अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के मदुरा- अधिवेशन में निर्णय हुआ कि महासभा का अधिवेशन बिहार प्रान्त के किसी नगर में, जो स्वागतकारिणी नियत करेगी, दिसम्बर सन् १९४१ के बड़े दिनों की छुट्टियों में होगा। ऐसा निर्णय वार्षिक अधिवेशन पर प्रति वर्ष हुआ ही करता था, इसलिये जब आगामी अधिवेशन बिहार में करने का निश्चय हुआ तो किसी के ध्यान में भी यह बात न आई कि यह अधिवेशन महासभा के इतिहास
में एक स्मरणीय अधिवेशन रहेगा और बिहार में हिन्दू महासभा एक कड़ी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर अपना मस्तक सन्मान के साथ ऊँचा कर सकेगी। अस्तु, बिहार प्रान्त में नियमानुसार स्वागतकारिणी समिति बनी और इसके नेताओं ने कई स्थान देखकर निश्चय किया कि आगामी अधिवेशन भागलपुर में बड़े दिनों की छुट्टियों में किया जाय और इसके लिये कार्य आरम्भ कर दिया। भागलपुर में अधिवेशन होने की घोषणा के पश्चात् बिहार- सरकार के कार्यालयों में न मालूम इसकी क्या खिचड़ी पकती रही और प्रान्त के तथा विशेषकर भागलपुर के सहकारी अफसर न मालूम क्या मोच-विचार करते रहे। बिहार सरकार ने १९ मई १९४१ को कमिश्नर साहब भागलपुर को लिखा कि वह भागलपुर के हिन्दू नेताओं से कहें कि बिहार सरकार महासभा के वार्षिक अधिवेशन को बड़े दिनों में भागलपुर में करने के विरुद्ध है, क्योंकि २१ दिसम्बर से मुसलमानों की बकरा ईद होगी और इसलिये भय है कि कहीं हिन्दू मुस्लिम दंगा न हो जाय स्वागतकारिणी समिति के मन्त्री ने उत्तर दिया कि उनकी कमेटी को इस सम्बन्ध में निर्णय करने का कोई अधिकार नहीं है और इसलिये उन्होंने यह सब मामला बिहार प्रांतीय हिन्दू सभा को
सौंप दिया कि वह इसको अखिल भारतीय महासभा की बैठक मे
जो जून में कलकत्ता में होने वाली है, रखे। यह मामला जब
कलकत्ता में पेश हुआ तो वहां सर्वसम्मति से पास हुआ कि भागलपुर अधिवेशन २५ दिसम्बर मे २७ दिसम्बर तक भागलपुर
मे ही कर दिया जाये २६ सितम्बर को बिहार सरकार ने
घोषित किया कि 'डिफेन्स आफ इण्डिया रुल्ज' के नियम ५६ के अनुसार बिहार सरकार ने निश्चय कर लिया है कि १ दिसम्बर १९४१ से लेकर १० जनवरी १९४२ तक अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का अधिवेशन न तो भागलपुर और न ही मुंगेर,
पटना, गया, शाहबाद मुजफरपुर आदि अन्य जिलों किसी भी स्थान पर करने की आज्ञा न दी जायेगी। इसका कारण यह बताया गया कि बकरा ईद के दिन समीप होने से हिन्दू मुस्लिम दंगे का भय है। इससे पहले भी कई दंगे हो चुके हैं। सरकार इस युद्ध के समय पर्याप्त पुलिस का प्रबन्ध करने में असमर्थं है। बिहार सरकार की यह घोषणा पढ़कर लोग तो सब
अचम्भे में रह गये, पर हिन्दू महासभा के प्रधान वीर सावरकर निराश नही हुए और बिहार के गवर्नर से निरन्तर पत्रव्यवहार करते रहे । अन्त में कार्यकारिणी की एक बैठक अक्तूबर मास में देहली में सावरकर जी की अध्यक्षता में हुई और उसमें सर्वसम्मति से फिर यही निर्णय किया गया कि महासभा का २३वां अधिवेशन २४, २५, २६, २७ दिसम्बर १९४१ को भागलपुर में ही किया जाय और इसकी सूचना बिहार सरकार को भी दे दी गई। महासभा के नेताओं ने अनुभव किया कि यदि इसी प्रकार महासभा के कार्य में रोड़ा अटकाया जाने लगा, तो महासभा एक मुर्दा-सी संस्था होगी। यदि पीछे हट गई, तो इसकी आवश्यकता ही क्या है। बिहार सरकार की यह रोक सर्वथा अन्याय पर थी और यही रोक महासभा के जीवन और मरण का प्रश्न बन गई। महासभा के नेताओं ने इसका उचित उत्तर दिया और सहस्रों नेता तथा कार्यकर्ता हँसते-हँसते जेल चले गये। इनमें राजे तथा जमीदार, रायबहादुर और रायसाहब, सर की उपाधि पाने वाले, लेफ्टिनेण्ट, सरकार के मन्त्री, मैजिस्ट्रेट, बैरिस्टर, वकील, डाक्टर, वैद्य, कौसिलों तथा असेम्बलियों के मेम्बर, पत्रकार, साहूकार और ठेकेदार प्रत्येक प्रकार के मनुष्य थे । मदुरा अधिवेशन के 'डाईरेक्ट एक्शन' वाले प्रस्ताव को स्थगित करते समय जो अभिलाषायें हिन्दू नवयुवकों के हृदयों मैं शेष रह गई थी, वह सब भागलपुर के मोर्चे में पूरी हो गई।
बिहार सरकार और सावरकर जी का पत्र व्यवहार ५ दिस० १९४१ को बन्द हो गया और दोनों पक्ष अपनी-अपनी तैयारियों में लग गये। महासभा तो इस तैयारी में लगी कि अधिवेशन अवश्य किया जाय और बिहार सरकार अधिवेशन को रोकने की चेष्टा पर प्रान्तीय हिन्दू सभाओं ने भी पांचवी बार सावरकर जी को ही भागलपुर अधिवेशन का भी प्रधान चुना । यद्यपि सावरकर जी इस बार त्यागपत्र देकर किसी अन्य व्यक्ति को यह मान देना चाहते थे किन्तु बिहार सरकार के प्रतिबन्ध के कारण उन्होंने पीछे हटना उचित न समझा और कांटों का ताज अपने सिर पर ही रखना स्वीकार कर लिया। सावरकर जी की आज्ञानुसार १४ दिसम्बर का दिन समस्त भारत में 'भागलपुर दिवस' के नाम से मनाया गया। उस दिन सवत्र सभाये करके वायसराय
महोदय को तारे दी गई कि वे स्वयं हस्तक्षेप करके बिहार-
सरकार की आज्ञा को रद्द कर दें। किन्तु वायसराय महोदय ने भी इस कारण हस्तक्षेत्र नहीं किया कि शान्ति स्थापित रखना बिहार सरकार का कार्य था ।
भागलपुर में अधिवेशन के लिये पण्डाल बन ही रहा था कि बिहार सरकार की आज्ञा से पुलिस ने उसे तोड़-फोड़ डाला । बिहार प्रान्तीय हिन्दू सभा के कार्यालय की तलाशी ली गई और अधिवेशन से सम्बद्ध सब काग़ज पुलिस उठा ले गई। कई कार्यकर्ताओं के घरों की तलाशी हुई और स्वागतकारिणी समिति के कार्यालय की भी तलाशी ली गई। उस दिन भागलपुर में
हड़ताल मनाई गई और अधिवेशन को सफल बनाने के लिए स्वागत समिति और प्रान्तीय हिन्दू सभा ने एक समिति बना दी ।
उस समिति के प्रथम डिक्टेटर पं० राघवाचार्य शास्त्री जी बनाये गये। आपको पटना से भागलपुर आते हुए पुलिस ने १७ दिस० को मार्ग में ही गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद मोर्चे का श्रीगणेश होता है। इसके पश्चात् भी कई हिन्दू नेताओं ने यह प्रयत्न किये कि महासभा और बिहार सरकार मे कोई समझौता हो जाय किन्तु बिहार-सरकार की हठधर्मी के कारण वे भी असफल रहे । ज्यों-ज्यों अधिवेशन के दिन निकट आते गये, त्यों-त्यों सरकार की नीति भी कड़ी होतो गई। ऐसा प्रतीत होता था कि सारे प्रान्त की पुलिस अकेले भागलपुर में ही इकट्ठी कर ली गई है। घुड़सवार और लट्ठवन्द पुलिस की कोई गणना न थी। सिविल गार्ड भी इसी कार्य में लगाये जा रहे थे । अन्त मे २ਢ दिसम्बर को नगर में दफा १४४ लगा दी गई। इसी दिन से नगर मे भी पूर्ण हड़ताल जारी हो गई और यह हड़ताल २७ दिसम्बर तक रही। भागलपुर को कई मजिस्ट्रेटों के आधीन कर दिया गया । इस प्रकार सरकार हिन्दुओं का पूरा दमन करने पर उतर आई और धड़ाधड़ गिरफ्तारियां होने लगीं।
अधिवेशन की तारीखें २४ से २७ दिसम्बर तक की थीं और यही ४ दिन मोर्चे के भी मुख्य दिन थे । सरकार ने दमन करने का पूरा प्रबन्ध कर रखा था। भागलपुर के रेलवे स्टेशन पर पुलिस का बड़ा जमाव रहने लगा। पुलिस के कई बड़े-बड़े अधिकारी, घुड़सवार और लाठीबन्द पुलिस और सिबिल गार्ड
महासभा के प्रतिनिधियों का स्वागत करने के लिये अपार संख्या में वहां तैनात थे। भागलपुर में पूरी हड़ताल थी। क्या हिन्दू और क्या मुसलमान सबकी दुकाने बन्द थीं। भागलपुर में कोई भी हिन्दू घर ऐसा न था जिस पर हिन्दू सभा का झण्डा न फहरा रहा हो। दफा १४४ की किसी को भी पर्वाह न थी । सहस्रों मनुष्य पुलिस के साथ खड़े प्रतिनिधियों का स्वागत करते और जय-जय की ध्वनि से आकाश गुंजा देते थे । कभी-कभी लाठी चार्ज अवश्य हो जाता था, पर भीड़ फिर जुड़ जाती थी और पहिले की भांति जय-जयकार फिर होने लगता था। प्रत्येक यात्री को सन्देह की दृष्टि से देखा जाता था। बाहर आते ही
उनसे प्रश्नों की भरमार कर दी जाती थी। कई तो मार्ग में ही गिरफ्तार कर लिये जाते थे। सरकार ने ऐसा प्रबंध कर रखा था मानो कोई प्रबल शत्रु विशाल सेना के द्वारा सरकार पर आक्रमण करने वाला है। पुलिस ने धड़ाधड़ गिरफ्तारियां आरंभ कर दी अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष श्री कुमार गंगानन्दसिह को २३ दिसम्बर की शाम को दरभंगा में ही गिरफ्तार करके उनके बंगले मे ही उन्हें नजरबन्द कर दिया। इसी दिन स्वागतकारिणी के मन्त्री तथा ६०-७० अन्य हिन्दू सभा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को स्टेशन पर उतरते ही गिरफ्तार कर लिया और उन्हें भागलपुर-जेल में रखा गया। इतनी अधिक रोक-टोक होने पर भी बहुत से प्रतिनिधि भागलपुर पहुँच गये।
बीर सावरकर २५ दिसम्बर को बम्बई मेल से प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं को साथ लेकर आ रहे थे। मार्ग मे जबलपुर,
प्रयाग, काशी, मुगलसराय आदि स्टेशनों पर आपका खूब स्वागत किया जा रहा था और सावरकर जी हिन्दू कार्यकर्ताओ को भागलपुर चलने का निमन्त्रण देते आ रहे थे । भागलपुर जाने के लिये उन्हें गया के स्टेशन पर रात के समय गाड़ी बदलनी थी। जब गाड़ी गया पहुॅची तो वहां पहिले से ही सहस्रों आदमी एकत्र थे और जय-जयकार की ध्वनि से आकाश को गुंजा रहे थे। उधर डिप्टी सुपरिन्टेन्डेण्ट पुलिस भी कितने ही सिपाहियो के साथ दफा २६ 'डिफेन्स आफ इण्डिया रूल्ज' का वारण्ट लिये वहां विराजमान थे। जब वारण्ट सावरकर जी को दिखाया गया तो आपने कहा कि इसे पढ़कर सुनाओ। तत्पश्चात् तुरन्त ही गम्भीरता के साथ सावरकर जी पुलिस कार मे जा बैठे और सेन्ट्रल जेल ले जाये गये । इस समय सावरकर जी का यही सन्देश था “हम सन्मान के साथ शान्ति चाहते हैं, भागलपुर-अधिवेशन अवश्य किया जाय और जो कार्यक्रम उन्होने पहिलेे ही तैयार कर रखा था, उस पर आचरण किया जाय।” जब यह समाचार भागलपुर पहुँचा तो वहां निराशा के स्थान पर आशा और उत्साह का संचार प्रत्येक हिन्दू हृदय में होने लगा और प्रत्येक हृदय ने अधिवेशन को सफल बनाना अपना कर्त्तव्य समझा। नगर में पूर्ण हड़ताल तो थी ही। दफा १४४ का कुछ
भी ध्यान न करते हुए जनता तुरन्त एक जुलूस के रूप में हो गई और यह जुलूस नगर के सब बड़े-बड़े स्थानों से गुजरा। प्रत्येक पुरुष 'हिन्दू महासभा की जय', 'वीर सावरकर की जय', 'हिन्दुस्तान हिन्दुओं का आदि नारे लगा रहा था। शुजागंज और लाजपतराय पार्क इन दो स्थानों पर सभायें की गईं। प्रधान श्री हरिकृष्ण वर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया गया और लाठी चार्ज कर दिया गया।
इस प्रकार गिरफ्तारियों का तांता बँध गया और धड़ाधड़ गिरफ्तारियां होने लगी। हिन्दू महासभा के बड़े-बड़े नेता डा० नायडू, डा० मुॅजे, श्री आशुतोष लहरी, एन० सी० चटर्जी, भाई परमानन्द, राजा महेश्वरदयाल सेठ, पं० चन्द्रगुप्त विद्यालंकार
गिरफ्तार कर लिये गये । इनके अतिरिक्त सैकड़ों प्रतिनिधि और कार्यकर्ता भी जेल भेज दिये गये । २४ दिसम्बर को भागल-
पुर मे कई स्थानों पर सभायें की गई जो थोड़ी-थोड़ी देर के बाद पुलिस ने लाठी चार्ज करके तितर-बितर कर दी। २४ दिस० को केवल भागलपुर में लगभग १ हजार गिरफ्तारियां हुई, जो
मार्ग में ही गिरफ्तार कर लिये गये, वे इससे अलग हैं। २५ दिसम्बर को स्वागताध्यक्ष और प्रधान महोदयों के भाषणो का दिन था, पर दोनों ही जेल में बन्द थे। हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता प्रधान श्री डा० श्यामाप्रसाद मुकर्जी अभी कुछ दिन से ही बंगाल के अर्थ मंत्री बने थे । इसलिये सावरकर जी ने उन्हें
भागलपुर आने से रोक दिया था। किन्तु अब परिस्थिति बदल चुकी थी। सावरकर जी के जेल में बन्द हो जाने पर सारा उत्तरदायित्व डा० मुखर्जी पर ही आ पड़ा। वे अपना कर्त्तव्य
समझकर भागलपुर के लिये २५ ता० को चल पड़े। इनके साथ
बंगाल के कई अन्य नेता भी थे । मार्ग में इन्हें रोक कर
कलकत्ता वापिस जाने के लिये पुलिस ने कहा किन्तु आप न
माने। इस पर बिहार सरकार ने आज्ञा दी कि आप २५ से
२७ ता० तक बिहार में नहीं रह सकते। आपने यह आज्ञा मानने
से भी इन्कार कर दिया। फलस्वरूप आपको मौखिक आज्ञा देकर ही पुलिस ने मार्ग में ही गिरफ्तार कर रखा और भागलपुर न जाने दिया । २५ दिसम्बर को भागलपुर के स्टेशन पर पंजाब
के डा० सर गोकुलचन्द नारंग भूतपूर्वं शिक्षा मन्त्री आदि कई नेता गिरफ्तार कर लिये गये । इस दिन दोपहर तक बहुत सी गिरफ्तारियां होती रही। हिन्दू महासभा के प्रधान वीर सावरकरजी का आदेश था कि २५ दिसम्बर से अधिवेशन अवश्य आरम्भ हो जाना चाहिये, चाहे वह किसी स्थान पर और किसी दशा मे हो । जो नेता अभी तक जेलों से बाहिर थे, विचार कर इस निर्णय पर पहुॅचे कि २५ ता० को दोपहर के पश्चात् सभाये अवश्य की जायें और प्रत्येक सभा में प्रधान जी का भाषण और उनके भेजे हुए प्रस्ताव पढ़े जायें । देहली के लाला नारायणदत्त जी अभी तक जेल से बाहिर थे । वृद्ध होते हुए भी उनमें नव- युवकों का सा उत्साह विद्यमान है। भागलपुर में अधिवेशन करने का सारा भार लाला जी ने अपने ऊपर ले लिया। इनके उद्योग से छोटी-मोटी सभाओं के अतिरिक्त भागलपुर में नियत समय पर तीन बड़ी-बड़ी सभायें विभिन्न स्थानों पर सफलता-पर्वक हुई। उनमें स्वागताध्यक्ष का भाषण और प्रधान जी का भाषण पढ़ने के बाद प्रधान जी के भेजे हुए प्रस्ताव पास किये गये। बाद में पुलिस ने आकर इन सभाओं को भंग कर दिया। कहते हैं भागलपुर में उस दिन १ के स्थान पर हिन्दू महासभा के ५२ अधिवेशन हुए, जो शीघ्र या बिलम्ब से पुलिस ने लाठी चार्ज करके भंग कर दिये और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया ।
इन सब अधिवेशनों के अतिरिक्त एक और अधिवेशन हुआ जो बहुत शान्ति के साथ होता रहा और जिसमें पुलिस ने भी कुछ हस्तक्षेत्र न किया । वह था भागलपुर की सेन्ट्रल जेल में अधिवेशन | इसके सभापति डा० मुंजे थे। इस अधिवेशन में
हिन्दू महासभा के सब प्रान्तों के नेताओं ने भाग लिया। सारे नेता जेल में ही थे। वीर सावरकर का भाषण पढ़ने के बाद
प्रस्ताव पास हुए और कई नेताओं के भाषण हुए।
२६ दिसम्बर को भी प्रतिनिधियों ने कई स्थानों पर जुलुुस और सभा आदि करने के प्रयत्न किये, पर पुलिस ने लाठी चार्ज
करके तितर-बितर कर दिये। इस दिन भी ला० नारायणदत्त जी-
के सभापतित्व में एक सभा हो ही गई। लाला जी के साथ आज
और कई नेता गिरफ्तार कर लिये गये ।
२७ दिसम्बर को भी कई स्थानो पर सभाये की गई और जुलूस निकाले गये । अधिवेशन के स्थान पर झण्डा भी गाड़ा गया, पर पुलिस ने इन सबके साथ अमानुषिक व्यवहार करके इन्हें गिरफ्तार किया और डंडे बरसा कर जुलूस और सभायें भंग कीं।
सावरकर जी की आज्ञानुसार २७ दिसम्बर को अन्तिम सभा एक धर्मशाला में गुप्त रूप से की गई। इसमें लगभग २० हजार स्त्री पुरुष सम्मिलित थे । सभा का कार्यक्रम वन्देमातरम् के साथ
समाप्त किया गया । तदनन्तर सभा की समस्त जनता लाजपतराय पार्क की ओर जुलूस बना कर चली और उस पवित्र भूमि को, जहां अधिवेशन के लिये पण्डाल बना था, दूर से ही प्रणाम कर अपने स्थान को लौट गई। पुलिस ने कोई हस्तक्षेप न किया । इस प्रकार भागलपुर का अधिवेशन समाप्त हुआ। समस्त बिहार प्रान्त और विशेषकर भागलपुर, समस्त हिन्दू संसार के धन्यवाद का पात्र है कि वहां वर्षों के सोये हुए हिन्दू उठे और संगठित हो
अपने अधिकारों के लिये इतना बलिदान किया।
भागलपुर का अधिवेशन हिन्दू महासभा के इतिहास में और हिन्दू जाति के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा, जिसमें हिन्दुओं ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिये जेल के कष्ट भोगे, पुलिस के डण्डे खाये और घोड़ों की टापों के आघात सहे । वीर सावरकर तुम धन्य हो, तुमने अपने नेतृत्व से हिन्दू जाति में यह जागृति के भाव उत्पन्न किये ।