एक रेखा और
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कहानी अंश...
‘अब जब देखो, तब ही महारानी के समान बिस्तर पर आराम फरमाती रहती है। एक तो लड़की पैदा की और वह भी मरी हुई . . . . .’
अरे, हमने भी ये सब किया था। इतना आराम तो हमने कभी भी नहीं किया था। हमने तो पांच पैदा किये हैं और वह भी खेलते-कूदते हुये। डलीवरी क्या हुई, मानो आसमान से तारे तोड़ कर लाई है?’
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एक रेखा और ....
सामाजिक कहानी
जुलाई में जब कालेज खुल गये तो पहले दिन की अपनी इतिहास की कक्षा में आई हुई नई छात्राओं का परिचय लेते समय एक नई छात्रा के जाने-पहचाने से नाम को सुन कर अध्यापिका विनी अचानक ही चौंक गई। विनी का चौंकना और आश्चर्य करना बहुत स्वभाविक भी था, क्योंकि जिस छात्रा के नाम को सुन कर वह चौंकी थी, उसका नाम रिनी सिंह था। लेकिन विनी ने उस छात्रा से भरी कक्षा में अन्य कोई दूसरा प्रश्न पूछना अच्छा नहीं समझा। वह अपने मन की परेशानी को अपने तक ही सीमित रखे रही। यही सोच कर कि फिर कभी किसी समय जब कोई अच्छा अवसर सामने आयेगा तब ही वह सब कुछ पता लगा लेगी।
फिर किसी तरह विनी ने कक्षा का समय पूरा किया। यूं भी कक्षा का पहला दिन था, फिर रिनी को देख कर उसका मन वैसे भी पढ़ाने में नहीं लगा। पूरी कक्षा के समय उसकी नज़र रिनी पर ही लगी रही। इस प्यारी सी लड़की रिनी में न जाने ऐसी कौन सी बात थी? न जाने कौन सा आकर्षण था कि न चाहते हुये भी विनी उसको अपने मन-मस्तिष्क से हटा नहीं पा रही थी। दूसरी तरफ रिनी अपनी अध्यापिका के मन की दशा से बेखबर अपने पास में बैठी हुई अन्य लड़कियों से कभी बात करने, तो कभी कुछ पूछने में व्यस्त हो जाती थी। उसे नहीं मालुम था कि केवल उसके अपना नाम एक परिचय के रूप में बताने ही भर से उसकी अध्यापिका विनी का सारा चैन ही समाप्त हो चुका था।
फिर जब कक्षा समाप्त हुई और सारी छात्रायें इठलाती हुई सी कक्षा से बाहर निकलने लगीं तो अवसर पाते ही विनी ने रिनी को कक्षा में से बाहर निकलने से पूर्व ही रोक लिया। अपने इस प्रकार से रोके जाने से एक बार को रिनी घबराई तो जरूर, मगर फिर भी उसने साहस जुटाते हुये विनी के पास आकर सहमते हुये कहा कि,
‘जी?’
‘देखो, घबराओ नहीं। मैंने तुमको किसी गलती के कारण नहीं रोका है। मैं केवल ये जानना चाहती हूं कि तुम कहां की रहने वाली हो? ऐसा लगता है कि मैंने तुमको आज से पहले भी कहीं और भी देखा है?’
‘!!’
इस पर भी रिनी जब कुछ नहीं बोली तो विनी ने आगे अपनी बात बढ़ाते हुये उससे कहा कि,
‘यदि तुम नहीं बताना चाहती हो तो कोई बात नहीं है। मेरे मन में एक शंका सी थी इसीलिये मैंने तुमसे पूछा था।’
तब रिनी ने विनी से कहा कि,
‘जी नहीं। ऐसी तो कोई बात नहीं है। आप क्या इससे पहले जलालपुर के किसी स्कूल या कालेज में पढ़ाया करती थीं। मैं तो वहीं की रहने वाली हूं। हो सकता है कि आपने वहीं किसी बाजार आदि में कहीं मुझे देखा हो?’
'??..'
जलालपुर का नाम सुनकर विनी को एक धक्का सा लगा। उसने सोचा कि न जाने कितना अरसा बीत चुका है, इस नाम को दोहराये हुये। अब तो केवल उसकी स्मृतियों की धूल भी बाकी नहीं रही है। सोचते हुये तुरन्त उसके मन में ये ख्याल आया कि जो वह सोच रही है, वह गलत नहीं है। इसी धारणा को मन में बसाये हुये उसने रिनी से आगे कहा कि,
‘नहीं, मैंने वहां पढ़ाया तो किसी भी कालेज में नहीं है, पर वहां आना-जाना कभी जरूर बना रहा था। वैसे तुम इस शहर में क्या अभी-अभी ही आई हो?’
‘जी हां। पापा का तबादला हो गया, तो हमको यहां पर आना पड़ा है।’
रिनी के बताने पर, विनी को अवसर मिला तो उसने आगे पूछा कि,
‘तुम्हारे पापा करते क्या हैं?’
‘वह नलकूप विभाग में अधिशासी अभियन्ता हैं।’
‘?’
सुनते ही विनी को लगा कि जैसे किसी ने अचानक ही बगैर किसी बात के उसका कान पकड़ के खींच दिया हो। तुरन्त ही उसने अपना रहा-बचा शंका का समाधान कर लेना चाहा। उसने आगे पूछा कि,
‘तुम्हारे पापा का नाम क्या है?’
‘एल्सन के सिंह।’
'......??'
विनी के ऊपर जैसे पहाड़ टूट पड़ा। तुरन्त ही वह अपना सिर पकड़ कर बैठ गई। उसका सोचना कितना सच निकला था। कभी उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस नदी में वह सफर करके पार निकल जाना चाहती है, वही एक दिन उल्टी बह कर उसे वहीं पहुंचा देगी, जहां से वह चली थी। अपनी जिन्दगी के साथ जुड़े हुये जिस नाम को वह बिल्कुल से भुला देना चाहती थी, वही एक दिन उसके सामने प्रश्नों की बौछार बन कर बरस पड़ेगा। क्या बिगाड़ा था उसने एल्सन का? क्यों जुड़ गई थी वह उससे? इस प्रकार कि डोर टूटने के बाद भी अपना जुड़े रहने का असर कम नहीं कर सकी थी। आज उसकी जि़न्दगी के न जाने कितने ही आयाम बीत चुके थे। न जाने कितने ही बसन्त आये और चले भी गये थे। जमाना बदल गया। लोगों की नियत बदल गई। किताबों के पृष्ठ बंद हो गये, मगर ये कौन सा न्याय है कि आज भी उसकी कहानी का मजमून जारी है?
विनी अभी तक ये सब सोच ही रही थी कि, उसकी मनोदशा से बेखबर रिनी ने उससे पूछा कि,
‘टीचर जी, अब मैं जाऊं?’
