Ek Dua - 5 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | एक दुआ - 5

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एक दुआ - 5

5

“ओहह !” आज घर पर फिर से डांट पड़ेगी, पैदल जाने में और बीस मिनट निकल जायेंगे, यहाँ से कोई रिक्शा और ऑटो भी नहीं चलता है ! क्या करूँ ? फोन करके किसी को बुला लूँ लेकिन फोन करने से भी कोई फायदा नहीं होगा ! वही जवाब मिलेगा अब तुम खुद ही आ जाओ, या जैसे मन करे वैसे अभी समय भी क्या हुआ है ? हे भगवन, इस नाटक ने तो जैसे जान ही ले ली है यहाँ पर मैम और घर पर भैया ! क्या करूँ ? हर बार मना कर देती हूँ, नहीं करना है फिर मैंम खुशामद करके बुला लेती हैं ! हर बार की तरह इस बार भी वो आ गयी थी लेकिन इस नाटक को करने से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के कष्ट उठाने पड रहे हैं ! यही सब सोचते हुए वो घर पहुँच गयी । देखा, दीदी आयी हुई हैं ! थैंक गॉड मैं आज बच गयी वरना घर में घुसते ही भाई डांटने लगता है कि आ गयी तुम, तुम्हें तो कोई फ़िक्र ही नहीं है, न माँ की और न ही घर की, और न ही कोई शर्म है ?

“शर्म कैसी भाई ?” अगर कभी वो भूले से कह भी दे तो सीधे यही कहा जायेगा कि अच्छे घरों की लड़कियां यूँ खेल तमाशे नहीं करती फिरती । यह भैया भी न जाने कौन से ज़माने में जीते हैं ! उससे बड़े हैं तो अपना रौब दिखाते रहते हैं और बड़े भी करीब १० १५ साल के करीब हैं तो उनको पलट कर किसी भी बात का जवाब देना उसे खुद ही अच्छा नहीं लगता लेकिन भैया कहाँ कुछ भी समझते हैं । वो तो यह कहो की माँ उसका थोड़ा फेवर ले लेती हैं तो उसका काम चल जाता है और वो अपने मन मुताबिक काम कर लेती है ।

“विशी आ गयी तू ?” दी ने उसे पुकारा ।

“अरे दीदी, आप कब आयी ?” विशि ने दीदी के गले से लगते हुए कहा ।

“पहले तू यह बता, तुझे मिल गयी फुर्सत घर आने की ?” बीच में ही भैया ने अपनी रौ में प्रश्न दागा ।

यह भैया कभी नहीं सुधरेंगे ! वो मन ही मन नाराज सी होती हुई अपने कमरे में चली गयी ! क्यों परेशान किये रहता है उसे हर वक्त, वो कोई बच्ची तो रही नहीं है अब ?” दीदी ने भाई को डांटते हुए कहा ।

“हाँ अब वो बच्ची नहीं रही इसीलिए तो इसकी फ़िक्र लगी रहती है ! तुम यह बात नहीं समझोगी और शायद तुम इतना तो जानती ही हो कि इसमें बचपना कूट कूट कर भरा हुआ है कोई भी मूर्ख बना देगा ! अब पापा के न रहने पर मुझे ही सब देखना है ! कल को कुछ ऊंच नीच हुई तो सब मुझे ही दोष देंगे यहाँ तक की तुम भी ।”

“हम्म्म,” दीदी ने एक गहरी साँस ली ।

“क्या करूँ मैं ?” क्या मेरा लड़की होना कोई गुनाह है ? क्या मैं अपनी पसंद का कुछ नहीं कर सकती ? आज तो सब लड़कियां अपने मन का सब काम करती हैं ! क्या उनके घर में भाई नहीं होते ? कमरे में उदास निराश बैठी विशि ने मोबाईल को ऑन किया और अपने ब्लॉग पर कुछ लिखने के लिए उसे ओपन कर ही रही थी की किसी अननोन नंबर से फोन आया ! न जाने किसका फोन है ? यह किसका नंबर है ? पता नहीं, वो तो किसी से बात नहीं करती ! न ही अपना नंबर किसी को देती है फिर यह कौन है ? क्या करूँ ? उठाऊँ या नहीं इसी उलझन में थी कि वो भाई का सोच कर डर गयी, कहीं फोन की घंटी की आवाज सुन अंदर न आ जाएँ और उसे डांटने लगे ! फोन को पहले साइलेंट मोड़ में डाला फिर जल्दी से रिसीव बटन दबा दिया । “हेलो, आप कौन ?”

