारे में काफी कुछ पता है, क्योंकि जिसे शास्त्रों का ज्ञान हो वही ये बात बोल सकता, हा तुमने सही कहा, ये मंदिर सामान्य मंदिरो से काफी अलग है। इस मंदिर का निर्माण लगभग दो सौ(200) साल पहले हुआ था। पुजारी जी की बात सुनकर दोनो शौक हो जाते है। उन्हें तो लग रहा था ये मंदिर बीस या तीस साल पुराना होगा लेकिन ये तो दो सौ(200) साल पुराना है। उन दोनो के शौक चहरो को देख पुजारी हस्ते हुए उससे कहता है–" तुम इस मंदिर की चमक पर मत जाओ, इस मंदिर की शोभा बड़ाने के लिए हर साल इस मंदिर पर बहुत सी धनराशि का उपयोग होता है इसीलिए ये एकदम नया लगता है। रितिक और अमर को पुजारी की बात समझ आ जाती है और वो हामी में अपना सिर हिला देते है। उसके बाद वे दोनो पुजारी जी को प्रणाम कर मंदिर से बाहर आ जाते है।
वही दूसरी ओर हवेली के हॉल में एक अधेड़ उम्र का आदमी सोफे पर बैठा हुआ था। उसने काले रंग का कुर्ता और काले रंग की पगड़ी पहनी हुई थी। उसका रौब ऐसा था जैसे किसी अमीर खानदान का श्रेष्ठ हो। उसके सामने ही एक आदमी जिसका नाम " मोहन" था, सर झुकाए खड़ा था। अधेड़ उम्र का आदमी मोहन से कहता है–" हम्म....पता चला कौन थे वो दोनो?"
मोहन जवाब देते हुए कहता है–" जी ठाकुर साहब, वो दोनो पास ही के शहर से यहां आए है।"
" अच्छा.. जरा नाम बताना क्या है उन दोनो के।"
" जी वो.." मोहन हकलाते हुए कुछ कहने की कोशिश करता है, बेचारा नाम कहा से बताए उसने तो पहली वाली बात ही झूठ बोली थी। उसे तो उन दोनो के बारे जांच पड़ताल करने के लिए भेजा गया था लेकिन हमारे ये भाई साहब तो अपना दिमाग हवेली में ही छोड़ गए थे।
ठाकुर साहब गुस्से के साथ मोहन से कहते है–" तुझसे एक काम ठीक से नही होता। अकल क्या घास चरने गई है तेरी? कोई बाहर वाला हमारे गांव में घुस आता है और हमे कानो कान भी खबर नहीं हुई, अभी जाओ और पता करो कौन है से दोनो और उन्हें मेरे पास लेकर आओ?"
"जी ठाकुर साहब " इतना कहकर मोहन जल्दी से वहा से चला जाता है। तभी वहा शालिनी आ जाती है और अपने पापा से कहती है–" क्या हुआ पापा, आप काका पर गुस्सा क्यूं हो रहे है?"
" कुछ नही बेटा, एक काम करने को दिया था उस नालायक को वो भी नही हुआ।"
" कैसा काम?"
" मैने सुना है कल रात दो शहरी हमारे गांव में घुस आए है, बस उसी सिलसिले में बात हो रही थी, खैर तुम बताओ, तुम तो मंदिर गई थी ना।"
" जी पापा, मैं अभी मंदिर से होकर आई हूं।"
उसके बाद शालिनी वहा से चली जाती है, उसके मन में अपने पापा की कही हुई बात ही घूम रही थी और वो खुद से बड़बड़ाती है–" कही पापा उन दोनो की बात तो नहीं कर रहे।"
तभी चांदनी शालिनी के पास आती है और उसकी बड़बड़ाहट को सुनकर उससे पूछती है–" किसकी बात?"
चांदनी को सामने देख शालिनी मुस्कुराते हुए उससे कहती है–" तेरे साजन की..."
" तू भी ना कुछ भी बोलती है।"
" मै सच ही कह रही हूं, तुझे पता है पापा ने उन दोनो को हवेली में बुलाया है।"
" किन दोनो को.."
" अरे वही दोनो जो तुझे उस रात मिले थे।"
" तेरे पापा ने उन्हें बुलाया है; पर क्यूं?"
" वो तो मुझे भी नही पता, जब वो आएंगे तो खुद पूछ लेना।"
" मै क्यू पूछने लगी भला, वो आए या जाए मेरा उससे क्या मतलब?"