‘हां।’
विनी ने इतना ही भर कहा तो रिनी चुपचाप कक्षा से बाहर निकल गई और विनी फिर से अपने अतीत के जिये हुये उन दिनों को दोहराने पर विवश हो गई, जिनमें उसकी जीवन कहानी के हर तरह के रंग बिखरे पड़े थे ... ’
.....बात वहां से आरंभ होती है जब कि वह विवाह के पश्चात अपनी ससुराल में रह रही थी। तब एक दिन घर का सारा काम समाप्त करके जब वह फुरसत से हुई तो वह बड़ी देर तक अपने छोटे देवर हनी के स्कूल की किताबों में उलझी रही। यही सोच कर कि शायद कुछ देर उसका मन उसमें लग जाये और उसका समय भी कट जाये। परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हो सका। हनी के स्कूल की पुरानी पड़ी हुई किताबों में बहुत चाहने पर भी उसका मन नहीं लग सका। तब उसने बहुत सोचने के पश्चात अपनी सास से पूछा कि,
‘मामा जी, सारा काम तो हो ही गया है। मैं ज़रा पड़ौस की लिली के यहां जाकर बैठ आऊं। दिन रात घर में रहते-रहते मन कभी-कभी बड़ा ऊब सा जाता है।’
‘?’
विनी की इस बात पर उसकी सास का ध्यान सत्य कथाओं की पत्रिका से अचानक ही हटा तो उन्होंने उसे इस प्रकार देखा कि जैसे किसी ने उनके मुंह में नीम का तेल भर दिया हो। फिर वे जैसे चिढ़ते हुये उससे बोली कि मुहल्ले में कोई भी घर ऐसा नहीं है कि जहां जाकर चार बातें करके मन बहला लिया जाये। तू वहां जायेगी तो एक-दूसरे की बुराइयों के अतिरिक्त किसी दूसरे विषय पर बात ही नहीं हो सकेगी। वह खुद तो कम है नही, साथ में यदि तू वहां जाकर बैठेगी तो वह तुझे भी बिगाड़ देगी। न बाबा न, मैं नहीं चाहती हूं कि तू वहां क्या, मुहल्ले में किसी के घर भी जाकर उठे-बैठे। अपने घर में रहो। अपना घर क्या किसी से कम है? यहां क्या कुछ नहीं है? यदि मन नहीं लगता है तो खाली समय में कुछ नहीं तो किताबें ही पढ़ो। सिलाई-कढ़ाई, तरह के तमाम काम हैं। उन्हीं में अपना ध्यान बंटा कर रखो। इनमें भी मन न लगे तो बाइबल ही पढ़ो। खुदा भी इससे बहुत प्रसन्न होता है। वह बरकत भी देगा। वहां जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। एल्सन आ जाये तो उसके साथ कहीं भी चली जाना। मुझे फिर कोई आपत्ति नहीं होगी।’
ज़रा सी बात पर विनी की सास ने उसे पूरा भाषण ही दे दिया तो वह अपना मन मसोस कर चुपचाप कमरे में आ गई। सोचा कि ये उसकी ससुराल है या पति का घर? यहां तो पूरी सियासत ही है। सोचते ही उसका मन खराब हो गया।
कमरे में आकर वह अपने बिस्तर पर बैठ गई। घड़ी में समय देखा तो दिन के बारह बज रहे थे। ये सोच कर कि इस समय दिल्ली की किसी स्टेशन से फिल्मी गीत आ रहे होंगे, उसने टी वी को ऑन कर दिया। जैसे ही उसने स्विच दबाया तो वहां से किसी पुरानी फिल्म का गीत सुप्रसिद्ध फिल्मी गायिका लता मंगेशकर की आवाज में आ रहा था और उस गीत के बोल थे। ‘तुम न जाने किस जहां में खो गये . . .’
सहसा ही गीत सुनने के साथ-साथ विनी की दृष्टि मेज पर रखे हुये उसके विवाह के उस चित्र पर ठहर गई जो उसने अपने पति एल्सन के साथ शादी के ठीक पन्द्रह दिनों के बाद स्टूडियों में जाकर खिंचवाया था। उस चित्र को देखते ही विनी को अपने पति एल्सन की याद हो आई। याद आ गई तो स्वत ही उसके पिछले जिये हुये दिनों के हरेक पल किसी श्रृंखला के मोतियों के समान टूट-टूटकर उसकी आंखों के पर्दे पर ठहरने लगे। उसकी जि़न्दगी के गुज़रे हुये अच्छे और बुरे, दोनों ही लम्हों की एक-एक याद उसकी नज़रो के सामने आकर एकत्रित होने लगी . . .’
कला में स्नातक करने के पश्चात विनी का विवाह एल्सन से उसके माता-पिता ने कर दिया था। ये विवाह विनी की पसंद से नहीं बल्कि उसके मां-बाप और संबन्धियों के चुनाव के द्वारा ही सम्पन्न हुआ था। यूं तो विनी के परिवार की आर्थिक स्थिति कोई अधिक अच्छी तो नहीं थी। उसके पिता मिशन में ही एक साधारण से लिपिक थे, परन्तु फिर भी उन्होंने अपने परिश्रम और लगन से अपने सभी बच्चों को पढ़ा-लिखा दिया था। इसी सबब से विनी भी अपने विवाह के समय दहेज में खूब भर कर तो नहीं लाई थी, मगर उसके माता-पिता और अन्य सम्बन्धियों ने उसे खाली हाथ भी विदा नहीं किया था। विनी का पति एल्सन राज्य की एक सरकारी नौकरी किया करता था। वह नलकूप विभाग में लाइन इंसपेक्टर के पद पर कार्य कर रहा था। उसके अन्य तीन भाई और भी थे। सबसे बड़ा उसका भाई डेविड था, जो मेल कम्पाऊंडर था, और दिल्ली के एक मिशन अस्पताल में काम कर रहा था। उसका दूसरा छोटा भाई एक छोटी सी प्राइवेट कम्पनी में काम करता था। उसकी दो बहनें क्रमश बड़ी बहन मैरी अपनी मर्जी से विवाह करके अमरीका चली गई थी, और वहीं पर अपने पति और बच्चों के साथ रहा करती थी। एल्सन की दूसरी छोटी बहन जबाब तलबी में मुंहफट थी, इसलिये मां-बाप ने उसका विवाह पहले ही उसकी मर्जी के अनुसार उसी की पसंद के लड़के से कर दिया था। हांलाकि, एल्सन की छोटी बहन का विवाह हो चुका था, और वह अपने पति और बच्चों के साथ अलग ही दूसरे शहर में रह रही थी, मगर फिर भी परिवार की सब ही प्रकार की बातों और मुख्य कार्यक्रमों में उसकी दखलअंदाजी करना जैसे उसकी आदत बन चुकी थी। सो विनी की ससुराल में इस प्रकार से केवल उसकी सास, उसका देवर हनी, एल्सन और स्वंय विनी को मिला कर केवल चार प्राणी ही रहते थे। एल्सन का ये हाल था कि वह अपने शहर से बाहर एक कस्बे में नौकरी करता था, और प्राय दस-दस दिनों तक घर नहीं आ पाता था। विनी के ससुर की मत्यु उसके विवाह के पूर्व ही हो चुकी थी। इसलिये घर का आर्थिक खर्च कहने को तो सब ही भाई-बहनों के आधार पर था, परन्तु सबसे अधिक वहन एल्सन को ही करना पड़ता था। इसका भी कारण शायद यही था कि एल्सन ही परिवार में रहा करता था, बाकी के अन्य सभी लोग परिवार से अलग दूसरे शहरों में रहते अवश्य ही थे, मगर परिवार की सब बातों में अपनी उपस्थिति रखना तो अपना अधिकार समझते थे, परन्तु जहां भी खर्चे का प्रश्न आता था तो जैसे सब पीेछे हट जाया करते थे। विनी की सास का भी यही हाल था कि वे गीत और बड़ाई तो अपने दूसरे बच्चों की किया करती थीं, परन्तु जहां भी जेब खाली करने की बात आती थी तो उनका ध्यान सीधा एल्सन की तरफ ही जाता था। जब भी वे सोचती कि विनी इस बात को भांप रही है तो वे बहाने से कहने लगती थीं कि, ‘मेरे बड़े बेटे को काम तो अच्छा मिला है, पर वह रहता दिल्ली में है। सब ही जानते हैं कि रजधानी दिल्ली है न, सो वहां रहना कोई मजाक बात तो नहीं है। वहां तो रहने का मतलब है कि एक गिलास पानी भी अगर पियो तो उसका भी पैसा दो। हर चीज़़ तो पैसे से मिलती है। ये तो हाल है कि वहां तो सांस भी ले तो उसका भी पैसा दो। वह हमें नहीं दे पाता है तो क्या, चलो अपना तो खर्च चलाता ही है। अब छोटा वाला अधिक नहीं पढ़ सका तो क्या अपनी छोटी-मोटी नौकरी तो कर ही रहा है। किसी से भीख तो नहीं मांगता है। वह घर में रह कर भी यदि कुछ नहीं दे पाता है तो क्या हुआ, परिवार का सबसे छोटा है, इसलिये यदि वह सब से ले ले तो कौन सी बड़ी बात हो गई। अब रह गया एल्सन सो उसी के पढ़ाने और लिखाने में तो सबसे ज्यादा खर्च हुआ है, अब अगर वह घर में कर भी देता है तो क्या, उसकी आमदनी भी तो बहुत अच्छी है। तनख्वाह तो है ही, साथ में किसानों के खेतों में पानी का प्रबन्ध उसी के हाथ में है, सो ऊपरी भी बहुत मिल जाता है।’
विनी जब भी अपनी सास के मुख से ऐसी बातें सुना करती तो वह यही सोचा करती कि उसकी सास जैसे पहले ही से किसी आने वाली कठिनाई के बारे में अपने आपको बचाने का प्रबन्ध कर लेना चाहती हैं। हांलाकि विनी को परिवार की इन सब बातों से कोई अधिक सरोकार नहीं था, मगर जब उसकी सास प्राय ही ऐसा कहने लगीं तो उसको अखरने अवश्य ही लगा था। एल्सन ने इतना तो जरूर किया था कि विनी को उसने अपनी मां के स्वभाव के बारे में पहले ही बता दिया था कि उसकी मां का स्वभाव कुछ चिढ़चिढ़ा सा है। वे हर समय कुछ न कुछ बोलती रहती हैं, सो वह उनकी इस आदत को नकारने की कोशिश करे। विवाह के आरंभ के दिनों में विनी को परिवार के हरेक सदस्य ने खूब हाथों-हाथ लिया, मगर बाद में जैसे सब ही की कलई खुलने लगी थी। एल्सन की बिगड़ी हुई आदतों को देख कर बाद में उसे ज्ञात हुआ कि उसका विवाह एक ऐसे व्यक्ति से कर दिया गया है कि जिसको संभालने में हो सकता है कि उसका सारा जीवन ही चला जाये।
विनी को ये जान कर बहुत दुख हुआ था कि उसका पति न केवल मदिरा का ही आदी है, बल्कि वह जुआ खेलने का भी लती है। ये ठीक है कि वह अपना सारा वेतन घर में लाकर रख देता है, मगर जुआ खेलने के कारण वह जो दूसरी आमदनी करता है, उसे दूसरे शब्दों में रिश्वतखोरी कहा जाता है। और विनी ये कभी भी नहीं चाहती थी कि उसके पति की बदनामी होये और साथ में लोग उस पर भी अंगुली उठायें। यही सब कुछ देख और सुन कर विनी ने चुपचाप इस परिस्थिति से संघर्ष करने का निर्णय ले लिया था।
विवाह के आरंभ के दिनों में विनी एल्सन का हर कहा चुपचाप मान कर चलती रही। इसका भी कारण यही था कि वह पहले एल्सन की हरेक आदत मिजाज़ और उसके व्यवहार से भली-भांति परिचित हो जाना चाहती थी। फिर बाद में सारी परिस्थिति को जानने और समझने के बाद ही वह कोई पग एल्सन के सधुार के लिये उठाना चाहती थी। इस कारण वह एल्सन की प्रत्येक गति-विधि को देखने और समझने का प्रयत्न करती रही। इसलिये एल्सन उससे जोभी कहता वह उसे सहज ही मान जाती। वह यदि उससे कहीं भी चलने या फिल्म आदि दिखाने के लिये चलने को कहता तो वह तुरन्त ही उसके साथ न चाहते हुये भी कपड़े बदल कर चलने को तैयार हो जाती। ऐसे में उसकी सास ने भी आरंभ के दिनों में चुप्पी साध ली थी। विनी और एल्सन कुछ भी करते या कहीं भी जाते, तो वह या तो अनदेखा कर जाती अथवा कोई भी विरोध नहीं करती। मगर बाद में धीरे-धीरे, उनकी भी सहनशीलता जैसे जबाब देने लगी। फिर घर के कामों को करते समय निरर्थक ही बड़बड़ाने लगीं थीं, या फिर जाने-अनजाने विनी के तमाम कामों में नुक्ताचीनी ही निकालती थीं। उनके ऐसा करने के उपरान्त फिर भी विनी ने अभी चुप और शांत रहना ही ठीक समझा था।
विनी जब कभी भी एल्सन के साथ कोई फिल्म देखने चली जाती तो उस शाम का रसोई का सारा काम उसकी सास के मत्थे तो पड़ता ही था, साथ ही खाना भी उन्हें बनाना पड़ जाता था। तब फिर एक दिन ऐसे ही जब विनी एल्सन के साथ बाजार से अधिक देर में वापस लौटी तो उस समय उसकी सास रसोई में बैठ कर रोटी बना रही थीं। विनी उनकी शक्ल देखते ही समझ गई थी कि आज फिर उसकी सास के मुंह में किसी ने नीम का तेल न होकर उससे भी अधिक कड़वां जैसें नीम चढ़ा करेला भर रखा था; कारण, पहले तो वह चली क्यों गई थी? यदि गई भी तो देर में क्यों लौटी? और यदि देर में लौटना ही था तो वह रसोई पका कर क्यों नहीं गई थी? ये ऐसे प्रश्न थे कि जिनको उनकी सास अपने मन में रखे हुये तो थी, परन्तु कब उगल डालेगी, ये विनी नहीं जानती थी।
फिर विनी ने घर में प्रवेश करते ही सारी परिस्थिति को समझते हुये तुरन्त ही कपड़े बदले और फिर रसोई में अपनी मां के हाथ से चिमटा लेते हुये बोली कि,
‘लाइये मामा, मैं रोटी बनाती हूं।’
तब उसकी सास ने उससे कहा तो कुछ नहीं, पर चुपचाप चिमटा उसे हाथ में न देकर वहीं जमीन पर रख कर वहां से चलती बनी। फिर उनके चले जाने के पश्चात विनी ने रोटी बनाई, साथ में रसोई का और भी अतिरिक्त काम समाप्त किया, फिर सबके लिये भोजन तैयार करके रख दिया। इस बीच एल्सन फिर कहीं बाहर निकल गया था। उससे पहले हनी भी दोपहर का ही रखा हुआ खाना खाकर, शाम के समय अपने मित्रों के पास, जैसा कि वह प्राय ही करता था, चला गया था।
रात ग्यारह बजे एल्सन जब अपने दोस्तों के पास से वापस आया तो अब तक किसी ने भी खाना नहीं खाया था। एक प्रकार से विनी और उसकी सास तो उसके वापस आने की प्रतीक्षा कर ही रहे थे। तब एल्सन के आने के पश्चात जव विनी ने उसे खाना परोस कर दिया तो वह अपनी मदिरा के नशे में जैसे आंखें चढ़ाये हुये उससे बोला कि,
‘तुम लोग खालो। मुझे भूख नहीं है।’
‘क्यों? क्या फिर कहीं खा आये?’
विनी ने सारी परिस्थिति को समझते हुये उससे कहा।
‘अरे, मेरा एक घर हो तो बताऊं भी। मेरी क्या है, जहां भी बैठ गया, वहीं खाना मिल जाता है।’
ऐसा कह कर एल्सन जब अंदर कमरे में जाने लगा तो विनी ने उससे कहा कि,
‘जिस दिन आपको घर पर खाना नहीं खाना होता है, तो पहले से बता कर क्यों नहीं जाते हो? यदि नहीं भी बता पाते हो तो कम से कम टेलीफोन तो कर ही सकते हो?’
मगर एल्सन ने उसकी बात का कोई भी उत्तर नहीं दिया। वह चुपचाप अपनी पत्नी की बात को अनसुनी करता हुआ अपने कमरे में चला गया। तब विनी ने बेमन से अपनी सास को खाना निकाल कर दिया। दोनों ने चुपचाप थोड़ा बहुत खाया, फिर सोने चले गये। उसकी सास ने अब भी कुछ नहीं कहा था। लेकिन विनी इस बात को समझने लगी थी कि जैसे उसकी सास के मन में कहीं कुछ कुढ़न जैसी चीज़ अवश्य ही पकने लगी है। वह जैसे अपने मन के किसी कोने में बहुत कुछ रखे हुये है, मगर अभी तक कह नहीं पा रही है।
फिर दूसरे दिन जब विनी सोकर उठी तो उसने देखा कि मां रसोई में पराठे बना रही है। यूं भी शराब के नशे में एल्सन सारी रात बगैर किसी भी बात के बड़-बड़ाता ही रहा था और उसे सोने भी नहीं दिया था। इसीलिये रात को देर से सोने के कारण वह सुबह देर से उठ सकी थी। ये कोई नई बात नहीं थी। अक्सर ही ऐसा हो जाता था। एल्सन जब भी शराब के नशे में सोता था तो सारी रात वह उसके साथ-साथ सब ही को उल्टा-सीधा बकता रहता था, जिसकी बजह से वह सो नहीं पाती थी, और सुबह को देर से उठती थी।
फिर जब एल्सन नाश्ता इत्यादि करके अपने काम पर चला गया तो उसकी मां से नहीं रहा गया। वह जैसे तनिक ख़ीजते हुये अपने उबलते हुये प्रकोप में विनी से बोली कि,
‘बहू, मैंने तो सोचा था कि तेरे आने के पश्चात तू एल्सन को संभाल लेगी। तू उसे अपने लाड़ और प्यार के बल पर उसे समझा-बुझाकर सही मार्ग पर ले आयेगी। विवाह से पूर्व हमने एल्सन का हर कहा पूरा किया। उसकी प्रत्येक इच्छाओं का ख्याल रखा। उसे आज तक किसी भी वस्तु की कमी महसूस नहीं होने दी। यही कारण है कि, हमारे अत्यधिक लाड़ और प्यार के कारण वह बिगड़ गया है। शराब और जुये का लती होकर वह हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर निकल चुका है। हमारा ख्याल था कि, विवाह के पश्चात बीबी के प्यार और सम्पर्क में वह सुधार जायेगा, पर ये देख कर हमें और भी अफसोस होता है कि तू भी उसके साथ से कंधे से कंधा मिला कर वह सब कर रही है, जो वह चाहता है, और जो उसके लिये हानिकारक है।’
‘?’
अपनी सास के मुख से ऐसे कटु वचन सुन कर विनी के मन में सनाका होकर रह गया। वह क्या सोचे बैठी थी और उसे क्या सुनने को मिला है? पल भर में ही उसे ये समझते देर नहीं लगी कि लोग अपनी गलतियों को न केवल छुपाते ही हैं, परन्तु साथ में उसका दोषारोपण दूसरे पर करने से भी नहीं चूकते हैं। भारत में सास और बहू की तकरारों के किस्से मिलना कोई नई बात नहीं है। शायद आज की सासें हरेक बात में चाहे वह गलत ही क्यों न हों, पर उसका दोष अपनी बहुओं पर मढ़ देना अपना अधिकार समझती हैं। ये तो इतना भी नहीं सोचती हैं कि, पति और पत्नी का एक ऐसा रिश्ता होता है कि जिसके मध्य कोई भी बात छुपी हुई नहीं होती है। आदमी कितना भी बिगड़ैल क्यों न हो, वह अपनी पत्नी को सब ही कुछ बता दिया करता है। कितनी आसानी से उसकी सास ने एल्सन के बिगड़ जाने का दोष, जो खुद उनका ही है, छिपा कर उसके ही मुंह पर लगा डाला? झूठ तो बोला ही है, साथ ही अपनी बेबजह की तारीफ भी कर डाली है। इस सच्चाई को न बता कर कि उन्होंने एल्सन को जो उनका मझला लड़का है, सदैव बीच में ही रखा है। कभी भी उसके लिये अलग से सोचने का शायद उन्हें समय ही नहीं मिल सका है। उनके लिये तो दो पहले के और दो बाद के श्रेष्ठ रहे हैं। एल्सन के बिगड़ने का जो विशेष कारण है, वह उसकी अपने परिवार में सदैव होने वाली अवहेलना ही है। वह हमेशा परिवार में अपने को एक न अस्तित्व में होने वाली वस्तु ही समझता रहा है . . .’
‘अब क्या सोचने लगी?’
