embers in Hindi Motivational Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | अंगार

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अंगार

पुलिस प्रशासन विराज पर गोली चलाने वाले का पता करने हेतु अपने संसाधनों एव पूरी क्षमता का प्रयोग कर रही थी किंतु तीन चार माह बीतने के बाद भी कुछ भी पता नही चल सका। पुलिस प्रशासन पर लागातार दबाव बनता जा रहा था पुलिस को भी समझ मे नही आ रहा था कि क्या करे आखिर अपराधी ने तीन बजे दिन में राजधनी में वारदात को अंजाम देने के बाद लापता कहा हो गया जमीन खा गई या आसमान निगल गया कुछ भी समझ नही आ रहा था ।
उधर यमराज अपनी तीसरी पृथ्वी यात्रा पूर्ण करने के उपरांत कैलाश पहुंचे भगवान भोले शंकर कैलाश पर माता पार्वती एव नंदी तथा गणों के साथ उपस्थित थे। यमराज ने भगवान भूत भंवर भोले नाथ से अपनी तसरी पृथ्वी यात्रा एव अश्वस्थामा से मुलाकात एव पृथ्वी वासियों के विज्ञान ज्ञान के वैज्ञानिक सोच की भी चर्चा किया यमराज बोले महादेव मुझे बहुत आश्चर्य तब हुआ जब पृथ्वीवासियों में आपको एव गणेश जी को दूध पिलाने की होड़ मच गई यमराज ने भोले नाथ से बहुत गंभीरता से पूछा महादेव युगों युगों तक कठिन तपस्या करने के बाद भी आपका दर्शन मात्र नही मिल पाता बहुत आश्चर्य तब हुआ जब पृथ्वी वासियों में आपको एव गणेश जी को दूध पिलाने की होड़ लग गयी ।भोले नाथ मुझे दुखः भी हुआ कि मैं महादेव के ही आदेश पर इधर उधर भटक रहा हूँऔर महादेव पृथ्वी पर आ रहे है मुझे बताया तक नही महादेव ने यमराज के हृदय की वेदना संवेदना को बहुत गहराई से समझा महादेव को लगा कि यमराज वास्तव में बहुत आहत है। महादेव बोले यमराज मैं कभी भी ऐसा आचरण प्रस्तुत ही नही करता कि युग मे नकारात्मक संदेश संचारित हो आप ने मुझे कभी कैलाश पर दूध पीते सुना है मैंने तो सृष्टि के कल्यारार्थ एव देवत्व को अक़्क्षुण अक्षय रखने के लिए स्वंय विष पान किया जिससे कि देवताओं को अमृत पान का अवसर सुलभ सम्भव हो और हुआ भी। महादेव फिर बोले यमराज दूध पीने का कार्य भगवान विष्णु जी कर सकते है और पृथ्वी पर उन्होंने कृष्णावतार में किया भी है पृथ्वी वासी देवशक्तियों का भी हास परिहास बनाती रहती है जो आपने देखा उसी का एक नियोजित हिस्सा था। अतः आप पृथ्वीवासियों के ज्ञान विज्ञान एव भ्रम भय से इतर सिर्फ देव कर्तव्यबोध को ही स्मरण रखें मैन इसी उद्देश्य से आपको पृथ्वी वासियों के मध्य भेजने का निर्णय लेते हुए आपसे निवेदन किया था ।पृथ्वी पर तीन यात्राएं बहुत सार्थक सकारात्मक एव परिणाम परक रही है ।अब यमराज जी यह बताये की हमारे वंशज जिसके आप भी महत्वपूर्ण कर्णधार है आदिवासी मानव पृथ्वी पर ज्ञान विज्ञान शिक्षा सम्पन्ननता की तरफ अग्रसर है या नही यमराज बोले महादेव अभी शुभरम्भ अवश्य हुआ है लेकिन बहुत लंबी यात्रा आदिवासी समाज को करना होगा एक विराज ,आशीष ,देव जोशी ,सनातन दीक्षित, महाकाल युवा समूह ,महादेव परिवार ने शुभारम्भ किया है लेकिन इस सुभारम्भ को गति प्रदान करने का कार्य नए युग के युवाओं का है जिसके लिए आपके आशीर्वाद मार्गदर्शन की आवश्यकता है। जब तक पृथ्वी का अंतिम आदि प्राणि मानव सुनियोजित सुसंगठित विकास के साथ राष्ट्र समाज एव वैश्विक समाज के संग नही चल पड़ता तब तक शुभारंभ की सच्चाई कि अनुभूति पृथ्वी लोक के युग समाज मे परिलक्षित नही होगी भोले नाथ बोले यमराज हितेंद्र वाणिक जो माता पिता का सच्चा सेवक एव हमारे कार्तिकेय का स्वरूप सत्य कलयुग में है वही तुम्हे क्यो भा गया इसमें भी मेरी मंशा ही है अब आप पृथ्वी के चौथे चरण की यात्रा का शुभारंभ करने की कृपा करें ।यमराज यमपुरी लौट कर आये शनि महाराज के साथ बैठक सभी रियासतदारों की उपस्थिति में किया और चौथे चरण कि पृथ्वी यात्रा के लिए निकल पड़े।
