अमन कुुमार त्यागी
उस वृक्ष के सारे पत्ते झड़ चुके थे, जिसकी घनी छाया में अनेक पशु-पक्षी आरामफ़रमा होते थे। पत्ते भी ठीक इस अंदाज़ में झड़ गए, जैसे कबड्डी में एक पाले के सभी खिलाड़ी पस्त हो गए हों। उस वृक्ष की एक-एक टहनी को स्पष्ट देखा, गिना जा सकता था। वृक्ष क्या उजड़ा, सभी पक्षी उसे छोड़कर चले गए। पशु बेचारे न जा सके, वह उस पेड़ की जड़ में खड़े हो ही जाया करते थे। जाते भी कहाँ? किसान के घर से निकलकर वहीं, उसी वृक्ष के आस-पास मंडराते हुए घास चरते थे। घास भी सब जल चुकी थी, मगर उन्हें शायद उस घास में भी कुछ खाने को मिल ही जाता होगा। बराबर में एक छोटा सा नाला बहता था, प्यास बुझाने के लिए उसमें अभी पानी बह रहा था।
सुक्के ने बड़ी ही मासूमियत से कहा था- ‘ये पानी भी सूख गया तो प्यासे ही मरना पड़ेगा।’
-‘क्या कह रहे हो काका, भला ये पानी क्यों सूखने लगा?’
-‘तू कुछ नहीं जानता रामू।’ सुक्के जबर्दस्ती आॅक्सीजन को फेफड़ों तक पहुँचाते हुए बोला-‘अकाल पड़ेगा, अकाल।’
-‘मगर क्यों काका?’ रामू ने पुनः पूछ लिया।
-‘देख इस वृक्ष का एक-एक पत्ता सूख गया है। इतना बड़ा और पुराना पीपल का यह वृक्ष सूख जाएगा। ये तो कभी नहीं सोचा था।’
-‘मगर काका ये तो हर बार सूखता है, इसमें नया तो कुछ नहीं है।’ रामू ने कहा।
-‘बिटवा हर बार पत्ते पूरे नहीं सूखते थे, नए पत्ते भी तो साथ-साथ निकल कर आते थे.... मगर इस बार, इस विशाल पीपल पर एक भी पत्ता नहीं बचा है। बची हैं तो सिर्फ़ टहनियाँ.... वो भी हवा से टकरा-टकराकर कमज़ोर हुई जा रही हैं।.... देखता नहीं कितनी लकड़ी पड़ी है ज़मीन पर।’
-‘हाँ, कह तो ठीक रहे हो काका, हमें क्या करना चाहिए?’’ रामू ने पूछा
-‘हम कुछ नहीं कर सकते, जो करना है, उस नीली छतरी वाले को करना है, जो सबका मालिक है।’ सुक्के ने किसी दार्शनिक अंदाज़ में कहा।
-‘परंतु वहाँ, नाले के पास के वृक्ष तो उतने नहीं सूख रहे हैं।’ रामू ने पूछा
-‘वहाँ अभी नाले के पानी के कारण नमी है बेटा! जिस दिन वहाँ की नमी समाप्त हो जाएगी, उस दिन वहाँ के वृक्षों की स्थिति भी इस पीपल जैसी होगी।’ सुक्के ने कहा तो रामू ने फिर पूछ लिया-‘चाचा ये पीपल कितना पुराना है?’
-‘पता नहीं, मेरे दादा जी भी पीपल को पुराना पीपल ही कहते थे।’ सुक्के ने अपने इतिहासबोध पर गर्व करते हुए जवाब दिया था।
-‘क्या पहले कभी इतना सूखा नहीं पड़ा था, जितना कि अब पड़ रहा है?’ रामू के पूछने पर सुक्के ने मासूमियत के साथ अनभिज्ञता जता दी-‘पता नहीं, कब पड़ा होगा।’ कहते हुए सुक्के अतीत में खो गया। उसे अपने बचपन से लेकर अब तक की पीपल से जुड़ी सभी कहानियाँ याद आ रही थीं। उसने अपने दादा और पिताजी के अलावा गाँव के अन्य लोगों से भी पीपल के बारे में काफ़ी कुछ सुना था।
सुक्के, पीपल की कहानियों को याद करता हुआ, अपने घर की तरफ़ बढ़ गया था। सुक्के को अच्छी तरह याद है, उस समय आज की तरह परिवहन के साधन नहीं थे। अधिकांश लोग पैदल ही यात्रा किया करते थे। सुक्के के गाँव से शहर की दूरी सात किलोमीटर है। आते-जाते यात्री इसी पीपल के नीचे छाया में बैंठकर पसीना सुखाते और घंटों आपस में बतियाते। कुछ लोग पुराने पीपल पर भूत होने की बात कहकर बालकों को डराते थे। सुक्के ऐसी ही अनेक कहानियाँ सुनता और फिर अपने मित्रों को सुनाता।
अब पुराना पीपल मात्र कहानियों की चीज़ बनता नजर आ रहा था, लोगों ने उसके नीचे जाना और बैठना लगभग छोड़ ही दिया है। सबके पास सवारी के अपने साधन होने के कारण किसी को फुर्सत नहीं कि वह पीपल के नीचे बैठे और बात करे। वैसे भी गिरती हुई इमारत और सूखता हुआ वृक्ष आकर्षण की वस्तु नहीं रह जाता है। तिस पर यह अफ़वाह कि किसी भयानक भूत की वजह से पुराना पीपल सूख रहा है।
-‘क्या इस पीपल पर कोई भूत भी रहता है?’ रामू ने पूछा तो सुक्के ठिठक कर रुक गया।
