Bandhan Prem ke - 17 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | बंधन प्रेम के - भाग 17

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बंधन प्रेम के - भाग 17

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लगभग डेढ़ साल पहले विशेष धारा हटाए जाने और केंद्र शासित प्रदेश के रूप में स्थापना के बाद जैसे पूरे स्टेट ने सुरक्षा का जिरहबख्तर पहन लिया था। लगभग 35000 अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए थे। हजारों सालों से चली आ रही धार्मिक यात्राएं भी रोक दी गई थीं। एहतियात के तौर पर राज्य की अनेक राजनैतिक और अन्य पार्टियों के नेताओं को नजरबंद कर लिया गया था। पूरे राज्य में धारा 144 लागू कर दी गई लेकिन स्थिति कर्फ्यू जैसी ही थी। बाजार बंद कर दिए गए थे। कहीं-कहीं कर्फ्यू भी लगाया गया था। वास्तव में विघ्नसंतोषी तत्वों और अलगाववादी ताकतों को जनता को भड़काने के लिए ऐसे ही किसी मौके की तलाश रहती है और उनकी बातें नहीं माने जाने पर वे अपनी खिसियाहट निकालने के लिए पत्थरबाजी,भड़काऊ नारेबाजी और कहीं-कहीं पर खून खराबा करने से भी नहीं चूकते हैं। पिछले कुछ सालों से बच्चों-बच्चों के हाथ में पत्थर थमाए जा रहे थे और इसके पीछे सुरक्षाबलों ने एक बड़ी साजिश का भंडाफोड़ किया था।

जब कर्फ्यू जैसे हालात होते हैं,तो जनता सबसे अधिक पिसती है।उनकी रोजी-रोटी छिन जाती है तो कहीं घर में राशन और अन्य आवश्यक चीजों का भी अभाव हो जाता है। सड़कों पर सन्नाटा पसरा होने से कहीं आवागमन मुश्किल हो जाता है और स्वास्थ्य खराब होने की स्थिति में दवा के लिए अस्पताल जा पाने में भी जनता को तकलीफ होती है। ऊपर से सुरक्षा बलों द्वारा रुटीन चेकअप भी आए दिन होती रहती है। हालांकि यह सब देशद्रोही तत्वों की धरपकड़ के लिए होता है लेकिन कहीं न कहीं आम जनता भी इसके नाम पर असुविधाओं का सामना करती है। विडंबना यह कि जनता को बरगलाने वाले बड़े नेता तो अपने किलेनुमा घरों में सुरक्षित रहते हैं,जहां उनके लिए पूरी सुविधाएं होती हैं। इस बार अलगाववादी ताकतों की रहनुमाई करने वाले लोगों को नहीं बख्शा गया और यहां तक कि एहतियात के तौर पर राजनैतिक दलों के नेताओं को भी नजरबंद कर दिया गया।

अलगाववाद का झंडा उठाने वाले ऐसे रहनुमाओं के पास ग्रीन स्क्वायर जैसे बड़े मार्केट एरिया की बड़ी-बड़ी दुकानें होती हैं। ऐसे नेता चाहते हैं कि आम शहरी के बच्चे स्कूल छोड़ दें और हाथ में पत्थर उठा लें,वहीं ये अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में पढ़ने के लिए भेजते हैं।राष्ट्रीय एकता व अखंडता के प्रति द्वेष की भावना रखते हैं और स्वयं इसी देश के पासपोर्ट का उपयोग कर विदेशों में जाकर हमारे देश से दुश्मनी का व्यवहार करने वाले मुल्क से समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं। एक बड़ी प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर अलग सांस्कृतिक पहचान का दंभ भरते हैं लेकिन इस प्रश्न का जवाब नहीं दे पाते कि इस कथित अलग सांस्कृतिक पहचान वाले और एक ख़ास तहज़ीब वाले स्टेट में हजारों सालों से मिलकर एक साथ रहने वाले एक धर्म विशेष के लोगों को वहां से भगाने और उनके साथ हुई भारी हिंसा के समय आप जैसे लोग चुप क्यों थे?

ईद का बड़ा त्यौहार आ रहा था।घाटी में इस मोहब्बत, भाईचारे और खुशी के त्यौहार को हर मजहब के लोग मिलजुल कर मनाते आए हैं। धारा 144 के कारण एक साल पहले आम जनता को ही खरीदारी में ही मुश्किल हो रही थी। अलगाववादी नेताओं के भड़काऊ बयान, उनके द्वारा लंबी हड़तालों का आह्वान और उनके द्वारा जबरदस्ती व्यापार और कामकाज ठप करने की कोशिशों के बाद आम जनता सचमुच रोजी-रोटी के लिए तरसती है।बड़ी झील में शिकारों से अपनी आजीविका चलाने वाले लोग,हाउस बोट्स के वर्कर्स,खूबसूरत शहर में गाइड की भूमिका निभाने वाले लोग ये सभी आमदनी न होने से निराश हैं। उनके परिवार तंगहाली की स्थिति में हैं। परंपरागत कशीदाकारी और गलीचे का कार्य सब ठप हैं।

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मेजर विक्रम के कॉलेज के दिनों के दोस्त शमी ने फोन किया- यार बड़ी मुश्किल है।ईद का त्यौहार आ रहा है। कर्फ्यू में ढील अभी तक नहीं दी गई है।ऐसे में कैसे मनेगा यह त्यौहार?

मेजर विक्रम ने आश्वस्त किया- मैं कोई न कोई रास्ता निकालता हूं।जब कर्फ्यू में पहली बार ढील दी गई तो मेजर विक्रम ने अपने आर्मी के ही एक दोस्त को फोन किया और उसके परिवार के लोगों ने जो रेजिडेंसी रोड के किनारे की कॉलोनी में रहते थे, ने कर्फ्यू में मिली ढील के पहले दिन तुरंत जाकर खरीदारी की और ढेर सारे फल, सेवइयां,अखरोट आदि शमी के घर में जाकर पहुंचाईं। हुकूमत ने ईद के आसपास पूरी तरह से कर्फ्यू में ढील दे दी और लोगों ने परंपरागत हंसी खुशी के वातावरण में ईद मनाई। इस दौरान फायरिंग की घटनाएं लगभग न के बराबर हुईं और एक तरह से यह घाटी में तेजी से बदलते हालात का एक बड़ा संकेत था।

शांभवी सिविल सर्विसेज की तैयारियों में व्यस्त हो गई और मेजर विक्रम ड्यूटी पर लौट गए, लेकिन उनका बॉर्डर पर जाकर युद्ध करने का सपना अधूरा ही रहा।अपने अब तक के सेवाकाल के अधिकांश समय वे इस प्रदेश के अनेक शहरों में शांति स्थापना की कोशिशों में अपनी बटालियन के साथ जुटे रहे।

शांभवी दीप्ति के साथ रहकर ही अपनी महत्वाकांक्षी पढ़ाई को जारी रखे हुए थी।शौर्य ने अपने आखिरी पत्र में उससे यह इच्छा प्रकट की थी कि उसे सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सफल होना है और एक एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर के रूप में देश की सेवा करनी है। मेजर विक्रम का न तो अपने माता-पिता से संपर्क हो पाता था, और न शांभवी तथा दीप्ति से। घाटी में इंटरनेट सेवा महीनों से बंद थी और प्रीपेड सर्विस के भी काम नहीं करने से दूरसंचार संपर्क में अत्यंत कठिनाई होती थी। ऐसे में मेजर विक्रम भी किसी तरह से महीनों में एक बार उससे संपर्क कर पाते थे।बाद में धीरे-धीरे सारी पाबंदियां समाप्त होने लगीं और जनजीवन भी सामान्य होने लगा था।एक दिन ऐसा भी आया जब राज्य में फोर-जी मोबाइल सेवा बहाल कर दी गई

