Ek Dua - 11 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | एक दुआ - 11

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एक दुआ - 11

11

“तेरी भी बड़ी प्यारी बहन है ! क्या कर रही है आजकल ?”

“यह जॉब कर रही है ! मेरे पास मुंबई में ही है !”

“चलो फिर तो सही है, दोनों साथ साथ हो और तेरा भाई ?

“भाई यहाँ पापा के साथ उनका काम देख रहा है, तुझे तो पता ही होगा कि मम्मी नहीं रही ?”

“अरे कब ? मुझे नहीं पता ?” दीदी आश्चर्य और दुख भरी भाषा में बोली ।

“तीन साल हो गए ! यार तुझे पता भी कैसे होगा हम लोगों का अब कोंटेक्ट ही नहीं रहा !”

“ओहह हाँ ! चलो अब मिलते रहेंगे ! अगर अपनों को ही भूल जाएँ, उनसे दूर हो जाएँ तो इस जिंदगी का क्या फायदा ?”

“सच कहा ! सुन मेरी बहन के लिए कोई रिश्ता बताओ न ?” वे बड़े औपचारिक तरीके से बोली ।

“दीदी क्या यहीं पर सब बातें कर लोगी ? घर चलते हैं एक एक कप कॉफी के साथ ढेर सी बातें कर लेना !” उनकी बहन जो देर से शांत होकर उनकी बातों को सुन रही थी अब मुसकुराती हुई बोल पड़ी ।

“हाँ यार तू सही ही कह रही है ! यहाँ सब लोग देख रहे होंगे तो कह रहे होंगे कि यह लोग दुनिया जहां की बातें यहीं पर खडे होकर कर लेंगी !” वे भी मुस्कुरायी !

“दीदी आपने सामान ले लिया ?” तब तक भाई भी आकर खड़ा हो गया था ।

“नहीं अभी नहीं भाई ! इनसे मिलो यह हैं हमारी फ्रेंड रागिनी और यह उनकी बहन।”

भाई ने दोनों का अभिवादन किया !

“भाई पता है हम लोग 18 साल के बाद मिले हैं फिर भी पहचान गए !”

“ओहह ! दीदी जल्दी से सामान ले लो गाड़ी रोड पर ही खड़ी है !” भाई ने उनका ध्यान हटाने के लिए कहा ।

“रागिनी तू अभी मेरे घर चल सामान हम बाद में ले लेंगे !” दीदी का मन तो आज रागिनी में ही उलझ गया था ।

“नहीं तू चल, मेरा करीब ही घर है !”

“तो मेरा कौन सा दूर है ?” दीदी ने फौरन उनकी बात काटते हुए कहा ।

“चलो दीदी आज रागिनी दी के घर ही चलते हैं फिर किसी दिन यह मेरे घर आ जाएंगी झगड़ा क्या करना ?” विशी जो अभी तक चुप थी एकदम से बोली ।

“हाँ सही है, आज मेरी छुटकी की ही बात मानी जायेगी !” भैया ने कहा ! “आप लोग यही पर रुकिए मैं अपनी कार लेकर आता हूँ !” किसी की कोई भी बात सुने बिना ही भैया वहाँ से चले गये ।

“यह घर तो मेरा नहीं है ।” घर के गेट का ताला खोल कर अंदर जाते हुए रागिनी ने कहा ।

“क्या फर्क पड़ता है कि यह घर किसका है बस घर होना चाहिए ।” भाई ने बात बनाते हुए कहा ।

“अरे तेरी मम्मी या भाभी कोई भी घर पर नहीं हैं ?” रागिनी बोली।

“मम्मी मामा जी के घर गयी हैं और अभी हमारी भाभी जी ने इस घर में अपने कदम नहीं रखे हैं !” दीदी ने उनको समझाया ।

“समझो अब भाभी ने कदम रख लिए हैं !” रागिनी अपनी बहन की तरफ देखती हुई दीदी से बोली ।

“वो कैसे ? खैर तेरे मुंह में घी शक्कर ।” कहते हुए दीदी मुसकुराई ।

आज घर में अलग सी खुशी का अहसास हो रहा था मानों कोई नई खुशी आ गयी है और पूरे घर में भर गयी है । पूरे एक घंटे तक वे लोग रुके और न जाने कैसे उनकी बहन के साथ दीदी ने भैया का रिश्ता कर दिया । बातों ही बातों में यह कमाल कैसे हो गया था ! मम्मी नहीं थी फिर भी दीदी ने उनका फर्ज निभा दिया था ! भाई भी मान गए थे ! कैसे हुआ यह चमत्कार समझ ही नहीं आया वैसे जब कुछ अच्छा या सही होने वाला होता है तो खुद ही होता चला जाता है ! दीदी तो कह ही रही थी कि इस बार भैया का रिश्ता करा कर जाएंगी और वो सब काम हो गया ।

भाई खुश दिख रहे थे उनके चेहरे पर रौनक लौट आई थी मम्मी कल आ जाएंगी फिर रस्में निभाई जाएंगी ! कहीं कोई रुकावट नहीं, कोई बहाना नहीं, !

“दीदी आप हमेशा खुशियाँ लेकर आती हो लेकिन इस बार आप हमें एक अनमोल खुशी देकर जायेंगी !” विशी उनके गले से लगकर बोली ।

“बेटा यह हम सभी के लिए ही अनमोल खुशी का पल है ! मम्मी आ जाएँ और रस्में हो जाएँ तो समझना ईश्वर सदा हमारे साथ है और हमारे भले के लिये ही सब करता है ।”

“हाँ दीदी सही कहा ! मम्मी कहती हैं जो कुछ सच्चे मन से ईश्वर से कहो वो काम सदा हो जाता है बस आपका मन सच्चा होना चाहिए !”

“बिलकुल सही, वरना मैं तो समझती थी कि भाई कभी शादी नहीं करेगा ।”

पता है विशी, रागिनी की बहन भाई के साथ ही पढ़ती थी और वो भाई को पसंद भी करती थी लेकिन भाई किसी और को चाहते थे बस इसलिए ही इसने हमेशा क्वांरे रहने का निर्णय लिया था और अब उसे उनका मनचाहा मिल जायेगा ! सही में भगवान ही सबकी जोड़ी बनाकर भेजता है और उसे किसी न किसी बहाने से मिला देता है या दूर कर देता है हम सब तो सिर्फ एक निमित्त मात्र ही होते हैं !” दीदी ने उसे बताया ।

“आज विशी को यकीन हो गया था कि जो भी होता है सब अच्छे के लिए ही होता है।”

अगले दिन मम्मी भी आ गयी, भैया उनको ले आए थे ! वे खुश थी कि अब उन्हें मरने में कोई कष्ट नहीं होगा ! वे अपने दुख से उबर जायेंगी ! भाई को उनकी वजह से ही दुख मिला था और अब दीदी के कारण उनकी खुशियाँ लौट आई थी ।

दीदी को वापस जाना था भैया उनको छोडने उनके घर तक जा रहे थे ! मम्मी ने दीदी के मना करने के बाद भी खूब सारा सामान पैक करके दिया था ।

“बेटा फिर जल्दी आ जाना !” मम्मी ने दीदी को गले से लगाकर रोना शुरू कर दिया था ! विशी की आँखों से भी आँसू बहने लगे थे ।

“मम्मी क्यों रोती हो? हम जल्दी ही आ जायेंगे ! अरे तू क्यों रो रही है बेटा मैं गयी और आई बस इतना ही समझना है क्योंकि भाई की शादी की सब तैयारी भी तो करनी है ।”

“हाँ बेटा, सब तुझे ही करना है ! तेरे कारण घर में खुशियाँ आयेंगी ! तेरे इस प्रयास ने तो मुझे तार दिया, अब मैं चैन से मर पाऊँगी ।”

“मम्मी आप यह मरने की बातें क्यों कर रही हैं ? अगर ऐसा कहोगी तो फिर मैं नहीं आऊँगी ।”

“बेटा कुछ गलत नहीं कह रही हूँ जीवन का यही सच है लेकिन तुझे नहीं पसंद तो नहीं कहूँगी !”

“हाँ मत कहिए !” दीदी की आँखें आंसुओं से भरी हुई थी ! विशी उनके सीने से लग गयी, “दीदी आप हम लोगों को चुप करा रही हैं और खुद ही रो रही हैं ।”

“नहीं मैं कहाँ रो रही हूँ यह खुशी के आँसू हैं ! हम जल्दी वापस आ रहे हैं ! सब लोग अच्छे से रहना !” विशी बेटा तुम्हें सबका ख्याल रखना है ।

“जी दीदी मैं सबका ख्याल रखूंगी, आप बिल्कुल परेशान मत होना ?”

भैया भी उदास हो गए थे लेकिन उनकी आँखों में आँसू नहीं थे ! शायद अब भैया समझ गए हैं दुनिया को। तभी कल से सबके साथ खूब खुश थे और शादी के नाम पर भी कुछ नहीं कहा था, लगता है जीजू ने भैया को दुनियादारी के बारे में अच्छे से समझा दिया है।

“भैया जल्दी लौट आना ! वहाँ पर रुकना मत, नहीं तो कहीं आप जीजू से बात करने के चक्कर में रुक जाएँ !”

“अरे नहीं यार छुटकी मैं आज शाम तक वापस आ जाऊँगा !”

“ठीक है भैया !” आज भैया के साथ बात करके मन को बड़ा अच्छा लगा था ! बेटा लौटते में सब्जी भी लेते आना शाम को बनाने के लिए ! मम्मी ने भैया से कहा तो दीदी मुस्कुरा पड़ी, “शाम को कुछ बना लेना, कल सब्जी आ जायेगी !”

“हाँ मम्मी मैं बाद में सब्जी ले आऊँगा, आज तो कुछ भी बना लेना !” यह कहते हुए भैया भी ज़ोर से हँसे।

दीदी चली गयी, तब तक हाथ हिलाती रही जब तक विशी और मम्मी दिखते रहे, दीदी के जाने से घर एकदम खाली खाली सा लग रहा था ।

“मम्मी घर में बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है ! ऐसा लग रहा है जैसे सब सूना सूना हो गया !”

“चलो अब घर में भाभी आ जायेगी तो खूब रौनक हो जायेगी !”

“हाँ मम्मी ऐसा ही हो ! भैया के चेहरे पर बहुत दिनों के बाद इतनी प्यारी मुस्कान देखी है ! वे हमेशा इतना ही खुश बने रहें ! भगवान उनके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लेकर आ जायेँ !” विशी ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए थे और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की ।

“बेटा भगवान सबकी सुनता है आज उसने मेरी भी सुन ली !” मम्मी के चेहरे पर गज़ब का आत्मविश्वास आ गया था ।

“भैया शाम तक आ जाएँगे न मम्मी ?” विशी ने बड़े खुश होकर कहा ।

“हाँ बेटा आज ही आ जाएँगे !”

भाभी के आ जाने की आस से आज घर भर में ऐसा लग रहा था कि खुशियों का आक्सीजन घुल गया हो और एकदम से फ्रेश हवा दिलों में घुल रही हो ! इंसान को अगर शुद्ध हवा मिले तो उसका दिल कभी उदास नहीं होगा, कभी मायूस नहीं होगा ! मम्मी जो हमेशा चिंता और तनाव में नजर आती थी आज वे बहुत खुश थी इस फ्रेश और हवा में घुली हुई आक्सीजन से ।

मम्मी ने अपने हाथों से भैया की पसंद का खाना बनाना शुरू कर दिया ! शाम तक तो बन ही जायेगा क्योंकि वे थोड़ा धीरे धीरे बनाती हैं ! गट्टे की रसेदार सब्जी, अरबी की सूखी मसाले वाली सब्जी, पालक पनीर, बंदगोभी की भुरजी और मखाने की खीर ! साथ में जीरे वाले चावल और पराठे ! सात बजे तक लगभग सब तैयार हो गया था । बस पराठे गरम गरम सेंकने को छोड़ दिये !

 

क्रमशः