यमराज अपनी चौथे चरण की पृथ्वी लोक यात्रा के लिए लिकल पड़े सीधे हितेंद्र के पास पहुंच गए। हितेंद्र के विषय मे तीसरी यात्रा के समाप्ति पर महादेव ने भी बताया था हितेंद्र अपने मित्र को देखते पहचान गया लेकिन वह अप्रसन्नता से बोला महाराज जब भी आप आते है दोबारा आने में बहुत बिलम्ब कर देते है फिर पता नही कहा से चले आते है मेरी छोटी सी बुद्धि में कुछ भी समझ मे नही आता ।यमराज बोले हितेंद्र आप क्रोधित ना हो मुझे जब भी उचित प्रतीत होगा बता दूंगा की मैं कौन हूँ और क्यो आता हूँ आप क्रोधित ना हो आप मेरे पृथ्वी पर एक मात्र मित्र है जिस पर मै विश्वास करता हूँ इसीलिये मैं आप से पूँछकर पृथ्वी पर अपनी यात्रा का शुभारंभ करता हूँ। वैसे एक बात बता दूं हितेंद्र मेरा आना आपके पृथ्वी वासी शुभ नही मानते है मुझे अपनी असलियत छुपानी पड़ती है महादेव के आदेश से असलियत छुपाते छुपाते आजिज आ चुका हूँ अच्छा अब क्रोध का त्याग करो और यह बताओ कि मैं इस बार कहा जांऊ । हितेंद्र ने बताया महाराज इस बार आप पृथ्वी के अपराध जगत के सरगना मानव के पास जाए आपको अपराध अपराधी की मानसिकता अपराध मार्ग में जाने का कारण इसके कारण पृथ्वी वासियों में सामाजिक हानि लाभ सामाजिक एव राष्ट्रीय स्तर पर पता लगा सकने में सक्षम होंगे यमराज ने कहा एवमस्तु और निकल पड़े ।खोजते खोजते थक गए लेकिन कही भी उन्हें हितेंद्र के सुझाव का साम्राज्य नही दिखा वह सोच ही रहे थे कि हितेंद्र से पुनः मुलाकात कर चौथे दौर के सामाजिक मूल्य बदलकर चुनांव करे कि
इसी उधेड़ बुन में यमराज परेशान थे सुन सान जंगल के मध्य पुराने खंडहर शिव मंदिर में बैठ थे और भगवान शिव के ध्यान में व्यस्त थे तब एक नौजवान व्यक्ति भगता हुआ यमराज के पास आया और बोला बचा लीजिये नही तो पुलिस मुझे मार डालेगी यमराज को लगा कि भगवान शंकर ने हितेंद्र के बताए उद्देश्य का यही व्यक्ति पथ है।उन्होंने बिना कोई प्रश्न किये शरणागत को मंदिर के गर्भ गृह के पीछे गुप्त स्थान में छिपा दिया कुछ देर बाद पुलिस बल आया और यमराज से ही पूछने लगा तुमने किसी को इधर से भागते हुये देखा है यमराज बोले हा भाई देखा तो है वह सीधे ही भागा है कहा गया है मैं नही बता सकता पुलिस वालो ने सवाल किया तुम इस निर्जन वन में क्या कर रहे हो यमराज बोले कि हम भिक्षुक है कोई शरण तो है नही सो यही कभी कभार समय व्यतीत भोले नाथ के शरणागत करता रहता हूँ ।पुलिस वाले आगे बढ़ गए यमराज के बताए रास्ते पर यमराज ने एक घण्टे तक पुलिस वालों का इंतज़ार किया जब उन्हें विश्वास हो गया कि पुलिस वाले अब लौट कर नही आने वाले तब उन्होंने छिपे हुए अंजनवी को आवाज देकर बाहर निकाला पूछा कौन हो तुम वह व्यक्ति पहले तो यमराज के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता रहा और पहचान बताने पर टाल मटोल करता रहा जब उसे यकीन हो गया कि उसे पहचान बताने पर कोई खतरा नही हो सकता तो उसने बताया कि मैं अंगारा हूँ जिसके नाम से लोगो के खून सुख जाते है हलक में आवाज अटक जाती है और जिस तरफ रुख कर देता उधर वीरानी छा जाती है जैसे यमराज निकल रहे हो ।