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इस बीच पूरी मानवता को एक और बड़े संकट ने अपने घेरे में लिया।कोरोनावायरस के संक्रमण की चपेट में घाटी भी आई।इक्कीस दिनों के कड़े पहले लॉकडाउन से संक्रमण के मामले तो कंट्रोल में आए, लेकिन तब तक राज्य के अनेक प्रोजेक्ट में काम कर रहे श्रमिकों व अन्य लोगों की आवाजाही और फ्लाइट्स के पूरी तरह बंद नहीं होने के कारण संक्रमण की रफ़्तार नहीं रोकी जा सकी। उधर दूसरे मोर्चे पर धीरे-धीरे राजनैतिक दलों के नेताओं को भी रिहा किया गया। कुछ लोगों ने आशंका जताई थी कि एक बार फिर यहां के हालात विशेष धारा को लेकर बिगड़ेंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

कर्फ्यू पूरी तरह हटने के बाद जब दुकानें खुलीं तो चाय की दुकान पर मेजर विक्रम सिविल यूनिफॉर्म में चाय पी रहे थे वहां शहर के कुछ लोगों की आपसी बातचीत बड़ी रोचक थी और वे बड़े ध्यान से सुन रहे थे।

एक व्यक्ति ने कहा- सज्जाद, यह सरकार ने अच्छा नहीं किया आखिर वह विशेष धारा इस संघ में इस स्टेट के लोगों से किया गया वायदा था?

सज्जाद ने कहा-मकबूल मैं बहुत ज्यादा कानूनी दांवपेच और आर्टिकल्स नहीं जानता लेकिन यह बताओ इस टेंपरेरी आर्टिकल ने आखिर इस राज्य का कितना भला किया और यहां कितनी समृद्धि आ गई?

मकबूल- हां एक आम शहरी तो अभी भी वहीं का वहीं रहा। गांव अब तक पिछड़े के पिछड़े रहे।उल्टे इसकी आड़ में इस राज्य को पूरे देश से एक तरह से काट के रख दिया गया था।

एक तीसरे व्यक्ति ने कहा- बस डर इस बात का है मेरे दोस्त कि कहीं अपनी विशेष संस्कृति नष्ट न हो जाए।

सज्जाद- क्या अब तक ऐसा कुछ हुआ है कि इन सवा सालों में तुमने ऐसा कुछ महसूस किया हो? फिर हमारे देश के अनेक प्रांतों में उनकी सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए अनेक रुल्स पहले से ही लागू हैं।यहां भी इस बात को लेकर क्या दिक्कत होगी?

मकबूल- हां यार और हमारे इस देश की
अपनी कोई एक खास धार्मिक भाषाई पहचान होती तब इससे खतरा होता.. यहां तो अलग-अलग मज़हब, ज़ुबान,रस्मोरिवाज के लोग हजारों सालों से एक साथ मिलकर रहते आ रहे हैं तो ऐसे मुल्क में आखिर इस स्टेट को क्या खतरा होगा? और जो लोग दशकों पहले घाटी छोड़ जाने को मज़बूर किए गए, उनके आने से तो हमारा भाईचारा और बढ़ेगा आखिर वे भी तो इसी मिट्टी में पैदा हुए हैं।

मेजर विक्रम ने महसूस किया कि लोगों में इन परिवर्तनों को लेकर बहुत सी चर्चाएं हैं।उन्होंने उम्मीद की,कि सब कुछ सामान्य हो जाएगा और उन्होंने स्थिति को तेजी से सामान्य होते हुए देखा भी है। बस उन्हें इस बात का डर रहता है कि पड़ोसी मुल्क अपनी कुटिलता से कोई खुराफात न कर दे।

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ऐसे ही एक तनाव भरी रात में व्हाट्सएप पर शांभवी का संदेश आया और उसे पढ़कर मेजर विक्रम के सोचने की दिशा राजनीति से हटकर एक बार फिर जज़्बातों पर केंद्रित हो गई।

शांभवी ने अपने संदेश में लिखा था- हेलो,आप ठीक तो हैं विक्रम जी?

विक्रम-हेलो शांभवी, मैं बिल्कुल ठीक हूं। आप और मम्मी जी कैसे हैं?

शांभवी- हम दोनों भी ठीक हैं विक्रम जी। बस आजकल के तनाव और कशीदगी भरे माहौल के बारे में पढ़-सुनकर कभी-कभी मन विचलित हो जाता है।

विक्रम- एडजेक्ट कहा शांभवी, और अब कर्फ्यू एवं लॉकडाउन के इस दौर में मुझे आपके हाथ की कॉफी पीने को कहां मिलेगी…. इसी कारण यह तनाव और बढ़ जाता है मेरे लिए….