विनी की सास ने उसे विचारों में खोया पाया तो सहसा ही टोक दिया। तब वह अपने को संभालती हुई ठीक हुई। चाहा कि अब सारी बात को उसे अपनी सास से कह देने का यही सबसे बड़ा अवसर है। मगर फिर यही सोच कर कि यदि उसने भी उनकी बात का उत्तर उन्हीं के विचारों समान दे दिया तो फिर उनमें और उसमें अन्तर ही क्या रहा। इसलिये सारी परिस्थिति को सहज ही लेते हुये वह उनसे शांत स्वर में बोली कि,
‘ये तो आपका भ्रममात्र है मामा जी। मैं तो अभी तक यहां की हरेक गति-विधियों को समझने की चेष्टा करती आई हूं। आपका तो नाता उनसे मां और पुत्र का है, परन्तु मेरा संबन्ध तो आजीवन पति और पत्नी का है। हम दोनों अब चाहे कैसे भी क्यों न हो, पर हमारा रिश्ता एक दूसरे के सहारे का ही है। जो दूरियों की रेखा आपके कहने के अनुसार आपके लाड़ और प्यार के फलस्वरूप आपके पुत्र और मेरे पति के मध्य खिंच चुकी है, उसे मिटाने की मैं भरसक चेष्टा करूंगीं। लेकिन इसमें समय लगेगा। ये काम इतना आसान भी नहीं है, जितना कि आप समझ रहीं हैं। आज नहीं तो कल, एक न एक दिन मैं उन्हें पूरी तरह से सुधार लूंगी। ये मेरा विश्वास है।’
विनी की बात को सुन कर उसकी सास ने कहा तो कुछ नहीं, मगर वे उसे आश्चर्य से केवल देखती भर रहीं। शायद यही सोच कर कि कहना जितना सहज है, उतना करना नहीं। विनी के कथन में उन्हें विश्वास के स्थान पर एक अविश्वास की झलक नज़र आ रही थी। शायद यही सोच कर कि बहू तो बहू ही है, वह उनकी पुत्री का स्थान तो नहीं ले सकती है। यही बात यदि उनकी अपनी पुत्री ने कही होती तो वह अब तक तो न जाने कितनी बलैयां कूद-कूद कर ले चुकी होतीं। इतनी अधिक कि उन्हें कोई गिन भी नहीं सकता था?
तब उस दिन के बाद से ही विनी ने एल्सन को सुधारने और उस पर विशेष ध्यान देने का अपना पहला कर्तव्य बना लिया। उसने सोच रखा था कि एल्सन को सुधारने और सीधे मार्ग पर लाने के लिये अब उसे चाहे जो भी क्यों न करना पड़े, वह पीछे नहीं हटेगी। उसे चाहे कैसे भी कठिन मोड़ से क्यों न गुज़रना पड़े, वह सब कुछ बर्दाश्त करेगी।
फिर जब एक दिन, अपनी प्रतिदिन की आदत के अनुसार एल्सन रात देर से शराब पीकर लौटा तो विनी ने उसे खाना परोसते हुये कहा कि,
‘कल आप मुझे मेरे घर पर छोड़ आइये।’
‘क्यों?’
एल्सन का हाथ का निवाला मुंह में जाते-जाते अचानक ही रूक गया।
‘यहां रह कर भी क्या करूंगी? वहां कम से कम अपनी नौकरी तो कर ही लूंगी। विनी ने कहा तो एल्सन आश्चर्य से बोला कि,
‘तुम्हें नौकरी करने की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी? क्या मैं तुम्हारी कोई भी आवश्यकता पूरी करने में असमर्थ हूं? एल्सन ने विनी से पूछा तो वह बोली कि,
‘ये तो आप बेहतर जानते हैं कि आप मेरी कौन सी जरूरत पूरी करते हैं? वह तो घर में मामा जी भली हैं, जो कैसे भी हो, कड़वा जरूर बोलती हैं, मगर मेरा साबुन, तेल और खाने के खर्च का तो ध्यान रखती ही हैं। यदि आपके भरोसे रहूं तो मैं तो भूखी ही मर जाऊं।’
विनी की इस सच्चाई से भरी बात को सुन कर एल्सन जैसे बिदक गया। वह गंभीर, मगर ज़रा तेज स्वर में विनी से बोला कि,
‘ये मैं क्या सुन रहा हूं? क्या मैं कोई पैसा नहीं कमाता? तुम्हें कोई पैसा नहीं देता?’
‘क्या दिया है आपने मुझे पिछले दो वर्षों में? मन को पागल बना देने वाली शराब की बदबू, आपकी जुये जैसी बुरी लत की बदनामी? मैं ज़रा सा कुछ कह दूं तो सदैव ही चिल्ला-चिल्लाकर बोलना और ताने सुनाना? इन सबके सिवा और क्या है मेरे पास? कितना पैसा जमा किया है अब तक आपने अपनी बैंक में? ये भी नहीं सोचते कि हमारा भी एक परिवार है। कल को मैं आपके बच्चे की मां बनूंगी। मेरी डिलीवरी होगी। बच्चे की परिवरिश, उसके अपने खर्चे? क्या शराब और जुये के आगे आपको इन सबके बारे में भी सोचने का समय मिला है?’
विनी कहते-कहते रूंवासी सी हो गई।
विनी की ऐसी बात को सुन कर एल्सन के पास क्षण भर को कोई भी उत्तर नहीं बन पड़ा। वह चुपचाप सुनता रह गया। फिर थोड़ी ही देर में जैसे पिघल भी गया। अपनी गलती को महसूस करते हुये आत्मग्लानि से भरे स्वर में वह विनी से बोला कि,
‘तुम सच ही कहती हो विनी। मैं सचमुच तुमसे बहुत दूर भटक चुका हूं। पर क्या करूं मैं, बहुत चाहते हुये भी इन सारी गन्दी आदतों को नहीं छोड़ पाता हूं। विश्वास रखो कि आज से मैं सब गन्दी आदतें छोड़ दूंगा, और अपना सारा वेतन हर माह तुम्हारे हाथों पर रख दिया करूंगा।’
एल्सन की बात को सुन कर विनी ने एक संशय से उसे उत्तर दिया। वह बोली कि,
‘कैसे विश्वास कर लूं एक शराबी की बात पर? आप तो ऐसा न जाने कितनी ही बार कह चुके हैं?’
तब एल्सन ने जैसे दृढ़ होकर उससे कहा कि,
‘दृढ़ संकल्प ही मनुष्य को किसी भी गंदी और हानिकारक आदत से छुटकारा दिला सकता है। मैंने भी संकल्प कर लिया है कि अब कभी किसी भी गंदी आदत को बल नहीं दूंगा, लेकिन . . .’
‘लेकिन क्या?’
‘तुम मेरी सहायता करोगी और मेरा साहस बढ़ाओगी।’
‘मैं जरूर आपकी सहायता करूंगी, पर एक शर्त है।’
‘वह क्या?’
