No looking back in Hindi Short Stories by milan ji books and stories PDF | पीछे न मुड़ना

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पीछे न मुड़ना

वो एकटक मुझे देख रही थी। उसके चेहरे पे मुस्कान थी। वो बेहद खूबसूरत भी थी। हम दोनो एक दूसरे से नजर मिलाए हुए थे। बस दिक्कत इतनी सी थी की मैं १४वे मंजिले में था और वो मेरी खिड़की के बाहर हवा में लटकी हुई थी। मेरे अंदर प्यार का नही भय का भावना जागृत हो गया था। मैं अपने बिस्तर से उतरने की कोशिश करने लगा। इतने में वो खिड़की के और पास आने लगी। मैं और खिसका, वो और पास आने लगी। मैं जितना खिसकता वो उतना पास आती। मैं ज़रा सा हिला, वो फिर भी पास आई। मेरी जान हलक तक पहुंच चुकी थी। मेरी सांसें आंधी की तरह मेरे मुंह से गुज़रे जा रहे थे। कुछ सेकंड ऐसे बीत गए। फ़िर मैंने एक निर्णय लिया। शुक्र है मेरा दिमाग ऐसी हालत में भी चल रहा था। मैंने अपने मन में ३ तक गिने – १, २, ३। फ़िर झटपट वहां से उठकर दरवाजा खोलकर बाहर की तरफ़ भागा। पूरी बिल्डिंग में सब सो ही रहे थे। रात के ३ बजे और क्या करते? 

मैं सीढ़ियों से नीचे की तरफ भागा। ११वी मंजिला वाले रात के ४ बजे तक जगे रहते थे। मुझे लगा आज भी जगे होंगे। मैं बिना पीछे मुड़े सीढ़ियों से नीचे भागता गया। जब मैं ११वे मंजिले में पहुंचा तो देखा की वहां भी सभी सो रहे थे। मेरी जान निकलने वाली थी। मैं पीछे की तरफ़ पलटा। मुझे एक परछाई दिखी। फिर वो परछाई जिसकी थी, वो सामने आ गई। यह वही लड़की थी जो हवा में लटक के मेरी जान ले गई थी। अभी यह मुझे मारकर मेरी जान लेने वाली थी। मैं तुरंत नीचे की तरफ भागा क्योंकि ऊपर १४वा मंजिला आखिरी था और रास्ते में वो चुड़ैल, पिशाचिनी, भूतनी, इत्यादि.– वो भी तो थी।

मैं भागता गया। जब भी पीछे मुड़ता, वो सुंदर राक्षसी मुझे दिखाई देती। "हे भगवान! मैं हार्ट अटैक से मर क्यों नही जाता", ऐसा मैने अपने मन में कहा और भागता गया। कुछ देर भागने के बाद मैं सड़क तक आ पहुंचा। मैंने अपने घुटनो पर हाथ रखे और हांफ़ने लगा। फिर मैं पीछे मुड़ा। वो सीढ़ियों से नीचे चली आ रही थी। वो रुकने वाली थी नही। मैंने अपने सिर पर हाथ मारा और सड़क में भागने लगा। सड़क एकदम सुनसान पड़ा था। सिर्फ मेरी तेज़ सांसें और मेरे कदमों की आवाज सुनाई दे रही थीं। एक कुत्ता भी नही दिखा मुझे। मैं पागलों की तरह भागता गया। तभी सामने कुछ ही दूरी पर मुझे वो दिखी। मैं रुक गया। "अबे यार", बड़बड़ाते हुए में मुड़कर वापस भागने लगा। भागते भागते कुछ ही दूरी पर सामने वो फ़िर दिखी। "फिर से नही!", मैं ज़ोर से चींखा। फिर मैं मुड़कर भागने ही वाला था कि तभी मेरे दिमाग में एक खयाल आया–"मेरे टांग अभी तक थके क्यों नही"। मैं सोच में पड़ गया। फिर मुझे शक हुआ और मैंने खुदसे कहा–"कहीं यह कोई सपना तो नहीं?"। मैं उस लड़की की तरफ मुड़ा और बोला –"गायब हो जा"। वो गायब हो गई। मेरी जान में जान आई। अभी तक मैं जो भी देख रहा था, एक सपना था।