यमराज स्वंय अपनी पृथ्वी वासियों में दहशत हनक सुनकर बहुत आश्चर्य में पड़ गए उनको यह तो मालूम था कि उनके ना आने की कामना ब्रह्मांड का हर प्राणी करता है और पृथ्वी पर उनके ऐसे रूप है जिनसे पृथ्वी वासी इतनी अधिक घृणा करते है कि अपना मार्ग तक छोड़ देते है तब तो मुझे यमराज को पृथ्वी के यमराज का अतिथ्य स्वीकार करना ही होगा ।यमराज ने कहा अंगारा यदि तुम्हे लोग यमराज समझते है तब तो हमारी तुम्हारी खूब जमेगी क्योकि मैं भी तुम्हारे ही विचारधारा समाज सिंद्धान्त का व्यक्ति हूँ ।अंगारा ने पूछा आपका इलाका कहा है यमराज बोले जहां मैं खड़ा या बैठ जाँऊ वही से मेरी एरिया शुरू हो जाती अंगारा ने कहा कि कैसे मैं मॉन लू इतना कहना था कि यमराज ने अंगारा के हाथ से एक झटके में अग्नेआश्त्र छीनकर आकाश में उड़ते गिध्द को मार दिया उन्हें मालूम था कि गिद्ध की आयु समाप्त हो चुकी है और उनके दूत उसके प्राण लेने आने ही वाले है अतः उन्होंने ही गोली मार दी अंगारा को बहुत आश्चर्य यह हुआ कि उसके रायफल की जितनी क्षमता है उसके चौगुनी छमता की ऊंचाई पर उड़ते गिद्ध पर एक सटीक निशाना यकीन नही हो रहा था अंगारा स्वंय अंदर ही अंदर दहल गया उंसे यह यकीन तो हो ही गया कि कुछ भी हो उंसे शरण देकर बचने वाला कोई सामान्य व्यक्ति नही है ।अंगारा बोला आपका नाम यमराज बोले ज्वाला जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में नित्य निरंतर ज्वलित प्रज्वलित होती रहती है अंगारा बोला क्या बात है अंगारा ज्वाला अंगारा ज्वाला और बहुत जोर से ठहाके लगाकर हसने लगे जैसे उंसे कोई बहुत प्रिय वस्तु मिल गयी हो अंगारा बोला भोले नाथ ने अंगारा को ज्वाला से इसलिये मिलाया है कि हम दोनों दुनियां पर अपने साम्राज्य की मन मुताबिक स्थापना कर सके ज्वाला बोला भाई अंगारा बात आप विल्कुल सही कह रहे है अंगारा बोला ज्वाला चल चलते है अपने गिरोह के अड्डे पर अंगारा और ज्वाला साथ साथ चल देते है और भयंकर बीहड़ो में घण्टो पैदल छुपते छुपाते किसी तरह से अंगारा के अड्डे पर पहुंचने में कामयाब हो जाते है ।वहा पहुचते ही अंगारा को बहुत आश्चर्य होता है कि उसका विश्वास पात्र कहर सिंह गिरोह का सरगना बन बैठा है अंगारा ने पूछा क्यो रे कहर तूने मेरा इंतज़ार तक करना ठीक नही समझा तूने ही मुखबिरी करके मुझे मरवाने की साजिश की थी तुझे तो बहुत आश्चर्य हुआ होगा मुझे जिंदा देख कर वो तो शुक्र है ज्वाला का की इन्होंने मेरी जान बचा लिया अंगारा गुस्से से आग बबूला हो और भी अंगार हो चुका था उसने अपने गिरोह के विश्वस्त लोंगों को आदेश दिया कि कहर सिंह को बांध दिया जाय ।आदेश सुनते ही कहर सिह को बांध दिया गया कहर गिड़गिड़ाते हुये अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगा उसकी दशा जीते जी मरने जैसी हो चुकी थी अंगार ने कहा कहर एक तो तुम हमारे सबसे बड़े खास भरोसे के आदमी थे मगर तुमने जो नमक हरामी की है जिसके लिये तुझे दुनिया की कोई अदालत माफ नही कर सकती वफादारी का ईनाम और गद्दारी की सजा यही कानून है चाहे देवता हो या दानव या मानव या कोई भी प्राणि कम से कम इस एक विषय पर सभी एकमत है । इसलिये तुझे माफी देकर दुनियां के इंसाफ के वसूल को अंगारा कलंकित नही करेगा इतना कहते ही अंगारा के आदमियो ने कहर को उल्टा लटका दिया और उसके सिर के नीचे सुखी लकड़ियां इकट्ठा कर दिया और आग लगा दिया आग लगते ही आग की लपटों में कुछ देर झुलसता कहर तब अंगारा उंसे ऊपर खींच लेता वह रहम रहम चिल्लाता फिर अंगारा यह कहते हुए की कहर तूने मेरे ही आदेश से जाने कितने लोंगो को अंगार की सजा तामिल किया है आज खुद भोग गद्दारी कितना महंगा सौदा है ।