अपनी माँ को इतना ख़ुश देखकर अरुण फूला नहीं समा रहा था। वह सोच रहा था कि चलो उसकी पहली मंज़िल तो तय हो गई। माँ ख़ुश हैं तो पापा भी ख़ुशी से इस रिश्ते को स्वीकार कर लेंगे।
तभी नताशा ने कहा, "पता नहीं अरुण, अर्पिता ने उसके पापा मम्मी को बताया भी होगा या नहीं?"
"माँ जैसे आप मेरे बोले बिना ही सब जानती हैं वैसे ही उसकी मम्मा को भी इस बात का अंदाज़ा है। आप लोगों की नज़रों से भला कहाँ कुछ छिप सकता है। वैसे वह भी आज ही बात करने वाली है। उसके पापा-मम्मा हाँ ही बोलेंगे। अर्पिता ने बताया है काफ़ी सुलझे हुए इंसान हैं उसके पापा।"
उधर अर्पिता ने अपनी मम्मी से कहा, "मम्मी मुझे आपको कुछ बताना है और पूछना भी है।"
अर्पिता की मम्मी शीला ने हंसते हुए कहा, "अर्पिता, मुझे भी अरुण पसंद है और कुछ बताना है?"
"मम्मी आपको कैसे पता ...?"
"बेटा माँ हूँ तुम्हारी। तुम्हें क्या लगता है पिछले दो सालों से तुम्हारे मन में जो खिचड़ी पक रही है, क्या मैं नहीं जानती? बेटा मुझे तो तुम्हारे प्यार की भीनी-भीनी ख़ुशबू कब से आ गई थी। मैंने तुम्हें रोकना टोकना ठीक नहीं समझा क्योंकि अरुण तो मुझे भी शुरू से ही बहुत पसंद है। बाक़ी अपनी मर्यादा तो तुम ख़ुद भी जानती ही हो, इतना तुम पर मुझे विश्वास है।"
अर्पिता ने "आई लव यू मम्मा," कहते हुए शीला को अपने सीने से लगा लिया। फिर उसने चिंतित होते हुए पूछा, "लेकिन मम्मी क्या पापा मान जाएंगे?"
"उन्हें भी पता है बेटा, हमारी इस मामले में बात हो चुकी है। हम तो तुम्हारे मुँह से सुनने का इंतज़ार कर रहे थे।"
इतने में ही अर्पिता के पास अरुण की माँ नताशा का फ़ोन आया। अर्पिता ने फ़ोन उठाया और कहा, "हेलो आंटी।"
"आंटी नहीं अर्पिता, अब तो तुम माँ कह सकती हो।"
अर्पिता शरमा गई और कहा, "ठीक है माँ।"
"अर्पिता तुम्हारी मम्मी से बात कराओ बेटा?"
"जी माँ देती हूँ।"
शीला को फ़ोन देते हुए अर्पिता ने कहा, "मम्मा, अरुण की माँ का फ़ोन है।"
"हेलो नताशा जी, कैसी हैं आप?"
"जी मैं बिल्कुल ठीक हूँ शीला जी, आज शाम का खाना हम साथ में करेंगे। मैंने आपको इसीलिए फ़ोन किया है, क्या आप लोग आएंगे?"
"अरे बिल्कुल नताशा जी, हम ज़रूर आएंगे।"
"वैसे आपको भी अर्पिता ने बता तो दिया ही होगा ना?"
"जी हाँ, आज ही उसने अपने मुँह से बताया है लेकिन मैं तो पहले से जानती थी कि इन दोनों के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है।"
सुनकर नताशा हंस दी और कहा, "चलिए फिर शाम को मिलते हैं।"
"ठीक है बाय।"
दोनों परिवारों ने मिलकर सब कुछ तय कर लिया और चट मंगनी पट से दोनों का ब्याह भी कर दिया। अर्पिता तो पहले से ही घर आती जाती थी, उसके व्यवहार को देखकर नताशा बहुत ख़ुश थी। वह जानती थी कि उन्हें एक बहुत ही प्यारी बच्ची बहू के रूप में मिली है, जिसे वह हमेशा बेटी की तरह प्यार से रखेंगी।
लेकिन ज़रूरी नहीं कि जैसा हम सोचते हैं सब कुछ वैसा ही हो। विवाह हुआ और विवाह के बाद सब कुछ बदल गया।
अर्पिता एकदम अलग लग रही थी। जैसा वह पहले दिखाती थी, वैसा अब उसके अंदर कुछ भी नहीं था। उसे तो केवल अपना पति अरुण ही इस घर में चाहिए था। नताशा और सूरज की मौजूदगी उसे हमेशा ही खलती रहती थी। जबकि वे दोनों उसके जीवन में कभी बाधक नहीं बनते थे। वह नताशा से ढंग से बात नहीं करती। उनकी बातों का जवाब नहीं देती और उनका अपमान भी करती थी। यह वह उस समय करती थी जब अरुण घर पर ना हो।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः