कमरे में आकर उसने कपड़े बदले थे।फिर बेग खोला था।।उसने बैग में से खाना निकाला था।चलते समय निशा यानी उसकी पत्नी ने खाना रख दिया था।खाना खाकर उसने पानी पिया और फिर खाट पर पसर गया था।
रात हो चुकी थी।आसमान से उतरा अंधेरा कमरे में भी चला आया था।लेकिन उसने लाइट नही जलाई थी।छत पर टका पंखा पूरी गति से घूम रहा था।लेकिन गर्मी ज्यादा थी।
सुरेश की नौकरी बैंक में लगी थी।उसकी पहली पोस्टिंग मोहब्बत की नगरी ताज में हुई थी।इस शहर में वह नया था।पहली बार इस सहर में आया था।उसके लिए यह शहर अपरिचित,अनजान था।उसने अपने साथी सहकर्मी से मकान के लिए कहा था।उस सहकर्मी ने रामु के मकान में उसे एक कमरा किराए पर दिलवा दिया था।वह मकान दो मंजिला था।नीचे की मंजिल में रामू अपने परिवार के साथ रहता था।ऊपर की मंजिल पर केवल एक ही कमरा था,जो उसने किराए पर लिया था।
इस मकान में आते ही सुरेश को जिस चीज ने आकर्षित किया,वो थी विभा।विभा मकान मालिक रामु कज पत्नी थी।विभा का कद मंझला ,नैन नक्श बेहद साधारण और रंग सावला था।वह सुंदरता की मूर्ति नही थी।तीन बच्चों को जन्म देने के बाद भी उसके शरीर मे ढीलापन नही आया था।उसका शरीर अब भी कसा हुआ था।वह अपनी उम्र से चार पांच साल छोटी ही लगती थी।और सावले रंग और साधारण नैन नक्श के बावजूद उसमें जबरदस्त कशिश थी।
इस मकान में किरायेदार बन कर आने के कुछ दिन बाद ही सुरेश को यह पता चल गया था कि विभा जी अपने पति से पटती नही है।आये दिन पति पत्नी के बीच लड़ाई झगड़ा होता रहता।कभी कभी झगड़ा इतना विकराल रूप धर लेता की नोबत मार पीट तज जा पहुचती।ऐसे में सुरेश को जाकर बीच बचाव करना पड़ता।एक दिन जब घर पर रामू नही था. तब उसने विभा से झगड़े का कारण पूछा था।तब विभा गुस्से में बोली,"लम्पट है।बीबी से पेट नहि भरता साले का।"
रामू की मोहल्ले में ही परचूनी की दुकान थी।यह दुकान पुश्तेनी थी।मोहल्ले के पास से एक नाला बहता था।नाले के पार निम्न तबके के ल लोग जैसे मजदूर,रिक्शा चलाने वाले,रेहड़ी ठहले वाले,फेरी वाले ऐसे लोग रहते थे।
रामु की दुकान पर सौदा लेने वालों में नाला पार के लोग ज्यादा होते थे।रामू से इन लोगो का उधार चलता था।रामू उधार सौदा दे देता और सामान के दुगने दाम वसूल करता था।नाले पार की बस्ती से औरते भी उसकी दुकान पर सौदा लेने के लिए आती थी।इनमें से बहुत सी औरतों के साथ रामू के अवैध सम्बन्ध थे।रामू इन औरतों को मुफ्त में सौदा देता था और रात के अंधकार में इन औरतों की झोपड़ियों में जा पहुचता।ये सभी औरते चालू किस्म की थी।रामू को ये औरते अपने जिस्म से खेलने का मौका देती और उसके बदले रामू से सौदा ही नही लेती थी,नगद पैसे भी मांगती रहती थी।दूसरी औरतों पर पैसे लुटाने के कारण दुकान में फायदा नही होता था और आर्थिक तंगी का सामना विभा को करना पड़ता था।
रामू में एक और बुराई थी।जब भी रामु का पत्नी से झगड़ा होता वह घर पर आना बंद कर देता।वह दुकान पर ही रहता और खाता