Ek Dua - 19 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | एक दुआ - 19

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एक दुआ - 19

19

हे भगवान यह लड़की कब बड़ी होगी चीनी, गुड़, दूध । मम्मी बड़े गुस्से में गुड़ लाने को उठ कर चली गयी ।

“विशी गलत बात है देखो आज मम्मी को भी तुझ पर गुस्सा आ गया ?” भैया ने कहा ।

“सॉरी भैया, क्या करूँ मुझे यह दाल खा ही नहीं मिलती है ।”

“अब छोड़ो यह सब और चुपचाप से खाना खा लो ।”

मम्मी गुड़, चीनी और दूध लेकर आ गयी थी । आज विशी ने गुड़ से रोटी खाई और दूध चीनी से चावल खाये । उसके साथ भैया ने भी दूध चावल खाये, “सच में अच्छे लग रहे हैं, मम्मी आप भी खा लीजिये ।” भैया ने मम्मी से कहा ।

खाना खाकर वो अपने कमरे में आ गयी, मिलन का ख्याल भी उसके साथ चला आया और अकेले कमरे में ज्यादा ही परेशान करने लगा । उफ़्फ़ मिलन तुम मुझे पागल ही बना कर छोड़ोगे । अभी भैया इतने अच्छे से व्यवहार करने लगे हैं लेकिन जब उनको हमारे इस रंग के बारे में पता चलेगा तब न जाने क्या होगा क्योंकि वे प्रेम में बहुत गहरी चोट खाये हुए हैं । क्यों होता है ऐसा ? क्यों किसी का प्यार जुदा हो जाता है ? क्यों कोई अपना किसी अपने से रूठ जाता है ? सच में सच्चे प्यार को पा लेना ईश्वर को पा लेने के समान होता है । हमें पता भी नहीं चलता है लेकिन हम कोई न कोई ऐसी गलती कर बैठते हैं जिसकी सजा जरूर मिलती है । यही सब सोच रही थी कि उसके फोन की घंटी बजने लगी । देखा तो मैडम का फोन था । इनका फोन भी अभी आना था, न जाने क्या क्या सवाल करेंगी, फालतू में मन खराब होगा । काश मिलन का फोन आ जाता तो मन अच्छा हो जाता । क्या करूँ उठाऊँ या नहीं ? उठा लेती हूँ नहीं तो वे नाराज होंगी ।

“हेलो ।”

“जी हैलो ! क्या हाल हैं आपके ? आप घर चली गयी और हम यहाँ आपका इंतजार कर रहे हैं ।” मिलन ने एक ही स्वांस सब बातें कह दी ।

“अरे आप ?”

“जी हाँ मैं ही ।”

“यह मैडम का फोन है न ?”

“हाँ मैं उनके फोन से ही कर रहा हूँ, क्या पता मेरा नंबर देख कर आप कहीं फोन न काट देती बस इसलिए ही मैडम के फोन का सहारा लेना पड़ा ।”

“मैं आ रही हूँ थोड़ी देर में ।” कहकर उसने फोन बेड पर रख दिया ।

मिलन तुम मुझे क्यों इस दर्द की दुनिया में खींच रहे हो जिसकी कोई मंजिल नहीं है । भैया के प्रेम का अंजाम सुनकर उसे पहले ही घबराहट होने लगी है, क्या मिलन का साथ भैया को रास आयेगा । उसने मन में सोचा ।

वो भी तो उसके प्रेम में खोती जा रही है वैसे सच्चा प्रेम खुद ब खुद खींचता है और स्वयं अपना रास्ता बनाता है । जितना सोच रही हूँ उतना ही डूब रही हूँ क्या करूँ ? कहाँ चली जाऊन कि इन विचारों से मुक्ति मिल जाये ? खुद से ही कैसे दूर जा सकती हूँ, कहाँ भाग सकती हूँ ?

“हैलो, हैलो ।” बार बार मोबाइल की जलती बुझती लाइट से उसका ध्यान उधर गया, अरे मैंने फोन काटा ही नहीं ? हे भगवान ! क्या हुआ है मुझे ?

“जी, जी कहिए ?” उसने जल्दी से फोन उठाते हुए कहा ।

“आप कहाँ खो गयी थी ?”