‘अब आप शराब और जुये को हाथ भी नहीं लगायेंगे।’
‘हां, नहीं लगाऊंगा।’
और साथ में किसी भी इंसान से रिश्वत नहीं लेगें। जितना मिलता है, उसी में अपना खर्च पूरा करने की आदत डालनी चाहिये।’
‘नहीं करूंगा ये सब, मगर अब तो गुस्सा थूक दो।’
एल्सन ने कहा तो उसके जबाब में विनी मुस्करा भर दी।
उसके बाद से विनी ने एल्सन का पूरा-पूरा विशेष ध्यान रखा। वह जानती थी कि एल्सन जिन गंदी आदतों का शिकार हो चुका था, उनसे छुटकारा पाना इतना आसान नहीं था जितना कि हरेक इंसान समझने लगता है। ऐसी बातों को छोड़ने के लिये मनुष्य वायदे तो बहुत शीघ्र कर डालता है, परन्तु जब वह इन वादों को पूरा करने के लिये क्रियान्वित होता है तो फिर विचलित होते देर भी नहीं लगती है। इसलिये बाद में जब कभी भी एल्सन यदाकदा शराब पीकर आया भी तो विनी ने कठोरता और नम्रता दोनों ही से काम लिया। उसने उसे प्यार से, दुलार से, भविष्य की चिन्ता सामने रखते हुये, अपने आने वाले बच्चे का वास्ता देते हुये, हर तरीके से समझा और बुझा कर वह एक दिन उसे सही रास्ते पर ले आई। इस तरह से एल्सन ने एक दिन अपनी दोनों ही गंदी आदतें सदा के लिये त्याग दीं। मदिरा पान के त्याग में एल्सन को तकलीफ तो अवश्य आई थी, मगर कोई भी काम असंभव नहीं होता है, यदि मनुष्य उसे लगन, विश्वास और ईश्वर को सामने रख कर करे। जीवन के इस महत्वपूर्ण तथ्य को भी विनी अच्छी तरह से समझती थी।
बाद में कुछ दिनों के पश्चात एल्सन की पदौन्नति हो गई तो वह अपने क्षेत्र का अवर अभियन्ता बन कर दूसरे शहर चला गया था। घर पर मां अकेली थी। हनी को भी अब तक दूसरी नौकरी मिल गई थी, सो वह भी घर के बाहर ही दूसरे पास के शहर में रहने लगा था, मगर प्राय: ही सप्ताहान्त में आता-जाता रहता था। इस मध्य वह एक मृत शिशु की मां भी बन चुकी थी। अभी तक एल्सन का दूसरे शहर में रहने का कोई ढंग से ठिकाना नहीं बन सका था, इसलिये भी उसने विनी को अपनी मां के घर पर छोड़ रखा था। फिर दूसरा कारण मां का अकेलापन भी था, यदि वह विनी को भी अपने साथ ले आता तो मां के पास कौन ठहरता? ये भी एक कारण था कि विनी अपनी सास के साथ ही रहने को विवश थी। परन्तु एल्सन फिर भी, जब-तब घर पर आता-जाता रहता था। वह ख्याल तो अपनी पत्नी और मां दोनों ही का रखना चाहता था, परन्तु फिर भी विनी को उसकी अनुपस्थिति में अलग, और वह भी अपनी सास के साथ रहना गवारा नही हो पा रहा था। साथ में एल्सन की मां का स्वभाव भी ऐसा था कि वह कितना भी अच्छा कोई क्यों न करे, उसमें ख़ामियां निकाले बगैर नहीं रह सकती थीं। उनकी हरेक बात में विनी के द्वारा किये गये कार्यों में एक ऐसी असन्तुष्टि की झलक दिखाई देती थी कि जिसको पूरा करना शायद किसी के भी वश की बात नहीं थी। इसी सबब से विनी के लिये अपनी ससुराल में अपने पति के बगैर, अपनी सास के साथ रहना अति कष्टकर होता जा रहा था।
उसकी सास भी लगता था कि वह जैसे अपनी बहू के साथ घर में रहती नहीं थी, बल्कि जैसे बहू की निगरानी के लिये रखी गई है। वह कभी भी विनी को आसानी से घर के बाहर झांकने भी नहीं देती थी। मुहल्ले और पडा़ैस में उठना और बैठना तो दूर की बात रही। साथ में उनका बगैर किसी कारण के अंधविश्वासी बने रहना एक दूसरी समस्या थी। उनके हिसाब से सोमवार को ये मत करो, मंगलवार को वह मत पकाओ, शनिवार और रविवार को पूरब की तरफ यात्रा नहीं करनी है, फलां दिन तेल नहीं खरीदना है, चाहे घर में सब्जी पके या नहीं। उसके घर मत जाओ, वहां मत बैठो, फंलानी ऐसी है, ये मत करो, वह मत खाना, ऐसी न जाने कितनी ही बातें थीं, कि जिनको सहन करना विनी के लिये हर रोज़ कठिन होता जा रहा था।
विनी को खूब याद है कि, एक बार उसकी सास अपने मुहल्ले की कई एक स्त्रियों के साथ उसके ही घर में वार्ता कर रही थीं, और वह अपने कमरे में कुछ काम कर रही थी, कि तभी उसने अपनी सास के साथ बैठी हुई उन स्त्रियों की वार्तालाप को सुन लिया था। वे सब स्त्रियां अपनी-अपनी बहुओं को ही लेकर बात कर रही थीं। तब उनमें से एक स्त्री ने विनी की तारीफ करते हुये उसकी सास से कहा था कि,
‘शलौमी, कुछ भी हो, तुम्हारी बहू है चांद का टुकड़ा। गरीब है तो क्या हुआ, है तो सुन्दरता में सोने में सुहागा। देखा कैसा रूप-रंग लेकर आई है?’
तब उस स्त्री की इस बात पर विनी की सास के मुंह का जैसे जायका ही खराब हो गया था, और फिर उसकी बात सुन कर उन्होंने तो फिर जैसे विनी की पूरी कहानी ही सबको सुना दी थी। वे नाक-भौं सिकोड़ते हुये बोली थीं कि,
‘रूप-रंग को देख कर क्या करूं मैं? नांचू या गाऊं? दहेज में कुछ सामान आदि लेकर आती तो घर में काम भी आता?’
इसी प्रकार जब विनी के पहले बच्चे का जन्म हुआ था, तब भी विनी को न जाने क्या-क्या सुनना पड़ा था। उस समय भी जब उसकी तबियत ठीक नहीं रहती थी, और वह बिस्तर पर आराम करना चाहती थी, तब भी उसे अपनी सास के कटु वचन सुनने को मिले थे। तब विनी के लिये ये दो तरफा दुख हो गया था। एक तो दुख उसका मृत बच्ची के जन्म का ही था। उसका पहला बच्चा पैदा हुआ, और वह भी उसको जीवित नहीं मिला था। उस पर उसकी सास का हर समय का बड़- बड़ करते रहना। तब भी उसकी सास ने इन्हीं स्त्रियों से किस प्रकार हर समय जैसे गोष्ठी करते हुये इसी विषय पर चर्चा करती रहना अपना कर्तव्य समझा था। उस वक्त भी उसे सुनने को मिला था कि,
‘अब जब देखो, तब ही महारानी के समान बिस्तर पर आराम फरमाती रहती है। एक तो लड़की पैदा की, और वह भी मरी हुई? अरे, हमने भी ये सब किया था। इतना आराम तो हमने कभी भी नहीं किया था। हमने तो पांच पैदा किये हैं, और वह भी खेलते-कूदते हुये। डलीवरी क्या हुई, मानो आसमान से तारे तोड़ कर लाई है?’
