वरदेखुआ in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | वरदेखुआ

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वरदेखुआ

वरदेखुआ


आज से कुछ वर्ष पहले वर खोजने के लिए प्रायः लोग समूहों में चलते- दस-पाँच, दो-चार के समूहों में। महीनों अपने नाते रिश्ते में घूमते हुए सभी की शादियाँ तय करके घर लौटते । कभी कभी पुरोहित भी यह काम करते। वर देखने वालों को ही वरदेखुआ कहा जाता है। जिनके घर भी पहुँचते, अच्छी तरह स्वागत होता। स्नेह भरे परिवेश में शादियां तय हो जातीं । अभिभावक की भूमिका प्रमुख होती। शादी के लिए यदि ज़बान दे दी जाती तो उसे निभाया जाता। आजकल वर देखने के ढंग भी बदल गए हैं। संचार सुविधाओं के कारण फोन या इंटरनेट से पहले सम्पर्क हो जाता फिर बात बढ़ती। अब लड़के-लड़कियों की भूमिका‌ महत्त्वपूर्ण हो गई है, इसलिए वरदेखुआ का रूप भी बदल गया। वर खोजने वाले अब प्रायः लड़के से सम्पर्क साधते । उधर से कुछ सकारात्मक रुख मिलता तो आवश्यकतानुसार अभिभावक से सम्पर्क किया जाता। पढ़ी-लिखी लड़कियां स्वयं भी पहल करने लगी हैं। अब शादी के लिए उनकी सहमति भी आवश्यक हो रही है। जिन्हें साथ निभाना है, उनकी सहमति आवश्यक हो यह शुभ ही है ।
वर्मा जी सत्रहवां घर आज देख रहे थे। वे शासकीय सेवा में थे। दो वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इन्दिरा नगर लखनऊ में रहते हैं। उनकी लड़की एम.बी.बी.एस. कर एम.डी. कर रही है। एक लड़का है जो नवीं कक्षा में पढ़ रहा है। लड़की मेडिकल में आ गई पर लड़का औसत से भी नीचे है। उससे बहुत आशा नहीं की जा सकती। लड़की डाक्टर है इसलिए वर पक्ष प्रायः शादी करने के लिए तैयार ही हो जाता। लड़की का रंग गेहुँआ जरूर है पर उसकी योग्यता के कारण कोई बाधा नहीं पड़ती।
जब ऐसी स्थिति है तो वर्मा जी आज सत्रहवां घर क्यों देख रहे हैं ? हाँ, यह सच है जब वरपक्ष शादी के लिए तैयार हो जाता है तो वर्मा जी ही कोई न कोई बहाना ढूढ़ कर पीछे हट जाते हैं। वर की बैठक में वर्मा जी लड़की के बारे में बताते हैं। लड़का इन्जीनियर है। वर्मा जी उससे मिलकर आए हैं। वर के पिता संतुष्ट से दिखते हैं। मैंने आजीवन अपने वेतन से ही काम चलाया। अब पेंशन से....।' वर्मा जी चाय पीते हुए बताते रहे।
'लड़की को आप कैसे रखेंगे ?" वर्मा जी ने लड़के के बाप से पूछा ?
'परिवार में जैसे रखा जाता है बाप ने कहा।
"मैं समझ नहीं पाया। मेरी लड़की डाक्टर है। उसे अपना काम भी करना होगा।' वर्मा जी ने कहा।
'हाँ वह तो होगा ही।' लड़के के बाप ने उत्तर दिया।
'तब घर में सभी की तरह वह कैसे रह सकेगी ?
'ठीक कहते हैं आप। हम यह कोशिश करेंगे कि उसे तकलीफ न हो।'
'वर्मा जी, क्या आपने लड़की से बात की है। प्रायः डाक्टर लड़की डाक्टर से शादी करना पसन्द करती है। मेरा लड़का इंजीनियर है।
क्या....?'
'हाँ, चर्चा जरूर की है। उसकी असहमति होती तो कैसे आता ? वह नौकरी करेगी। आपको कोई आपत्ति तो नहीं है ?"