-‘किसने बताया तुम्हें?’ सुक्के ने रामू से पूछा तो रामू ने अपने एक बालसखा का नाम बता दिया।
-‘ऐसी बात नहीं है बेटा!’ सुक्के, रामू का बाप तो नहीं था मगर वह उसे प्यार बाप जैसा ही देता था। रामू के पिता रामू के जन्म के समय ही भगवान को प्यारे हो गए थे।
-‘बेटा! कोई भूत-वूत नहीं होता है और पीपल तो हमें हमेशा प्राण वायु देता है, ये सभी वृक्ष और हरियाली ही हमारा जीवन हैं। देख लेना जिस दिन हमारे आसपास हरियाली नहीं रहेगी हमारा जीवन नीरस और क्रूर हो जाएगा।’ सुक्के ने हमेशा भूत होने का विरोध किया और पीपल के सूखने की वजह वर्षा का पर्याप्त न होना ही माना। वही बात उसने रामू को भी बताई थी।
-‘ठीक है काका! अब से मैं भूतों की बात नहीं सुनूँगा, कोई कहेगा तो उससे मित्रता समाप्त कर दूँगा’ रामू ने काका को आश्वस्त करते हुए कहा।
सुक्के अब जंगल कम ही जाता था। वह अपनी छोटी-सी दुकान पर बैठता और गाँव के लोगों की गप्पें सुनता। इन्हीं बातों के बीच रामू जैसे कोई निर्णय ले चुका था।
एक दिन वह भरी दोपहरी में घर से निकल गया। उस दिन गर्मी के मारे बुरा हाल था। बदन पसीने से तर-ब-तर था। नाले में अब पानी बहने के बजाए रिसता नजर आ रहा था। अभी तीन महीने पहले तक तो रामू और उसके साथी बच्चे ख़ूब डुबकी लगाकर नहाते थे। मगर अब एक बाल्टी पानी लेने के लिए भी बाल्टी को तिरछा करना पड़ रहा है। रामू ने आत्मविश्वास के साथ बाल्टी भरी और उसे सूख रहे पीपल के पास ले आया। रामू ने अपने चारों ओर देखा, वहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं था। बस एक भैंस थी, जो पीपल से अपनी कमर खुजा रही थी, मानो पीपल से छाया देने की ज़िद्द कर रही हो।
रामू सोच रहा था-‘जब वृक्षों पर पत्ते नहीं रहते तब पक्षी कहीं दूर चले जाते हैं, जबकि पशु वास्तव में वफ़ादार होते हैं, इसका उदाहरण सूख चुके पीपल के नीचे नियमित रूप से आने वाले पशुओं को समझा जा सकता है। वह कहीं नहीं जाते। चिलचिलाती धूप में भी वह सूख रहे पीपल के वृक्ष के नीचे आ ही जाते हैं। कोई पीपल पर अपने सींग मारता है, कोई कमर खुजाता है और कोई बैठकर फिर उठ जाता है।
रामू को इन पशुओं की हरकत अपनी सी लगती हैं। वह भी तो अपनी माँ को ऐसे ही तंग करता है और जब उसे भूख लगती है तब तो उसके धैर्य का बाँध टूट जाता है। वह मन ही मन सोच रहा था, मेरी माँ भी तो मेरी सारी हरकतें ऐसे ही सहती है, जैसे यह सूख रहा पीपल इन पशुओं की हरकत को सह रहा है। रामू अपने विचारों में खोया था कि तभी एक भैंस ने उसकी बाल्टी में मुँह डाल दिया। रामू उसे यूँ ही देखता रहा जब भैंस ने बाल्टी से मुँह निकाला तो बाल्टी का सारा पानी उसके उदर में जा चुका था। अब वह मुँह ऊपर कर रंभाई, मानो उसे दुनिया-ज़हान की सभी खुशियाँ मिल गई हों। रामू कभी भैंस को देखता और कभी रीती बाल्टी को।
रामू ने झटके से बाल्टी उठाई और फिर नाले की ओर बढ़ गया, जब तक वापिस आया तब तक भैंस वहाँ से हटकर एक खेत की डोल पर शेष बची घास को चरने लगी थी। रामू ने बाल्टी का सारा पानी पीपल की जड़ में डाल दिया।
अब तो यह सिलसिला बन गया। पहले रामू अकेला ही पीपल को पानी देता था, मगर बाद में उसके साथ उसके मित्र भी जुड़ गए। किसी ने भी गाँव में इस बात की चर्चा नहीं की। पीपल के नीचे बनाए गए थावले को प्रत्येक दिन भरना उनका उद्देश्य बन गया था। दोपहर में भरा थावला अगले दिन सुबह तक सूख जाया करता था। देखते ही देखते पीपल हरा होने लगा।
एक दिन एक व्यक्ति रामू के काका की दूकान पर सामान लेने के लिए आया। उसने रामू से कहा- ‘चमत्कार हो गया भैया! पुराना पीपल अब हरा होने लगा है।’ वहीं दूसरे आदमी ने कहा- ‘ऐसा कैसे हो सकता है? ज़रूर किसी अच्छे भूत का काम होगा?’
रामू और उसके साथी वहीं पर खेल रहे थे। लोगों की बात सुनकर उन्हें हँसी आ रही थी।