विनी ने ये भी महसूस किया था कि, जब भी उसकी सास के अपने बच्चों की कुछ बात होती तो उनके कथन में एक विशेष प्रकार की विशिष्टता होती थी परन्तु, जब वही बात विनी के साथ होती थी तो वे उसमें नुक्ताचीनी करने से कभी भी बाज नहीं आती थीं। अपनी नन्द के यहां जब उसने दूसरी लड़की को जन्म दिया था तो उन्हीं ने देखो किस प्रकार से उसकी तारीफों के पुल बांध दिये थे। सो जब उसकी नन्द अपनी दूसरी लड़की को उसके जन्म के चार माह के पश्चात घर पर लाई थी, तो वह भी प्राय आराम ही करती रहती थी। तब उसकी सास ने अपनी लड़की के साहस के तमाम पुल बाध दिये थे। वे कहती थीं कि,
‘अरे, लड़कियों का जन्म भी तो किस्मत वालों के यहां ही हुआ करता है। कन्यादान तो वही कर सकता है जिसे धन-दौलत की कमी नहीं होगी। अब दूसरी लड़की आई है, तो पैसा भी लायेगी। फिर बिटिया अपने मायके में आराम नहीं करेगी तो और कहां कर सकेगी। सहज काम तो है नहीं, आदमी में से आदमी की उत्पत्ति करना।’
सास की इस प्रकार की अनेकों बातों को सोचते-सोचते विनी को काफी देर हो गई। अब तक उसकी सास अपनी साड़ी के पल्लू से मुंह ढांक कर आंगन में पड़ी चारपाई पर ही लेट गईं थीं, और सत्य कथा की अधूरी पड़ी हुई पत्रिका नीचे पड़ी हुई थी। रेडियो पर इस समय कोई दूसरा गीत बज रहा था। तब विनी ने चुपचाप रेडियो को बंद किया, और अपने को किसी प्रकार फिर एक बार तसल्ली दे ली कि, अब की बार जब भी एल्सन घर पर आयेगा तो वह उसके साथ यहां से चली जायेगी। अब बहुत हो चुका है। ऐसे प्रतिबंधित और तनावपूर्ण वातावरण में रहने से तो अच्छा है कि वह अपने पति के साथ रहे। चाहे किसी भी तरह से। आखिरकार छत तो उसके जीवन की, उसके पति के साये में ही है। उसने तो हर तरह से अपनी सास के साथ ससुराल में, पति की अनुपस्थिति में भी रह कर समायोजित करने की कोशिश कर ली है, मगर बात नहीं बन पा रही है तो वह क्या करे? किसी-किसी का स्वभाव ही होता है, शांति से न रहने का।
फिर जब दो दिनों के पश्चात ही एल्सन आ गया तो विनी ने अपनी समस्या उसके सामने रख दी। उसकी इस बात पर तब एल्सन ने उसे बहुत स्नेह और प्यार से समझाते हुये कहा कि,
‘देखो, विनी मैं तुम्हारी मनोदशा और परेशानी को समझता ही नहीं बल्कि महसूस भी करता हूं। मगर समय और मौजूदा परिस्थितियों को सामने रखते हुये ऐसे हालात से समझौता तो करना ही पड़ता है। मैं यदि विवाह से पूर्व ही कहीं दूसरे शहर में रह कर नौकरी कर रहा होता, और तब तुम मेरे पास आकर रहने लगतीं, तब तो कोई बात नहीं थी। परन्तु अभी तो तुम आरंभ से यहां रह रही हो, क्योंकि मैं ही यहां पर पहले ही से रह रहा हूं। इस कारण इस घर से तम्हारा जुड़े रहना लाजिमी है। एक बात सोचो कि यदि अब तुम फिर से अपने मायके में जाकर रहने लगती हो और मैं भी ये घर छोड़ कर वहीं रहने लगता हूं तो लोग तुमको नहीं बल्कि मुझे ही न केवल दोष देंगे साथ में चार बातें भी सुनायेंगे। कोई किसी का मुंह तो नहीं बंद कर लेगा। ये ही सुनने को मिलेगा कि बीबी के आते ही बूढ़ी मां को छोड़ कर अलग हो गये। फिर मेरी समस्या ये है कि मेरी नियुक्ति जहां पर हुई है, वह बहुत ही पिछड़ा इलाका है। वहां का वातावरण बेहद खराब ही नहीं बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी रहने योग्य नहीं है। वहां चाहे दोस्त हो या दुश्मन, चोरी, डकैती, अपरहण और बलात्कार जैसी घटनाओं का होना कोई नई बात नहीं है। दूसरा पिछड़ा इलाका होने के कारण कल को अपने होने वाले बच्चों की शिक्षा आदि के हिसाब से भी वहां पर कोई भी ढंग का स्कूल नहीं है। मां की क्या, वह तो एक झुका हुआ और सूख़ा वृक्ष हैं। कभी भी हल्के हवा के झोंके से ही टूट सकता है। इतने दिन तो तुमने सहन किया है, तब तक और कर लो जब तक कि, मां इस संसार हैं। मानवता का कर्तव्य और फर्ज़ कभी भी ये नहीं चाहेगा कि अब हम उनको अकेला और बेसहारा छोड़ कर कहीं अन्यत्र बस जायें। ये ठीक है कि मां का प्रभुत्व इस घर पर रहेगा, मगर कल को तो तुम्हें ही ये सब संभालना होगा। एक समय था कि मुझ पर मदिरा और जुये का अधिकार था। इस बजह से मैं तुम्हारे और मां के मध्य एक बड़ी मोटी रेखा खींच कर तुम लोगों से काफी दूर तक भटक गया था। उस समय तुमने उस रेखा को तोड़ कर जो सराहनीय कार्य किया था, उसका ब्यान करना वाकई में बहुत कठिन है। परन्तु अब ये जो एक दूसरी रेखा और मां के कारण तुम्हारे मध्य बन गई है इससे तुम्हें परेशानी तो होगी, परन्तु यदि इसके अंतिम परिणाम पर नज़र डालो तो वह बहुत ही भला और सुखद है। अत्यकि उम्र बढ़ने पर लोग तो यूं भी जि़द्दी और चिढ़-चिढ़े से हो जाया करते हैं। मगर उनके इस प्रकार के स्वभाव का ये अर्थ कतई नहीं कि वे अपने बहू-बेटियों और बेटों का कोई अहित ही चाहते हैं। मैं जब यहां नहीं रहता हूं तो ये बहुत संभव है कि मेरी अनुपस्थिति में मां तुम्हारे हरेक अच्छे और बुरे का ध्यान रखे। इसी कारण वह तुम्हें कहीं अकेले नहीं जाने नहीं देना चाहतीं। मैं यूं भी हर हफ्ते के आखिर में दो दिनों के लिये तो घर आ ही जाता हूं। वैसे भी मैं कोशिश कर ही रहा हूं कि किसी भी प्रकार से वापस यहीं अपने ही शहर में आ जाऊं। ये तो तुम समझती ही हो कि परेशानी तो मुझे भी तुमसे अलग रह कर होती है। होटल पर खाना-पीना, दिन भर दफ्तर में काम करना और शाम को बिल्कुल नीरसता का लिबास पहन कर सो जाना। अच्छा तो मुझे भी नहीं लगता है, पर क्या करें। परिस्थितियों से समझौता तो करना ही पड़ता है। खुदा से दुआ करो, संतोष रखो, वही सारी समस्या का हल हमें बतायेगा।’