“जी मैं मिलन बोल रहा हूँ ।”

“कौन मिलन ? मैं किसी मिलन को नहीं जानती ! सॉरी रोग नंबर है ।”

अरे अरे फोन मत काटिये मैं आपके ऑफिस का ही बंदा बोल रहा हूँ, आज आया था न मैं रिहर्सल पर तो आप बड़ी उदास दिखी ! सोचा पुंछ लूँ ! आप कहाँ हो ?”

“ओह आप, जी नमस्कार !” विशि ने थोड़ा संकोचवश कहा ।

“जी नमस्कार, कैसी हैं आप ? आपकी तबियत तो ठीक है न ?”

“जी हाँ बिलकुल ठीक हूँ मैं !”

“ओके फिर ठीक है ! आपकी आवाज में थोड़ा बदलाव सा लगा इसलिए पूछा !जी सुनिए विशि जी ।”

“हाँ जी कहें !”

“मैंने सुना है आप अपने ब्लॉग पर कवितायें भी लिखती हैं ?”

“जी हाँ अपने ब्लॉग पर कवितायें लिखती हूँ ।”

“जी क्या मुझे अपने ब्लॉग का एड्रेस दे सकती हैं ?”

“हाँ हाँ जरूर क्यों नहीं !” विशि बेहद उत्साह में भरकर बोली !

“आप मुझे इसी नंबर पर ब्लॉग का लिंक व्हाट्सअप कर दें ।“

“जी ठीक है ओके बाई !”

वे कुछ और कहते उससे पहले ही उसने फोन काट दिया ! कहीं भाई ने सुन लिया तो फोन भी छीन लेंगे, उसने कह तो दिया लिंक देने का लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर उसने लिंक न देने का फैसला किया ! क्या पता फिर यह लिखने पढ़ने की आजादी भी छूट जाए ? नाटक में काम करना तो सबसे पहले ही छुड़ा दिया जाएगा ! “अब कमरे में अकेले बैठ कर क्या करने लगी, किससे बातें कर रही थी ?”

ओफ्फो मेरे भाई मैं किसी से भी बात नहीं कर रही थी । विशि ने कहना चाहा था लेकिन चुप ही रही ।

“विशि अपने हद में रहा करो ।” विशी को चुप देख कर भाई ने एक बार फिर आँखें तरेरते हुए कहा ।

विशि की आँखों से आंसू छलक कर जमीं पर गिर गए । अब रोना धोना बंद करो और हाँ मैं पिघलने वाला भी नहीं तुम्हारे इन झूठे और दिखावटी आंसुओं से समझी ।”

“विशि आओ चाय पी लो ।” बाहर से दीदी की आवाज आयी ।

“हाँ अब जाओ और बनी बनाई चाय पी लो ! तुमको तो अब इतना शऊर भी नहीं रहा कि दीदी इस घर की मेहमान है और वही तुम्हें चाय बना कर पिला रही हैं।”

“आशुतोष सुनो आशुतोष ।” बाहर से दीदी ने आवाज लगायी ।

“आया दीदी,” कहता हुआ भाई चला गया और विशि कुछ और गहरी सोच में डूब गयी । इनको क्या हुआ है ? यह सिर्फ मेरे साथ ही क्यों इतना गन्दा व्यव्हार करने लगे हैं? वो तो कभी कुछ कहती भी नहीं और न ही कोई गलत काम करती है फिर क्या हुआ है इन्हें ?सबके साथ बेहद प्यारा और मधुर व्यव्हार रहता है भाई का, घर के सभी लोगों से, रिशतेदारों से, पास पडोसी और सभी से भी । हाथ धो कर बस उसके ही पीछे लगे हैं। हाँ पहले उसके साथ भी अच्छा व्यव्हार था बल्कि उसे बेहद प्यार करते थे शायद सबसे ज्यादा चाहते थे लेकिन जबसे उसने नाटक में काम करना शुरू किया है तभी से बदल गए हैं । हे ईश्वर, मेरी मदद करो मैं किस तरह से इनको समझाऊँ ? दुःख दर्द और पीड़ा से उसकी रुलाई फूट पड़ी ! वैसे जब हम किसी से कुछ कह नहीं पाते हैं तो अपने आंसुओं का ही तो सहारा लेते हैं शायद इनसे हमें तकलीफ का अहसास थोड़ा कम हो जाए ? वो मन ही मन सवाल जवाब करने लगी ।

“विशि आओ बेटा, क्या कर रही हो ?”

“हे भगवन, वो क्या करे ? किसे बताये ? अपनी तकलीफ ! कोई भी तो उसे नहीं समझता है ! उसका मन कितना परेशान और दुखी रहता है ! इस दुःख और दर्द ने ही उसे अंतर्मुखी बना दिया है और सबसे दूर कर दिया है ! सच में कभी कभी घर वाले पराये से लगने लगते हैं और पराये अपने से ! ऐसा क्यों होता है ? उसे नहीं पता लेकिन आजकल तो इसी तरह का अहसास होता है ! “विशि” एकबार और दीदी ने आवाज लगायी ।

“हाँ दी, आ रही हूँ, बस अभी आयी जस्ट वन मिनिट ।”

“देख तू यहाँ अपनी इंग्लिश मत झाड़ । बहुत बिगाड़ा है तुझे हम सबने, उसी का फल है यह कि तू हाथ से निकलती जा रही है ।” एक तीखी चुभने वाली बात कह कर भाई ने उसे फिर से रुला दिया । अब तो जाना ही पड़ेगा ! यहाँ बैठी रही तो भाई की तीर कटारी वाली बातों से आहत होती रहेगी ! हालाँकि उसका मन नहीं था कि उठकर बाहर सबके साथ में बैठे ! यह तन्हाई यह अकेलापन कितना अच्छा लगता है बिलकुल अपना अपना सा । जैसे दिल को इस अकेलेपन से लगाव सा हो गया है । अब भाई कुछ कहे उससे पहले ही बाहर आकर वो डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठ गयी । टेबल पर पापड़ मठरी और चाय रखी हुई थी ! बस उसी का कप मेज पर था बाकी सभी लोग अपने अपने कपों को हाथों में उठाये हुए थे । “अरे वाह दी, आलू और दाल के पापड़ भी हैं ।” विशि को दाल के पापड़ बहुत पसंद हैं लेकिन आंच पर भुने हुए । इनमें देखो कितना तेल टपक रहा है, सब लोग कैसे खा लेते हैं इतने तेल वाली फ्राई की हुई चीजे। उसे भी तो पसंद थी पहले लेकिन अब जबसे नाटक में काम करना शुरू किया है सिंपल सा खाना खा लेती है “क्या सोच रही है ?” विशि यह मठरी खा कर देख ! मैं तेरे लिए ही बना कर लायी हूँ । दीदी बड़े लाड़ से उससे बोली । “तुझे नीबू के अचार से बहुत पसंद है न ?”

“हाँ दी ।” अब दीदी का मन तो रखना ही पड़ेगा कितना ख्याल रखती हैं उसका, अभी उनसे कोई बात कहो, उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी । पहले भाई भी तो ऐसा ही था बात मुंह पर आ भी नहीं पाती थी और वे समझ जाते थे और उसे पूरा करने में कोई कोर कसर नहीं रखते थे ।

जब तक दीदी घर में रहती हैं घर का माहौल बड़ा अच्छा रहता है लेकिन दीदी भी शादी के बाद दो दिन से ज्यादा रुक ही नहीं पाती हैं ! विशि ने एक मठरी उठाई और उसमें नीबू का मीठा अचार लगा कर खाने लगी । भाई बड़े शांत भाव से चाय और पापड़ खाने में तल्लीन थे । वाकई मठरी बहुत टेस्टी बनी हैं । उसने कहना चाहा था लेकिन नजरे भाई की तरफ चली गयी । अभी तो शांत बैठे हैं लेकिन कहीं कुछ कहने न लगे इसलिए बिना कुछ बोले चुपचाप मठरी खाती रही ।

