Ek Dua - 7 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | एक दुआ - 7

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

Categories
Share

एक दुआ - 7

7

“क्या आ रहा हूँ ? मुझसे नाराज है न, चल यार सॉरी माफ कर दे अब कभी यह बात नहीं छेड़ूगा ! मुझे नहीं पता था कि तुझे इतना दर्द है जो खत्म होने में नहीं आ रहा है ।” जीजू ने भाई को उठाते हुए कहा ।

“नहीं नहीं जीजा जी, माफी की क्या बात है ! कोई दर्द वाली ऐसी बात नहीं है ! चलो मैं आ रहा हूँ ।” भाई जीजा जी की बात सुन एकदम से उठ कर बैठ गए थे।

“माफ कर दे यार, जीजा जी ने जल्दी से भाई को गले से लगा लिया था ।” दोनों की आँखों में ही आँसू थे ।

“ओहह यह सब क्या है ? कैसा दर्द है भाई को ? कैसी तकलीफ है शादी के नाम पर ?” विशी उदास उदास कमरे से बाहर आ गयी !

“अब तुझे क्या हुआ ? तू क्यों मुंह लटका कर बैठ गयी है ?” दीदी ने उसके पास आकर कहा ।

“दीदी भाई को क्या हुआ है ? कैसा दर्द है उन्हें ? बताओ न प्लीज ?” विशी दीदी के गले में बाँहें डाल कर बोली ! दीदी की आँखें नम थी और विशी तो सच में रो पड़ी थी ! क्योंकि उसने भाई को कभी इतना निरीह नहीं देखा था ।

“तुझे सब बता दूँगी ! अभी माहौल थोड़ा सही होने दो ! पहले भाई को खिला पिला कर नार्मल करते हैं ।” दीदी ने समझाया ।

“भाई को सही करने का सबसे कारगर तरीका मेरे पास है ।”

“क्या ?”

“आप भाई की बिट्टू से बात करा दो ! वे एकदम खुश हो जाएँगे ! लो आप बिट्टू से वीडियो काल करो ?” विशी ने अपना मोबाइल दीदी को पकड़ाते हुए कहा ।

“नहीं बेटा, अभी रुको, यह दिल का दर्द है किसी भी तरह से काबू में नहीं आता है ।” दीदी ने जल्दी जल्दी नाश्ते को प्लेटों में सजाया और एकदम सहज और सरल होने का दिखावा करने लगी ।

जीजू के साथ भाई बाहर आ गए थे ! वे दोनों मुस्कुरा रहे थे ! यानि कि जीजू ने बात बिगाड़ी तो संभाल भी ली थी ! दीदी ने सबको हाथो में नाश्ते की प्लेटे पकड़ाई और तब तक विशी ने बिट्टू का नंबर मिला दिया ! बिट्टू दीदी का बेटा जो अभी हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा था उससे ज्यादा छोटा नहीं बस पाँच साल ही छोटा है सो एकदम छोटे भाई जैसा है और वो तो वैसे भी दीदी की बेटी जैसी है वे उसे प्यार भी बेटी जैसा ही करती हैं ।

उधर से बिट्टू ने फौरन फोन उठा लिया था ! अरे मम्मा पापा आप दोनों वहाँ पर ? हैलो मौसी, प्यारे मामा जी कैसे हो सब लोग ? नानी जी कहाँ पर हैं दिख नहीं रही ? उसने सबको एक ही बार में विश कर दिया ।

“हाय बिट्टू !” विशी ने हाथ हिलाकर कहा ।

“बिट्टू कैसा है तू ?” भाई बड़ी जल्दी से बोले ।

“आपकी नानी जी अपने भाई के घर गयी हुई हैं जैसे मैं अपने भाई के घर आई हूँ ठीक वैसे ही !”

“ओके ओके !”

“सही हो न बेटा ?” जीजू ने कहा !

“ऐसे तो किसी से भी बात नहीं हो पायेगी, सब लोग एक एक कर के बोलो !” विशी ने फोन भाई को देते हुए कहा, लो पहले अपने मामा जी से बात करो ।”

भाई का मन एकदम से सही हो गया था वे बहुत खुश भी नजर आ रहे थे ! विशी को पता ही था कि भैया की जान बिट्टू में बसती है ! भाई चाहें कितना भी दुखी या परेशान हो बिट्टू से बात करते ही एकदम खुश होकर सब भूल जाते हैं ।

जब सब लोग रात को कमरे में टीवी खोल कर बैठे तब जीजू बोले, “अब वो गिफ्ट भी खोल कर देख लो जो मैं बड़े मन से तुम लोगों के लिए लेकर आया हूँ।”

“हाँ जीजू, मैं तो कब से यही सोच रही थी क्योंकि कोई मुझे गिफ्ट देता है तो मुझे बहुत खुशी होती है ।”

“हाँ मुझे पता है इसीलिए मैं आज बहुत सारे गिफ्ट लेकर आया हूँ ।”

“चलो साले साहब, खोल कर देखें ?”

“हाँ जीजा जी, चलिये न !” अब भाई का मन बिल्कुल सही लग रहा था ! जैसे कोई बात ही न हुई हो ।

“क्या क्या लेकर आये हैं ? पहले बता दो ?” भैया ने कहा ।

“बहुत कुछ !”

“क्या मतलब ?”

“देखो फल मिठाई चोकलेट्स,,,

“यह सब के अलावा भी कुछ है ?” विशी ने बीच में ही बात काटते हुए कहा ।

“हाँ भई, आप लोगों के लिए जींस शर्ट और मम्मी के लिए साड़ी और हाँ एक साड़ी कामवाली आंटी के लिए भी लाया हूँ ।”

बस जीजू की यही आदत की बजह से सब उनको प्यार करते हैं । काम वाली आंटी को भी कभी नहीं भूलते ।

“अपने प्यारे साले साहब के लिए एक स्पेशल गिफ्ट लाया हूँ ।”

“क्या है जीजा बताओ न प्लीज ?”

“रुको जरा सब्र तो करो ! पहले यह कपड़े बताओ कैसे हैं ?”

“वाह जीजू बहुत ही अच्छी पसंद है आपकी ।”

“मेरी पसंद नहीं है बल्कि आप लोगों की दीदी आने से पहले ही सब समान पैक कर के रख आई थी ।”

“अरे वाह दीदी, क्या बात है, मान गए आपको । आप हर बात में एकदम से परफेक्ट हैं ।” भैया ने कहा वे विशी की तरफ देखते हुए कहा !

“माना कि अभी मैं हर काम में कुशल नहीं हूँ लेकिन देखना एक दिन मैं सब सीख जाऊँगी फिर किसी को कुछ कहने का मौका नहीं दूँगी ।” विशी ने कहा ।

“हाँ बेटा, मुझे पता है ऐसा ही होगा ।” कहते हुए दीदी ने जोर से मुस्कुरा या और विशी के गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा ।

“लो विशी यह भी तुम्हारे लिए !” एक बड़ा सा पिंक कलर का टेडी उसकी तरफ बढ़ते हुए जीजू ने कहा ।

“और मेरे लिए स्पेशल ?”

“हाँ भाई लो यह तुम्हारे लिए !” एक बड़ा सा डिब्बा भाई को देते हुए जीजू बोले !

“क्या है इसमें ?”

“खुद खोल कर देख लो ।”

भाई जल्दी से उसे खोलने की कोशिश करने लगे ! एक डिब्बा, फिर उसके अंदर डिब्बा,ऐसे करके सात डिब्बे खोलने के बाद आखिरी डिब्बे में थोड़ी सी घास रखी दिखी ! भाई का चेहरा उतर गया ! क्या जीजा जी आप भी !

“अरे घास पसंद नहीं आई ? छु कर देखो यह जादुई घास है ।” जीजा जी फिर से बोले ।

“भाई का चेहरा बहुत उदास हो गया था फिर भी वे घास को उठाकर देखने लगे शायद कोई आस मन में अभी भी थी ! और उनकी वो उम्मीद सच निकली ! एक बहुत छोटी चाबी निकल आई थी ।

“किसकी चाबी है यह ?” भाई थोड़ा उत्साहित होते हुए बोले ।

“तुम बताओ किसकी हो सकती है ?”

“मुझे कुछ नहीं पता ?” भाई बड़ी मासूमियत से बोले ।

“यह तुम्हारी कार की चाबी है डियर ।” जीजा जी ने उनकी पीठ थपथपा दी ।

“कार की ? लेकिन मुझे क्यों ?” मम्मी को पता चला तो मेरी बहुत डांट पड़ेगी ।

“क्यों भाई, क्यों डांट पड़ेगी ? क्या हमारा तुम पर कोई हक नहीं !”

“है न ! आप तो अकेले ही पापा, भाई और हमारे सब रिश्तेदार हो ।” भाई एकदम से बोल पड़े ।

“फिर क्यों हिचकिचाना ?”

“जी सही है ।”

“कल कार उठा लाना ।”

“कहाँ खड़ी है ?”

“मेरे घर में ! यह बड़ी कार ले ली तो वो छोटी बेकार खड़ी है ! सोचा तुम्हारे काम आ जायेगी क्योंकि खड़े खड़े खराब हो जाएगी या मैं किसी और को दे देता ।”

“आपको मेरी परवाह है, कितना अच्छा लगा मुझे यह सब जानकर ! वैसे वो गाड़ी भी तो अभी नई ही है न ?”

“हाँ छह महीने पहले ली थी फिर बड़ी गाड़ी पसंद आ गयी तो यह बहुत छोटी लगने लगी ! अच्छा यार यह बता, तुझे खुशी हुई ?”

“हाँ बहुत ज्यादा ! अब मैं कल ही इस कार से ही मम्मी को लेकर आऊँगा !” भाई के स्वर में बेहद उत्साह था ।

“हाँ मैं समझ रहा था तुम यही कहोगे और बस तुम्हारे इस प्यार और सम्मान के लिए ही मैंने तुम्हें यह कार दी है अब मम्मी जी को बस ट्रेन में सफर करने की कोई जरूरत नहीं है !”

“बहुत खुश हूँ मैं, थैंक्स जीजा जी ! मम्मी कभी भी बिना कार के कहीं नहीं जाएंगी ।” भाई किसी छोटे बच्चे की तरह जीजू के गले लग गए थे ।

 

क्रमशः