" अच्छा ठीक है अब गुस्सा मत हो, मैं बस मजाक कर रही थी। इधर ये दोनो लड़किया आपस में खिचड़ी पका रही थी तो वही रितिक और अमर वापस घर की ओर लौट रहे थे। रास्ते में ही उन्हें करन और रोमियो मिल जाते है। करन उन दोनो से कहता है–" अच्छा हुआ तुम दोनो यही मिल गए, हम तुम्हे ही ढूंढ रहे थे।"
अमर कहता है–" क्यूं कोई काम है क्या?"
" नही काम तो कुछ नही है, हम तो बस..."
करन अभी अपनी बात पूरी करता की तभी पीछे से किसी की आवाज आती है। जब वे चारो आवाज की दिशा की ओर देखते है तो उन्हें एक काला सा मोटा आदमी उनकी ओर आते हुए दिखाई देता है। ये मोटा आदमी कोई और नहीं बल्कि मोहन था, मोहन उन लोगो के पास आकर उनसे कहता है–" कल रात जो शहरी यहा आए थे वो तुम लोग ही हो ना।"
रितिक कहता है–" हा हम ही है, आप कोन?"
मोहन अपना सीना चौड़ा करते हुए जवाब देता है–" मैं.. मै यहां के सरपंच का सबसे वफादार नौकन हूं। तुम लोग अभी मेरे साथ हवेली चलो, ठाकुर साहब ने तुम्हे याद किया है।"
मोहन की बात सुन रितिक कन्फ्यूजन के साथ करन की ओर देखता है। रितिक को कंफ्यूज देख करन मोहन से कहता है–" ठीक है हम आते है।"
अमर करन से पूछता है–" ये ठाकुर साहब कौन है?"
रोमियो अमर के सवाल का जवाब देते हुए कहता है–" वो इस गांव से सरपंच है " ठाकुर रणवीर सिंह ", तुम दोनो यहां नए आए हो इसीलिए जांच पड़ताल के लिए तुम्हे बुलाया जा रहा है, हम भी जब पहली बार यहां आए थे तो हमे भी ऐसे ही बुलाया गया था।"
" अच्छा " अमर और रितिक हामी में अपना सिर हिलाते है उसके बाद वे चारो मोहन के साथ हवेली की ओर जाने लग जाते है। हवेली में पहुंचकर मोहन उन दोनो को हॉल में ले जाता है जहा ठाकुर साहब उसका इंतजार कर रहे थे।
मोहन आते से ही ठाकुर साहब से कहता है–" यही है वो दोनो जो कल रात यहां आए थे।"
मोहन की बात सुन ठाकुर साहब रितिक और अमर की ओर चील सी पैनी निगाहों से घूरने लग जाते है। उनका बस चलता तो वे नजरो से ही उन दोनो का सर धड़ से अलग कर देते। करन आगे आता है और हाथ जोड़ते हुए ठाकर साहब से कहता है–" प्रणाम ठाकर साहब..."
ठाकर साहब गहरी आवाज में कहते है–" हम्मम..."
उसके बाद वे रितिक और अमर की ओर देखते हुए कहते है–" तो तुम्ही हो वो शहरी.."
" जी... मेरा नाम अमर है और ये मेरा दोस्त रितिक, हम दोनो कल रात ही यहां आए है।" अमर कहता है।
" अच्छा, वैसे क्या मैं पूछ सकता हूं तुम दोनो किस काम से यहां आए हो?"
ठाकुर साहब की बात सुन रितिक अपनी जेब से एक कार्ड निकालता है और ठाकुर साहब को देते हुए कहता है–" ये हमारा कार्ड है। हमें पुरातत्व भिभाग की तरफ से यहां भेजा गया है। हमे अपनी रिसर्च से पता चला है कि इसी गांव के आस पास एक प्राचीन मंदिर छुपा हुआ है, जिसमे यहां के राजा " महाराजा रणविजय सिंह " का खजाना छुपा हुआ है। उसी मंदिर पर रिसर्च करने के लिए हम यहां आए है। अगर हमे वो मंदिर मिल जाता है तो ये एक बड़ी कामयाबी होगी और आपके गांव का नाम इतिहास में दर्ज हो जाएगा।"
रितिक की बात सुन ठाकुर साहब के चहरे पर एक अभिमान जनक मुस्कान आ जाती है और वो कहते है–" जिस महाराजा रणविजय सिंह की तुम बात कर हो हम उन्ही के वंशज है। हमने दशकों लगा दिए उस खजाने को ढूंढने में लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी उस खजाने का पता नही लगा पाए। तुम किसी मंदिर की बात कर रहे थे, तुम इतने यकीन से कैसे कह सकते हो कि वो खजाना मंदिर में ही छुपा हुआ है, हमने तो इस बारे में ऐसा कुछ नही सुना?"
