Jasbat-e-Mohabbat - in Hindi Love Stories by dinesh amrawanshi books and stories PDF | जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 16

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जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 16

तभी प्रोफेसर अवस्थी कैंटीन से उठ कर चले जाते हैं रिचा ये देख कर मन ही मन सोचने लगती है अवस्थी सर यू अचानक से क्यूँ जाने लगे कि तभी नेहा कहती है यार सेकंड हाफ शुरू होने वाला है क्लास चले तो चारों क्लास चली जाती हैं क्लास मे सभी एक दूसरे से यानि कि अपने अपने ग्रुप मे बातें कर रहे होते हैं तभी प्रोफेसर अवस्थी क्लास मे आते हैं क्योकि सेकंड हाफ के जस्ट बाद माइक्रोबायोलॉजि की क्लास जो की प्रोफेसर अवस्थी की ही सेकंड क्लास है रिचा दिल ही दिल में बहुत खुश होती है और प्रोफ़ेसर अवस्थी को ही देखती रहती है प्रोफ़ेसर अपनी क्लास शुरू करते हैं और पढ़ाने लगते है पर रिचा तो जैसे प्रोफ़ेसर अवस्थी मे ही कहीं खो जाती है जो कुछ देर बाद प्रोफ़ेसर नोटिस करते है रिचा का ध्यान उन पर है ओर रिचा की बैंच के पास आकर उससे कहते है हैलो मिस टौपर तुम्हारा ध्यान कहा है पर रिचा को ये एहसास ही नहीं होता की प्रोफ़ेसर उससे कुछ कह रहे हैं प्रोफ़ेसर रिचा को तीन चार बार आवाज़ देते है पर रिचा को तो जैसे कुछ सुनाई दे ही नहीं रहा हो तभी नयन्सी उसे धक्का देते हुये कहती है रिचा, तो रिचा एक दम से घबरा जाती है और प्रोफ़ेसर अवस्थी को अपने सामने देख कर डर जाती है ससस........सर आप तो प्रोफ़ेसर अवस्थी कहते हैं हाँ मैं पर तुम्हारा ध्यान कहा है ऐसे बैठी हो जैसे तुम क्लास मे ही नहीं हो रिचा इतनी सहम जाती है कि प्रोफ़ेसर कि बातों का कोई जवाब नहीं दे पाती है लेकिन प्रोफ़ेसर रिचा से फिर वही सवाल करते है क्या हुआ रिचा तुम किसी बात से परेशान हो क्या जी वजह से तुम इतना खो गई के तुम्हें ना मेरी आवाज सुनाई दी ओर ना तुमने मेरी बातों का जवाब दिया,कुछ देर बाद जब रिचा थोड़ा नॉर्मल होती है तब प्रोफ़ेसर अवस्थी की बात का जवाब देती है नहीं सर वो मैं आपको ही कहते कहते रुक जाती है और बात को घुमाती है कि कोई परेशानी नहीं है सर, रिचा इतना ही कह पाती है और अवस्थी सर की क्लास ख़त्म हो जाती है फिर वो क्लास से चले जाते हैं तो रिचा खुद से ही कहती है बच गई रिचा आज तो तू नहीं तो गई थी काम से,तो रितु कहती है ओए रिचा की बच्ची क्या बड़बड़ा रही है यार तुम लोग तो जानती है आज तो अवस्थी सर ने मेरी जान ही ले लेनी थी तो नेहा कहती है अबे यार तू इतना भी क्या खोई हुई थी सर के ख़यालों मे की तुझे ये याद नहीं रहा की तू क्लास मे बैठी है रिचा कहती है यार क्या करू मैं खुद को रोक ही नहीं पाती ,कहते है ना प्यार दुनिया का वो सबसे हशीन एहसास है जो है तो एक झील की तरह जिसमे ईंशान उतर तो जाता है लेकिन वापस आने का कोई रास्ता नहीं होता अगर प्यार सच्चे दिल से हो तो, जिसमे ईंशान इस तरह बहता है जैसे नसों मे लहु,जितनी जरूरी साँसे होती है जीने के लिए उससे कही ज्यादा जरूरी उस शक्स का प्यार हो जाता है जिसे हम प्यार करते है जैसे मानों उसके शिवा हमारी कोई दुनिया ही नहीं है कुछ ऐसी ही हालत रिचा की हो जाती है ओर रिचा सोच लेती है की अब चाहे जो हो देखा जाएगा लेकिन अवस्थी सर से अपने प्यार का इज़हार करके रहेगी कॉलेज के बाद रिचा नयन्सी को उसके घर छोड़ कर अपने घर पहुँचती है रिचा घर के अंदर जाते ही अपनी माँ को आवाज़ देती है माँ........