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ग्रुप के सभी सदस्य अपने नाटक की रिहर्सल कर रहे थे और वे सबकी रिहर्सल को बड़े ध्यान से देख रहे थे । करीब एक घंटे के बाद मैंम ने चाय लाने के लिए एक लड़के को भेजा । वो चाय और बिस्किट लेकर आ गया । दो लड़कियों ने मिलकर चाय और बिस्किट पूरे ग्रुप में बाँट दी मिलन को भी दी तो उनहोंने चाय तो ले ली पर बिस्किट के लिए मना कर दिया ।
“अरे आपने बिस्किट क्यों नहीं लिए ? ले लीजिये न सर ।“ विशी ने कहा तो वह एकदम से चौंक गये ।
“आप बिस्किट लीजिये न सर ।“ मैम ने भी कहा ।
विशी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा कि कोई और उनसे बात करे लेकिन वो क्या कर सकती है ? कुछ भी तो नहीं न ! कहने दो कोई कुछ भी कहे कोई उनसे बात करे ! उसने अपने मन को झटका दे कर हटाया ।
वैसे उनमें कुछ खास बात तो जरूर थी जो अपनी तरफ खींचे लिए जा रही थी पहली ही नजर में कुछ अलग से लगे जैसे इनसे कोई बरसों पुराना रिश्ता है या जन्मों का कोई रिश्ता या हम बहुत समय से एकदूसरे को जानते हैं खैर वे आराम से चाय पीते रहे और सबके साथ घुलमिल कर बड़े प्रेम और अपनत्व से बातें करते रहे ! चाय पीने के बाद हम सभी लोग फिर से नाटक की रिहर्सल में लग गए और वे बड़े ध्यान से विशी को देखते रहे, और वो शरमा कर उधर से नजर हटा ले रही थी ।
“क्यों सर जी, आपको कुछ समझ में आया ?” जब रिहर्सल ख़त्म हुई तो मैम ने उनके पास जाकर पूछा ।
“ओहो मैम को तो देखो बार बार उनके पास जाकर पूछ रही हैं जैसे कोई कलक्टर हो ।” विशी ने अपने पास खड़े मयंक से कहा ।
“अरे क्या तुम्हे नहीं पता यह कलक्टर ही हैं ।”
“कलक्टर ?”
“हाँ भाई हाँ, कलक्टर मतलब किसी कंपनी के हेड हैं ।“
“ओह, पर यह तो बिल्कुल नार्मल से लग रहे हैं बिलकुल हम लोगों की तरह से सामान्य इंसान ।”
“ हैं तो इंसान ही न, तो इंसान ही लगेंगे, वैसे शायद सदा जीवन उच्च विचार रखते होंगे ।” मयंक ने डपटते हुए कहा ।
“अरे तुम नाराज क्यों हो रहे ?” विशी ने उसे मुंह चिढ़ाते हुए कहा ।
“तो क्या करूँ, बोलो ? तुम्हें इतना भी नहीं पता की यह कौन हैं ?”
“मुझे कैसे पता चलेगा भला ? किसी ने मुझे बताया भी कहाँ ।” विशी ने मासूमियत से कहा ।
“जैसे मुझे पता चला वैसे ही लेकिन तुम न जाने किस दुनियां में रहती हो ? तुम्हें तो अपना तक ख्याल नहीं रहता? हरवक्त ख्यालों में डूबी हुई सी लगती हो फिर भला तुम्हें कैसे कुछ पता चलेगा ।” मयंक बोला ।
“हुंह, तुम्हे क्या, मैं कुछ भी करूँ ।“ और वो उसके पास से हट गयी । मुझे क्या फर्क पड़ता है कि यह कौन हैं और कौन नहीं हैं । वो मन ही मन बड़बड़ाई ।
वैसे मयंक की बात सुनकर वो सोच में पड गयी कि मैं कितनी मुर्ख हूँ । जो हरवक्त बचपना करती रहती हूँ । कभी किसी भी बात को सीरियसली लेती ही नहीं हूँ ।
इतनी बड़ी हो गयी है फिर भी छोटे बच्चों की तरह से उछल कूद और लापरवाही करती रहेगी न जाने इसे कब अक्ल आएगी । मैम अकसर उससे परेशान होकर कहती और वो लम्बी सी छलांग लगा कर किसी दूसरी तरफ जाकर और किसी के साथ मस्ती करने लगती । उसकी यही हरकतें देख माँ भी डांटती रहती थी ।
तुम्हें अपने काम और पढाई पर ध्यान तो देना ही चाहिए ! आजकल देखो जरा जरा सी उम्र के बच्चे कितने समझदार और होशियार होते हैं । माँ की कही बातें उसके दिमाग में घूम रही थी । अब से वो माँ को शिकायत का कोई मौका नहीं देगी । वो अब कोशिश करेगी कि किसी तरह से अपने अंदर थोड़ी मेच्योरिटी ले लाये और हर बात को समझदारी से करे।
“बताओ यह इतने अच्छे इंसान हैं ! इनके मन में कोई भेदभाव ही नहीं है कि कौन छोटा है और कौन बड़ा ।” मैंम ने विशी से कहा ।
“भेदभाव कैसा ?” विशी बोली ।
“जैसे यह इतने बड़े ऑफिसर और हम लोगों के साथ एकदम नॉर्मल इंसान की तरह साधारण तरीके से बैठे हैं ।” मैम ने उसे समझाया ।
“हाँ यह तो है ।” विशी ने जैसे सब समझ गयी हो उस मुद्रा में अपना सिर हिलाया ।
“भई मैडम जी, मैं तो यह नाटक नहीं कर पाउँगा, मेरे लिए बहुत मुश्किल काम है एक काम करिए आप इस बंदे को ले सकती हो तो ले लो ! यह कर लेगा ।“ उन्होंने एक लड़के की तरफ इशारा करते हुए कहा ! वो करीब २० साल का ब्लू जींस और वाइट शर्ट आँखों पर चश्मा लगाए गोरे रंग और छरहरे बदन का युवक बेहद खूबसूरत लग रहा था ।
“ठीक है जी, आ जाना बेटा ! समझा देंगे तुम्हें । मैंम ने उसे आश्वासन दिया, वैसे सर जब आपको शौक है तो एक बार जरूर करना चाहिए । उन्होने सर से भी कहा । लेकिन सर ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया ।
विशी को तेज हंसी आ रही थी लेकिन उसने अपने मुंह पर हाथ रख लिया । कभी खुद करना है और कभी अपने बन्दे से कराना है ! होने दो मुझे क्या ? वैसे उसे पहले ही लगा था कि यह सिर्फ टाइम पास करने वाली बातें कर रहे हैं या सिर्फ मस्ती कर रहे हैं ।
अगले दिन वे फिर रिहर्सल के समय पर आकर बैठ गए थे ।
“क्यों सर आज आप करेंगे ?” मैडम ने उनसे पूछा ।
“नहीं भाई इतनी मेहनत करना मेरे वश की बात नहीं है।” वे ज़ोर से हँसते हुए बोले ।
उसे तो पहले ही पता चल गया था ! जिसका काम उसी को साजे ! हर काम हर व्यक्ति नहीं कर सकता है ।
उस दिन उसने फ्लोरल प्रिंट वाला टॉप और ब्लेक कलर की जींस पहनी हुई थी । चाय के समय पर चाय आयी, तो वो उनको सर्व करने के लिए गयी ।
“अरे यार आज चाय पीने का मन नहीं है लेकिन तुम ले आयी तो पीना ही पड़ेगा।” वे मुसकुराते हुए बोले ।
“कोई बात नहीं, अगर आपका पीने मन नहीं है तो मत पीजिये ।” विशी ने कहा ।
“अरे नहीं नहीं, लाओ दे दो, कोई बात नहीं और उन्होने हाथ बढ़ा कर चाय ले ली । आज भी उन्होंने खाली चाय ली थी बिस्किट नहीं लिए ! विशी भी वही पर पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी और चाय पीने लगी ।
“ विशी जी और क्या क्या करती है आप ? प्ले के अलावा ?” वे विशी से बोले !
“यह नाटक के अलावा जी मैं एम फिल कर रही हूँ और पार्ट टाइम जॉब भी है ।” विशी ने बताया ।
“बढ़िया है !” वे कुछ और कहते उससे पहले ही मयंक बोल पड़ा । “सर यह लिखती भी है ।”
“अच्छा, तुम लिखती हो !” उन्होने अचरज से पूछा।
“हाँ जी थोड़ा बहुत ।” वो झिझकी ।
“इसकी कविता की किताबे भी छपी हैं सर ।”
“अरे वाह । आप में तो कूट कूट के गुण भरे हैं और इतना समय कहाँ से निकाल पाती हैं, मुझे तो जॉब से ही फुर्सत नहीं मिलती है ।“
“जी समय को तो चुराना पड़ता है ।”
“वो कैसे ?”
“आप सब कुछ अभी ही जाब लेंगे क्या ?”
“चलो फिर बाद में पूछते हैं । फिर बोले अच्छा क्या आप अपनी किताब मुझे देंगी पढ़ने के लिए?”
“हाँ हाँ क्यों नहीं।” मानों असीम उत्साह से भर गयी हो या फिर ख़ुशी का कोई खजाना सा मिल गया हो और इसी तरह से कुछ बातें, कुछ मजाक में रिहर्सल का समय निकल गया । जब सब जाने लगे तो मैंम को थोड़ा गुस्सा आया, इस तरह तो नाटक तैयार ही नहीं हो पायेगा, कोई आसान काम नहीं है थियेटर करना, इसमें अपनी जान निकाल कर रखनी पड़ती है तब जाकर स्टेज पर लाइव प्रोग्राम दे मिलता है ।”
“सही ही कह रही हैं मैंम ।” मयंक ने बीच में अपनी टांग अड़ाते हुए कहा ।
“ओफ्फो !” यह मयंक भी न जाने क्या समझता है खुद को, पागल कहीं का विशी को थोड़ा गुस्सा आया।
“करीब दो तीन महीने की जम कर रिहर्सल होती है तब जाकर कलाकार कुछ मझ पाते हैं, आसान नहीं है, बिलकुल भी आसान नहीं है, अभी कोई भी नहीं जाएगा।” लेकिन आज तो रिहर्सल का समय यूं ही ख़त्म हो गया था और अब किसी का मन नहीं था बीच में व्यवधान पड़ने से यही तो होता है ।
“मैंम अब कल कर लीजियेगा रिहर्सल !” अंकित ने कहा ।
“अरे कल कल करते हुए सब दिन निकल जायेंगे फिर कैसे होगा,” मैंम ने अपना वही पुराना घिसा पिटा जुमला उछाला लेकिन उनकी बात पर किसी को कोई फर्क न पड़ने वाला था और न ही पड़ा, सब वहाँ से जाने लगे ।
“अंकित मुझे घर तक छोड़ दो !” विशि ने कहा, “अरे यार आज तो मुझे भी देर हो रही है, सीधे ऑफिस जाना है ।”
क्रमशः