अमन कुुमार त्यागी
माली के मुँह से क्या निकला कि उसकी बगिया में जो सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत फूल होगा, उसी को मंदिर में चढाया जाएगा। सुनकर फूलों में ख़ूबसूरत दिखने के लिए होड़ लग गई। होड़ लगती भी क्यों न? फूल जानते थे कि जो भी मंदिर में चढ़ेगा उसकी नस्लें सुधर जाएँगी। अब फूल ख़ूबसूरत दिखने के लिए तरह-तरह के उपाय सोचने लगे थे। क्यारियाँ अलग-अलग थीं मगर बगिया एक ही थी। पौधों की प्रजातियाँ भी अलग-अलग थीं मगर थे सब फूलों के पौधे ही। जिन डालों पर फूल लगे थे वे झूमने लगी थीं। तने, डालों और फूलों पर ध्यान केंद्रित किए हुए थे, तभी तो वह उनका वजन अपने ऊपर लदे होने के बावजूद प्रसन्न नजर आते थे। जबकि जड़ों के दर्द को न तो तने ही जानते थे, न ही फूल और न ही डालें। पत्तों का तो कहना ही क्या? वह तो हर पतझड़ और माली के चाहने पर गिरा दिए जाते थे। इन पत्तों को तो फूलों और तने के लिए कुर्बान होना ही था। फूल और तने ने कभी पत्तों के लिए शिक़ायत भी नहीं की थी, क्योंकि दोनों ही जानते थे कि पत्तों के रहते, न तो तना ठीक से दिखाई पड़ता है और न ही फूल। इसलिए पत्तों की छटाई में ही फूल और तने को अपना हित नजर आता था। ऐसे में जड़ की बात करना तो जैसे निरर्थक ही है। जड़ को चाहिए भी क्या? थोड़ा सा खाद और पानी, वह उसको मिल ही जाता है। इतने भर से ख़ुश हो जाने वाली जड़, अपने ऊपर कितना वजन लादे है, यह भी भूल जाती है, प्रदर्शन का तो कोई मतलब ही नहीं। ख़ूबसूरती के लिए तो तने, पत्ते और फूल ही होते हैं। तना कुछ अधिक ही होशियार होता है। तने की होशियारी का अंदाज़ा इस बात से भी लग जाता है कि जब उसकी जिस डाल पर फूल या पत्ते नहीं लगते तो वह उसका भोजन-पानी बंद कर देता है। धीरे-धीरे उसे सुखाकर गिरा देने में तने को जरा भी दया नहीं आती
जहाँ तक चाह की बात है, फूलों को भी बहुत अधिक चीजें नहीं चाहिए। वह कम पाकर भी बलिदान की इच्छा रखते हैं। और कितने पत्तों का बलिदान होता है इसका हिसाब न तो तने के पास होता है, न ही फूलों के पास और न ही माली या जड़ों के पास। पत्तों का यह बलिदान उनकी स्वतंत्रता का बलिदान नहीं होता, बल्कि उनका यह बलिदान तने और फूलों की ख़ूबसूरती के लिए तथा जड़ों की खाद बनने के लिए होता है। चाहत तने की ही अधिक होती है। पानी, पवन और प्रकाश तो पुष्ट होने के लिए चाहिए ही, ख़ूबसूरत दिखने की चाह भी कम नहीं होती है। वह अपनी ख़ूबसूरती बनाए रखने के लिए न तो पत्तों से ही कोई मोह रखते हैं और न ही फूलों से। फूल भी कम ही खा-पीकर मस्त हो जाते हैं। उनकी चाह मायावी मुलायम हाथों की होती है ताकि यह हाथ उन्हें सलीके से पौधों से अलग कर किसी योगी की पूजास्थली पर चढ़ा सकें। फूलों का मनमोहक अंदाज़ ही उन्हें ममत्व प्रदान करता है और बड़े-बड़े शाह उन्हें पाने के तलबगार हो जाते हैं।
फूलों की ख़ूबसूरती और पुष्टता के लिए माली ने अनेक पर्यवेक्षक नियुक्त कर रखे हैं। जो समय-समय पर बगिया में आते और अपने-अपने हिस्से की क्यारियों को समुन्नत बनाने में जुट जाते। पर्यवेक्षक इतने कुशल, कि वह फूलों की भाषा और भाव समझ लेते और फूलों की अहमियत पर ही ध्यान देतेे। तने की परवाह तो कम ही करते। उनके लिए तने का मतलब सिर्फ़ कलम लगाने तक ही सीमित था। जड़ों की आवश्यकता और फूलों का आकर्षण ही उनके अध्ययन का विषय होता। पर्यवेक्षकों का यह भेदभाव भरा व्यवहार तने को भी कतई अच्छा नहीं लगता और वह अपनी डालों, जड़, पत्तों और फूलों के प्रति सदैव ही सशंकित रहता।
