आस्था का आभाष विश्वास
सेठ जमुना दास की एकलौती बेटी नम्रता बचपन से ही धर्म भीरु
और भारतीय परम्परा में विश्वास करने वाली माँ बाप का अभिमान थी पढ़ने लिखने में सदैव अव्वल अपने मोहल्ले शहर का गुमान रहती ।मोहल्ले आस पास के पड़ोसी अपने बच्चों को नम्रता जैसा बनने की नसीहत देते रहते।
नम्रता धीरे सरे गुणों की दक्ष हो चुकी थी पाक शास्त्र ,सिलाई कड़ाई बुनाई ,नित्य संगीत आदि
शिक्षा भी स्नातकोत्तर करने के उपरांत पूरी हो चुकी थी।अब सेठ जमुना दास को अपनी सर्वगुण संपन्न पुत्री के लिये योग्य वर की
तलाश थी मगर मुश्किल यह था की नम्रता के योग्य क़ोई वर मिल ही नहीं पा रहा था।एका एक एक दिन सेठ जमुना दास के मित्र सेठ मंशा राम अचानक पुराने दोस्त् जमुना दास से मिलने आये सेठ जमुना दास ने बचपन के मित्र का जोरदार स्वागत किया सेठ मंशा राम को पुराने मित्र से मिलकर अपार प्रसन्नता हुई दोनों अपने बचपन की यादो को ताज़ा कर रहे और उन यादों को बातों ही
बात यादों को साझा कर रहे थे
की अचानक सेठ मंशा राम के
मुख से निकल ही पड़ा की यार
जमुना मेरा लड़का जवान हो चूका है उच्च शिक्षा प्राप्त कर चूका है शुशील और सौम्य है उसके लिये बिरादरी में क़ोई
लड़की हो तो बताओ तब तक नास्ते से भरा ट्रे लेकर नम्रता कमरे में दाखिल हुई ट्रे मेज पर ज्यो ही रखा सेठ जमुना ने कहा
बेटा ये है सेठ मंशा राम इनका आशीर्वाद लो ये हमारे बचपन के
मित्र है नम्रता ने सेठ मंशा राम के पैर छुकर आशीर्वाद लिया ।मंशा राम ने आश्चर्य से कहा जमुना ये तेरी बेटी है जमुना ने ठहाके लगाते हुये कहा हां मंशा भगवान् ने मेरे हिस्से में यही एक अदत लक्ष्मी पुत्री के रूप में बक्शी है
सेठ मंशा ने कहा फिर तो भगवान् ने मुझे आज सही मुहूर्त पर तेरे पास भेजा है जमुना ने कौतुहल बस पूछा क्या मतलब तब मंशा ने कहा आज मेरी पुत्री की तलाश पूरी हुई मैं नम्रता को अपने पुत्र की बधू और अपनी बहू बेटी बनाना चाहता हूँ सेठ जमुना को बैठे बैठाये मन की मुराद मिल गयी और दोनों ने अपने बेटी बेटों का विवाह निश्चित कर दिया।सेठ मंशा राम के एकलौते बेटे मृगेन्द्र और सेठ जमुना दास की एकलौती बेटी नम्रता का विवाह बड़े धूम धाम से संपन्न हुआ बचपन की दोस्ती रिश्ते में बदल गयी । दोनों ही परिवार में ख़ुशी का वातावरण धीरे धीरे एक वर्ष बीतगया दोनों ही परिवारों में दिन दुनीरात चौगुनी तरक्की होती रही एकाएक दोनों परिवारों की ख़ुशी में चार चाँद लगाने वाली ख़ुशी आ गयी नम्रता माँ बनने वाली थी नौ माह बाद नम्रता ने बेहद खूबसूरत बेटे को जन्म दिया दोनों परिवारों के खुशियों का ठिकाना ही न रहा
नवजात का नामकरण अन्नपरशन आदि संस्कार संपन्न कराये गए नवजात का घरलू नाम करन् और संस्कारिक नाम माधव रखा गया
कारन धीरे धीरे दोनों परिवारों के
