natini in Hindi Moral Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | नटिनी

Featured Books
Categories
Share

नटिनी

जान्हवी को ना जाने क्या हो गया था अनिरुद्ध से मिलने के बाद वह माँ जंगिया को समाज मे नारी के साथ विकसित एव पढ़े लिखे सभ्य समाज द्वारा किये जा रहे भेद भाव को विशेषकर आदिवासी नारी के प्रति भवनाओं की सत्यता को जिसे उसने स्वंय एक आदिवासी कन्या होने के कारण देखा अनुभव किया था उस पीड़ा को व्यक्त करती ही जा रही थी ।

उसने माँ को अपनी आत्मिक व्यथा को बताना जारी रखा जिस वेदना को माँ जंगिया ने भी भुगता था बोली माँ इंस्पेक्टर रहीम खान ने मुझे लॉकप में बंद कर दिया और कानून की संगेय अपराध की धाराओं के अन्तर्गरत दूसरे दिन न्यायलय में प्रस्तुत किया।

माँ तू भी तो आयी थी और चिल्ला चिल्ला कर कहती रही तेरी बेटी निर्दोष है उसने किसी का खून जान बूझ कर नही किया है क्या किसी ने भी तेरी बात सुनी थी जब तू चिल्ला चिल्ला कर न्ययालय में मेरे निर्दोष होने की गुहार लगाई थी ।

शेखर ,मिलन एव रागिल की जमानत हो चुकी थी उनसे पूछने वाला कोई नही था कि आखिर जान्हवी ने उनके दोस्तों बैभव एव साहिल का खून क्यो कर दिया ? न्यायालय के न्यायाधीश ने मुझे पुलिस रिमांड पर दे दिया ।

पूंछ ताछ के लिए जब मैं पुलिस रिमांड पर गयी तब मुझे अपने मरहूम बापू की एक बात हमेशा प्रेरित करती रही जब भी मैं बचपन मे करतब दिखाने के लिए रस्सी पर बांस लेकर चढ़ती वह कहते बेटे देखना संतुलन ना विगड़े नही तो गिर जाएगी मुझे सदैव प्रेरित करती रही ।

विषम परिस्थितियों में माँ तू बिल्कुल अकेली तेरी तड़प की वेदना का हुक मुझे ना सोने देता ना ही जागने पर चैन से रहने देता मुझे किंतनी बार लगा जैसे जिंदगी खत्म हो गयी है तू बार बार अनिरुद्ध की तारीफें करती जा रही थी क्या मरने वाले बैभव साहिल या जीवित शेखर ,मिलन,रागिल अनिरुद्ध से अलग है ।

जिन्होंने नारी की अस्मिता को खिलवाड़ बना दिया विशेषकर हम जैसी कमजोर समाज कि बेटी और नारियों के लिए क्या दोष हमारा था अच्छा खासा लोंगो का मनोरंजन अपने हुनर से करते हुए पेट ही तो पाल रहे थे।

माँ जब मैं पुलिस रिमांड में थी तब पुलिस वालों में बहुत अच्छे भी लोग थे तो विकृत मानसिकता के लोग भी जो कहते थे कि यह तो ठहरी नटिन इसी ने भोले भाले बच्चों को अपने छिछोरे हरकतों से अपनी तरफ आकर्षित किया होगा जिससे बच्चे बहक गए होंगे अब यह सती सावित्री बनने का ढोंग कर रही है ।

माँ पुलिस की पूंछ ताछ के बाद जेल भेज दिया गया मुझे बाल सुधार गृह भेजने की भी सिफारिश की गई थी लेकिन बाद में न्यायालय के निर्णय से मुझे जेल भेजा गया ।

जेल में जो लड़कियां या महिलाएं पहले से मौजूद थी उनका भी हाल बहुत बिचित्र और संदेहास्पद था कुछ तो यहां तक कहती क्या जरूरत थी आशिकों को मारने की ?तुझे उन्हें अपने जवानी हुस्न का कायल बना कर दौलत लूटना चाहिए था अब तुम्हे जिंदगी की काल कोठरी में बितानी होगी जबकि तू लोंगो के दिलो की रानी बनकर जवानी में राज करती।

बहुत घिनौना लगता सुन कर कुछ महिलाएं जो मेरी ही तरह हालात की मारी थी वह जरूर हिम्मत देती लेकिन अपराधियों के बीच उनकी कौन सुनता माँ जेल या सुधार गृह में कैद लड़कियां या महिलाओं का शोषण जेल में होता एव अन्य जगहों पर उन्हें लोंगो की मिज़ाज़ पुर्सी के लिए भेजा जाता ।

यहां तुम्हे यह बताना आवश्यक है कि मैं कैसे स्वंय को बचा पाने में सफल हुई मुझे भी नारी सुधार गृह एव जेल की प्रचलित परम्पराओ में मुँह बन्द कर सम्मिलित करने के लिए हर तरह के प्रायास किये गए मानसिक शारिरिक प्रताड़नाएं दी गयी मैंने भूखा रहना स्वीकार किया मरना मंजूर किया लेकिन अपराध के दल दल के अन्तर्गत दल दल में सम्मिलित होना कभी स्वीकार नही किया।

माँ जब भी तू मिलने आती थी तूने अपनी व्यथा को छुपाते हुये मुझे हिम्मत दिया तब भी कुल देवी देवताओं का वास्ता दिया मेरे जेल जाने के बाद तेरे पास कोई जरिया नही रहा जिससे कि तू पेट तक पाल सके तूने भीख मांगना शुरू किया तुझे लोंगो ने पागल करार कर दिया कभी पत्थर मारते कभी जानवरों से बदतर व्यवहार करते तू सिर्फ इसी लिए एक जगह रुकी रही कि तुझे उम्मीद था सिर्फ और सिर्फ तुझ्रे की तेरी बेटी एक न एक दिन जरूर निर्दोष साबित होगी और लौटेगी ।

माँ तूने जितने जुल्म समाज के बाहर रह कर सहे मैंने जेल के अंदर कहते है वक्त सबसे बड़ा भगवान होता है बस वक्त से ही उम्मीद थी शायद कुछ अच्छा हो जाय ।

इतनी परेशानियों मानसिक शारीरिक प्रताड़ना के बाद भी मैंने कभी अपने पढ़ाई को नही छोड़ा आदिवासी समाज तो सामान्य परिस्थितियों में शिक्षा के प्रति बहुत जागरूक नही होता मगर मैंने इस मिथक को विकट परिस्थितियों में भी तोड़ा और जेल प्रशासन से इंटरमीडिएट की परीक्षा देने की अनुमति मांगी बहुत जद्दोजहद के बाद जब परीक्षा पुलिस निगरानी में देने की अनुमति मिली ।

तब मेरे विषय मे भारत के समाचार पत्रों में कुछ चर्चाओं का दौर शुरू हुआ और लोंगो का ध्यान मेरी तरफ गया और तब यह चरचा होने लगी कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई आदिवासी पिछड़े समाज की लड़की इतना बड़ा जघन्य अपराध बिना किसी कारण कर दे।

जब मैंने दसवीं कक्षा के लिए पहली बार परीक्षा देने के लिए जिद किया तब भी बापू ने जिद करते कहते बेटी क्या करेगी पढ़ लिख कर हम लोग खाना बदोस आज यहां कल पता नही कहा लेकिन बापू अपनी एकलौती बेटी की जिद्द के सामने टूट गया और शाहू का पुरवा में दो साल तक एक ही जगह डेरा डाले रहे और तुमने भी माँ शिकार पुर में इसीलिए डेरा बनाया था कि मैं इंटरमीडिएट परीक्षा दे सकू।

देख माँ इस कठिन परिस्थितियों में मेरी पढ़ाई ने ही लोंगो को मेरे बारे में कुछ सोचने को विवश किया है पुलिस सांरक्षण में मैंने परिक्षयाए दिया और अच्छे नंबरों से पास हुई ।

न्यायलय में मुकदमा शुरू हुआ तेरे पास खुद के खाने के लिए भी कुछ नही था तो मेरे लिए वकील क्या करती ?जैसे तैसे केश में फैसला आया और मैं दोषी करार दी गयी और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई अब मैं आरोपी से प्रामाणिक अपराधी बन गयी और सात वर्षों का समय बीत चुका था ।

अब तेरे पास भी कोई रास्ता नही था तू लोंगो के पत्थर खाती और किसी तरह इधर उधर पेड़ के नीचे नाली मंदिर में अपना दिन बिताती ।

लेकिन मैं कैदी बनकर भी पढ़ना नही छोड़ा और जेलर से मिन्नतें कर करके किसी तरह किताबे एव पठनीय सामग्री मांगती कभी मिलता कभी नही मिलता समय बीतता गया दो वर्ष की सजा काट चुकी थी तभी जेल में एक नए तेज तर्रार अधिकारी मुकुन्द राठौर की नियुक्ति हुई ।

मैं एक दिन कुछ किताबो को मांगने गयी पता नही क्या सुझा उनको उन्होंने मुझसे कैदी बनने के बाबत सच्चाई जानने की गुजारिश की मैंने उन्हें जो भी सच्चाई थी वह बताई मुकुन्द राठौर पहले इंसान थे जिनकी आंखे मेरी सच्चाई जानने के उपरांत आंखे नम हो गयी उन्होंने मेरे लिए किताबे मंगवाई ।

मेरी केश फाइल की स्टडी किया और मुझे बुलाया और बोले बेटे मैं तुम्हे कोई आश्वासन तो नही दे सकता लेकिन मैं कोशिश अवश्य करूँगा की तुम्हे न्याय मिले माँ तुम इतनी विपत्तियों के बीच भी इस अभागन बेटी से मिलने जरूर आती लेकिन मुलाकात नही होती क्योकि तुम्हे लोगो ने जो पागल करार कर दिया था।

मुकुन्द राठौर ने मेरे अपराध की फाइल पर पुलिस अधीक्षक सतपाल से चर्चा की सतपाल ने भी सहयोग का आश्वासन दिया ट्रायल से सजा होने के बाद कही अपील नही हुई थी अतः मुकुन्द राठौर ने विधिवत अपील प्रेषित किया जिस पर सुनवाई नए सिरे से हुई मुकुन्द राठौर के बहुत कोशिशों के बाद जेल में मेरे आचरण व्यवहार के परिपेक्ष्य में न्यायालय के द्वारा मेरी फाइल राज्यपाल को प्रेषित की गई।