pieces of stone in Hindi Moral Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | टुकड़े पत्थर के

Featured Books
Categories
Share

टुकड़े पत्थर के

अनिरुद्ध बोला मैडम नमस्कर पुनः मुलाकात की इच्छा लेकर जा रहा हूँ मुझे विश्वास है कि हमारी अगली मुलाकात में द्वंद दोष शिकायत का कोई स्थान नही होगा और हम एक दूसरे से बहुत प्रसन्न बातावरण में खुले मन मस्तिष्क से मिलेंगे।

जंगिया के पैर छूकर अनिरूद्ध ने आशीर्वाद लिया बोला माँ जान्हवी बहुत नकचढ़ी है लेकिन है बहुत प्यारी इसकी बातों शरारतों में एक अजीब संवेदनशीलता का सांचार है तुम भाग्यशाली हो कि तुमको जान्हवी जैसी बेटी मिली है।

जंगिया बोली बेटा मैं उससे ज्यादे भाग्यशाली हूँ कि सत्येश गढ़ के राजकुमाए अनिरुद्ध के दर्शन हुए बेटा एक बात बोलूं तुम जंगिया को जब माँ कहके बोले तो मेरे मन मे ममता का उफान उठ गया बेटे मेरी यही इच्छा है कि जब अंतिम सांस लू तो आप सामने रहो मुझे यकीन है हमारे कुल देवता निश्चित ही मुझे अंतिम समय मे यह अवसर देंगे।

बेटे जान्हवी की किसी बात का मलाल मत रखना हम आदिवासी लोग मन के साफ निर्मल जल की तरह होते है जो सही उचित होता है उसे निडर निर्भीकता से बोल देते है राजकुमार अनिरुद्ध बोले माँ मुझे जान्हवी कि हर बात ने बहुत प्रभावित किया है बुरा मानने का तो सवाल ही नही उठता मैं तो यही अभिलाषा लेकर जा रहा हूँ कि ईश्वर हमे जान्हवी से सदैव मुलाकात का सौभाग्य प्रदान करते रहे ।

अच्छा तो माँ मैं चलता हूँ इस यादगार मुलाकात को दिल मे समेटे और जान्हवी से बोला अच्छा तो मैडम चलते है और राज कुमार अनिरुद्ध अपने लाव लश्कर के साथ चल दिये जान्हवी और जंगिया खड़े एक टक तब तक देखते रहे जब तक कि राज कुमार अनिरूद्ध का लाव लश्कर आंखों से ओझल नही हो गए।

जान्हवी बोली माँ दुनियां बहुत स्वार्थी है अपने मतलब की कहा पड़ी है तू सतयुग में जब ऋषि महात्मा के साथ हम लोग वन प्रदेशो में रहते थे ऋषि महात्माओं के व्यवहार आचरण राज घरानों लोंगो के लिए आदर्श होते थे वनवसी ऋषि महात्मा भी निर्विकार निश्चल भाव से जगत कल्याण हेतु तप ध्यान करते ज्ञान का प्रकाश फैलाते हमारा खून उन्ही आर्दशों का है अब जगत जमाना इन सब बातो को तकिया नुकुसी मानता है और मन मे कुछ और जुबान पर कुछ और व्यवहार में कुछ और क्या भरोसा राजकुमार अनिरुद्ध के मन मे क्या है ?तुम तो उसी ऋषि परम्परा के संस्ककारो की निर्मलता से बोल रही थी वह ठहरा राजकुमार अमिरिका में पढ़ता है वह संवेदनाओं भावनाओ से अधिक लाभ हानि के पलड़े पर हर सम्बन्धो पल प्रहर को तौल परख कर ही व्यवहारिक आचरण करता है उससे बेवजह कोई आशा उम्मीद मत रखो तुमने तो अपने अंतिम सांस का ठेका उंसे दे दिया अब उसे भूल कर अपने जीवन समाज की सच्चाई पर चलने को ध्यान दो।

जान्हवी बोली माँ शायद तुम भूल गयी कि जब हम लोग गांव गांव घूम घूम कर करतब दिखाते और हम लांगो के करतब से खुश गाँव के नवजवानों से किताब मांगते तो यही लोग अत्यधिक संख्या में मजाक उड़ाते तुम शायद भूल गयी कि इनके शूलों जैसे हृदय वेधते शब्द बाण जो कहते थे यह नटो कि लड़की पढ़ेगी देखो भाई क्या जमाना आ गया जिनका जन्म ही राजाओं के मनोरजंन के लिए हुआ है वह पढ़ेगी करतब दिखाने एव जमीदारों रजवाड़ों को खुश करने का ही काम जन्म जीवन है कैसे सम्भव है कि नट की लड़की पढ़ लिख ले ये वही लोग हैं ।

जिन्होंने सदा शासन किया और समाज को बदतर बना दिया जाति पाती धर्म आदि के मान दण्ड यदि ऋषि महर्षियों ने बनाये तो जो सदा अप्रासंगिक रहे महाराज मनु के सामाजिक आचरण के मूल मंत्र ही कलयुग के मौलिक मानव मूल्य है।

वैसे भी सुविधा भोगी कभी भी किसी भी युग मे सदा अपने वर्चस्व के सापेक्ष विध्वंसक होता है।

ऐसे में तुम्हारा एक राज परिवार से अनुराग विल्कुल अच्छा नही है तुम दोबारा इस प्रकार भावनाओं के तूफान में बहने की कोशिश मत करना यह सदैव हानिकारक होगा ।

जंगिया बेटी जान्हवी की बातों को ध्यान से सुनती रही और बोली बेटी वक्त का मिजाज ही इंसान को रास्ता दिखाता है वह जिससे जो करवाना चाहता है उसके लिए वैसे ही राह खोल देता है तेरा गुस्सा जायज है और मैं भी तुम्हे समझाने का प्रयास नही कर रही हूँ तुम्हे भी वक्त ही राह दिखायेगा मेरा तो सिर्फ इतना ही मतलब है कि राजकुमार अनिरुद्ध हमारे कुल देवता के प्रसाद के रूप में सत्येश गढ़ के राजप्रासाद की शोभा एव भविष्य है आगे उन्ही कुल देवी देवताओं की मर्जी ।

माँ बेटी वार्तालाप करते पता ही नही घर पहुंच गई घर पहुँचने के बाद भी माँ बेटी का वाक युद्ध जारी रहा जान्हवी तो जैसे आज अब तक के जीवन के सभी हिसाबों को माँ को समझा देना चाहती थी ।

वह बोली माँ तू बार बार कुल देवी देवताओं का हवाला देती है मैंने तो कभी उनकी शक्ति महिमा को महसूस नही किया तुम किस देवता की बात हमेशा करती रहती हो ।

तुम शायद भूल गयी जब तुम मैं और बापू अपने छोटे से कुनबे को लेकर शिकारपुर के निकट एक गांव के बाहर डेरा डालकर रुके हुए थे तब मेरी आयु सोलह सत्रह वर्ष ही थी और इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रही थी हम लोंगो के डेरे से कुछ दूर देशी शराब का ठेका था जहां प्रतिदिन दारू पीने वालों का तांता लगा रहता था शाम ढलते ही हम लोंगो के डेरे के पास रईसजादों के मनचलों का हुड़दंग जारी रहता था जो अनाप सनाप हरकते करते रहते जिससे आय दिन हम लोंगो के लिए आफत थी मना करने पर गांव छोड़ने की धमकी देते हम लोंगो ऐसे कमजात लोंगो से जो पैदा तो कहने के लिए बढे परिवारों खानदानों में होते है मगर उनके रहन सहन तौर तरीके सांस्कार शिक्षा शिक्षित होने के बावजूद भी जानवरो से भी बदतर होते है।

धन दौलत में धर्म और मर्यादाओं का महत्व नही रह जाता अगर कंस ने सत्ता शक्ति के मद में अपने बाप को ही बंदी बना दिया तो औरंगजेब ने शाहजहां को दोनों धर्म एक दूसरे के विपरीत है लेकिन यहाँ समानता है दोनों ही बेटे थे दोनों ही राज परिवार से थे दोनों ने अपने पैदा करने वालो को ही बंदी बनाया था ।

तुम किस कुलदेवता की बात करती हो धर्म दया करुणा क्षमा सेवा त्याग तपस्या है जो हमने वन में ऋषि महात्माओं के सानिध्य में युगों युगों रहते हुए जाना है सीखा है।

माँ मैं कैसे भूल सकती हूँ कि जब हम लोंगो ने शिकार पुर का गांव छोड़ने के लिए मन बना लिया और सुबह अपने तंबू उखाड़ने वाले थे यह बात गांव के रईस शरारती मनचलों को पता चल गई और कम्बख्तों ने मुझे ही अपनी हवस के लिये उठा लिया ।

