अर्पिता के ऐसे व्यवहार के बावजूद भी नताशा हमेशा उस पर प्यार लुटाती रही, यह सोच कर कि प्यार के आगे तो हर इंसान झुक जाता है, पत्थर दिल भी पिघल जाता है। नताशा जैसा चाह रही थी, वैसा कुछ भी ना हो पाया।
अर्पिता का व्यवहार दिन पर दिन और भी बुरा होता गया। रात को वह अरुण की बाँहों में जाकर झूठे मनगढ़ंत किस्से उसे सुनाती रहती। आज माँ ने ऐसा कहा, आज माँ ने वैसा कहा। वह नताशा की शिकायत करती ही रहती थी। अरुण को अर्पिता की बातों पर विश्वास नहीं होता क्योंकि वह तो अपनी माँ को जानता ही था। उसे पता था माँ ऐसा कभी नहीं करेंगी लेकिन अर्पिता? अर्पिता आख़िर चाहती क्या है? क्या अलग होने के लिए वह यह सब रायता फैला रही है?
अर्पिता के मन में उठे हुए तूफ़ान को अरुण समझ रहा था। इसीलिए अरुण और अर्पिता के बीच धीरे-धीरे झगड़े शुरू हो गए। यह झगड़े कुछ ही दिनों में रात से दिन तक और कमरे से पूरे घर तक अपनी मौजूदगी दिखाने लगे। नताशा और सूरज के कान जब यह सब सुनते तो उनकी आँखें आँसू बहाने लगती थीं। मन दुखी हो जाता और वे दोनों मजबूर हो जाते कि करें तो क्या करें? इसी कश्मकश में कुछ और दिन बीते। घर में शांति नहीं थी, प्यार नहीं था।
एक दिन नताशा ने सूरज से कहा, "सूरज यदि हमारी वज़ह से हमारे बेटे के जीवन का सुख और सुकून छिन रहा है तो फिर हमें उनसे दूर हो जाना चाहिए।"
सूरज भी सब कुछ जानता था। उन्होंने कहा, "तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो। हम अरुण और अर्पिता से कह देते हैं कि यदि उन्हें हमारा साथ पसंद नहीं तो फिर और कहीं अपने लिए घर देख लें।"
"यह कैसी बात कर रहे हैं आप? हम ऐसा कैसे कह सकते हैं?"
"क्यों नहीं कह सकते नताशा? यह घर हमारा है, मेरे खून पसीने की कमाई का। इसे छोड़ कर हम कहाँ जाएंगे और क्यों जाएंगे?"
"नहीं सूरज यह तो ग़लत हो जाएगा। इसका मतलब यह होगा कि हम उन्हें अपने घर से निकाल रहे हैं।"
"नताशा तुम कुछ ज़्यादा ही सोच रही हो, ग़लत सोच रही हो।"
"सूरज मैं नहीं चाहती कि हमारी वज़ह से बच्चों का जीवन नर्क बन जाए। देखो अरुण कभी हम से अलग नहीं जाएगा, कितना प्यार करता है हमको। लेकिन इस वक़्त वह भी तो मजबूर है बेचारा करे तो क्या करे। एक तरफ़ कुआं है, एक तरफ़ खाई। ना हमें छोड़ सकता है ना उसे। मुझे डर है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो उन दोनों के झगड़े बढ़ते-बढ़ते कहीं तलाक तक ना पहुँच जाएँ। यह घर तो बहुत बड़ा है, तीन बेडरूम हैं। हमें इतने बड़े घर की क्या ज़रूरत है। फिजूल में सफ़ाई का झंझट रहेगा। हमारे लिए तो एक रूम, किचन, हॉल ही काफ़ी है।"
सूरज दंग होकर अपनी पत्नी को देखे ही जा रहा था, सोच रहा था कि एक माँ का दिल कितना बड़ा और कितना त्याग से परिपूर्ण होता है। आखिरकार सूरज को नताशा के आगे झुकना पड़ा और उसका निर्णय मानना ही पड़ा। उन्होंने अरुण को बताए बिना अपने लिए मकान ढूँढना शुरू कर दिया।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः