Ek Dua - 22 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | एक दुआ - 22

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एक दुआ - 22

22

“शहर से बाहर ? कहाँ गये हैं वे ? क्या हुआ उनको ?” एक साथ कई सवाल उसने पूछ डाले ।

“उनको इश्क हुआ है और कुछ नहीं ।” वो हंसा ।

“यार बता न मज़ाक मत कर ।” विशी थोड़ा परेशान हो उठी थी ।

“यार सुन वे शहर से बाहर इस लिए गये हैं क्योंकि उनकी ओफिशियल मीटिंग है।”

“तो आज शाम तक वापस आ जायेंगे ?”

“नहीं आ पाएंगे । अब तो कल ही आएंगे ।”

“तो हमारा प्ले भी नहीं देख पाएंगे ?”

“कैसे देखेंगे ?”

अब विशी को बड़ा तेज गुस्सा आया वैसे तो हमेशा फोन करते हैं सब बताते हैं और आज जब बताना था तो कुछ नहीं कहा । सुबह से उनका कितना इंतजार कर रही थी । अब वो प्ले भी नहीं देखेंगे । उसकी आँखों में नमी छलक उठी ।

जैसे हमेशा अचानक से फोन करके उसे हैरत में डाल देते हैं हो सकता है समय पर आकर उसे आज फिर से हैरत में डाल दें, हाँ हो सकता है नहीं बल्कि यही सच है वे जरूर आएंगे । उसने मन को समझाया ।

रोहित जल्दी से दुकान से समान उठा ले फिर मेरे घर चलते हैं वहाँ एक एक कप चाय पीकर वापस रिहर्सल हाल चले जाएँगे ।

नहीं यार रहने दे मैडम बेकार में जान खाएँगी । किसी और दिन आऊँगा मैं तेरे घर पर चाय पीने के लिए ।

मैं तुझे चाय पर नहीं बुला रही न मुझे तेरे को मम्मी या भाई से मिलवाना है बल्कि मुझे थोड़ी देर को घर जरूर जाना है क्योंकि मम्मी और भैया खाने पर मेरा इंतजार कर रहे होंगे उनको खाना के लिए मना करना है बस हम चाय पिएंगे ।

चल यार देखते हैं तू परेशान बहुत करती है अभी समान लिया नहीं पहले घर चलने की बात छेड़ दी ।

दुकान पर सारा सामान पैक किया हुआ रखा था । बस उठाकर डिक्की में रखा, पेपर पर साइन किया और वापस घर की तरफ चल दिये ।

“देख विशी तेरे कहने से मैं थोड़ी देर को तेरे घर चल रहा हूँ अगर देर हुई और मैडम से डांट पड़ी तो मैं तेरा नाम ले दूंगा की यह मुझे अपने घर ले गयी थी ।”

“सही है यार, तू पहले चल तो सही ।”

घर पर पहुंची तो देखा मम्मी और भैया खाने की मेज पर बैठे उसका ही इंतजार कर रहे हैं । “मम्मी क्यों परेशान होती हो आपको पता था न कि मैं आज देर से आऊँगी फिर भी .... भैया ने उसकी बात बीच में काटते हुए कहा, क्या फिर भी ?”

“वो भैया हमने वहाँ खा लिया ।“

“क्या खा लिया ?”

“समोसे और छोले भटूरे ।”

“तो फोन क्यों नहीं किया, हम तेरा इंतजार नहीं करते ।”

“समय ही नहीं मिला अभी दुकान से सामान उठाने गए थे तो इस रोहित को कहा कि एक मिनट को घर चला चले।”

“आप लोग खाना खाओ मैं चाय बना रही हूँ ।” विशी ने कहा तो भैया बोले, “पहले हम रोहित के साथ बैठकर चाय पीएंगे फिर खाना खाएँगे आज तू मेरे लिए भी चाय बना ।”

“जी भैया । मम्मी अब आप खाना खा लो, क्योंकि उसे पता था कि देर हो जायेगी तो मम्मी खाना नहीं खाएँगी ।

