सूरज और नताशा का इकलौता बेटा अरुण विवाह के दस वर्ष के पश्चात नताशा के गर्भ में आया था। इसके लिए उन्होंने मंदिर-मंदिर जाकर भगवान के आगे माथा टेका था, ना जाने कितनी मानता रखी थीं। तब जाकर भगवान नींद से जागे और उन्हें माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अपने सीमित साधनों में भी वह उसके लिए जितना कर सकते थे, उससे ज़्यादा ही कर रहे थे। अरुण बड़े ही लाड़ प्यार से बड़ा हो रहा था।
सूरज और नताशा उसे अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे थे। अच्छे से अच्छे संस्कार भी दे रहे थे। अरुण धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। वह भी अपने माता-पिता पर जान छिड़कता था।
स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद उसे बहुत ही अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश भी मिल गया। जहाँ उसकी मुलाकात अर्पिता से हुई, जो उसी की क्लास में थी। अर्पिता को देखते ही अरुण के मन में प्यार की धीमी-धीमी आवाज़ें आने लगीं कि यही तो है वह जिसके साथ तू अपना जीवन बिता सकता है। अरुण ने शीघ्र ही अर्पिता के साथ दोस्ती भी कर ली। अर्पिता को भी अरुण का साथ अच्छा लगने लगा और जल्दी ही उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई।
एक दिन अरुण ने कहा, "अर्पिता मेरे घर चलोगी? तुम्हें मैं अपने मम्मी पापा से मिलवाना चाहता हूँ।"
"हाँ बिल्कुल चलूंगी अरुण, बोलो कब चलना है?"
"चलो आज ही चलते हैं।"
"हाँ ठीक है।"
अर्पिता अरुण के साथ उसके घर आई, वहाँ सूरज और नताशा से मिली। उसके बाद उसका उनके घर आना जाना शुरू हो गया।
वह अक्सर आकर नताशा को काम में मदद कर देती, ख़ुद ही चाय बना कर ले आती और उसके साथ बैठ कर मीठी-मीठी बातें भी करती। नताशा को भी उसका यह अंदाज़ बहुत ही अच्छा लगता था। नताशा समझ तो गई थी कि यह प्यार का चक्कर है लेकिन अपने मुँह से उन्होंने कभी कुछ नहीं पूछा। हमेशा अरुण की दोस्त के रूप में ही उससे मिलती रहीं।
अरुण ने भी अभी घर पर अर्पिता के विषय में ज़्यादा कुछ नहीं बताया था। उसका परिचय एक बहुत अच्छी दोस्त के रूप में ही करवाया था। वह अपनी नौकरी लगने का इंतज़ार कर रहा था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होते ही उसे एक कंपनी में नौकरी भी मिल गई।
नौकरी मिलने के बाद अरुण सोचने लगा कि अब यही सही समय है विवाह करने के लिए। माँ को भी कंपनी मिल जाएगी।
ऐसा सोच कर उसने एक दिन अपनी माँ से पूछा, "माँ आपको अर्पिता कैसी लगती है?"
"क्यों तू ऐसा क्यों पूछ रहा है? अच्छी लड़की है तो अच्छी ही लगेगी ना।"
"नहीं माँ मेरा पूछने का मतलब है..."
"क्या मतलब है अरुण?"
"मतलब आपको बहू के रूप में कैसी लगती है?"
"अरे मुझे बहू के रूप में कैसी लगती है, इस बात से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है कि तुझे पत्नी के रूप में वह कैसी लगती है? तुझे अच्छी लगती है इसका मतलब मुझे भी अच्छी लगती है। तू बता तुझे पत्नी के रूप में..."
"हाँ माँ हम दोनों प्यार करते हैं और अब शादी करना चाहते हैं।"
" ठीक है अरुण, हम तो बहुत ख़ुश हैं। हम तो पहले से ही जानते थे, बस इंतज़ार कर रहे थे कि तू कब बताएगा। कब अर्पिता को दुल्हन बना कर अपने घर लाएगा और कब मेरा इंतज़ार पूरा होगा? अब हमें उसके मम्मी-पापा से भी तो बात करनी पड़ेगी ना। ऐसा करते हैं, हम उन्हें खाने पर बुला लेते हैं।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः