अंक-शास्त्र एवं अध्यात्म का संबंध
रामानुजन के जीवन तथा कार्य में अध्यात्म का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। वह कहा करते थे, ‘मेरे लिए वह समीकरण, जिसमें ईश्वर का विचार समाहित नहीं है, व्यर्थ है।’
उनके लिए अंकों को समझना अध्यात्म से जुड़ने तथा उसके रहस्य को खोलने की प्रक्रिया थी । उनका शोध कार्य करने का तरीका बड़ा विचित्र था। बहुधा वह सूत्र लिख भर देते थे। वे सूत्र उन्हें कैसे सूझे तथा उनको कैसे सिद्ध किया, यह वह छोड़ देते थे। अतः अपनी खोज से उन्होंने कितने ही ऐसे असाधारण निष्कर्ष निकाले, जिन्है प्रारंभ में गणित-शोधकर्ताओं ने आश्चर्य एवं संदेह से देखा परंतु जो बाद में सही सिद्ध हुए। उन्होंने एक नई थ्योरी का भी सूत्रपात किया, आज भी जिसके उपयोग का लाभ मिल रहा है। गणित एवं अध्यात्म, दोनों क्षेत्रों में ही वह अनंत को वास्तविक स्थान देते थे।
घंटों वह ब्रह्म, शून्य एवं अनंत पर अपने द्वारा दृष्ट संबंधों पर भाषण देते थे। उन्होंने संख्या 2n– 1 से ब्रह्म तथा विविध दिव्य-शक्तियों के संबंधों पर अपने विचार रखे हैं। उनके अनुसार जब n = 0 तब इसका मान शून्य रिक्तता का सूचक है, जब n = 1 पर इसका मान '1' है, जो ईश्वर का स्वरूप है। n = 2, से प्राप्त इसका मान ‘3’ त्रिमूर्ति का द्योतक है तथा n = 3 पर इसका मान 7 सप्त ऋषियों का परिचायक है। उनका सदैव यह विचार बना रहा कि शून्य परम सत्ता (Absolute Reality) का प्रतीक है और अनंत उस परम सत्ता की विविधता को सुस्पष्ट करता है।
गणित में शून्य एवं अनंत का गुणनफल अनिश्चित (Indeterminate) माना जाता है। रामानुजन का कहना था कि यह गुणनफल केवल अनिश्चित संख्या ही नहीं है, वास्तव में यह सभी संख्याओं के बराबर है। उनके अनुसार ये सब अलग-अलग संख्याएँ सृजन-क्रिया के अलग-अलग क्रमों के प्रतिरूप हैं। रामानुजन के लिए अंक और उनके गणितीय संबंध विश्व की विविध इकाइयों और उनके समन्वय के मानक हैं। प्रत्येक साध्य, जो उन्होंने खोजा, उनके अनुसार अनंत के एक अन्य रहस्य की तह तक पहुँचना था।
रामानुजन के कार्य का सूचना संचार में प्रयोगरामानुजन के कार्य की जितनी प्रशंसा उनके जीवन काल में हुई, उससे कहीं अधिक वह आज सही उतरती है। उनके कार्य का आज उत्तम प्रयोग हो रहा है। संवाद भेजने ( Information transmission) के विकास से सभी परिचित हैं। इसमें नंबर-थ्योरी का महत्त्वपूर्ण प्रयोग हुआ। संवाद भेजने की मुख्य समस्या संचार मार्ग में कोलाहल के कारण आनेवाली अशुद्धियों को सही करना है। इन अशुद्धियों को दूर करने के लिए नंबर - थ्योरी के प्रयोग से कोड्स बनाकर हुआ है। आदर्श संचार प्रतिमान को निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है—
स्रोत (Source)-ऐनकोडर-चैनल (यहाँ कोलाहल का सम्मिश्रण)-डिकोडर-रिसीवर।
सूचना (Information) की परिभाषा, उनको तथा कोडिंग कुशलता को ठीक से मापने की समस्या का यथोचित हल प्राप्त हो गया है। कोडिंग की दूसरी समस्या यह है कि मार्ग (चैनल) में कोलाहल रहने के बावजूद ऐसी किसी विधि का विकास करना है कि अशुद्ध प्राप्त संवाद को पाकर यह निश्चित किया जा सके कि भेजा गया शुद्ध संवाद क्या था।संवाद-शास्त्र (Information Theory) का मूल साध्य इस बात की पुष्टि करता है कि किन्हीं परिस्थितियों में यह करना संभव है। अशुद्धियों को ठीक करनेवाले कोड्स का बनाना एक कठिन एवं रोचक गणितीय समस्या रही है और इसका लगभग सफल हल मिलने पर हमें यह संगणकों (Computers) तथा अन्य स्वचालित यंत्रों पर भरोसे से कार्य करने पर विश्वास हो गया है।
अनलॉग सूचना को परिवर्तन करने में फोरिएर ट्रांस्फॉर्म (Fourier Transform) नामक गणितीय तकनीक का
प्रयोग होता है। परंतु जब डिजिटल के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तो एक अन्य तकनीक, जिसे डिस्क्रीट फोरिएर ट्रांस्फॉर्म कहते हैं, को प्रयोग करना होता है। संचार प्रक्रिया में सूचना से जुड़े कोलाहल को ठीक से हटाने के लिए इंजीनियरों ने पाया है कि इस प्रक्रिया में एक अन्य कुशल गणितीय युक्ति रामानुजन-फोरिए-ट्रांस्फॉर्म (RFT) का
प्रयोग उत्तम है। यह इस बात का प्रमाण है कि यद्यपि रामानुजन ने आर-एफ-टी पर कार्य केवल इसलिए किया कि वह इसके गणितीय सौंदर्य पर आकर्षित थे परंतु लगभग साठ वर्ष पश्चात् इसका प्रयोग आधुनिक संचार में हुआ।
रामानुजन की विलक्षण प्रतिभा को प्रो. हार्डी ने पहचाना था। इस पर आक्षेप करते हुए उस समय पूंडी नमसिव्य्या
मुदालियर ने वेदना भरे शब्दों में कहा था— “यह हमारे देश की नियति है कि भारतीय मस्तिष्क को मान्यता के लिए एक विदेशी पर निर्भर होना पड़ा। हमारे अपने लोग इस प्रकार के व्यक्तित्व की प्रशंसा से क्यों कतराते हैं?”
मैं एक अन्य घटना का उल्लेख करना चाहूँगा, जो कुछ वर्ष पहले ही घटी। केरल के सुदूर क्षेत्र के एक युवक का बहुत ही अल्प ज्ञान काम में आया था। परंतु आज इस कार्य में स्नातक स्तर की नंबर थ्योरी के सभी उपकरण
काम में आ रहे हैं। इस प्रकार आज की पीढ़ी के लिए गुप्त संचार नंबर थ्योरी के अध्ययन की प्रेरणा प्रदान करता है। गुप्त संचार, प्रयोग में आने वाली नंबर थ्योरी के अतिरिक्त संचार जाल तंत्र (communication networks) के
बनाने में ‘एक्सपैंडर ग्राफ’ का वही स्थान है जो मकान बनाने में ईंटों का रहता है। इनका कंप्यूटर एवं संचार-विज्ञान में अच्छी मात्रा में उपयोग है। पिछले दो दशकों में 'रामानुजन ग्राफ' को दो कारणों से महत्त्व मिला है।
प्रथम, उपयोगिता के विचार से इन ग्राफों ने बाह्य समस्याओं को सुलझाया है। दूसरा कारण है इनका सौंदर्य-बोध।
आंकिक (digital) संसार में ज्ञान का निरूपण 'बिट्स' एवं 'बाइट्स' से हो रहा है। यह देश की संपत्ति का आधार भी बन गए हैं। उदाहरण के लिए, कंपनियों की दीर्घकालीन अपने वर्चस्व को बढ़ाने की नीतियाँ, बैंकों के खाते, ई-कॉमर्स के द्वारा की गई खरीद और यहाँ तक कि हमारे जमीन-जायदाद के अभिलेख आदि सभी आज डिजिटल रूप में हैं। नेटवर्क के माध्यम से बिट्स को भेजने से डिजिटल-संसार में संपत्ति का आगे प्रादुर्भाव होता है। शीघ्र ही विश्व के 25 प्रतिशत देश एक-दूसरे से सीधे अथवा अन्य किसी प्रकार से एक-दूसरे से सूचना एवं संचार उत्पादन द्वारा जुड़ जाएँगे। आज की नई दुनिया में वित्तीय एवं भौतिक सुरक्षा जिस माध्यम से बँधी है, वह सूचना की सुरक्षा ही है। जो देश सूचना के सृजन एवं उसकी सुरक्षा व्यवस्था में सक्षम होंगे, वही विश्वनेता एवं विश्वशक्ति बनेंगे।
क्रिप्टोग्राफी–सूचना को गुप्त रखना–सूचना सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। कंप्यूटर द्वारा संचार व्यवस्था में सूचना को गुप्त रखने के दो मार्ग हैं। एक सममित कूटलिपि (symmetric czpher) की विधि है, जिसमें जो कुंजी सूचना के कूटकरण (Encription) में प्रयोग होती है, वही उसके अकूटकरण (Decription) में
प्रयोग होती है। दूसरी वह असममित (asymmetric) विधि है, जिसमें कूटकरण एवं अकूटकरण की कुंजियाँ अलग-अलग रहती हैं। दूसरी विधि को जन-कूटकरण (Public Key Encryption) के प्रयोग में लाया जा सकता है। अधिकतर प्रयोग में आनेवाले प्रसिद्ध आरएसए (RSA Ron Rivest, Adi Shamir & Len Adleman) पद्धति इस बात पर आधारित है कि यदि दो रूढ़ अंकों p एवं q का गुणनफल n = pxq ज्ञात है तो उन दोनों रूढ़ अंकों p एवं q को प्राप्त करने में कितनी कठिनाई आती है।
यहाँ नंबर थ्योरी की भूमिका आती है। यह वह क्षेत्र है जिसमें रामानुजन ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया। यदि रामानुजन कुछ अन्य वर्षों तक जीवित रहते अथवा यदि हम इस विषय में वह अग्रिम स्थिति बनाए रखते, जो रामानुजन ने हमें दी थी, तो आज हम ‘सुरक्षित संचार में विश्व नेता’ बन गए होते। कदाचित् हम वह बदलाव ला पाते, जिसपर देश को गर्व होता।
रामानुजन नंबर थ्योरी में अपने योगदान से अपने समय से कहीं आगे थे। वह इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके कार्य से ‘सूचना-सुरक्षा’ अथवा ‘संपत्ति-सृजन’ में काम में आने की कितनी संभावनाएँ हैं। उन्होंने जो कुछ किया, केवल अपने कार्य के सौंदर्य एवं शुद्धता की भावना भर से किया। रामानुजन ने जो कहा वह बहुत सारगर्भित है और जो उसमें अंतर्निहित है वह उससे भी कहीं बढ़कर है। उन्होंने जो कुछ पीछे छोड़ा है वह इतनी बड़ी धरोहर है कि आनेवाली बहुत सी पीढ़ियाँ उसे कभी नहीं भुलाएँगी और उनका कार्य गणितज्ञों को सतत प्रेरणा एवं दिशा प्रदान करता रहेगा।