“हाँ ठीक है । सुन विशी चाय के साथ थोड़ी मठरी भी निकाल लेना, आज ही बनाई हैं ।"

“जी मम्मी।”

विशी ने जल्दी से चाय बनाई और चाय मठरी खा कर रिहर्सल हाल पहुँच गयी ।

शाम को प्ले था इसलिए जल्दी ही सबको घर जाने की इजाजत मिल गयी । सब लोग दो घंटे आराम करके वापस आ जाना क्योंकि आज सबको बहुत अच्छी परफ़ोर्मेंस देनी है किसी को भी इक्सक्यूज नहीं मिलेगा । आज करीब छह महीने की मेहनत यानि कि रिहर्सल के बाद यह प्ले मंच पर प्रस्तुत होने जा रहा था । सभी पूरी लगन के साथ अपना सबसे अच्छा देने को तैयार थे क्योंकि इस एक प्ले के बाद आगे का रास्ता खुलने वाला था ।

रात ठीक 8 बजे मंच पर मंचन शुरू हो गया पूरे हाल में अंधेरा कर दिया गया और मंच पर जिसका डायलाग आ रहा था उसके चेहरे पर पूरी रोशनी फोकस की जा रही थी । सारे कलाकार शाम को छ्ह बजे ही तैयार होकर ग्रीन रूम में बैठ गए थे लेकिन विशी बार बार अपनी निगाहें गेट की तरफ लगा दे रही थी कि न जाने कब मिलन आ जाएँ या उनका फोन ही आ जाये । बराबर इंतजार में बैठी विशी कहीं खो सी गयी थी परंतु मिलन को न आना था और न ही वो आए । बहुत मायूसी मन में उतर आई थी । मंच पर जाते समय भी यही उम्मीद थी कि मिलन अचानक से आ जाएँगे और उसका नाटक देख रहे होंगे । प्ले खत्म हो गया और पूरा हॉल रोशनी से भर गया । लगातार बज रही तालियों की गडगड़ाहट बता रही थी कि उन लोगों नाटक बहुत ही अच्छा हुआ है । जब सभी कलाकारों को सम्मानित करने के लिए बुलाया गया तो भी विशी की नजर मिलन को ढूंढ रही थी । खैर सबका सम्मान हुआ और फिर सब लोग डिनर के लिए जाने लगे पर विशी का तो जरा भी खाने का मन नहीं था । न ही उसे भूख लग रही थी पर अंकित उसे अपने साथ खाने की टेबल तक ले आया । एक हॉल में चार टेबल पड़ी थी और उनपर ही खाना सजा दिया गया था । मटर पनीर और थोड़ा सा पुलाव अपनी प्लेट में लेकर वो एक तरफ को खड़ी होकर खाने लगी साथ ही सोचती जा रही थी कि मिलन को उसे बता देना चाहिए था वैसे तो बड़ा अपनापन दिखाते थे और आज जब उसका आना जरूरी था तो वे एकदम से बिना बताए गायब हो गए। उसे लगा कि शायद उसका भ्रम होगा कि मिलन के दिल में उसके लिए कुछ है किसी तरह से मन को समझा कर खाना खाया । बहुत ही अच्छा खाना बना था अंकित उसके लिए मीठी सेवइयाँ लेकर आ गया था, उसमें सेवइयाँ कम सिर्फ ड्राइ फ्रूट्स नजर आ रहे थे । खाने के बाद वो जाने लगी तभी मैडम आ गयी और कहने लगी, “क्या विशी खाना भी सही से नहीं खाया, उदास क्यों हो ?”

“नहीं तो मैडम, मैं उदास कहाँ हूँ ?”

“मुझे तो आज पूरा दिन तुम यूं ही मायूस नजर आती रही, कोई बात है तो बताओ मुझे ?”