'मुझको कोई आपत्ति नहीं है। लड़के लड़की जो करना चाहेंगे करेंगे।' बाप ने एक पकोड़ी उठाते हुए बात स्पष्ट की।
लड़का जबसे इन्जीनियर हो गया है उसके पिता भुवनेश जी वरदेखुआ लोगों से परेशान रहते हैं। अक्सर कोई न कोई आ जाता है। चाय-पानी, जलपान की व्यवस्था करो। लड़के के अपने सपने हो सकते हैं। वह स्वयं लड़की पसन्द करेगा। उसकी सहमति पर ही कहीं कुछ हो सकेगा । लड़के से बात करके ही वर्मा जी बाप से बात करने आए हैं। वे कुछ निश्चिन्त से हैं। | वे गांव घूमते हैं। क्या लड़की यहाँ रह पाएगी ? वे अनुमान लगाते हैं, यह जानते हुए कि लड़की को यहाँ गांव में नहीं रहना है। गांव की हर चीज़ का निरीक्षण करते हैं। बिजली कब आती है ? निकट कोई दूकान है या नहीं।
गांव घूम कर वर्मा जी लौटते हैं। गांव सड़क पर है। रेलवे स्टेशन से पांच किलोमीटर दूर है पर रिक्शे मिल जाते हैं। वे वर के पिता भुवनेश जी से राम राम कर रिक्शे पर बैठ जाते हैं।
दामाद भी लड़का ही हुआ। यदि वह समझदार है तो ससुराल पक्ष का ध्यान रखेगा ही। लड़की तो अपनी है वह तो......। सोचते हुए वर्मा जी स्टेशन पहुँच गए।
वर्मा जी को तीन दिन हुए लड़के के गांव से लौटे हुए भुवनेश आज वर्मा के यहाँ आए हैं। वर्मा जी घर पर नहीं हैं पर उनकी पत्नी ने बैठक में बिठाया। चाय पिलाई। बात बात में कह गई 'हाथ में एक दो रखना ही चाहिए।'
भुवनेश जी वर्मा जी के घर से निकले तो श्रीमती वर्मा के कहे हुए का निहितार्थ समझने की कोशिश करने लगे। चौराहे पर एक परिचित नौटियाल जी मिल गए। वे इसी गली में रह रहे थे। दोनों काफी दिनों बाद मिले थे। भुवनेश जी ने वर्मा जी के सम्बन्ध में चर्चा की। अपने आने का उद्देश्य बताया। नौटियाल जी थोड़ी देर के लिए चुप हो गए। फिर धीरे से बोले, 'क्या कहूँ? वर्मा जी वर देखने जाते हैं। पसन्द भी करते हैं पर शादी नहीं कर पाते।'
'क्यों ?' भुवनेश ने पूछा ।
'असली कारण तो वही बता सकते हैं पर मुझे लगता है उनकी लड़की डाक्टर हो गई। लड़का छोटा है। कुछ कर पाएगा कह पाना मुश्किल है। डाक्टर लड़की को घर से अलग करने में उन्हें तकलीफ हो रही है।"
भुवनेश जी ने नौटियाल की बात सुनी। गाड़ी का समय हो रहा था। राम राम कर स्टेशन के लिए आटो पर बैठ गए।
एक सप्ताह बाद वर्मा जी की सूचना आई। मैं आप से मिलकर बात करना चाहता हूँ। भुवनेश जी को बाहर जाना था पर वे रुक गए। वर्मा जी आए। भुवनेश जी यह समझ रहे थे कि वर्मा जी संभवतः बात को आगे बढ़ाकर विवाह निश्चित करेंगे। पर वर्मा जी ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया। चाय पीते हुए अपने वर खोजने के अनेक संस्मरण वे सुनाते रहे। उठकर चलने को हुए तो भुवनेश जी ने पूछ लिया, "क्या आप सचमुच लड़की का विवाह करना चाहते हैं?"
वर्मा जी अचकचा गए। रिक्शे पर बैठते हुए कहा, 'भाई साहब, आपको क्या लगता है ?" एक मुस्कराती दृष्टि भुवनेश पर डालते हुए रिक्शे पर आगे बढ़ गए।
जैसी उम्मीद थी। वर्मा जी ने फिर भुवनेश से सम्पर्क नहीं किया।