फ्रेंडशिप की इमोजी बनाते हुए मेजर विक्रम ने आगे संदेश लिखा:-
…... सच में प्रेम और रूमानियत इंसान को कितना भावुक बना देते हैं और शायद सब लोग इसी तरह से प्रेम और मोहब्बत की भाषा समझ जाएं तो फिर किसी तरह के झगड़े न हों, न कोई धारा लगाई- हटाई जाए और न कभी कर्फ्यू की नौबत आए……

शांभवी और मेजर विक्रम का व्हाट्सएप चैट जारी है.......

थोड़ी देर के लिए शांभवी यह विस्मृत कर गई कि वह दिवंगत शौर्य के बारे में सोच कर बातें कर रही है…. या मेजर विक्रम से…..

शांभवी ने प्रत्युत्तर में लिखा:-

सच….. मोहब्बत दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है…... हम शायद जीवन में उस प्रेम की प्रतीक्षा करते हैं और एक दिन अनायास वह हमें प्राप्त हो जाता है और एक बार जीवन में उस प्रेम का आगमन होने के बाद यह प्रेम तत्व कभी जीवन से समाप्त नहीं होता……. हम जिनसे प्रेम करते हैं ….हमेशा उसके बारे में खूबसूरत खयालों में खोए रहते हैं…. जैसे पूरे जीवन में…. हमारे पूरे अस्तित्व में उस प्रेम ने अपनी जगह बना ली हो…. जैसे प्रेम का प्याला पी कर हम नाच उठे हों…. और जैसे हम करना कुछ चाहते हैं और हो कुछ और जाए….. और एक बार प्रेम की शुरुआत होने के बाद अनंत काल तक चलने वाली ईंधनचलित किसी गाड़ी की तरह प्रेम भी रोके नहीं रुकता है….. चाहे हम इसे अपने स्तर पर समाप्त करना चाहें….. इसकी दिशा बदलना चाहें, तब भी हमारा ध्यान कहीं न कहीं इसी ओर जाता है ….बस हम जिससे प्रेम करते हैं हमेशा उसकी सलामती व उसकी खुशहाली की कामना करते हैं.. और अगर किसी कारणवश हमारा प्रेम हमसे दूर भी चला गया तो भी हर घड़ी... हर पल…. हम उसको अपने में महसूस करते हैं......अपने आसपास महसूस करते हैं…. यही प्रेम की सबसे बड़ी ताकत है कि चोट सैकड़ों मील दूर एक को लगे और दर्द यहां दूसरे को हो…. और जिसके प्रति हमने प्रेम के किसी एक क्षण को कभी भी अपने में महसूस किया तो फिर हम उसका बुरा कभी चाह ही नहीं सकते…. दिल से उसके लिए हमेशा दुआ और प्रेम की तरंगें ही निकलती हैं……... यह प्रेम कितनी अलग तरह की अवस्था है न ,.....कि अगर हमें टीवी का स्विच बंद करना हो और हमारे हाथ बढ़ जाते हैं पंखे का स्विच बंद करने को…... । शायद प्रेम में डूबे व्यक्ति का खुद पर नियंत्रण नहीं रहता और वह एक अलग ही दुनिया में चला जाता है…… शायद प्रेम के उस एक पल की आत्मिक अनुभूति में हम सदियों लंबी ज़िंदगी जी लेते हैं और शायद सदियों के लिए इससे एक ऊर्जा मिल जाती है……..प्रेम है... जैसे अंधकार भरी रात में टिमटिमाता हुआ एक दीपक और उसके प्रकाश की अनुभूति...प्रेम...इस रूहानी अहसास की बार-बार अपने प्रिय से पुष्टि भी नहीं चाहता..... उसे यह डर लगता है कि जो एक पल उसका अपना खास रहा है कहीं कोई उसे नाकाम न साबित कर दे ....कोई इस एक पल के इस प्यारे अहसास को मुझसे छीन ले......हे प्रिय.... यह वो घड़ी थी जब तुम मेरे थे..... अब इस एक पल के अहसास को मुझसे कभी मत छीनना..... यह मेरा है.... सिर्फ मेरा...... और इस एक पल में तुम मेरे हो ....सिर्फ मेरे...... क्या तुम्हें पता है .....यही है बंधन.... प्यार का......