लाड प्यार में बड़ा होने लगा और देखते देखते एक वर्ष का हो गया उनका पहली वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई गयी सारे मित्र रिश्तेदार बेशकीमती तोहफे का नज्र नज़राना तोहफा लेकर आये दावते हुई खुशियो का आदान प्रदान हुआ पहले वर्ष गाँठ के उत्सव समाप्ति के बाद मध्य रात्रि को कारन जगा हुआ था और मकान के हर कमरे आँगन में बेरोक टोक घूम खेल ऊधम मचा रहा था की अचानक एक जहरीले सांप ने उसे डस लिया उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी सेठ मंशा राम के परिवार में हाहाकार मच गया धीरे धीरे यह खबर पुरे कस्बे में फ़ैल गयी और सेठ जमुना दास भी अपने पुरे पतिवार के साथ सेठ मंशा राम के घर आ पहुंचे सबका रोते रोते बुरा हाल था।अब सुबह हो चुकी थी सबने मिल कर
यह निर्णय लिया की कारन् का अंतिम संस्कार कर दिया जाय
सब लोग जब करन के अंतिम संस्कार के लिये कारन को उठाने
के लिये चले तभी नम्रता हाथ में तलवार लिये रणचंडी की भाँती
बोली खबरदार किसी ने यदि मेरे कारण को हाथ लगाया वह मरा नहीं है रात अधिक शोर शराबे के
कारण थक कर सौ रहा है लोंगो के लाख समझाने के बाद भी नहीं मानी और जिद्द पर अड़ी रही नम्रता के आँख में ना आँसू थे ना ही कोई बेचैनी डाक्टर को बुलाया गया जिसे देखकर नम्रता ने पुनः रौद्र रूप धारण कर लिया डॉक्टर भय के मारे भाग खड़ा हुआ।।
जब किसी का कोइ बस नहीं चला तब लोगो ने नम्रता को करन् के शव के साथ अकेला छोड़ दिया ।
नम्रता करन का शव गोद में लेकर घर के आँगन में बैठ गयी और कहती बेटा सो जब नीद पूरी हो तब उठाना ये लोग तुम्हारी नीद
में खलल दाल रहे है और तुम्हे सदा की नीद सुलाने का इंतज़ाम कर रहे है मेरे रहते तेरा क़ोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता मैं माँ हूँ तेरी रक्षा करुँगी।इस तरह बेटे के शव के साथ एक दिन दो दिन बितते गए तेज धुप वारिश् ने भी नम्रता के मातृत्व शक्ति की परीक्षा लेने की बहुत कोशिश की परन्तु नम्रता को उसके इरादे से डिगा नहीं सका सेठ मंशा राम की हवेली एक नया तीर्थ स्थल में तब्दील हो गया नम्रता को देखने इतनी भीड़ होने लगी की प्रशाशन के लिए चुनौती बन गयी ।नम्रता का आभास एहसास वास्तव में उसके मातृत्व की ममता की आस्था का आकाश पराकाष्ठा लोगो को आश्चचर्य चकित कर रखा था करन् को मरे पैतालीस दिन हो चुके थे मगर उसके शारीर से ना कोइ दुर्गन्ध थी ना ही सड़ने के लक्षण लोगों के लिए यह कौतुहल का विषय थी नम्रता भी पैतालीस दिनों से जैसा करन को लेकर गोद में बैठी थी वैसी ही बैठी एक टक कारन् को निहारती ना भूख ना प्यास सिर्फ कारन के नीद से जागने का आभास विश्वास चियालिसवे दिन करन एकाएक सुबह जैसे रोज उठता था सूरज की लालिमा के साथ मुस्कूराते हुये उठा माँ माँ करता
नम्रता की आँखों में तब वात्सल्य।के आंसू छलके चारों और नम्रता के मातृत्व ममत्व का शोर नम्रता कलयुग में ऐसी माँ जिसने मृत बेटे का जीवन काल जमराज से छीन लिया।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर