भारत के कुछ बड़े-बड़े नेताओं का यह विश्वास हो गया है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता के बिना भारत को स्वराज्य की प्राप्ति असम्भव है । महात्मा गांधी और कांग्रेस ने इस हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये अनेक बार प्रयत्न किये किन्तु सब में मुसलमानों की हठधर्मी और अन्याय्य मांगों के कारण उन्हें असफल ही होना पड़ा। इन नेताओं के इन प्रयत्नों का परिणाम यह हुआ कि दूसरी पार्टी अपनी असम्भव मांगें बढ़ाती हुई पाकिस्तान पर आ पहुॅची है। पाकिस्तान का अभिप्राय यह है कि भारत के दो खण्ड कर दिये जायें, एक का नाम पाकिस्तान हो और दूसरे का हिन्दुस्तान। हिन्दुस्तान में हिन्दुओं का शासन हो और पाकिस्तान में मुसलमानों का। सन् १९४२ में इसी पाकिस्तान का कांग्रेस ने घोर विरोध किया था और महात्मा गांधी जी ने भी इसे पाप और असत्य के नाम से घोषित किया था। किन्तु सन १९४४ में श्री राजगोपालाचार्य ने गांधी जी की अनुमति सेे एक प्रस्ताव मुसलमानों के नेता मित्र जिन्ना के सामने रखा, जिसमे वही सब बातें थी, जिन्हे मि० जिन्ना पहले चाहते थे । किन्तु इस बार उन्होंने स्वयं प्रस्तुत की हुई शर्तों को भी मानने से इन्कार कर दिया । मि० जिन्ना की यही नीति है कि वे हटधर्मी से अपनी मांगो को आगे-आगे बढ़ाते ही जाते हैं। महात्मा गांधी जिस भारत-विभाजन को पाप बता चुके थे और यह कह चुके थे कि चाहे मेरे शरीर के टुकड़े हो जाये किन्तु मै भारत के टुकड़े नही होने दूंगा, उन्हीं महात्मा गांधी की अनुमति जब इस भारत विभाजन के प्रस्ताव पर हो गई तो समस्त देश में एक खलबली सी मच गई। इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया तत्काल आरम्भ हो गई।
कुछ कांग्रेसी सज्जन जो केवल गांधी जी की हां में हां ही मिलाना जानते हैं और अपनी बुद्धि से कुछ भी विचार नहीं करते, वे जिस प्रकार सन् ४२ में गांधी जी के कथनानुसार पाकिस्तान को पाप बताते थे, उसी प्रकार अब वे भी इस भारत विभाजन को उचित बताने लगे। इनके साथ ही कुछ मि० जिन्ना के अनुयायी धर्मान्ध मुसलमान भी अपनी हठधर्मी के कारण पाकिस्तान का समर्थन कर रहे थे। किन्तु समझदार और विचारशील कांग्रेसी नेताओं ने अपने स्पष्ट विचार निर्भीकता पूर्वक पृकट कर दिये कि पाकिस्तान राष्ट्रीय इतिहास में महान् संकट है, इससे भारत की वह अधोगति हो जायेगी जो कई पीढ़ियों तक भी सुधर न सकेगी। विचारशील और देशभक्त मुस्लिम विद्वानों ने भी पाकिस्तान को भारत के लिये और मुसलमानों के लिये भी कर बताया। हिन्दू नेताओं का तो कहना ही क्या था! एक ओर से दूसरी ओर तक सभी हिन्दुओं ने इसका घोर विरोध किया हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता प्रधान श्री डा० श्यामाप्रसाद मुखर्जी महात्मा गांधी जी से मिले और उन्होंने उन्हें हिन्दुओं का दृष्टिकोण समझाया और बताया कि भारत-विभाजन से समस्त भारत का और विशेषकर बंगाल का सर्वनाश हो जायेगा | स्थान-स्थान पर सभायें और प्रदर्शन होकर इस पाकिस्तानी योजना का विरोध होने लगा। गांधी जी ने मि. जिन्ना से इस सम्बन्ध में बातचीत करने के लिये समय मांगा और उन्होंने मिलने की स्वीकृति मांगी। हिन्दुओं ने इस मिलन का भी बहुत विरोध किया और गांधी जी से अनुरोध किया गया कि वे जिन्ना से न मिले। क्योंकि पाकिस्तान की योजना एक हलाहल विष है। गांधी जी अपना प्रबल विरोध होता हुआ देखकर भी किसी की न माने और बम्बई मे मि० जिन्ना से जा ही मिले । इक्कीस दिन तक दोनों की बातचीत हुई किन्तु परिणाम नहीं हुआ जो हिन्दू नेता पहले ही कह रहे थे । मि जिन्ना हठधर्मी पर अड़े रहे और उन्होंने वह प्रस्ताव स्वीकार न किया।
हिन्दुत्व-प्राण वीर सावरकर ने भारत विभाजन का प्रबलतम विरोध करने के लिये देहली में अखण्ड भारत-नेत सम्मेलन की आयोजीत की। इसमें वे सारे नेता निमन्त्रित किये गये जो भारत की अभ्यता में विश्वास रखते थे। नई देहली में ७ और ८ अक्तूबर को श्री डा० राधा कुमुदमुकखर्जी के सभापतित्व में यह सम्मेलन बड़े समारोह पूर्वक सम्पन्न हुआ। भारत के सभी प्रांतों के प्रमुख हिन्दू नेता और सैकड़ों प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। विभिन्न दलों के नेताओं ने गांधी-जिन्ना-समझौते और राजा जी की योजना के विरुद्ध भारत की अखण्डता के सम्बन्ध में अपने विचार स्पष्ट प्रकट किये। सम्मेलन में जिन नेताओं ने भाग लिया उनमें से मुख्य के नाम हैं— सर्व श्री डा० राधा कुमुदमुकर्जी, श्री जमनादास मेहता, श्रीवीर सावरकर, जगद्गुरु श्री शंकराचार्य पुरी, डा० गोकुलचन्द नारंग, मा० तारासिंह, एन० सी० चटर्जी, डा० नायडू, श्री भोपटकर, श्री बीरुमल, श्री आशुतोष लहरी और श्री खापर्डे ।
इस अवसर पर वीर सावरकर ने अपने भाषण में कहा कि— प्रमुख विषय पर बिना मत विभिन्नता के अपने-अपने विचार रखने की प्रत्येक बक्ता एवं विचारक को पूर्ण स्वतन्त्रता है।
आपने यह भी कहा कि — गत ३० वर्षं से हिन्दू गलत रास्ते पर चल रहे थे, अब कहीं ठीक रास्ते पर आये है। मेरा विश्वास है कि प्रत्येक व्यक्ति जो हिन्दुस्थान में रहता है, हिन्दू है। कांग्रेस ने अच्छा किया जो पाकिस्तान का प्रस्ताव उसने अपना लिया। अब भारतवासी जानने लग गये हैं कि भारत गीता का स्थान है कुरान का नहीं। अन्त मे आपने घोषणा की कि प्रान्तीय समितियों की सम्मति से महासभा पाकिस्तान विरोध मोर्चा तैयार करेगी।
.इस सम्मेलन में भारत की अखण्डता के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रमुख प्रस्ताव स्वीकार किया गया —
यह सम्मेलन घोषणा करता है कि भारत का भावी विधान उसकी अखण्डता और स्वतन्त्रता के आधार पर ही बनाया जाय। यह भी घोषित करता है कि यदि भारत की अखण्डता को धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक और भाषा सम्बन्धी किसी भी प्रकार से नष्ट करने का कोई प्रयत्न होगा तो प्रत्येक प्रकार का
वलिदान और मूल्य देकर भी उसका विरोध किया जायेगा।
यह सम्मेलन भारत की अखण्डता और एकता पर पूर्ण विश्वास प्रकट करता है और अपना दृढ़ विचार प्रकट करता है कि भारत के विभाजन से देश को महान् घातक हानि पहुॅचेगी। सम्मेलन प्रत्येक देशभक्त से अपील करती है कि भारत की अखण्डता को नष्ट करने का मुकाबला प्रत्येक प्रकार से करे ।