Ek Dua - 18 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | एक दुआ - 18

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एक दुआ - 18

18

“विशी बेटा अब आप समझदार हो गयी हैं ?” मैडम बड़े अच्छे से उसे गले लगाते हुए बोली । मिलन अब तक जा चुके थे उनको जल्दी ऑफिस जाना था इसलिए ड्राइवर ने तेजी से गाड़ी को खाली सड़क पर दौड़ा दिया ।

“विशी आप किसके साथ आई थी ? मुझे तो यह मिलन सर की गाड़ी लग रही थी ?” मैडम उसकी तरफ बड़े ध्यान से देखते हुए बोली, मानों उनके शब्दों में कटाक्ष सा था और नजरों में उसके प्रति शक ।

“जी मैडम मैं पैदल आ रही थी न, तो रास्ते में मिल गए और गाड़ी रोक कर मुझे बैठा लिया कि चलो मैं छोड़ देता हूँ ।” उसने बात को संभाला ।

“लेकिन आपको ऐसे किसी के भी साथ अकेले नहीं आना चाहिए न ?” मैडम ने अपने मन की बात कह दी ।

“पर वे अंजान नहीं हैं न, वे तो अपने से हैं । मैं उसी ऑफिस में जॉब करती हूँ और वे हमारे प्ले की रिहर्सल देखने भी रोज आते हैं बस इसलिए ही मैं बेहिचक उनके साथ उनकी गाड़ी में आ गयी ।“

“हाँ यह सब ठीक है लेकिन रिहर्सल पर आने के समय आप हमारी ज़िम्मेदारी हो और इसलिए मुझे जो सही लगा वो कह दिया बाकी तुम खुद समझदार हो ।” मैडम ने थोड़े रूखे स्वर में कहा ।

मैडम का कहना सही हो सकता है अगर मन बावरा समझ सके? वो तो पंख लगाए उढ्ने को आतुर हो रहा है, जी चाह रहा है कि वापस मिलन के साथ उसी यात्रा में एक बार फिर से शामिल हो जाऊँ और वो सफर ऐसे ही अनंत काल तक चलता ही रहे कभी भी खत्म न हो । पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ अब ऐसा क्या हो रहा है मेरे मन को जो मुझे बेचैन किए दे रहा है । अजीब सी घबराहट भरी बेचैनी मन में भर रही है, हे ईश्वर मेरी मदद कर ! विशी ने मन में पार्थना की और ऊपर आसमा की तरफ देखा ।

“विशी क्या हुआ अंदर नहीं आना है ?”

“जी, जी मैडम आ रही हूँ ।” वो एकदम से चौंक गयी ।

“हाँ चलो, अंदर अभी थोड़े ही बच्चे आए हैं लेकिन सब आ रहे होंगे । आप अंदर जाकर बैठो और हाँ यह पानी की बोतल लेती जाओ ।” मैडम ने अपने हाथ में पकड़ी हुई पानी की बोतल उसे पकड़ाते हुए कहा । घर पर तो बताया भी नहीं था कि वहाँ से सीधे प्ले की रिहर्सल पर चली जाऊँगी घर में भी डांट खानी पड़ेगी, यहाँ मैडम, घर पर भैया मम्मी को तो कभी उसके ऊपर गुस्सा नहीं आता है और ऊपर से यह मन जो उढ़ा चला जा रहा है कुछ भी तो मेरे वश में नहीं रहा है । विशी यूं ही सोचते हुए हल्के हल्के कदमों से चलती हुई रिहर्सल हाल तक आ गयी । अंदर से हँसने और बातें करने की आवाजें आ रही थी । मैडम हैं नहीं सभी लोग उनकी ही नकल उतार रहे होंगे कि कैसे चलती हैं, कैसे बोलती है, हँसती, खाती और न जाने क्या क्या,,,, साथ ही उनकी कंजूसी की बातें भी कि इतना पैसा कमाती हैं लेकिन कभी यह नहीं सोचती कि बच्चों को ढंग से कुछ खिला पिला दे, पूरा दिन रात रिहर्सल करो लेकिन मजाल है कि वे एक समय का खाना दे दें । ओहह खाने के नाम से याद आया आज उसने खाना भी तो नहीं खाया है । मैडम से बहाना बनाकर किसी तरह से घर चली जा रही हूँ अभी समय भी है वापस आ जाऊँगी कहकर, लेकिन क्या कहूँ मैडम से ? कह देती हूँ मैडम घर से फोन आया है कि मम्मी की तबीयत खराब हो रही है और उनको डॉक्टर को दिखाना है, पर वे कहेंगी अभी तो आई हो तो क्यों नहीं दिखाया ? हे भगवान क्या करूँ मैं ? यही सब सोच रही थी कि भाई का फोन आ गया । “कहाँ हो विशी ? कब तक घर आओगी ? यहाँ मम्मी खाने पर तुम्हारा इंतजार कर रही हैं ।” उसके किसी भी जवाब का इंतजार किए बिना ही अपनी सब बातें एक ही सांस में कह दी । “अरे भैया सुनो तो, मैं अभी आपको ही फोन करने वाली थी, मैं यहाँ रिहर्सल हाल में आ गयी हूँ, मैडम ने फोन करके जल्दी बुलाया था न, लेकिन भैया अभी यहाँ पर कोई नहीं आया है मतलब एक दो लोग ही हैं, मैडम घर आने नहीं देंगी, मैं तो यहाँ आकर फंस गयी हूँ । भैया आप आकर ले जाओ न मुझे ।” विशी ने बड़े प्यार से उनसे कहा ।

