Bandhan Prem ke - 18 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | बंधन प्रेम के - भाग 18

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बंधन प्रेम के - भाग 18

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आज मेजर विक्रम बहुत खुश थे। कल सुबह से उनकी लंबी छुट्टी शुरू हो रही है ।वैसे उन्होंने यूनिट में कहा था कि मुझे अभी छुट्टी की आवश्यकता नहीं है, और मैं ड्यूटी पर रहूंगा, लेकिन कमांडिंग ऑफिसर ने समझाया कि विक्रम जीवन में काम के साथ-साथ आराम भी जरूरी होता है और तुमने बहुत लंबे समय तक यूनिट की सेवा की है ,अब थोड़ा घर परिवार पर ध्यान दो।
मेजर विक्रम ने धीरे-धीरे इन छुट्टियों की प्लानिंग भी कर ली।मम्मी और पापा के साथ एक हफ्ता बिताने के बाद वे शहीद मेजर शौर्य के गांव उनकी मम्मी दीप्ति के पास जाते जहां शांभवी रह रही है और अपनी आगामी सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी कर रही है। मेजर शौर्य और मेजर विक्रम ने तो ग्रेजुएशन पूरा होते होते ही ऑफिसर के रूप में आर्मी जॉइन कर ली लेकिन दीप्ति ने पहले अपना पीजी पूरा किया और फिर समाज कल्याण से संबंधित एक संस्था में एक साल की सेवा देने के बाद अब कहीं जाकर वह सिविल सर्विस की ओर मुड़ी है…. …..और अगर मेजर शौर्य ने अपने आखिरी पत्र में सिविल सर्विसेज की परीक्षा का उल्लेख नहीं किया होता तो शायद शांभवी उसके बारे में सोचती भी नहीं।
मेजर विक्रम ने सोचा कि वह दीप्ति के जीवन में उनके बेटे के रूप में शौर्य जी की जगह तो नहीं ले सकते, लेकिन वह एक प्रयास करेंगे कि बेटे के खोने का जो गम उनके हृदय में है,शायद उन्हें देखकर दीप्ति का मन थोड़ा हल्का होने लगे। मेजर विक्रम कुछ दिन उनके साथ रहकर एक बेटे के रूप में उनकी सेवा करना चाहते थे और शांभवी को इस बात के लिए राजी करने की कोशिश के बारे में भी उन्होंने सोचा कि अब वह अपने विवाह के बारे में फिर से विचार करे।
मेजर विक्रम का विचार था कि विवाह न सिर्फ एक पवित्र बंधन है,बल्कि एक सामाजिक दायित्व भी है।स्त्री और पुरुष मिलकर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते हैं और परिवार तथा समाज को अपनी ज़िम्मेदारी के निर्वहन के रूप में योगदान करते हैं। विवाह स्त्री-पुरुष के बीच केवल भौतिक संबंध का नाता नहीं है। अगर केवल यह होता तो विवाहित लोगों का इतना लंबा साथ न चला करता और बुज़ुर्ग हो जाने पर भी एक दूसरे के प्रति इतना प्रेम न उमड़ पड़ता कि जीवन की आखिरी सांस तक वे एक दूसरे का साथ निभाने को कटिबद्ध होते हैं। रिश्ते की गाड़ी में बीच में कभी खटपट भी होती है लेकिन शायद कभी प्रेम, कभी रूठना,कभी मनुहार, कभी मनाना इसी में तो गृहस्थ जीवन का आनंद है।
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अभी मेजर विक्रम यूनिट में ही थे।छुट्टी पर जाने की सभी औपचारिकताएं पूरी कर ही चुके थे कि अचानक कमांडिंग ऑफिसर का फोन आया।

- मेजर अभी तुम यूनिट में ही हो ना?