मुझे सुन सान जंगलो में ले गए चार पांच मुस्टंडे जीप में मुँह हाथ पैर बांध रखा था लेकिन ऐसी स्थिति में वो मेरे साथ कुछ भी कर सकने में सक्षम नही थे तुम लोंगो का रोते रोते बुरा हाल था तब मैंने उन कम्वख्तो से अपने बंधे मुह को खोलने के लिए गिड़गिड़ाते हुये इशारा किया पता नही क्यो क्रूर दरिंदो ने मेरा मुँह खोल दिया तब मैं बड़े संयम से काम लेते हुए बोली अरे कमजात कम्बख्तों तुम लोग बेवजह ही मुझे परेशान कर रहे हो मैं ठहरी नटिन आज इस गांव कल उस गांव मेरा क्या ठिकाना मेरी कोई शान शौकत इज़्ज़त नही होती है हम तो लगभग आय दिन किसी ना किसी दिन तुम जौसे रईसों के पैरों तले रौंदी जाती है तुम लोग जो चाहते हो वो मैं तो करूंगी ही हम लोंगो के लिए बहुत साधारण के लिये काहे इतना परेशान हो रहे हो मेरे हाथ पैर खोलो चलो कहाँ चलना है ।

जान्हवी बेहद खूबसूरत और डील डौल की आकर्षक थी आवारा मनचलों को जान्हवी की जवानी की फरमाइश भाई उन्होंने मेरे हाथ पैर खोल दिये मैं उनके साथ सुन सान निर्जन स्थान पहुंच गई आगे आगे जान्हवी चल रही थी पांचों मनचले उसके दाएं बाए ऐसे घेरा बनाये थे कि वह भाग ना सके जंगल मे छोटे मोटे पत्थर के टुकड़े कही कही पर थे जान्हवी भी मनचलों के दिल मे लगी आग को हवा दे रही थी बातों बातों में जान्हवी ऐसा मशगूल थी कि उसे सामने पत्थर दिखाई नही दिया और वह ठोकर लगने से गिर गयी जब वह गिरी तब मनचलों ने ताना मारा आरे देखो जवानी में होश ही गायब है गिरो नही हम तुम्हारी मदहोशी को और बढाते है ।
जान्हवी संतुलित संयमित होकर खड़ी हुये और जिस पत्थर से टकरा कर गिरी थी उसे उठाया और बोली यह ससुरा पत्थर इसे दिल मे लगी आग का क्या पता मनचलो को जान्हवी की मानसिकता का कोई अंदाज़ा तक नही था वह हाथ मे पत्थर लिए हास परिहास करती हुये इतनी जोर से पत्थर एक मनचले के सर पर मारा की वह जमीन पर गिरा और उसके प्राण पखेरू उड़ गए बाकी चारो कुछ समझ पाते पुनः रणचंडी रूप में जान्हवी ने पत्थर उठाया और दूसरे के सर पर दे मारा वह भी जमीन पर गिर कर तड़फने लगा ।

तीन भागने लगे आगे आगे तीनो भाग रहे थे पीछे जान्हवी तीनो को दौड़ाए जा रही थी तीनो भगते भगते थाने में पहुंच गए और निर्भीक शेरनी की तरह दहाड़ती जान्हवी पहुंच गई थाने में पहुचते ही शेखर ,मिलन एव रागिल बोले साहब हम लोंगो को बचा लीजिये नही तो वह मार देगी ।

ड्यूटी पर मौजूद इंस्पेक्टर करीम खान ने तीनों को थाने के एक कमरे में बंद कर दिया और जान्हवी से बोले बेटे क्या बात है आप तीनो को क्यो मारना चाहती हो जैसे ही इंस्पेक्टर करीम खान ने जान्हवी को बेटा कहकर संबोधित किया जान्हवी को लगा जैसे उसके दिल मे नफरत के पड़े छाले फुट गए वह फूट फूट कर ऐसे रोने लगी जैसे कोई बच्चा अबोध ।

इंस्पेक्टर रहीम ने जान्हवी की पूरी बात ध्यान से सुनी और बोले बेटे ये तो नालायक धनवान बाप के बिगड़ी कंगाल औलाद है इन्होंने जो किया ना कबीले माफी है लेकिन अनजाने में ही सही तुमसे भी अपराध हो ही गया है।