“अरे यह कोई जबर्दस्ती है, तुम मेरी मैडम से बात कराओ ।” भैया थोड़ा गुस्से में बोले ।

“नहीं भैया मैडम से बात मत करो ।”

“क्यों ?”

“अच्छा आप उनसे क्या कहोगे ?”

“यही कि विशी को घर जाने दो वो खाना खाकर नहीं गयी है ।”

“ठीक है बस यही कहना भैया प्लीज ।”

“ठीक है तुम बात तो कराओ ?”

मैडम तो कहीं दिख ही नहीं रही हैं, वे कहाँ चली गयी ? गार्ड भाई के पास गयी होंगी शायद, लेकिन वो तो यही घास पर बैठे हुए हैं फिर कहाँ गयी ?

“गार्ड भाई, मैडम कहाँ हैं ?” उनसे गार्ड भाई से पूछा ।

“वे तो घर चली गयी, सुबह से आई हुई थी न, ?”

“सुबह से क्यों ?”

“आज सनडे है न, इसलिए प्ले की तैयारी करने के लिए जल्दी आई होंगी ।”

“भाई फिर मैं भी घर जा रही हूँ एक घंटे बाद आ जाऊँगी यहाँ अकेले मैं क्या करूँ अंदर सारे बॉय्ज़ हैं ।”

“ठीक है बेटा जाओ लेकिन जल्दी आ जाना मतलब मैडम के आने से पहले ।”

“ठीक मैं आ जाऊँगी । आप अपना नंबर मुझे दे दो ?” वो नंबर लेकर जल्दी जल्दी डग भरती हुई बाहर निकल आई । कहीं से कोई आवाज लगा कर उसे रोक न ले । थेंक्स भगवान जी, बचा लिया । न भैया से बात करानी पड़ी और न ही कोई और अड़चन आई । उसे पता था मैडम घर गयी हैं तो जल्दी तो आने से रही।

“विशी क्या हुआ ? मैडम से बात भी नहीं कराई और फोन काट दिया ?” सामने से भैया अपनी बाइक से आकर उसके सामने खड़े हो गए थे ।

“अरे भैया आप ?” विशी चौंक गयी ।

“हाँ मैं ही हूँ ।”

“वो मैडम घर चली गयी थी न इसलिए मैं बात नहीं करा पायी और मैं भी घर की तरफ ही आ रही थी ।”

“चलो अब बाइक पर बैठो और शाम को आ जाना ।” भैया ने समझाया ।

“जी भैया ।” वो जल्दी से भैया के साथ बाइक पर बैठ गयी कि अगर मैडम आ गयी तो उसे रोक लेंगी । न जाने क्यों वो मैडम से डरती है जबकि वे तो उसे प्यार करती हैं और उसे खुद भी तो प्ले करने का इतना शौक है कि आ जाती है ।