लोंगो को एहसास होना चाहिये अगर तू गद्दारी में कामयाब हो गया होता तो मैं पुलिस के हाथों मारा गया होता अंगारा खुद कहर को लपटों के अंदर डालता ऊपर खिंचता उसकी चिंखो पर खुश होता और शराब का लंबा घूंट पिता ज्वाला ने पृथ्वीवासियों की जघन्य क्रूरता को देख लज्जित हो गए मन ही मन सोचने लगे मुझे पृथ्वी वासी यमराज कहते है मेरे यम लोक में भी यमदूत इतना क्रूर जघन्य नही होते जो पापी आत्माओं के चीत्कार की संवेदना कि अनुभूति ना कर सकें निश्चित रूप में पृथ्वीवासियों ने बहुत तरक्की कर ली है ।यमलोक में तो एक ही यमराज है पृथ्वी पर तो आंगरा एक यमराज है ऐसे तो जाने कितने यमराज पृथ्वी पर नित्य वास्तविक यमराज को मुंह चिढ़ाते परिहास उड़ाते क्रूरता का नग्न तांडव कर रहे है ।फिर बोले अंगारा तुम्हारे सामने यमराज भी लज्जित है और बौने है कहर सिंह झुलस कर टुकड़ो टुकड़ो में जल कट मर गया गिद्ध जंगली जानवरों के झुंडों का आहार बन गया कहर जघन्य क्रूरता का तांडव समाप्त हुआ ।अंगार के गिरोह के सभी सदस्यों ने कहर की दुर्गति को देखा दहशत से उनके कलेजे कांप गए और भय से सभी थ्रर्रा गए ।अंगार ने सबको बुलाया और बोला ये है ठाकुर ज्वाला इन्होंने आज मेरी जान बचाई है आज से यह अंगार के गिरोह के ज्वाला बनकर ही रहेंगे मोंगिया ,रूरा ,भूरा ,सुरा आदि सभी लोग ज्वाला को इज़्ज़त का दर्जा दे।
अब ज्वाला को हितेंद्र के बताए हुये रास्ते का पड़ाव अंगार गिरोह मिल गया था ज्वाला गिरोह में बहुत जल्दी ही घुल मिल गया और पूरे गीरोह का हर दिल अजीज बन गया लेकिन अब तक अंगार गीरोह के क्रिया कलाप से परिचित नही था ज्वाला को इसकी जानकारी चाहिये थी ज़िसका उंसे इंतजार था। एक दिन रात को लगभग दस बजे जंगल मे दस पंद्रह ट्रक अंगार के अड्डे पर आए अंगारा ने गीरोह को आदेश दिया आप लोग सारे ट्रकों को लकड़ी के वोटों से भर दो ज्वाला को आश्चर्य था कि इतने घने भयंकर जंगल मे ट्रकों का आना और किसी का ध्यान ना जाना बहुत आश्चर्य का विषय है किसी को कानो कान खबर नही लगी अंगार के आदमी ट्रकों पर लकड़ियों को लदना शुरू ही किये थे कि वन पुलिस के जवान आ धमके और अंगार से बोले हुजूर बहुत बडे सौदे की सप्लाई कर रहे है हम लोंगो की रोटी का हिस्सा नही मिला अंगार ने तुरंत लकड़ी की एक पेटी जो भारतीय मुद्रा नोट से भरी थी की तरफ इशारा किया वन विभाग के मुलाजीमो ने तुरंत लकड़ी के बक्से को अपने कब्जे में ले लिया अंगार बोला वन प्रभुओं आप लोग सारी लारियो पर लकड़ियां लद जाने के बाद लारी जंगल से बाहर निकलने के बाद ही कही जाईये वन विभाग के मुलाजीमो ने अंगार के आदेश को सर झुककर स्वीकार किया लारियाँ जा चूंकि थी अंगार बोला मोंगिया ,भूरा, सुरा ,रूरा तुम लोग जंगल के कबीलाई इलाके में जाओ और उन्हें मेरा फरमान सुनाओ की अंगार पूरे एक हप्ता किसी कबीले की मेहमान नवाजी में रहेंगे और कबीले की आदिवासी कन्याओं के साथ समय बिताएंगे ।