एल्सन ने इस प्रकार से कहा तो विनी को महसूस हुआ कि सचमुच में उसका पति उससे अधिक अपनी मां का ख्याल रखता है। उसे अपनी बीबी की इतनी चिन्ता नहीं है जितनी कि अपनी मां की। तब उसने जैसे खीजते हुये एल्सन से कहा कि,
‘तो ठीक है, जब आप परिस्थितियों से समझौता कर लें, और अपनी पत्नी को रखने की जगह बना लें तब मुझे लेने आ जाना। मैं कल यहां से घर जा रही हूं।’
उसकी इस बात पर एल्सन ने उसको जैसे चेतावनी दी थी। वह बोला था कि,
‘तुम्हारा यदि यही फैसला है तो मैं तुमको जाने से रोकूगां नहीं। लेकिन इतना सोच लेना कि इस घर पर जितना मेरा अधिकार है, उतना ही तुम्हारा भी है। तुम यदि अपनी मर्जी से जा रही हो तो अपनी मर्जी से आ भी सकती हो। मैं तुम्हें लेने नहीं आऊंगा।’
दोनों की बात तब यहीं समाप्त हो गई थी। उसने तब ये भी सोचा था कि,
‘मां-बाप, वे चाहे कैसे भी क्यों न हों, अपने बच्चों का हित ही सोचा करते हैं। क्यों न वह अपने मां-बाप के पास जाकर रहे। तभी उसके ख्याल में ये प्रश्न भी आया कि परमेश्वर ने जब हव्वा को बनाया था तो आदम की तो कोई मां थी ही नहीं, फिर उसको सास का स्वाभाव, तीख़ा व्यवहार और उसके कांटे जैसी प्रवृत्ति का चुभने वाला चरित्र कहां से मिल गया था? इसी बीच उसके कमरे के दरवाजे पर किसी की उपस्थिति का आभास हुआ तो उसे समझते देर नहीं लगी कि इतनी देर से उसकी सास दरवाजे के पीछे चुपचाप खड़े होकर जैसे किसी जासूसी उपन्यास के खुफिया किरदार का रोल अदा कर रहीं थीं।
तब दूसरे दिन वह अपना थोड़ा सा सामान लेकर अपने मायके चली आई थी। यही सोच कर कि एक दिन एल्सन उसे लेने जरूर ही आयेगा। अपने घर पर भी उसने सारी बात सबको बता दी थी। घर के अन्य लोगों ने भी उसको समझाया था कि वह वापस अपने पति के पास जाकर रहे, परन्तु वह अपनी जि़द पर अड़ी रही थी। उसने भी सोच रखा था कि जब तक एल्सन उसे लेने नहीं आयेगा वह नहीं जायेगी।
इन्हीं उम्मीदों और आस पर उसके दिन गुज़रते ही चले गये। एल्सन उसे कभी भी लेने नहीं आया। तब हार मान कर उसने अपनी वह नौकरी जिस पर वह दो वर्ष की छुट्टियां लेकर अपनी ससुराल गई थी, फिर से करनी आरंभ कर दी। तब इस प्रकार से नौकरी करते हुये उसके दिन बीतते ही चले गये। एक पूरा अरसा गुज़र गया। अतीत पर हर दिन, हरेक पल वर्तमान की चादर बिछती चली गई। उसका जीवन जैसे वायु में बिखरने लगा। वह सुहागिन तो बनी थी, मगर विधवा के समान जीने पर विवश हो गई। मां भी बनी परन्तु लौरी गाने के लायक न रही। धीरे-धीरेे पति और पत्नी के मध्य में उसकी सास के द्वारा खींची गई रेखा इसकदर मजबूत होती गई कि फिर वह उसको तोड़ कर कभी भी अपने अधिकारों के लिये चाह कर भी अंदर नहीं जा सकी . . . . .’
और आज रिनी को देख कर उसकी रही-बची आस भी जाती रही थी। वह जानती है कि रिनी उसकी लड़की तो नहीं है, मगर उसके पति की लड़की जरूर है। निश्चित है कि उसने दूसरा विवाह कर लिया है। उसे याद है कि कभी उसने एल्सन से कहा था कि वह अपने बच्चे का यदि बेटी होगी तो उसका नाम अपने नाम से मिलता-जुलता रिनी ही रखेगी। एल्सन ने अपनी पुत्री का नाम रिनी रख कर उसकी बात का मान रखा था या उसके किये पर तमाचा मारा था? वह नहीं समझ पा रही थी। लेकिन वह इस हकीकत को अच्छी तरह से जान गई थी कि यदि जि़न्दगी के आयाम रूठ जायें या अपना मिजाज बिगाड़ लें तो उनको दोबारा मनाना आसान नहीं है। सास-बहू के मन-मुटाव में चाहे किसी की भी जि़द क्यों न पूरी हो जाये, मगर ये सच है कि किसी न किसी का जीवन अवश्य ही दांव पर लगता है। अपनी घर-गृहस्थी और पति-सुख के प्यार की बाज़ी वह जीत कर भी इस तरह से हार गई थी कि आज उसकी खुशियों के रहे-बचे तिनके भी न बचे थे। वह नहीं समझ पाई थी कि एल्सन ने उससे शादी करके अपना कौन सा रिश्ता या धर्म पूरा किया था? अपने मां-बाप का वह आज्ञाकारी रहा, या फिर पत्नी के चार दिन के सुख भी वह बटोरने के लायक नहीं रह सका था? और वह खुद भी, आज जिस जगह पर आकर खड़ी थी, वहां से कोई भी रास्ता उसको अपने पति से दुबारा नहीं जोड़ता था; क्योंकि जमाने का चलन है कि एक म्यान में न कभी दो तलवारें रही हैं, और ना ही वापस लौटे हुये कदमों को वह मान पुन: मिल सका है, जो पहले था। अब इस स्थिति में उसके पास जो भी बच रहा है, उसी पर केवल उसे संतोष करना होगा; यही सोचते हुये कि उसके जीवन में एक हवा का झौंका आया और उसका वह सब कुछ ऐसा बिखेर कर चला गया कि जिसे वह फिर कभी जमा नहीं कर सकेगी। यदि ये सच नहीं होता तो मांझी के हाथ से छोड़ी गई पतवार और डाली से टूट कर जुदा होने वाले पुष्पों की कहानी आज जमाने के इतिहास में आम न हुई होती।
समाप्त।