“जी कहीं नहीं, बस अपने किताबों वाली रैक सही करने लगी थी ।”

“हाँ भई किताबों के आगे हमारा क्या महत्व ? आप ठहरी पक्की पुस्तक प्रेमिका।”

“हा हा हा ।” मिलन की बात सुनकर विशी की हँसी निकल गयी ।

“अच्छा लगता है जब आप हँसती हैं ।”

“जी ठीक है, मैं आती हूँ फिर बात करते हैं अभी फोन रख रही हूँ ।” कहते हुए विशी ने फोन काट दिया उसने उनके उत्तर की भी प्रतीक्षा नहीं की ।

सुबह से तो बाहर ही हूँ अब फिर जाना पड़ेगा । यह प्ले करना छोड़ दूँगी। खामख्वाह इतना सारा टाइम रिहर्सल में देना पड़ता है । यह सोचती हुई वो बाहर निकल आई । मम्मी और भैया दोनों वही सोफ़े पर बैठे टीवी देख रहे थे ।

“मम्मी मुझे अभी फिर से रिहर्सल पर जाना होगा, क्या मैं जाऊँ ?”

“मेरे मना करने पर नहीं जाओगी ?” उल्टे मम्मी ने ही सवाल कर दिया ।

“मम्मी आगे से अब कोई प्ले नहीं करूंगी प्रोमिस ।” विशी ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा ।

“ठीक है छुटकी तू जा, नहीं रुक, मैं छोड़ कर आता हूँ ।” भैया एकदम से उठ कर खड़े हो गये ।

कहीं भैया गुस्से में तो नहीं हैं उसने बड़े ध्यान से उन्हें देखा । उनके चेहरे पर नाममात्र का भी कोई भाव नहीं था ।

“भैया रहने दो, आज नहीं जाऊँगी ।”

“अरे क्यों क्या हुआ? जब मैं तुझसे पहले ही कह चुका हूँ कि तू अपनी खुशी से जी, तुझे जो भी अच्छा लगे वो कर । मैं हूँ न तेरे साथ ।”

“क्या सच में ?”

“हाँ, सच ।”

“भई हमेशा खुश रहा कर छुटकी, ज़िंदगी जीने के लिए होती है उदास रहने के लिए नहीं ।”

“ठीक है मैं अभी आ रही हूँ । वो अपने कमरे में आई और बाल सही किए और चप्पल पहन कर आ गयी, कपड़े तो ठीक ही हैं ।” भैया ने हाल तक छोड़ दिया ।

सब लोग अपनी अपनी लाइन कर रहे थे । मैडम तो कहीं नहीं दिख रही । मिलन एक तरफ को कुर्सी पर बैठे हुए थे उनके साथ में एक दो लोग और भी थे । मैडम लगता है अभी आई नहीं हैं । तभी मैडम की छोटी सफ़ेद कार हाल के गेट पर आकर रुकी । कार में सबके लिए ड्रेस व अन्य सामान भी रखे हुए थे । वे शायद किराये पर सब चीजें लेने गयी थी उनके साथ में मोनिका भी थी, जो हम लोगों को डांस के स्टेप बताती थी । सब लोग अपने अपने सामान को अपने पास रख लो जिससे बाद में किसी को कोई परेशानी न हो । यह कहते हुए उन्होने सबका सामान बाँट दिया । उस दिन रात तक रिहर्सल चलती रही आज ही डांस की प्रैक्टिस भी हो गयी । मिलन भी तब तक रुके रहे, “घर से कोई आयेगा, या मैं घर तक छोड़ दूँ ?” मिलन ने उसके पास आते हुए कहा ।

“घर से तो कोई नहीं आयेगा, हाँ मैडम ने कहा है कि वे घर तक छोड़ कर आएंगी,।” विशी ने कहा ।

“तो ठीक है, आप को मैडम अपने साथ लेकर जा रही हैं ।”

कितनी परवाह है इनको, किसी की परवाह करना या उसका ख्याल रखना प्रेम का सबसे पहला कदम होता है शायद । विशी ने मन ही मन सोचा ।