अंगार के आदमी कबीले सरदार मुखी के पास गए और अंगार का संदेश सुनाया मुखी कुछ बोले नही दरसल अंगार का काम ही जंगलो में या जंगलो के आस पास गांवो में निवास करने वाले आदि वासी युवक किशोरों को जबरन भय प्रलोभन दिखा कर बाहर देश के बिभन्न प्रदेशो में जानवरों से भी बदतर जिंदगी जीने के लिए बेचते कुछ आदिवासी बच्चों से देश के प्रतिष्टित मंदिरों पर भीख मंगवाते अंगारा जंगल मे रहता अवश्य था किंतु उसके हाथ बड़े बड़े राजनेता से लेकर व्यवसायी ताकतवर तक फैले थे। हर मोहकमे में उसके दो चार आदमी मौजूद थे जिन्हें वह अलग से आकर्षक वेतन देता आदिवासी कन्याओं को विदेशों में शानदार जीवन का आकर्षण देकर भेजता जहाँ उनकी जिंदगी नर्क से भी बदतर हो जाती शासन प्रशासन कुछ भी नही कर पाता उसकी व्यवस्था इतनी चाक चौबंद थी कि कोई भी कुछ भी कर सकने में अक्षम था ।वह तो कहर ही था कि अंगार को उसी के अंदाज़ में कुछ मुलाजीमो को खरीद कर मुखबिरी कर उसे मारने की व्यवस्था की थी जो कामयाब नही हुई मोंगिया सुरा भूरा रूरा आदि के साथ ज्वाला भी गया था जंगल के आदिवासी गांव में लौटने के बाद गीरोह के सदस्यों ने अंगार को बताया कि मलिक आप आदिवासी गांव देवी का पुरवा कल से जाए गांव वाले तब तक आपके स्वागत के लिए तैयारी कर लेंगे ।अंगार बोला अरे करेंगे नही तो जाएंगे कहाँ हम ही तो है उनके खास जो उनके दुःख पीड़ा को समझते एव हरते रहते है ज्वाला को चौथे चिरंजीवी से भी मिलना था अतः उन्होंने गीरोह के सदस्यों के सो जाने के वन प्रदेश में स्थित देवी का पुरवा गांव पहुंचे रात बहुत हो चुकी थी गांव के बुजुर्ग सम्माननित मुखी गांव के ही कुछ नौजवानो एव जिम्मेदार लोंगो से बात चीत कर रहे थे कह रहे थे कि विराज ने हमारे समाज को जीवित जीवंत करने में बहुत मेहनत किया और निरंतर कर भी रहे है जिसके कारण हम लोंगो को सम्मान से जीवन जीने का अवसर मिल रहा है लेकिन अंगार ने तो उन्हें भी मारने की कोशिश की और अब भी पुलिस की पकड़ से बाहर है ।पुलिस उसे दिल्ली में खोज रही है यह ससुरा देवी के पुरवा के लोंगो के लिए क्ररता का काल बना हुआ है ।ज्वाला मुखी की बात सुन रहे थे उन्हें पता चल चुका था कि विराज पर कातिलाना हमला अंगार ने सिर्फ इसलिये किया था कि उसे विराज के आदिवासी कल्याण परिषद एव आदिवासी सहकारी समिति के माध्यम से आदिवासियों के हुनर हैसियत हक को दुनियां के प्रत्येक हिस्से में पहचाने में कामयाब हो रहे थे जो अंगार जैसे जंगल के लुटेरों के लिए समस्या था क्योंकि आदिवासियों का विकास उत्थान अंगार जैसे लोंगो के मकसद में रोड़ा था।ज्वाला देवी पुरवा आदिवासियों की वेदना को सुनकर लौटने ही वाले थे कि उनकी मुलाकात एक अंजनवी से हुई ज्वाला को लगा जैसे अंगार को उसकी असलियत का अंदाज़ा लग चुका है ।वह पल भर के लिए सहमे लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि वो तो स्वंय यमराज है तो बेफिक्र आगे बढ़ते रहे जब देवी पुरवा गांव के बाहर घने जंगल मे प्रवेश किया तब पीछे आते अंजनवी बोले रुको वत्स यमराज मैं कृपाचार्य पाण्डव एव कौरव कुल का कुल पुरोहित आप अपनी तीसरे चरण की पृथ्वी यात्रा में जिस चिरंजीवी से मिले थे वह था मेरा भगिना बहन कृपी पुत्र अश्वस्थामा था मैं कृपाचार्य उसका मामा यमराज बोले प्रणाम गुरुवर कृपाचार्य बोले मैं आपको क्या आशीर्वाद दू सिवा इसके की विजयी भव यमराज ने कृपाचार्य जी के आशीर्वाद को माथे लगाते हुए पूछा आचार्य श्रेष्ठ आप यह बताये ऐसा क्यो होता है कि जो भी शुभारम्भ है उसी का अंत है ।आचार्य कृपाचार्य बोले वत्स सम्भवतः आदिवासी पीड़ा की बात कर रहे हो तो सुनो बर्बरीक एक आदि वासी था जो इतना शक्तिशाली था और ज्ञानवान एव ईश्वर भक्त था कि उसके समान उस युग मे कोई दूसरा था ही नही वह महाभारत जैसे युद्ध को पलक झपकते ही समाप्त कर सकने की क्षमता रखता था लेकिन युद्ध का निर्धारित काल अठ्ठारह दिनों का था अतः उसने अपना सर्वश्रेष्ठ दान भगवान श्री कृष्ण के चरणों मे किया शीश दान कर दिया और कलयुग में वह साक्षात कृश्नांश कृष्ण स्वरूप में खाटू श्याम के रुप में पूजित है।एक्लव्य ने मेरे बहनोई के कहने पर गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा ही दे दिया यानी द्वारप में कृष्णावतार में आदिवासियों ने भगवान कृष्ण के उत्कर्ष के लिए बहुत त्याग किया किंतु उन्हें मिला कुछ नही भगवान श्री कृष्ण को उनके धाम पहुँचने में भी भील आदिवासी ने ही अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और यदुवंशियों के समापन के बाद आदिवासी समाज ने ही एक तरह से युग की जिम्मेदारी का निर्वहन शुरू किया । आदिवासी समाज हर युग का शुभारंभ करता है और युग के विकास के साथ लुप्त प्रायः हो सांमजिक त्रदासी का शिकार हो जाता है ।कलयुग का विज्ञान जो सृष्टि के देव अस्तित्व में विश्वास नही रखता है उसने भी सृष्टि का शुभारंभ का श्रेय आदि मानव समाज को ही देता है ।यह मानवीय स्वभाव है कि वह सीधे साधे भोले भाले लोंगो को सीढ़ी बना कर शिखरारुढ़ हो जाता है और सीढ़ीयों को पैर के नीचे दबा देता है वत्स यमराज कलयुग का मानव विकृत दूषित मानसिकता के संसय में जीता है उंसे स्वंय के अतिरिक्त कुछ भी नही प्रतीत होता है ।कलयुग वासी स्वंय को बहुत वैज्ञानिक विकसित और विज्ञान विकास के उत्कर्ष पर अवस्थित बताते है किंतु उनके आचरण इटने निकृष्ट है कि दूसरा उदाहरण सम्भव ही नहीं है ।आप चिंता ना करे वत्स यमराज समय काल महाकाल सभी अनुत्तरित प्रश्नों एव समस्याओं का हल निकाल देगा ।
यमराज पुनः अंगार के पास ज्वाला बनकर लौट गए और कृपाचार्य के बताए मार्ग का अनुसरण करते हुए समय की प्रतीक्षा करने लगे उन्होंने जिज्ञासा बस अंगार से प्रश्न किया अंगार तुमने अपने जीवन के लिए इतना क्रूर मार्ग क्यो चुना जो लोंगो को वेदना पीड़ा देता है ।अंगार ने अपने जीवन की आप बीती बताना शुरू किया उसने बताया कि वह बहुत होनहार और मेहनती बालक किशोर युवा था बचपन मे बापू किशन और माँ शिवि बहुत प्यार करते मैं एकलौती संतान था मेरी माँ शिवि गांव के पास जंगल के बाहर माता के मंदिर गयी थी सूर्यास्त होने वाला था मंदिर पर रात्रि को कोई रहता नही था मंदिर की अंतिम दर्शनार्थी मेरी माँ थी जब माँ दर्शन करके लौटने लगी तब तक अंधेरा हो चुका था रास्ते वीरान एव सुन सान हो चुके थे तभी जंगल से जाने कहा से एक चिता आया और माँ को एक ही झपटे में मार गिराया और जंगल मे घसीटते ले गया जब बहुत रात तक माँ नही लौटी तब बापू किशन गांव वालों के साथ माँ को खोजने के लिए निकला कुछ ही देर में माँ का शव छत बिछत जंगल मे मिल गया ।बापू माँ के मरने के बाद बहुत दुखी रहने लगा उसे पहाड़ जैसी जिंदगी बोझ लगने लगी ऊब कर उसने दूसरा विवाह कर लिया मेरी शौतेली माँ सुंदरा ने आते ही घर एव बापू को अपने कब्जे में कर लिया बापू को सही गलत का भेद ही नही दिखता एक दिन शौतेली माँ सुंदरा ने जान बूझ कर चूल्हे की आग मुझ पर फेंक दिया और बड़े क्रोध से बोली तू क्यो पडा है मुस्तण्ड जैसे तू भी जंगलो में क्यो नही जाकर मर जाता है ।