Ek Dua - 20 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | एक दुआ - 20

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एक दुआ - 20

20

“सुनो विशी अब दिल से हर काम को करो मेरी तरफ से तुम्हें सब तरह की आजादी है यही दिन हैं जी लो अपनी ज़िंदगी छुटकी॥”

भैया ने आज एक बार फिर से उसे वही बातें कही जो वे पहले भी कह चुके थे ।

“चलो अब खाना खा लें मम्मी को आदत है न जल्दी खाने की तो आओ बैठो आकर।”

विशी ने अपने हाथ धोये और गीले हाथों से ही टेबल पर आकर बैठ गयी ।

“हाथ तो पोंछ लो बेटा ।” मम्मी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा ।

उसने टेबल से नैपकिन उठाई और हाथ पोंछ लिए और उसी से अपनी प्लेट भी साफ कर ली साथ ही मम्मी को देख कर मुस्कुरा दी ।

“यह सही है बेटा ।” यह कहते हुए मम्मी भी मुस्कुरा दी ।

“अरे वाह । दाल मखानी और नान, यह किसने बनाया ?” विशी ने अपनी प्लेट में दाल रखते हुए पूछा ।

“यह खाना आज होटल से ऑर्डर हुआ है, मैं मंदिर गयी थी तभी इसने ऑर्डर कर दिया होगा क्योंकि मेरे सामने करता तो मैं करने नहीं देती ।”

“कोई बात नहीं मम्मी, कभी बाहर का खाना भी खा लेना चाहिए, रोज तो घर का ही खाती हो ।” भैया मुस्कुराए ।

“छुटकी पता है आज दीदी का फोन आया था ।”

“अच्छा वो क्या कह रही थी ?”

“वे कह रही थी कि एक हफ्ते के बाद आ रही हैं ।”

“क्या सच में ?”

“हाँ बिल्कुल सच ।”

“अरे वाह । फिर मजे करेंगे । शॉपिंग घूमना मस्ती ।”

“हाँ।”

“इस बार तो जीजू भी आने को कह रहे थे उनको कहीं बाहर ले कर जाना है न हम सभी लोगों को ?”

“हाँ कहा तो था अगर उनके पास काम कम होगा तो शायद ले जाएँ । वे दोनों बराबर बातें कर रहे थे लेकिन मम्मी चुपचाप खामोशी से अपना खाना खाती रही।”

“तुम लोग पहले बातें कर लो या फिर खाना खा लो ।” मम्मी ने अपनी खामोशी तोडी ।

“मम्मी सिर्फ एक बात कहती हैं और दोनों को चुप करा देती हैं । छुटकी आज तेरे लिए सफ़ेद रसगुल्ले भी मंगायें हैं, जाओ फ्रिज में से निकाल लाओ।”

“अरे वाह मजे आ गये । मेरी पसंद का खाना और स्वीट्स भी।” विशी यह कहते हुए रसगुल्ले निकालने को फ्रिज की तरफ बढ़ गयी।

“अब तू इसे इतना सिर पर मत चढ़ा, कल को ससुराल जायेगी तो इसे ही मुश्किल होगी।”

“मेरे रहते कोई मुश्किल नहीं होगी, तुम चिंता मत करो मम्मी और अभी इसके खुश रहने के दिन आये हैं।”

“क्या बातें कर रहे हो आप लोग ? कहीं मेरी बुराई तो नहीं ?”

“बुराई उसकी होती है जो बुरा होता है ।” भैया ने एकदम से सरलता से कहा ।

“और मैं कैसी हूँ भैया ?”

“बिल्कुल खुद के जैसी ।” कहते हुए भैया हंस दिये ।

“भैया प्लीज मज़ाक मत करो, मुझे बताओ न ?”

“तू तो मेरी प्यारी बहन छुटकी है और मैं चाहता हूँ कि तू हमेशा खुश रहे ।” भैया थोड़ा लाड़ दिखाते हुए बोले।

“मैं भी चाहती हूँ कि आप भी हमेशा खुश रहे और आपको सारी खुशियाँ मिले।”

“तुम लोग एक दूसरे को खुशियाँ ही देते रहोगे या यह रसगुल्ले भी खाओगे जो तुम अजाना की दुकान से लेकर आए हो ।”

मम्मी ने कटोरियों में एक एक रसगुल्ला लगाकर दोनों को दे दिया था ।

“आप भी तो लीजिये न और विशी को एक नहीं दो रसगुल्ले खाने हैं । हैं न छुटकी ?” भैया बोले ।

“मैं सुबह खा लूँगी ।” मम्मी ने उठते हुए कहा ।

“बेटा अगर और लेना हो तो ले लेना फिर डिब्बा फ्रिज में रख देना, कहीं यहीं पर न छोड़ दो जिससे सुबह तक खराब जो जाएँ।”

“हाँ मैं रख दूँगी लेकिन मैं अभी एक ही खाऊँगी ।” विशी ने रसगुल्ले को निचोड़ कर सारा रस निकाल दिया और सूखा रसगुल्ला मुँह में रख लिया।

“अरे यह रस किसके लिए छोड़ दिया ? कौन पियेगा इसे ?” भैया ने उसे टोंका ।

“मैं अभी यह भी खत्म कर दूँगी आप चिंता न करो ।” विशी ने कहा ।

मम्मी वहाँ से अपने कमरे में चली गयी थी । वो दोनों ही वहाँ पर थे, विशी का मन था कि भैया से कहे आप जल्दी शादी कर लो लेकिन उस दिन जब जीजु ने कहा था तो उनका क्या हाल हुआ था ।

“क्या सोच रही है छुटकी ?” भैया ने टोंका ।

“कुछ नहीं बस यह सोच रही हूँ कि कल मुझे ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ेगी।“

“क्यों भाई, किस लिए छुट्टी लेनी है ?”