.........मेजर विक्रम यह संदेश पढ़कर सोच में डूब गए कि शांभवी अपनी प्रकृति से अलग अपनी फीलिंग इस तरह से कैसे व्यक्त कर रही है... कहीं भावुक होकर शौर्य जी को लिखते लिखते उसने यह संदेश मुझे तो नहीं भेज दिया……

ग्रीन स्क्वायर में आर्मी की तीन गाड़ियां खड़ी हैं…. मेजर विक्रम के साथ एक छोटी सैनिक टुकड़ी है।रात को एक बज चुके हैं... ….पूरे शहर में स्तब्धता है…….

लांस नायक राम प्रसाद ने पूछा- सर, यहां बगल में एक चाय की दुकान है और उसका मालिक परवेज दुकान के ही पीछे सोता है,क्या उसको हम लोग जगाकर कॉफी या कहवा बनवाएं?

मेजर विक्रम ने मना करते हुए कहा- नहीं, आर्मी का होने की स्थिति का दुरुपयोग मत करो और किसी आम नागरिक को इतनी रात गए तकलीफ मत दो….

दुकान के पास इस टुकड़ी को देखकर परवेज आंखें मलते हुए बाहर आया।

उसने पूछा- सर कुछ चाहिए आप लोगों को?
राम प्रसाद ने कहा -अभी काफी बन सकती है परवेज भाई?

परवेज ने कहा- हां, 10 से 15 मिनट ही लगेंगे।बन जाएगी….

मेजर विक्रम ने कहा- परवेज ऐसा करिए, कॉफी के बदले अगर बन सके तो हम लोगों को चाय ही पिला दीजिए…..

परवेज ने कहा -हां सर जरूर…

दरअसल कॉफी के साथ शांभवी की यादें जुड़ी होती हैं और मेजर विक्रम अभी किसी दूसरे के हाथ की कॉफी पीने के मूड में नहीं हैं। परवेज ने इस ठिठुरती रात में सबके लिए गरमागरम चाय बनाई और उससे पीकर जैसे सब लोग तृप्त हो गए और विक्रम सोचने लगे .....ये चाय भी ना कोई भेद नहीं करती..... एक साथ बैठकर इस चाय को पीते हुए...... सब एक हो जाते हैं ...बस ....सिर्फ और सिर्फ चाय .....

अभी डेढ़ घंटा पहले आए व्हाट्सएप के संदेश को बार-बार पढ़कर मेजर विक्रम अभी कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पा रहे हैं…..

तभी शांभवी का एक और मैसेज आया-

सॉरी विक्रम जी…. वह संदेश न जाने मैंने कैसे लिख दिया... शायद शौर्य जी की याद आने पर और टाइम बीत जाने के बाद वह संदेश अब डिलीट नहीं हो रहा है , सॉरी इसे पढ़कर आपको तकलीफ हुई होगी….

विक्रम ने स्माइली पेस्ट करते हुए जवाबी संदेश में लिखा- नहीं, नहीं शांभवी…. मुझे बहुत खुशी हो रही है पर क्या मैं इस संदेश को अपने फोन में रहने दूँ…डिलीट न करूं... चलेगा?...

शांभवी ने भी एक स्माइली के साथ जवाब भेजा- हां हां चलेगा विक्रम जी….।

(क्रमशः)

©योगेंद्र

(कहानी के इस भाग को मनोयोग से पढ़ने के लिए मैं आपका आभारी हूँ। शांभवी और मेजर विक्रम की इस कहानी में आगे क्या होता है, यह जानने के लिए पढ़िए इस कथा का अगला भाग आगामी अंक में। )

(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,नाम,समुदाय,धर्म,निर्णय,नीति,घटना,स्थान,संगठन,संस्था,आदि से अगर कोई समानता हो तो वह संयोग मात्र है।)