-जी सर। बस सारी फॉर्मेलिटी पूरी करके यूनिट से निकलने ही वाला था।

- नहीं, अभी तुम तुरंत मेरे पास आ जाओ।

मिनटों के भीतर मेजर विक्रम कमांडिंग ऑफिसर के केबिन में थे। सीओ साहब अत्यधिक व्यस्त थे।लगातार फोन की घंटियां,वायरलेस सेट,सेटेलाइट फोन सभी घनघना रहे थे…... सारे कॉल अटेंड करते हुए ही सीओ साहब ने कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और मेजर विक्रम तत्काल कुर्सी पर बैठ गए।

थोड़ी देर बाद मेजर विक्रम से मुखातिब होते हुए सीओ साहब ने कहा- ऑफिसर एक इमरजेंसी सिचुएशन है।तुम्हें,मेजर आसिफ और चुने हुए छह अन्य सैनिकों को अभी लगभग 15 मिनट बाद एक सीक्रेट डेस्टिनेशन के लिए निकलना है, जहां मोस्ट वांटेड खूंखार आतंकवादी हम्जा छिपा हुआ है।

-ओ….के…. सर मैं पूरी तरह तैयार हूं।

- मुझे अफसोस है विक्रम कि तुम छुट्टी पर नहीं जा पा रहे हो।

- सर छुट्टी तो बाद में मिल ही जाएगी। पहले हम्जा को पकड़ना जरूरी है। उसी ने इस स्टेट में पिछले कई बड़े आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया है। यह तो अच्छा हुआ कि उसकी लोकेशन मिल गई है।

- आय एम प्राउड ऑफ यू विक्रम,मैं जानता था तुम्हारा उत्तर यही होगा।

- सर वहां पहुंचेंगे कैसे और वह जगह है कहां?

-शेरपुर गाँव…. आपकी टीम को ले जाने के लिए एक हेलीकॉप्टर पीछे हमारी यूनिट के ग्राउंड में तैयार है। आर्मी की लोकल टीम ने उस घर को घेर लिया है जहां हम्जा छिपा हुआ है,लेकिन इससे काम नहीं चलने वाला है, वहां पर आर्मी के कमांडो दस्ते की आवश्यकता है और इसके लिए मैं तुम्हें भेज रहा हूं…. यह एक खतरनाक और बहुत ही संवेदनशील ऑपरेशन होगा अतः तुम भी सावधानी बरतना। आवश्यकता होने पर उस घर को ही विस्फोट से उड़ा देना, जहां हम्जा छिपा हुआ है और यह सूचना मिली है कि मानव ढाल के रूप में उसने अपनी मां को साथ रखा हुआ है….. शायद एक या दो आतंकवादी उसके साथ भीतर भी हैं……..

- स्थिति गंभीर है सर…. लेकिन मैं तैयार हूं। ….मैं तुरंत रवाना होता हूं….. बस आप मेरे पापा जी को यह खबर कर दें कि विक्रम आज रात को किसी काम से आर्मी यूनिट में ही रुका हुआ है और वह कल सुबह घर पहुंचेगा…. उन्हें बिल्कुल मत बताइए कि हम एक खतरनाक सीक्रेट मिशन पर जा रहे हैं……

- ओके,ऑल द बेस्ट मेजर ...मैं दुआ करूंगा कि आप लोग जल्द सफल होकर लौटें….

-जय हिंद

-जय हिंद

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ठीक 15 मिनट के अंदर हेलीकॉप्टर मेजर विक्रम, मेजर आसिफ,कैप्टन नवनीत और अन्य पाँच कमांडो को लेकर उड़ा और 10 से 15 मिनट में वह लोग उस गांव में पहुंच गए जहां पर खूंखार आतंकवादी हम्जा छिपा हुआ था।
जब वे लोग डेस्टिनेशन पहुंचे तो हम्जा के छिपे होने वाले घर के आसपास के सभी घर खाली कराए जा चुके थे।लगभग सभी लोगों ने तो सहयोग किया लेकिन कुछ लोग दूर खड़े होकर पत्थरबाजी कर रहे थे। एक दो लोगों ने 'आर्मी वापस जाओ' के नारे लगाए। वे लोग पास के दो-तीन पेड़ों के पीछे छिपे हुए थे और इस पूरे ऑपरेशन को बाधित करने की कोशिश कर रहे थे।
मेजर विक्रम, मेजर आसिफ और पूरी टीम लपक कर आर्मी के वाहनों के पास पहुँची। आसपास के कई मकानों की आड़ से आर्मी द्वारा मोर्चाबंदी की जा चुकी थी। वाहनों को भी इस तरह पार्क किया गया था कि गली से निकल कर हम्जा और उसके साथी बाहर न भागे और उन्हें ब्लॉक किया जा सके।