“सुन विशी आज तेरे जीजू भी आ रहे हैं तो किचिन में मेरे साथ हेल्प करा देना ।”

“हाँ हाँ दी, क्यों नहीं ? मैं अभी कपड़े बदल कर आती हूँ ।” वो यह कहकर मुस्कुरायी और कपड़े बदलने को कमरे में आ गयी ।

यह मेरे मन में तो मिलन आकर बस गए हैं इनसे कैसे मुक्ति मिले ? क्या प्रेम से मुक्ति नहीं मिलती ? क्या कभी किसी से प्रेम हो जाये या वो किसी को अपनी गिरफ्त में ले ले तो वो बंधन कसता ही चला जाता है ? उफ़्फ़ । यह प्रेम मेरी जान लेकर ही जायेगा ।

मुझे ऐसा क्यों लगने लगा है कि मैं सिर्फ प्रेम ही कर पाऊँगी और बाकी सब भुला दूँगी और मुझे कुछ दुनियादारी याद ही नहीं रहेगी ।

“विशी ! आजा बहन किचिन में ।” दीदी की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई ।

“हाँ दी, आती हूँ ।” उसने जल्दी से घर वाले कपड़े पहने और दीदी के पास किचिन में आ गयी ।

“सुन विशी, तू आजकल सुबह वॉक पर जा रही है न ?”

“हाँ दी, ऐसा क्यो पुंछ रही हैं आप ?”

“क्योंकि तू बड़ी स्मार्ट होती जा रही है और यह तेरे चेहरे का निखार जो बढ़ता जा रहा है इसे देख कर पूछा ।”

“क्या दी सच में ?”

“हाँ भई मैं कभी झूठ नहीं बोलती हूँ ।”

“चलो फिर तो मैं अपना सुबह वॉक पर जाना जारी रखूंगी ।”

“हाँ बिलकुल रखना ।”

“दीदी जीजू कितनी देर में आएंगे ?”

“बस आने ही वाले होंगे ।”

“आप क्या क्या बना रही हो ?”

“सिर्फ चिली पनीर,रायता और रोटी ।”

“वौव ! दोनों ही मेरे फेवरेट हैं ।”

“तू भी कुछ बनाना सीख न ! क्या जिंदगी भर मम्मी के हाथ का ही खायेगी ? कल को तेरी शादी होगी फिर तू क्या करेगी ?”

“अरे दीदी, आप शादी की बातें अभी मत करो क्योंकि मेरी शादी में अभी बहुत समय है।”

“कोई समय नहीं है लड़की की शादी अगर समय से हो जाये तभी सही रहता है, और पापा भी नहीं है तो फिर तेरी शादी के बाद भाई को भी कोई लड़की देख कर शादी करनी है।”

“अच्छा दी, आपकी जल्दी शादी हो गयी तो आपको लगता है कि मेरी भी जल्दी हो जाये ! हैं न ?”

“नहीं नहीं, ऐसा नहीं है लेकिन,,,”

“लेकिन क्या दीदी ?”

“कुछ नहीं बस यूं ही कहा ! चल जब तेरा मन हो तभी करना और शादी तो कभी भी हो हो ही जानी है ।”

“दीदी जब मुझे जीजू जैसे कोई इंसान मिलेगा तभी मैं भी कर लूँगी आप उदास न हो ।”

“सही है, देखती रह शायद कोई मिले ?” दीदी यह कहती हुई मुसकुराई ।

“क्यों नहीं मिलेगा दी ? बल्कि बहुत अच्छा मिलेगा ।”

“तू इतना अकड़ क्यों रही है मैंने कब मना किया ? मिलेगा भई जरूर मिलेगा ।”

“क्या बातें हो रही है ? और यह विशी भी तेरे संग है तब तो मिल गया आज हम सब को खाना ।”

“अब उसने क्या किया ?” दीदी ने भाई को डाँटा ।

“तुम बस देखो, यह क्या करती है ?”

“ठीक है मैं देख लूँगी, तुम जाओ यहाँ से ।” दीदी ने भाई को कहा तो वो वहाँ से चले गए ।

“दीदी, यह भाई हर समय मेरे पीछे क्यों लगे रहते हैं ? मैं तो कुछ भी नहीं कहती हूँ ।” विशी थोड़ा रुयांसी सी होकर बोली !

“अरे कुछ नहीं बेटा, वे तुझे बहुत चाहते हैं न और तेरे प्रेम में तेरे लिए ही कठोर बन गए हैं ।“

“ओहह दी ! मुझे कुछ समझ नहीं आता है ! वो मुझे भले ही पहले की तरह प्यार न करें लेकिन मैं चाहती हूँ कि वो जैसे सब के साथ बात करते हैं बस वैसे ही मेरे साथ भी वैसे ही बोले बात करें।”

“सब सही हो जाएगा तू बस देखती जा ।”

“दी भाई की शादी करा दो जब भाभी आ जाएंगी तो यह जरूर मेरे साथ अच्छे बन जाएँगे ।”

“आ मैं आई हूँ न, अब की बार इनकी शादी की बात पक्की करा कर ही जाऊँगी।”

“सच में दी ? क्या वे शादी के लिए मान जाएंगे ?”

“हाँ क्यों नहीं मानेंगे ? नहीं तो मनवा लेंगे ।”

“फिर सही है, अगर भाभी आ जाएँ तो इनका मन उनके साथ ही लगा रहेगा और मुझे अपने लिए अपने मन का जीने का वक्त मिल जायेगा ।”

“वाह, तूने कितनी अच्छी बात कही, तू अपने स्वार्थ के लिए भाई को बंधन में बांधना चाहती है ।” यह कह कर दीदी हंसी तो विशी भी ज़ोर से हंस दी ।

“देखा दीदी यह बस यूं ही टाइम पास करेगी, अब मिल चुका हम सब को खाना ।”

“खाना भी बन रहा है और हम हंस बोल भी रहे हैं ।”

“विशी तू यह पनीर काट दे और आटा गूंध कर दे दे, बाकी सब मैं बना लूँगी । हाँ बस यहाँ खड़े होकर बातें करती रह ।”

कितनी प्यारी हैं दी, वे सबका ही ख्याल रखती हैं लेकिन विशी को थोड़ा ज्यादा ही प्यार देती हैं ! वैसे लोग कहते भी हैं कि बड़ी बहन माँ के समान होती है ! सच में वे सही ही कहते हैं ।

“बेटा तू सोचती बहुत है, अब न जाने क्या सोचने लगी ?”

“कुछ नहीं दी, बस यूं ही ।” वो मुस्कुराइ ।

:कोई मन में बात है तो बता दे न? मैं किसी से नहीं कहूँगी ।

“कोई भी बात नहीं है दी ।”

“पता है बेटा, जबसे पापा जी का कार एक्सीडेंट हुआ और वे हम सब को छोड़ कर चले गए हैं, तभी से भाई के अंदर पापा की जिम्मेदारी वाली भावना आ गयी है इसलिए वे तेरी इतनी परवाह करते हैं तू उनकी किसी भी बात का बुरा मत माना कर ।”

“मैं कहाँ बुरा मानती हूँ? पर न जाने क्यों आँखों में आँसू आ जाते हैं शायद दिल दुख जाता होगा है न ?”

“दी लो यह पनीर कट गया, अब आटा गूँदने के बाद मैं प्याज टमाटर भी काट कर मिक्सी कर दूँगी ।”

“नहीं, तू रहने दे, प्याज टमाटर मैं खुद ही काट लूँगी ।”

“दी, आप मेरी आदतें इतनी खराब मत कराओ, फिर मैं काम चोरी करूंगी और भैया से डांट खाऊँगी ।”

:तू रोज ही तो करती है और एक दिन नहीं करेगी तो उससे कैसे तेरी आदतें बिगड़ जाएंगी भला ?”

“दीदी इस बार आप भैया की शादी जरूर से करवा कर ही जाना ।”

“हाँ मैं कोशिश करती हूँ ।”

 

क्रमशः