रितिक जवाब देते हुए कहता है–" आपको तो पता ही है। पुराने काल में कितने ही युद्ध हुए है और युद्ध में हार जीत तो चलती रहती है।
" हा..." ठाकुर साहब कहते है और रितिक अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहता है–" युद्ध में हार जाने के बाद एक राजा अपना सारा खजाना और राज्य हार जाता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए कुछ राजाओं ने अपना खजाना ऐसी जगहों पर छिपाना शुरू कर दिया जहा दुश्मनों की नजर उस पर ना पड़ सके ताकि युद्ध हार जाने के बाद भी वो खजाना दुश्मनों के हाथ ना लगे। ऐसे ही पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही और राजाओ ने अपना खजाना महलों में रखने की बजाए मंदिरो के तहखानों में रखना शुरू कर दिया क्योंकि मंदिर ही एक ऐसी जगह है जहां कोई चाहकर भी छानबीन नही कर सकता और ना लूट पाट कर सकता है। हमने अमरपुरा के इतिहास के बारे में काफी गहरी जानकारी इकट्ठी की है और हमे पता चला है यहां की सात पहाड़ियों में से ही किसी एक पर वो प्राचीन मंदिर है और हो सकता है वो खजाना वही पर हो।"
रितिक की बात सुनकर तो ठाकुर साहब का चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और वो कहते है–" तुम काफी समझदार हो, मुझे उम्मीद है तुम ये काम कर पाओगे। अगर तुमने ये काम कर दिया तो हम तुम्हे उस खजाने का पांच प्रतिशत हिस्सा जरूर देंगे।"
अमर ना में अपना सिर हिलाते हुए जवाब देता है–" जी नहीं हमे कुछ नही चाहिए।"
अमर की बात सुनकर तो ठाकुर साहब को लगने लगा था कि आज भी इंसानों में इंसानियात जिंदा है। कुछ लोग तो कुछ पाने के लिए मरने मारने कार उतर आते है और एक ये है जो अपनी मेहनत का फल भी नही खाना चाहते। लेकिन ठाकुर साहब को कहा पता था कि अमर के साथ कुछ भी सीधा सीधा नही होता और अगले ही पर वो उनके अरमानों पर पानी फेरते हुए कहता है–" आपको भी कुछ नही मिलेगा।"
" क्या कहा हमे कुछ नही मिलेगा? महाराजा रणवीर सिंह के वंशज है हम और ये खजाना भी हमारी विरासत है।"
ठाकुर साहब को गुस्सा होते देख अमर उन्हें समझाते हुए कहता है–" देखिए मेरे कहने का वो मतलब नहीं है, हमे किसी की विरासत से कोई मतलब नही है, कोई भी इंसान हमसे आकार ये कह दे कि वो महाराजा रणवीर सिंह का वंशज है, तो क्या हम सबको खजाना बाटते फिरेंगे। आप समझ रहे है ना मैं क्या कहना चाह रहा हूं?"
ठाकर साहब को अमर की बात समझ में आ जाती है और वो मुस्कुराते हुए उससे कहता है–" तुम्हारी बात में दम तो है, उम्र भले ही छोटी हो लेकिन मुंह बहुत चलाते हो।"
ठाकुर साहब ने तो कह दिया लेकिन उनकी बात सुन अमर तो अपने बाल ही नोचने लगा, उसे तो समझ ही नही आ रहा था कि ये तारीफ थी या उसे गाली दी जा रही थी।
" तुम्हे सबूत चाहिए ना, रुको अभी तुम्हे सबूत देते है।" इतना कहकर ठाकुर साहाब मोहन से कहते है–" मोहन, जरा मेरी तलवार तो लेकर आना।"
ठाकुर साहब का इतना कहना ही था कि उन चारों के तो तोते उड़ गए। उन्हें तो रोना आ रहा था कि क्यूं वे यहां आए और रितिक का तो मन कर रहा की कही दिवाल में अपना सिर ही दे मारे। इधर मोहन भी हैरान था, फिर भी अपने मालिक का हुकुम सुन वो तुरंत तलवार लेने चला जाता है।