मेजर विक्रम ने मेगा फोन अपने हाथ में लिया। रुक रुक कर पत्थर फेंक रहे लोगों की ओर मुखातिब होते हुए उन्होंने कहना शुरू किया-

" देखिए, हमें आप लोगों की सुरक्षा के लिए ही यह ऑपरेशन करना पड़ रहा है… हम्जा कितना खतरनाक है और इसने आम सिविलियन को कितना नुकसान पहुंचाया है…. यह सब आप भी जानते हैं फिर भी आप उस के सपोर्ट में पत्थर फेंक रहे हैं….. मैं आप सब से रिक्वेस्ट करता हूं कि आप सब अन्य लोगों की तरह इस एरिया से बहुत पीछे हट जाएं……"

मेजर विक्रम के इस अनाउंसमेंट के 2 मिनट बाद फिर पत्थर चलने लगे।

मेजर विक्रम ने फिर कहा:-

" मैं आप लोगों को 5 मिनट का वक्त देता हूं…. इसके भीतर अगर पत्थर चलने बंद नहीं हुए तो हमें ऑर्डर है कि हम आप लोगों पर भी फायरिंग कर सकते हैं…..।"

अबकी बार पत्थर तो नहीं चले लेकिन एक आदमी ने बहुत जोर से चिल्ला कर कहा-

"यह सारी मुठभेड़ फर्जी है और आर्मी बेगुनाह लोगों का भी एनकाउंटर कर देती है,नौजवानों को रातों-रात उठा लिया जाता है। यहां लोगों के ह्यूमन राइट्स खतरे में हैं….."

मेजर विक्रम का खून खौल उठा। उन्होंने फिर अनाउंस करते हुए कहा:-

"ह्यूमन राइट्स तब खतरे में होता जब हम लोग एक सिरे से इस एरिया में पहुंचते ही फायरिंग शुरू कर देते और तब तुम लोग इस तरह पत्थर भी नहीं फेंक पाते और लोगों को घटनास्थल से हटाने के लिए हम लोगों को इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती …..लेकिन बेगुनाह लोगों को मारना ….यह आर्मी की फितरत नहीं है….. और हम्जा के काले कारनामे क्या हैं….अगर तुम लोग नहीं याद करना चाहते तो इस मुठभेड़ के बाद आर्मी कल सारी डिटेल जारी करेगी तब पढ़ और टीवी पर देख लेना कि वह आर्मी का ही नहीं, इस पूरे स्टेट का ही नहीं,बल्कि पूरी मानवता का दुश्मन है……. आप लोगों को ऐसे देशद्रोहियों को पकड़वाने में हमारी मदद करनी चाहिए उल्टे आप हम लोगों का ही काम बाधित कर रहे हैं….. मैं आखिरी बार कहता हूं आप पीछे हट जाएं……."

इस चेतावनी का असर हुआ और पत्थर चलने बंद हुए और वहां इकट्ठा मुट्ठीभर लोग तेजी से कहीं गायब हो गए……

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जब मेजर विक्रम और मेजर आसिफ वहाँ पहुंचे, तब ही शाम ढल रही थी और अब तो रात की कालिमा धीरे-धीरे फैलने लगी ।वैसे आर्मी के पास सर्च लाइटें पर्याप्त संख्या में थीं और लगभग पूरा इलाका तेज रोशनी के घेरे में था…. सारी लाइटें हम्जा के छिपे हुए उस घर पर फोकस थीं।अचानक लाइट बंद होने का मतलब हम्जा को शक हो जाता कि ऑपरेशन शुरू हो गया है। मेजर विक्रम,मेजर आसिफ और सभी कमांडोज ने अपने अपने हथियारों को एक बार चेक किया। सभी कमांडो बुलेट प्रूफ जैकेट,हेलमेट,रायफल,पिस्तौल,विस्फोटक,चाकू,रस्सियों आदि से लैस थे।

