रात की बैठक
भोला काका और गांव के सभी सदस्य (महिलाएं ,बच्चे, बुजुर्ग) मुखिया जी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। मुखिया जी बड़े प्रसन्न भाव से बैठक में उपस्थित होते हैं। वहां शोरगुल होने पर मुखिया जी कहते हैं जरा शांत हो जाइए मैं आप सबको कुछ बताना चाहता हूं। मुखिया जी के आवाहन पर सब लोग शांत हो जाते हैं।
मुखिया जी मुस्कुराते हुए कहते हैं जैसा कि आप जानते हैं कि हम यहां प्रतिदिन बैठक करते हैं जिसमें गांव की समस्या व उसके उपायों के बारे में सदा चर्चा की जाती है और इसमें बड़े हो या छोटे सब की राय को तवज्जो दी जाती है।
तभी गांव का एक शख्स मुखिया जी को बीच में टोककर कहता है यह सब ठीक है ,परंतु आप यह बताइए कि कल आप इस बैठक में उपस्थित क्यों नहीं हुए और कौन वह शख्स था जो आपके घर पर आया था।
अरे ओ नंदू , तू क्या ज्यादा होशियार है भोला काका उसे डांटते हुए कहते हैं।
मैं... मैं.… तो
मुखिया जी आप अपनी बात पूरी करिए गांव वाले एक आवाज में मुखिया जी को कहते हैं।
वह व्यक्ति जो कल मेरे घर पर आया था वह संभलगढ़ के राजकुमार थे तथा मुझे व पूरे गांव को उन्होंने भोजन पर आमंत्रित किया है। वह यह जानकर प्रसन्नता से गोरांवित हुए कि किस प्रकार हम अपने इस छोटे से गांव की बिना किसी राजा महाराजा की मदद के सुरक्षा करते हैं तथा विकास करते हैं।
बलवंत नाई - ओ ..हो.. अच्छा.. अच्छा.. पर मुखिया जी मैंने उन्हें कभी इस गांव मैं नहीं देखा ना इन गांव वालों ने उसे कभी गांव में देखा फिर उन्हें कैसे पता चला कि हम गांव मैं इस प्रकार से रोज बैठक लेते हैं तथा सुरक्षा और विकास के ऊपर चर्चा करते हैं लगता है यह सब बाते आपने उन्हें सुनाई और बेफिजूल की मन से कहानी बना रहे हैं।
बात तो इसकी सही है सभी गांव वाले एक स्वर में चिल्लाते हुए कहते हैं।
भोला काका नम्रता पूर्वक कहते हैं,बिना किसी तर्क वितर्क के हम ऐसे किसी पर भी इल्जाम नहीं लगा सकते।
यदि आप सब सहमत हैं तो हमें संभलगढ़ जाकर राजकुमार के आमंत्रण को स्वीकार करना चाहिए
मुखिया जी कहते है,अच्छा ठीक है, मैं संभल गढ़ के राजकुमार को संदेश पहुंचा दूंगा कि अगले रविवार को हम सभी गांव वाले आपकी रियासत में आएंगे तथा मैं बीयर जानने को उत्सुक हूं कि कैसे उन्हें हमारे बारे में यह जानकारी प्राप्त हुई?
बलवंत नाई ताना देते हुए, हां हां मुखिया जी आपसे ज्यादा उत्सुक तो गांव वाले हैं ताकि इन्हे भी पता पड़े पूरी बात और वो मुलाकात।
कहना क्या चाहते हो? मुखिया जी गुस्से में कहते हैं।
कुछ नहीं बस.. समझदार को इशारा काफी ... और हंसता हुआ बलवंत नाई चला जाता है।
गांव वाले भी कानाफूसी करते हुए कुछ देर बाद चले जाते हैं।
मुखिया जी मैं आपको जानता हूं कि आप कभी भी इस गांव का अहित नहीं चाहेंगे तथा कोई भी ऐसा कार्य ना करेंगे जो कि गांव के खिलाफ हो।
मैं आपकी बात से सहमत हूं भोला काका लेकिन क्या करूं गांव वाले तो मुझे गलत समझते हैं।
मुखिया जी आप सब्र रखिए और रविवार तक का इंतजार करिए भोला काका यह कहते हुए बैठकी से उठ जाते हैं।
कुछ समय बाद मुखिया जी भी अपने घर की तरफ चले जाते हैं।