शौतेली माँ के फेंके आग से मैं झुलस गया था बहुत जलन हो रही थी मुझे भी लगा कि अब घर रहने से क्या फायदा बापू आएगा उल्टा सीधा उंसे माँ पढ़ाएगी वही सुनेगा और मुझे अपने शब्द बाण से और जलाएगा तभी मैं अतुल से अंगारा बन गया।जंगल मे चला आया सारे सपनो की तिलांजलि देकर और मेरे मन मे औरत जाती के प्रति गृणा भर गई जंगलो में भी मैं वनवासियों की लड़कियों महिलाओं को यातनाएं तरह तरह से देता हूँ जिससे मुझे खुशी मिलती है मैं आदिवासी लड़कियों औरतों को बाहर भेज देता हूँ जो रईसों के घर मे जीती जागती जानवर की जिंदगी जीने को विवश हो जाती है। ज्वाला ने अंगारा कि जुबानी उसकी आप बीती सुनने के उपरांत बोला अंगारा तुम्हारे साथ जो भी हुआ वह बहुत बुरा हुया इसमें सुंदरा तुम्हारी शौतेली माँ जिम्मेदार है भोले भाले आदिवासी कहा तक जिम्मेदार है जिनकी जिंदगी तुमने नर्क बना रखा हैं तुमने एक तो आदिवासी साम्राज्य वन जंगलो में शरण ले रखी है और अपने शरणदाताओं को ही अंगार में भस्म करते जा रहे हो कभी शांत चित्त से सोचा है कि इसका परिणाम भी क्या होगा।अंगार बोला कि मैंने जन्म मृत्यु ईश्वर स्वर्ग नर्क जैसी फालतू बातों से अपना मतलब समाप्त कर दिया है मैं प्रति दिन सूरज निकलने के साथ जीवन का शुभारंभ करता हूँ और सूरज ढलने के बाद उसे समाप्त मानता हूँ ।ज्वाला बोला अंगार मैं तुम्हे किसी धर्म कर्म का वास्ता देकर समझाने की कोई कोशिश नही करूँगा मैं यह निर्णय समय पर छोड़ता हूँ कि वह कैसे तुम्हे सही दृष्टि दिशा देता है और उस समय की प्रतीक्षा कर रहा हूँ । मुझे विश्वास है कि अंगार को एक ना एक दिन अंगार के राख बनने की वास्तविकता का एहसास हो जाएगा। दिन बीतता जा रहा था अंगार की क्रुरता बढ़ती जा रही थी
एक दिन अंगार सुबह उठा और सीधे जंगल के झरने पर गया जब वह वहां पहुंचा तब उसके क्रूर मन मे सकारात्मक भाव का जागरण हुआ उसने देखा कि एक बहुत सुंदर नौ यवना झरने में सुबह सुबह स्नान कर रही है अंगार देखता ही रह गया उसके मन मे जिज्ञासा जागी वह झरने में स्नान करती नव यवना के समीप जाकर बोला कौन हो तुम ?पलट कर नौयवना ने उत्तर दिया तुम कौन हो ?अंगार बोला तुम्हे नही पता मैं अंगार हूँ और मेरे नाम से लोगो के हलक सुख जाते है नौयवना ने कहा सम्भव हैं तुम्हारा नाम सुन लोंगो के हलक सुख जाते हो लेकिन मेरे ऊपर तुम्हारे किसी भी शक्ति क्रूरता का कोई प्रभाव नही है ।अंगार बोला मैं तुम्हे अपने ताकत से भी हासिल कर सकता हूँ नवयौवना ने कहा मेरा नाम चामुंडेश्वरी है तुम कोशिश करके देखो अंगार ज्यो ही चामुंडेश्वरी के तरफ बढ़ा वह धीरे धीरे आगे बढ़ती चली गयी और अंगार पीछे पीछे बहुत कोशिश करने के बाद भी अंगार चामुंडेश्वरी को पकड़ नही सका अंगार चामुंडेश्वरी का पीछा करते करते बहुत दूर निकल गया चामुंडेश्वरी एक गुफा में प्रवेश कर गयी और गुफा का दरवाजा बंद हो गया। अंगार बहुत देर तक प्रतीक्षा करता रहा निराश हो लौट आया लौटने के बाद उसके हाव भाव मे आश्चर्यजनक परिवर्तन दिखने लगे वह बार बार चामुंडेश्वरी चामुंडेश्वरी का रट लगाए जा रहा था अंगार गीरोह को समझ ही नही आ रहा था कि सरदार को हुआ क्या है?