मेजर विक्रम ने मेगाफोन आर्मी के लोकल ऑफिसर को वापस करते हुए कहा- अनाउंसमेंट जारी रखिए… हम्जा को सरेंडर करने के लिए कहते रहिए……..अलर्ट पर रहिए और हम लोग किनारे वाली उस गली से जमीन में पेट के बल धीरे-धीरे सरकते हुए हुए मकान की ओर बढ़ते हैं ,वहां रोशनी कम है और वहां सर्चलाइटें भी नहीं पहुंच पा रही हैं……. ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा होते ही वायरलेस पर आपको संदेश मिल जाएगा……..
मिनटों में मेजर विक्रम,मेजर आसिफ और अन्य 6 कमांडो अंधेरे वाले हिस्से से जमीन में लगभग रेंगते हुए मकान की ओर आगे बढ़ने लगे।

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रुक-रुक कर अनाउंसमेंट हो रहा था। सर्च लाईंटें भी फेंकी जा रही थीं। कमांडोज के मकान के पास पहुंचते ही सर्च लाइटों को थोड़ा सा डायवर्ट किया गया, ताकि सैनिकों की उपस्थिति का अंदर छिपे हुए लोगों को अहसास ना हो।कैप्टन नवनीत घर के मुख्य द्वार वाले हिस्से में रुके। इस तरह घर के चारों कोनों में कुल 4 कमांडो रुके क्योंकि आतंकी कहीं से भी निकल कर भागते और अगर बाहर निकल वे स्वयं को उड़ा भी लेते तो आसपास तैनात अनेक आर्मी वालों को नुकसान पहुंचा सकते थे, इसलिए नजदीक से ही शार्पशूटरों की तरह इन्हें आतंकवादियों की भागने की संभावित स्थिति में उन पर सफल हमला करना था। घर के पिछले हिस्से की सर्च लाइटें आहिस्ता-आहिस्ता और दूर की गईं। यहीं से एक-एक कर मेजर विक्रम, मेजर आसिफ और अन्य दो कमांडो छत पर पहुंचे।अब समस्या भीतर घुसने की थी।
कमांडो द्वारा ऑपरेशन शुरू करते ही 100% हम्जा को इसकी भनक लगनी थी और यह तय था कि अंदर वे लोग अपने को सुरक्षित रखते हुए मोर्चाबंदी कर चुके होंगे।

मेजर आसिफ ने कहा- क्या करें, समझ में नहीं आ रहा है विक्रम….

मेजर विक्रम-छत तोड़ने में तो समय लगेगा….. इस मकान को ब्लास्ट कर नहीं सकते... क्योंकि हम्ज़ा के साथ उसकी मां भी है। अब एक ही उपाय है ।रोशनदान को हल्का ब्लास्ट कर उड़ा दें और यहीं से हुक और रस्सी के सहारे नीचे कमरे में एक बार में जंप करें।

मेजर आसिफ- मुझे भी यही सहीं लग रहा है….. हां लगभग 25 से 30 सेकेंड में ये दोनों प्रक्रियाएं पूरी होना चाहिए।

मेजर विक्रम-ओके, यही करते हैं ।दोनों कमांडो आप लोग छत पर तैयार रहिए।
मेजर विक्रम और मेजर आसिफ छत के बीच वाले हिस्से से लगभग 3 फीट नीचे एक प्लेटफार्म पर पहुंचे जहां रोशनदान था। रात्रि का घुप अंधकार था और अंदर भी पूरी तरह खामोशी छाई हुई थी……..
इस मजबूत रोशनदान को यूं तोड़ा जाना संभव नहीं था।अतः पहले उन्होंने छत पर हुक लगा कर रस्सी लटकाई और इससे अपनी-अपनी कमर को बाँधा। दोनों छत की चहारदीवारी पकड़कर रोशनदान से लगभग चार-चार फीट की दूरी पर गए।मेजर विक्रम ने रोशनदान के ऊपर एक हल्का विस्फोटक फेंका। रोशनदान के शीशे और फ्रेम दोनों टूट गए। पाँच-छह सेकंडों के भीतर मेजर विक्रम और मेजर आसिफ ने रोशनदान से भीतर छलांग लगा दी और वे ज़मीन पर गिर पड़े।
विस्फोट की आवाज से हम्जा और उसके साथी आश्चर्यचकित हो गए कि इतनी जल्दी आर्मी घर के अंदर दाखिला हो गई है। दूसरे कमरे से एक आतंकवादी ने कमरे के अंदर प्रवेश कर फर्श से ऊपर उठने का प्रयास करते हुए मेजर आसिफ पर गोली चला दी। गोली उनकी हेलमेट से लगी और कड़कड़ाहट की आवाज़ हुई। अब तक आसिफ सम्हल चुके थे और उन्होंने आतंकी को दूसरी गोली चलाने का मौका नहीं दिया और अपनी राइफल से उस आतंकी का काम तमाम कर दिया। दूसरे आतंकवादी की छाया दरवाजे पर दिखी और मेजर विक्रम ने सटीक निशाना लगाते हुए उसके सीने पर गोली दाग दी।वह वहीं गिर पड़ा।

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लगभग 15 से 20 मिनट तक विक्रम और आसिफ दरवाजे के पास दीवार की ओट में रहे। जब कोई आवाज नहीं आई तो मेजर विक्रम ने हम्ज़ा को ललकारना शुरू किया कि सरेंडर कर दो नहीं तो अपने साथियों की तरह मारे जाओगे।
फुसफुसाते हुए मेजर विक्रम ने मेजर आसिफ से कहा- इनपुट सही है। बाहर मोर्चा संभाले हुए उस ऑफिसर ने बताया कि कुल चार लोग हैं। इसमें से दो तो मारे जा चुके हैं।एक हम्ज़ा है और एक अन्य उसकी मां है।
मेजर आसिफ- इस इनपुट को सटीक कैसे मान लें?
मेजर विक्रम- एक लोकल मुखबिर की सूचना है अतः यह सही होगी। हमें इस इनपुट को सही मानकर अब आगे बढ़ना होगा और हम्ज़ा तक पहुंचना होगा।
पाँच मिनट बाद उन्होंने कमरे से बाहर झांका।वहाँ गलियारा था, जिसमें कोई नहीं था। वे लोग कमरे से धीरे-धीरे गलियारे की ओर बढ़े। अभी वे लोग गलियारे के आखिरी छोर तक पहुंचे ही थे कि सामने से फायरिंग शुरू हो गई मेजर विक्रम और मेजर आसिफ़ दोनों जमीन पर लेट गए। हेलमेट और बुलेट प्रूफ जैकेट होने के कारण उन पर इस फायरिंग का खास असर नहीं हुआ लेकिन शरीर तेज गति से टकराने वाली गोलियों के कारण हिल गया। जमीन पर लेटे-लेटे ही उन्होंने आवाज की दिशा में फायरिंग की और कुछ देर बाद उधर से फायरिंग बंद हो गई।
गलियारे से लगा हुआ एक छोटा हाल था और उसके आखिरी हिस्से में एक कमरा बना हुआ था जो अंदर से बंद था इसी कमरे में हम्ज़ा के होने की पूरी संभावना थी। अब वह खिड़की बंद हो गई थी।संभवतः इसी खिड़की से फायरिंग की गई थी।हम्ज़ा यह समझ गया था कि इन पर ओपन फायर करना मूर्खता है।
मेजर विक्रम ने दरवाज़े के बाहर से चिल्लाकर हम्ज़ा को समर्पण करने के लिए कहा लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई और पाँच मिनट बाद विक्रम और आसिफ ने वह दरवाजा ज़ोर के धक्के से तोड़ दिया।
उन्होंने अपनी -अपनी रायफल तान कर पोजीशन ले ली। अंदर का दृश्य देखकर वे अवाक रह गए।हम्ज़ा ने अपनी ही अम्मी को गन पॉइंट पर ले रखा था। उसने चिल्लाकर कहा- अगर तुम लोग आगे बढ़े तो मैं अम्मी को मार दूंगा……
मेजर आसिफ़ चिल्लाए- हम इस ब्लैकमेलिंग से डरने वाले नहीं हैं। तुम्हारे कारण तुम्हारी अम्मी की जान भी जाएगी और इसके लिए तुम और और सिर्फ तुम दोषी होओगे…..
हम्ज़ा की मम्मी ने चिल्लाकर कहा- मेरा बेटा हमारे वतन का गुनाहगार है, मेरी फ़िक्र न करो। करो फायरिंग…. अगर यह सरेंडर नहीं कर रहा है तो यह जान गंवाएगा….

यह सुनकर मेजर आसिफ फायरिंग करने ही वाले थे कि मेजर विक्रम ने इशारे से उन्हें रोका।
मेजर विक्रम ने आसिफ को पीछे जाने का इशारा किया। आसिफ हतप्रभ थे। उन्होंने कहा -यह क्या कर रहे हो विक्रम? इस आतंकी को हमें इतना एडवांटेज नहीं देना चाहिए……

विक्रम ने कहा- गुनाह बेटे ने किया है, उसकी मां ने नहीं…. हमें एक निर्दोष को बचाने की कोशिश करनी चाहिए……
ऐसा कहते हुए विक्रम ने गन नीचे रखी और उन्होंने हम्ज़ा की ओर छलांग लगा दी। विक्रम उनकी अम्मी के साथ एक ओर गिर पड़े।हम्ज़ा के हाथ से पिस्तौल छिटककर दूर जा गिरी।मेजर विक्रम उठकर आगे बढ़ने का प्रयास करने लगे। इधर आसिफ इससे पहले कि सामने आकर और पोजीशन लेकर हम्ज़ा पर गोली दाग पाते, पता नहीं हम्ज़ा के हाथ में कहाँ से एक बम आ गया और उसने यह मेजर विक्रम पर फेंक दिया। मेजर विक्रम ने बम की जद में आने से बचने के लिए एक ओर छलांग लगाई लेकिन बम विस्फोट की चपेट में उनके पैर आ गए…..। अगले ही सेकंड में मेजर आसिफ़ की रायफल से निकली गोलियों ने हम्ज़ा के शरीर को छलनी कर दिया।
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मेजर विक्रम फर्श पर लहूलुहान पड़े थे।मेजर आसिफ़ लपक कर मेजर विक्रम के पास पहुंचे और उनका हाथ अपने हाथों में लेकर कहने लगे-दोस्त हिम्मत मत हारना... तुम ठीक हो और वह आतंकी मारा गया है……
मैंने संदेश बाहर भेज दिया है…. ऑपरेशन सक्सेसफुल…... इमरजेंसी मेडिकल नीड……

मेजर विक्रम बुरी तरह घायल थे लेकिन थोड़ी चेतना भी थी। आंखें खोलकर बुरी तरह कराहते हुए उन्होंने कहा-मैं जानता हूं दोस्त हमने देश के एक दुश्मन को मौत की नींद सुला दी है…..जय हिंद
मेजर आसिफ़ ने कहा-जय हिंद।

हम्ज़ा की अम्मी एक कोने में भय से थर-थर कांप रही थी। अपने आतंकी बेटे के मारे जाने पर भी उन्हें एक मां के रूप में होने वाली स्वाभाविक पीड़ा तो थी, लेकिन इससे अधिक उन्हें मेजर विक्रम के इस तरह गंभीर रूप से घायल हो जाने पर गहरा धक्का लगा था।

वह विक्रम के पास आकर सुबकने लगी-

"मुझे माफ कर दो बेटा, मेरे इस नालायक और गद्दार बेटे के कारण तुम्हारी यह दशा हो गई.. मैंने सुना था कि आर्मी के लोग फरिश्ते होते हैं सच में तुमने एक फरिश्ते की ही तरह मेरी जान बचाई पर तुमने मुझे बचाने के लिए अपनी जान को खतरे में डाल दिया….. मुझे माफ कर दो बेटा….. तुमने मुझे मर जाने दिया होता।"

अपनी आंखें खोलते हुए बड़ी मुश्किल से मेजर विक्रम के मुंह से ये शब्द निकले
-इट्स ओके आंटी…. मां तो मां होती है ….सब की मां एक जैसी ही होती है….
इतना कहकर मेजर विक्रम बेहोश हो गए।

(क्रमशः)

©योगेंद्र

(कहानी के इस भाग को मनोयोग से पढ़ने के लिए मैं आपका आभारी हूँ। शांभवी और मेजर विक्रम की इस कहानी में आगे क्या होता है, यह जानने के लिए पढ़िए इस कथा का अगला भाग आगामी अंक में। )

(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,नाम,समुदाय,धर्म,निर्णय,नीति,घटना,स्थान,संगठन,संस्था,आदि से अगर कोई समानता हो तो वह संयोग मात्र है।)