घर पहुँच कर देखा मम्मी खाने की मेज पर ही बैठी हुई थी । खाने का सारा सामान और बर्तन भी रखे हुए थे । लगता है मम्मी आज गुस्से में हैं क्योंकि वो सुबह जल्दी आने का कहकर गयी थी और इतनी देर लगा दी, बताया भी नहीं । हे भगवान, यह प्रेम भी न, कहीं जान न ले ले या फिर डर डर के दहशत में ही जान न निकल जाये । क्या करे वो उसने कोई जानबूझकर तो प्यार किया नहीं था और न ही वो अपने आप इस प्यार से निकल सकती है और अभी तो इस इश्क की शुरुआत है आगे न जाने क्या क्या सहना और करना पड़ जाये । हे भगवान मेरी मदद करना । उसने मन ही मन प्रार्थना की ।

“बेटा जल्दी हाथ मुँह धोकर आओ पहले खाना खा लो फिर कपड़े बदल लेना ।” मम्मी बड़े प्यार से बोली ।

“जी अभी फ्रेश होकर आती हूँ ।” वो बेकार ही डर रही थी मम्मी तो बिलकुल भी नाराज नहीं हैं ।

मम्मी भैया कितना प्यार करते हैं उसे लेकिन मिलन के लिए उसके मन में न जाने कैसा प्रेम उमड़ पड़ा है । कुछ कर गुजर जाने का, कैसे कैसे अहसास और भाव भर रहे हैं उसके प्रति । क्या मम्मी और भैया से ज्यादा भारी है मिलन के प्रेम का पलड़ा, वो तो अभी अभी ही मिलन से मिली है फिर क्यों लग रहा है कि जन्मों से उसे जानती है, पहचानती है और मिलन सिर्फ उसका ही है कितना अपनापन लगता है उसकी बातों में । सच में मिलन तुम सा कोई भी नहीं है । मैंने आज तक कोई भी तुम सा प्यारा इंसान नहीं देखा है । हाथ मुँह धोते धोते भी मिलन का ख्याल दिल से नहीं निकला ?

मम्मी ने उसकी प्लेट लगा दी थी ।

वाह बहुत अच्छा खाना बनाया है मम्मी आज आपने ? कटहल की सब्जी से बीजे को निकाल कर उसकी प्लेट में रखते हुए भैया ने कहा । भैया को पता है न कि उसे बीज बहुत पसंद है । हर किसी चीज के बीज, जैसे खरबूजे के बीज, कद्दू के बीज, करेले के बीज, परबल के बीज और कटहल के बीज सबसे ज्यादा अच्छे लगते हैं ।

“अब तू इस बीज को ही देखती रहोगी या खाना भी खाओगी ?” मम्मी ने टोंका ।

“हाँ मम्मी खा रही हूँ लेकिन आपने यह दाल कौन सी बना दी ?”

“यह मसूर की दाल है ।”

“मुझे पता है लेकिन आपको शायद याद नहीं रहा कि मुझे यह दाल बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती है ।”

“चल आज तू कटहल की सब्जी से खा ले आगे से कभी यह दाल घर में नहीं बनेगी, मैं बाजार से ही नहीं लाऊँगा फिर कैसे बनेगी हैं न ?” भैया ने बड़े मज़ाकिया अंदाज में उससे कहा ।

“भैया आप भी न एक बात को इतना बढ़ा देते हो कि बात की कोई इज्जत ही नहीं रह जाती ।” विशी मुसकुराती हुई बोली ।

“तू बात की इज्जत की बात कर रही है आजकल तो इंसान की कोई इज्जत नहीं रही ।” भैया उसी टोन में बोले ।

“पहले तुम लोग खाना खा लो फिर यह बेकार की बातें कर लेना ।” मम्मी ने डाँटा।

“मम्मी आप मेरे लिए देसी घी लगाकर गुड़ से रोटी दे दो, मैं खुश होकर खा लूँगी, यह दाल नहीं खा सकती ।”

“तो फिर चावल किससे खाओगी ?”

“वो दूध और चीनी से ।“

 

क्रमशः