“सच में मैडम कोई बात नहीं है अगर कुछ होता तो मैं आपसे बता देती।”

“चलो फिर ठीक है और अभी जाना नहीं मैं तुम्हें घर तक छोड़ कर आऊँगी ।”

“जी मैडम।”

मैडम और लोगों कि तरफ मुखातिब हो गयी थी और वो हॉल से निकल कर बाहर आ गयी । न जाने क्यों हम स्त्रियाँ अपने मन कि बातें किसी से कह क्यों नहीं पाती ? अगर हम सब स्त्रियाँ ही आपस में एक होकर रहे और सुख दुख कहती रहें तो कोई भी स्त्री न तो दुखी रहेगी न कभी डिप्रेशन का शिकार होगी । विशी यही सब सोच रही थी कि सामने से आ गयी और बोली, “सुन विशी तू अपनी सेंडिल मुझे दे दे जरा, मैं विकास सर के घर जाऊँगी और मेरी मेरी चप्पल की एक स्टेप निकल गयी है ।”

“अरे इतनी रात को विकास सर के घर ?कोई जरूरी काम है ?”

“हाँ आज उनका बर्थडे है वैसे मैं घर पर मम्मी को बता कर आई हूँ ।”

“अच्छा आज उनका बर्थडे है ? उनने हम में से किसी को नहीं कहा ।”

“ अब मैं इसमें क्या कहूँ ? खैर यह सब छोड़ और बता तू मुझे सेंडिल दे रही या नहीं ?”

“देने के लिए माना नहीं है यार लेकिन मैं फिर घर कैसे जाऊँगी ?” तू तो विकास सर के साथ कार में जाएंगी न ?”

“हाँ, तो तू रहने दे ।” यह कहती हुई सविता चली गयी ।

उफ़्फ़ यह लड़की भी न कितनी चालाक है छोड़ो मुझे क्या सबकी अपनी ज़िंदगी जो जैसे चाहें वैसे जिये ?

यहाँ पर खूब हरियाली थी घने घने ऊंचे ऊंचे व्रक्ष जिनसे ठंडी ठंडी हवा आ रही थी, खाना खाने के बाद सभी लोग यही आकर टहलने लगे थे । यसै समय भाई का फोन आया, “विशी प्ले हो गया ?”

“हाँ भाई हो गया ।”

“फिर मैं तुझे लेने आ जाता हूँ ?”

“नहीं भाई आप रहने दो मैडम मुझे घर तक छोड़ जाएंगी ।”

“मैं आता हूँ न, क्यों खामख्वाह मैडम को परेशान करना ?”

“भाई मैडम ने कहा है फिर वे परेशान होगी ।”

“ठीक है फिर तू जल्दी से आ जा ।”

“जी भैया मैं बस अभी आ रही हूँ ।” यह कहकर विशी ने फोन रख दिया।

थोड़ी ही देर में मैडम हाथ में दो बड़े पैकेट लिए बाहर आ गयी । “चल विशी तुझे पहले तेरे घर छोड़ कर आती हूँ ।” वे दोनों पैकेट विशी को पकड़ाते हुए कहा ।

“जी, यह क्या है मैडम ?”

“इसमें खाना पैक कराया है क्योंकि तुमने सही से खाया जो नहीं था ।”

“लेकिन मैडम यह तो बहुत है ।”

“ज्यादा नहीं है, तुम्हारे भाई और मम्मी भी तो घर पर हैं । एक पैकेट तुम ले जाओ और एक मैं ले जाऊँगी अपने डोगी और सरवेंट के लिए ।”

विशी बिना कुछ बोले चुपचाप एक पैकेट लिया और आकर कार में बैठ गयी । मैडम ने विशी को उसके घर के गेट तक छोड़ा और वापस चली गयी । रात का समय था तो मैडम को अंदर आने के लिए भी नहीं कहा । वैसे मैडम तो दिन में भी नहीं आ पाती हैं उनके पास काम ही इतना होता है कि वे हमेशा व्यस्त ही रहती हैं ।

 

क्रमशः