इतना ज्यादा किसी की परवाह करना और उसके लिए हर बार कुछ बेहतर करना हर कोई नहीं करता सिर्फ वही कर सकता है जो खुद से ज्यादा उसे प्यार करता हो या करने लगा हो । हमारी खुद की अच्छाई ही किसी को प्यार की नजर से देख सकती है जब तक हम खुद अच्छे नहीं होंगे हम किसी को प्यार नहीं कर सकते हैं और मिलन तुम वाकई बहुत प्यारे हो इस दुनिया के सबसे प्यारे इंसान,,

“जी मैं मैडम को साथ नहीं ले जा रही हूँ बल्कि वो मुझे लेकर घर छोडने जा रही हैं ।” विशी ने मुसकुराते हुए कहा ।

“एक ही बात है न चाहें आप ले जाओ या वो ।” वे भी मुस्कुरा दिये लेकिन उनकी हंसी थोड़ी फींकी सी थी या उदासी से भरी हुई क्योंकि वे उसके घर तक छोडने की आस लगाए बैठे थे कि कुछ देर तो साथ मिलेगा, कुछ देर तो और आसपास बैठने को मिलेगा । बस एक आस ही तो प्रेम भरे जीवन को नया रूप दे देती है, नयी उमंग और जीने की चाह पैदा कर देती है ।

“ओके मैं चलता हूँ अभी आपको जाने में देर है न ?” वे हाथ उठाकर बाय करते हुए बोले ।

“जी ठीक है वैसे मैं भी जा ही रही हूँ ।” विशी ने भी हाथ हिलाकर बाय कर दिया।

तेज कदमों से चलते हुए वे अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गए और ड्राइवर ने तेज स्पीड में वहाँ से निकाल ली क्योंकि रोड बिल्कुल खाली था ।

मैडम उसे घर तक छोड़ गयी थी । दिन भर ही आज वो घर से बाहर रही थी सो उसे खुद ही अच्छा नहीं लग रहा था हालांकि भैया या मम्मी ने कुछ भी नहीं कहा था । अब कोई प्ले नहीं करूंगी एक बार फिर उसने मन ही मन दोहराया । भैया अपने लैपटॉप पर काम कर रहे थे और मम्मी किचिन में काम । विशी ने अपने हाथ धोये और सीधे मम्मी के पास जाकर खड़ी हो गयी उनके काम में हाथ बटाने को । मम्मी ने मटर पनीर की सब्जी और रायता बनाया था साथ में सादी रोटियाँ । मम्मी रोटी बेल रही थी और वो तबे पर डालकर सेक ले रही थी गिनती की छह रोटियाँ बनाई एक मम्मी की, दो उसकी और तीन भैया के लिए । मम्मी शाम को सिर्फ एक रोटी ही खाती हैं और सुबह को दो ।

जब तक मम्मी ने हाथ धोये तब तक उसने मेज पर खाना लगा दिया । घर में एकदम शांति थी कोई किसी से कुछ बोल ही नहीं रहा था । भैया कल हमारा प्ले है आप मम्मी को लेकर शाम को जरूर आ जाना मुझे तो जल्दी जाना होगा और भैया अब इसके बाद कोई प्ले नहीं करूंगी । विशी ने खामोशी को तोड़ते हुए अपनी बात रख दी थी जिससे घर का और उसके खुद के मन का भार थोड़ा हल्का हो जाये ।

“क्यों क्या हुआ ? ऐसे क्यों कह रही हो ?” भैया एकदम से बोल पड़े ।

“वो बहुत समय चला जाता है घर का कोई काम भी नहीं देख पाती और फिर ऑफिस के काम में भी कोई गलती न हो जाये ।”

“अरे ऐसा कुछ नहीं होता है अगर कोई काम करो तो उसमें तन मन से लगना पद्य है और इसमें समय तो लगेगा ही । अभी जो करना है खूब मन लगा कर कर लो आगे यही मेहनत काम आएगी । घर का काम तो हमेशा ही करना है।” भैया ने समझाया ।

यह भैया इतना बादल कैसे गये पहले तो कभी सही से बात भी नहीं करते थे । अब मेरे भैया के जीवन में भी खूब खुशियाँ आ जाये । विशी ने मन में प्रार्थना की।

 

क्रमशः