धीरे धीरे अंगार की स्थिति पागलों जैसी होने लगी और वह चीखता चिल्लाता चामुंडेश्वरी चामुंडेश्वरी दिन भर बोलता रहता उसके गैंग को लगा कि अंगार के साम्राज्य का अंत निकट आ गया है ।पागल कुत्ते और लंगड़े घोड़े को कोई नही साथ रखता यहाँ बात एक ऐसे साम्राज्य की थी जो अपराध की दुनियां से संभंधित था अंगार को उसके गैंग वालो ने किनारे कर ज्वाला को साम्राज्य का मुखिया यानी सरदार चुन लिया। ज्वाला को तो लगा जैसे उंसे मुँह मांगी मुराद ही मिल गयी आपराधिक दुनियां का बेताज बादशाह बनते ही ज्वाला ने वनवासी आदिवासियों को बुलाया जिन पर अंगार ने क्ररता एव अमानवीय कृत्यों को हद कर दी थी। जब एक एक बन प्रदेश का आदिवासी परिवार अपने सदस्यों के साथ उपस्थित हुआ ज्वाला ने अंगार को सामने कर दिया और बोला आप लोग भोले भाले आदिवासियों पर इसने बेवजह बहुत अत्याचार किये है आप लोग इसके कुकृत्यों को बिना विरोध सहन करते गए आप बोलते कुछ नही थे मगर आप सबकी आत्मा अंदर ही अंदर घुट घुट कर इसे श्रापित करती रही बददुआएँ देती रही देखिये इसी ने विराज को गोली मारी सिर्फ इसलिये की विराज ने एक कमजोर सीधे साधे भारतीय समाज को उनके वास्तविकता एव राष्ट्र समाज मे उनके योगदान के लिए उनकी क्षमता शक्ति के साथ जागरूक करने की कोशिश किया मात्र इसिलए अंगार विराज को रास्ते से हटाने का निर्णय ले लिया ।अब आप लोग ही निर्णय करे सीधे साधे भोले भाले आदमियों के विरुद्ध इसने अपराध किया आप लोंगो तो समय की प्रतीक्षा करते रहे आपके मूक हृदयों की आवाज ने सम्भवतः बनदेवो देवियों ने सुन लिया और इसे जो दण्ड दिया है वह अजीब है अब यह इस स्थिति में है कि इसको वेदना संवेदना की समझ ही समाप्त हो चुकी है अब आप लोग इसे कोई और दंड देना चाहते है आदिवासियों का बच्चा बूढ़ा जवान महिलाएँ एक स्वर में बोल उठे नही नही हम लोग इसे कोई सजा नही देना चाहते हम लोग चाहते है कि यह स्वस्थ एव सुखी हो जाये ज्वाला अंगार के गैंग के हर सदस्य की तरफ मुखातिब होकर बोले देखिये सुनिए सोचिये जिस समाज लोंगो को आप लोंगो ने तिल तिल घुट घुट कर तड़फ तड़फ कर भयंकर भय वेदना में जीने के लिए प्रतिदिन कुछ ना कुछ पैचासिकता करते रहे किंतु यह भोला भाला समाज आज भी अंगार के लिए शुभ ही सोचता है जिसका उदाहरण सामने बैठा यह समाज स्वंय है।
अंगार की दशा और भोले भाले आदिवासियों का भोलापन अंगार का एहसास तो कोई रह ही नही गयी थी लेकिन उसके गैंग के सभी सदस्यों के मन मस्तिष्क पर हथौड़े की तरह प्रहाए कर रही थी उनको समझ ही नही आ रहा था कि वह करे तो क्या करे क्योकि उनकी समझ मे पूरी तरह आ गया था कि ज्वाला अपराध के साम्राज्य का मुखिया बनकर उंसे संचालित तो कर नही सकता और यह बाहर जाकर कभी भी पूरे गैंग को पुलिस के हवाले कर देगा। अंगार की विरासत विखरने लगी सभी सोच रहे थे अब भविष्य क्या होगा पता नही ? संसय असमंजस भविष्य का भयानक अंधकार बहुत स्प्ष्ट पूरे गैंग को स्प्ष्ट दिखने लगा ना किसी प्रकार की मुठभेड़ हुये ना कही से भय के वातावरण का निर्माण हुआ ना ही शासन प्रशासन की तरफ से भय खौफ पैदा करने का कोई प्रयास हुआ फिर भी अंगार स्वंय एव उसका साम्राज्य अंगार की ठंडी राख में तब्दील हो चुका था जो किसी भी बहुत हल्के झोंके साथ विखर कर अस्तित्व विहीन हो सकता था ।ऐसी दुविधा असमंजस की स्थिति में ज्वाला ने ही एक प्रस्ताव रखा आत्मसमर्पण एव क्षमा की अपिल जिसे सुनते ही पूरे गैंग के सदस्यों ने एक स्वर से कहा यही सही रास्ता है और गैंग के महत्वपूर्ण सदस्य लपट सिंह को प्रशासन से वार्ता के लिए अधिकृत किया ।लपट सिंह ने प्रशासन से आत्मसमर्पण के लिए वार्ता शुरू किया और निश्चित शर्तो पर आत्मसमर्पण के लिए समाधान योजना के अंतर्गत सहमत हुआ प्रशासन के समक्ष गैंग के समर्पण से एक दिन पूर्व ही ज्वाला अचानक कही लापता हो गया पूरा गैंग इस बात से बेपरवाह दुर्ग प्रशासन के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया और विराज पर जानलेवा हमले की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए सभी अपराधों को सिलसिलेवार स्वीकार किया प्रशासन ने सकारात्मक सोच के अन्तर्गरत शासन से आम माफी की अपील किया अंगार के आपराधिक साम्राज्य का अंत हुआ और आदिवासियों ने चैन की सांस ली।
नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।