“कल हमारा प्ले है न, तो पूरा दिन तैयारी में लगेगा ।”

“कल प्ले है ?”

“जी भैया, आप लोग आयेंगे ?”

“देख मुझे तो यह सब पसंद है नहीं और मम्मी को अपने पूजा पाठ से फुर्सत नहीं है और दीदी यहाँ हैं नहीं, हाँ अगर तेरी भाभी आ जाये और उनको पसंद होगा तो वे जरूर आया करेंगी ।” भैया ने एकदम सरलता से कह दिया ।

“क्या यह मेरे मन की बात समझ गए थे या वे खुद भी उस दर्द भरे वाकये से खुद को निकालने में लग गए हैं । काश ईश्वर ऐसा ही हो मेरे भैया अपने उन दर्द भरे बीते दिनों को भूल जाये ।

“हाँ भैया ऐसा ही जो जाये कोई तो हमारा साथी हो जाये, हमारा साथ देने के लिए।” विशी ने मन के भावों को दबाते हुए कहा ।

“हाँ हो जाएगा सब होगा, बस वक्त वक्त की बात है, वक्त बदलते देर कहाँ लगती है । सब दिन एक से नहीं होते हैं और सुख दुख जीवन का हिस्सा होते हैं ।” भैया ने कहा और रसगुल्ले का डिब्बा फ्रिज में रखने को चल दिये ।

“अभी मैं रख देती हूँ भैया ।”

“कोई बात नहीं तू खा ले और जाकर आराम कर, आज पूरा दिन लग गया, कल भी ऐसे ही जायेगा ।”

विशी कमरे में आ तो गयी लेकिन उसका मन भैया में ही लगा रहा कि अब उन्हें वे सारी खुशियाँ मिल जाये जो वक्त ने उनसे छीन ली थी । भैया कह रहे थे दीदी आने वाली हैं अगर इस बार दीदी आ रही हैं तो दो ही कामों से आ सकती हैं एक तो सब लोगों को साथ लेकर कहीं बाहर घूमने जाने को या फिर अपनी सहेली रुही की बहन रूबी के साथ भैया की शादी करने को । भगवान जी आप सब अच्छा करना पहले भैया की शादी करा दे तो फिर सब लोग साथ में घूमने जाएँ । दीदी भी यही बात अपने मन में सोच रही हो । वैसे दीदी इतनी जल्दी कभी नहीं आती हैं हो सकता है इसी वजह से आ रही हो क्योंकि रुही दी तो मुंबई में रहती हैं और अभी शादी की वजह से रुकी हो ।

यही सब बातें उसके दिमाग में चल रही थी और नींद का कहीं नामों निशां नहीं था । कितना सोचती हूँ मैं कभी कुछ, कभी कुछ, कुछ न कुछ चलता ही रहेगा दिमाग में । उसने यह सोचते हुए अपने मन को झटका और मोबाइल पर कोई कहानी पढ़ने लगी । कब आँख लगी पता ही नहीं चला ।

सुबह मम्मी की आवाज से आँख खुली, उसने सबसे पहले मोबाइल को उठाकर देखा सुबह के 9 बज रहे थे । हे भगवान मैं इतनी देर तक सो रही थी । मैडम की दो मिस काल भी पड़ी हुई थी । ओहह आज तो हमारा प्ले है जल्दी जाना होगा । उसने जल्दी से मोबाइल चारजिंग में लगाया और फ्रेश होने को वाशरूम में चली गयी ।

वो नहा धोकर और अच्छे से तैयार होकर वो बाहर आ गयी ।

मम्मी पूजा कर रही थी और भैया घर के पेड़ पौधों में पानी डाल रहे थे उस पर नजर पड़ते ही बोले, “बहुत देर तक सोती रही तुम आज ?”

“जी भैया आँख ही नहीं खुली ।”

“तुम तो तैयार भी हो गयी, कहीं जाना है क्या ?”

“जी भैया, वो आज हमारा प्ले है न।”

“अरे हाँ याद आया, कल रात तुमने कहा तो था।”

“भैया आज आप नाश्ते में क्या खाओगे, मैं जल्दी से बना देती हूँ क्योंकि मम्मी तो ओट्स ही खाएँगी ।”

“मैं भी आज ओट्स खाऊँगा, तुम ब्रेड बटर,जैम खा लो मैंने ब्रेड रोस्ट कर दी है और चाय भी केतली में रखी है ।”

“भैया आप कितने अच्छे हो, मेरी हर बात का आप ख्याल रखते हो ।” कहते हुए वो उनके गले से लग गयी।

“हाहाहह मैं कोई अच्छा बच्छा नहीं हूँ सिर्फ टाइम पास करने को काम करता रहता हूँ ।”

“भैया आप भी न ।” उसे पता था कि भैया के पास उनका खुद का ही ढेर सारा काम है वो सब का ख्याल रखते हुए ही सबके लिए काम करते हैं लेकिन कभी यह बात जताते नहीं हैं । किसी को कोई तकलीफ न हो, किसी को घर में किसी तरह की कोई असुविधा न हो, यह सब बातें ही उन्हें काम करने के लिए प्रेरित करती हैं।

 

क्रमशः