तना चाहता कि उससे अधिक महत्त्व किसी का भी न हो, वह जो चाहे और जैसा चाहे होता रहे। तने की हठधर्मिता ने पौधे को जड़, तना, डाल, पत्ते और फूलों में बांट दिया। या यह भी कहा जा सकता है कि तने ने अपना ही बंटवारा कर डाला। एक पौधे के तने को तो अपने ऊपर इतना गर्व था कि वह अपने सामने किसी को समझता ही नहीं था। वह कहता- ‘जो भी अपने आपको मुझसे जोड़ेगा वह खिल उठेगा। उसकी हर डाल पर ख़ूबसूरत फूल उगने लगेंगे।’
यह उस तने का अपना ही लालच था कि उसने दूसरे पौधों के तनों को भी अपने तने से जुड़ जाने की दावत दे डाली। दूसरे तनों में भी उसके साथ जुड़ जाने की होड़ लगने लगी। उन सबको पता था कि दावत देने वाले तने की जड़ें काफ़ी मज़बूत हंै, वह उनका वज़न भी उठा लेंगी।
इस होड़ में दावत देने वाले तने की महत्ता इसी से देखी जाने लगी कि जुड़ने वाले तने सौदेबाज़ी पर उतर आए। ये सभी तने ख़ूबसूरत फूल उगाना चाहते थे। फूल इसलिए नहीं उगाना चाहते थे कि किसी मंदिर में चढाए जाएंगे बल्कि इसलिए कि एक बार फूल उगने लगें तो उनकी मनमाफ़िक माँग माली मान लेगा और उन्हें बगिया से बाहर कर देने का डर नहीं रहेगा। असुरक्षा का यही भाव उन्हें दूसरे की तरफ़ खींच रहा था। जिसके परिणाम का आकलन ये कमज़ोर तने ठीक से नहीं कर पा रहे थे और मज़बूत जड़ वाले पौधों की ओर निरंतर आकर्षित हो रहे थे।
एक दिन माली ने अपने सहयोगी पर्यवेक्षकों से पूछा- ‘क्या हमारी बगिया में ऐसा फूल खिल पाएगा जो मंदिर में चढाया जा सके।’
पर्यवेक्षकों ने जवाब दिया था- ‘बिल्कुल सर! आपकी बगिया से अधिक ख़ूबसूरत बगिया बाक़ी दुनिया में है ही कहाँ।’
जवाब सुनकर माली की प्रसन्नता बढ़ गई थी। उसने ख़ुशी-ख़ुशी अपनी बगिया का दौरा किया। बगिया में सभी पौधे बड़ी शान से झूम रहे थे। कुछ मोटे और कुछ पतले तने वाले पौधे थे। मंद-मंद हवा चल रही थी। ऐसे में चारों ओर फैली भीनी-भीनी ख़ुशबू मदहोश किए दे रही थी।
माली ने देखा कि उसका एक ऐसा पौधा जो कभी बहुत कमज़ोर हुआ करता था। जिसकी काफ़ी देखभाल करनी पड़ी थी। देखभाल के बाद वह पौधा काफ़ी उन्नत हो गया था। अब उसी पौधे पर बहुत सारी क़लम लगी हुई थीं। उस पौधे पर बहुत अधिक प्रयोग होता लग रहा था। माली को शंका हुई कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए। यह न हो कि अच्छा-भला पौधा भी ख़राब हो जाए और इससे जुड़े तनों को भी कोई लाभ न मिले।
शंकाएं निर्मूल सि( नहीं र्हुइं और जब फूल खिलने का समय आया तो बगिया में उन पौधों पर ही ख़ूबसूरत फूल दिखाई दे रहे थे जिन पौधों पर बहुत अधिक प्रयोग नहीं किए गए थे। इन्हीं फूलों में से मंदिर में चढाए जाने योग्य फूलों का चयन किया जा रहा था।
भरपूर फूल तैयार होने के बाद माली पुनः उस पौधे के पास पहुँचा जिस पर अधिक प्रयोग किया गया था। उस पौधो की हालत अब अच्छी नहीं रही थी। उस पौधे का तना मोटा भले ही हो गया हो मगर अब फूल खिलाने लायक नहीं रह गया था। जब माली ने उसे अपनी बगिया से बाहर करने की बात अपने सहयोगियों से की तो तना बेचैन हो गया। उसने माली से कहा- ‘मेरे साथ यह अच्छा नहीं किया गया है। मेरी डालों पर लगने वाले फूलों को दूसरी डालों पर उगाया गया है।’
माली उस पौधे की भावनाओं को समझ गया था। उसने पौधे के तने पर हाथ रखते हुए कहा- ‘अति बुरी ही होती है और अतिवश्वास ख़तरनाक होता है। मुझे विश्वास था कि तुमसे मुझे अच्छे फूल खिलेंगे मगर तुम पर लगने वाली अधिक क़लम के कारण मैं सावधान हो गया था।’
माली की बात पर्यवेक्षक भी शांति के साथ सुन रहे थे। माली ने उनसे कहा- ‘स्वामी को ख़ुश करने के लिए चापलूसी करना अच्छी बात नहीं है। मैं जानता हूँ कि अच्छा परिणाम उन्हीं को मिलता है जिन्होंने अच्छा काम किया हो। यदि मैं तुम लोगों पर ही निर्भर रहता तो इतने फूल इस बगिया में कभी नहीं खिल सकते थे। मैंने फूलों के मन की बात जानी और उन्हें कब क्या चाहिए वो दिया।’