माँ इतने मे आएशा रूम से बाहर आती है दीदी आ गई आप कॉलेज से रिचा कहती है हाँ आएशु आ गई माँ कहा है आएशा रिचा को बताती है दीदी माँ शालू आंटी के घर गई हैं कुछ काम से बुलाया है शालू आंटी ने मम्मी को,रिचा कहती है ओके तो फिर मैं ही कॉफी बनाती हूँ तू पिएगी तो आएशा कॉफी के लिए हाँ कहती है ओर रिचा कॉफी बना कर लाती है फिर दोनों बहन हॉल मे बैठ कर कॉफी पीती हैं और टीवी देखती हैं रिचा की नज़रे तो टीवी पे होती है लेकिन दिल ओर दिमाग प्रोफ़ेसर अवस्थी की यादों मे खोये है रिचा के दिमाग मे इस वक़्त एक ही बात चल रही है कि आखिर अवस्थी सर को अपने दिल कि बात कैसे बताए रिचा के मन मे ऐसे कई सवाल चल रहे थे कि अभी तक तो मुझे ये भी नहीं पता कि अवस्थी सर के दिल मे मेरे लिए कोई फिलिंग्स है भी या नहीं क्या वो मुझे लाइक करते होंगे वगेरह पर जो भी हो किसी भी तरह से उन्हे अपने प्यार के बारे मे बताना ही है मुझे कि मैं उनसे कितना प्यार करती हूँ रिचा यही सोच रहती है इतने में आएशा कहती है मम्मी आ गए आप तो मम्मी कहती है हा बेटा आई ओर आएशा मम्मी को पानी लाकर देती है रिचा माँ से पुछती है शालू आंटी के यहा क्यू गए थे माँ सब ठीक तो है ना माँ कहती है हा बेटा सब ठीक है बस बैठने बुलाई थीं शालू आंटी ने,रिचा बेटा शाम हो गई बहुत टाइम हो गया चल थोड़ी हेल्प करदे किच्चन मे ओर रिचा माँ के हेल्प करने चली जाती है माँ के साथ रिचा रात का खाना तैयार करती है रिचा कहती है माँ रात के लगभग साढ़े आठ बज रहे हैं अभी तक भईया और पापा नहीं आए तभी डोर बैल बजती है रिचा दरवाज़ खोलती है भईया आज इतने जल्दी आ गए आप अभी माँ से आपकी और पापा ही बात कर रही थी और इतना कह कर रिचा अपने भईया के साथ अंदर जाती है और माँ से कहती है माँ पापा कहा गए हैं माँ कहती है बेटा पापा किसी काम से बाहर गए आते ही होंगे नितिन बेटा तू फ़्रेश होजा फिर खाना खाना खाते हैं रिचा और माँ खाना निकालते हैं माँ आएशा को आवाज़ लगाती हैं आएशा भी डाएनिंग हॉल मे आती हैं और चारों डाएनिंग टेबल पर बैठ जाते हैं माँ और रिचा खाना लगाती हैं सभी अपना खाना फ़िनिश करते हैं और रिचा ,आएशा और नितिन हॉल में बैठ कर टीवी देखते हैं नितिन रिचा से कहते हैं बच्ची तेरे क्लासेस कैसे चल रहे हैं रिचा कहती हैं ठीक चल रही हैं भईया इनफेक्ट मैं तो इञ्ज़ोय करती हु अपने क्लासेस मुझे लगता पढ़ाई कभी लोड लेकर नहीं करनी चाहिए हर सब्जेक्ट आसान हो जाते हैं अच्छा भईया बहुत टाइम हो गया है मैं अपने रूम मे जा रही हूँ और रिचा उठ कर रूम मे चली जाती है और बेड पर लेट जाती है सोने की कोशिश तो करती है पर उसके दिमाग मे ये चल रहा होता है कि आखिर अवस्थी सर को अपने दिल कि बात बताए तो कैसे सीधे प्रपोज़ करे या पहले दोस्ती बढ़ाए क्योकि अब मुझसे नहीं रहा जाता न तो मैं ठीक से सो प रही हूँ ओर न खा प रही हूँ यही सोचते सोचते रिचा सो जाती है और वैसे भी आखिर रिचा की ऐसी हालत हो भी क्यूँ न प्यार चीज़ ही ऐसी है ये बात अलग है कि कुछ लोगों के लिए प्यार के मायेने कुछ ओर होते हैं ओर कुछ लोगों कि प्यार के लिए सोच अलग होती है और कुछ लोगों के लिए प्यार आत्मा ओर दिल से जुड़ा होता है रिचा की कंडिशन कुछ ऐसी है जैसे जल बिन मछली तड़पती है