Teri Chahat Main - 48 in Hindi Love Stories by Devika Singh books and stories PDF | तेरी चाहत मैं - 48

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तेरी चाहत मैं - 48

अगली सुबह……..

अजय जब फ्रेश हो कर गेस्ट रूम से निकलने लगा तो देखा रिया बहार बैठी कॉफी पी रही थी। उसने सोचा की कम से कम एक कप कॉफी तो दे ही सकती थी। फिर उसने सोचा सुबह कौन अपना मूड खराब करे, अब घर चलना चाहिए, क्यूंकी दिवाली की छुट्टी थी, शाम को राज के यहां जाना था। उसे सोचा घर जा कर कुछ दुसरे काम निपटा कर थोड़ा रेस्ट कर लेगा।

"इतनी सुबह कहाँ जा रहे हो अजय?" रिया ने उसे टोका
"घर जा रहा हूं, वैसे मुझे उम्मीद है अब आप बेहतर महसूस कर रही होगी।" अजय ने जवाब दिया।


"हां अब दर्द काफ़ी कम है। हम चल पा रहे हैं।" रिया ने जवाब दिया।
"ठीक है, ये तो अच्छी बात है, खैर अब इजाज़त दिजिये, मैं घर चलता हूं।" अजय बोला

"हां, पर ब्रेकफास्ट तो करते जाओ। हमने खुद बनाया है।" कशिश बोली
"ओह.. शुक्रिया पर मुझे देर हो रही है।" आप कर लिजिये।
“नहीं तुमको नाश्ता करके जाना ही होगा। ये हमारा हुकुम है।" रिया मस्कुराते हुवे बोली।
अजय सकते मैं आ गया। इसबार क्या करने वाली है ये लड़की। पिचली बार अच्छे से बोली थी तो मेरा सर तोड़ने पे आमदा थी, आज खुशी से ब्रेकफास्ट करने को कह रही है।

"क्या सोच रहे हो, नहीं करना है ना करो, पर हमने बहुत मेहनत से बनाया है।" रिया ने थोड़ा नाराज़गी से कहा।
"नहीं - नहीं, अच्छा ही है मुझे घर जा कर बनाना नहीं पड़ेगा।" अजय ने बात संभली।
“ये हुई ना बात, चलो पर ज्यादा उम्मीद नहीं करना, हमको ज्यादा कुछ नहीं आता। पर हमने टोस्ट, ऑमलेट और फ्रेश जूस बनाया है। साथ मैं कॉफी भी।" रिया ने चहकते हुए कहा।

अजय हेयरां था रिया के इस बदलाव से। रिया उस से ठीक से बात कर रही थी जो की बिलकुल नई बात थी उसके लिए। इस्के अलवा रिया ने खुद नाश्ता बनाया था, ये वो रिया थी जिसे एक गिलास पानी का भी खुद नहीं उठाती थी।

“हमको पता है अजय, की तुम सोच रहे हो हम ऐसे कैसे बदल सकते हैं। हम तुमसे धंग से बात भी कैसे कर सकते हैं, पर चीज में बदलाव आता है। हम तुम्हारे बारे में अपने राय बदल रहे हैं। तुम भी हमारे बारे में अपनी राय बदलने की कोशीश करो। पापा ने हमारी जिंदगी का एक बड़ा फैसला किया। तुमको हमारा हमसफ़र चुना। हमको बिलकुल पसंद नहीं आया। हमें लगा की शायद तुम हम से बदला ले रहे हो हमारी पुरानी गलतियों का। हम ये नहीं कहे रहे की तुम उनको सिर से नज़र अंदाज कर दो। हमने गलतियां की हैं, जिन्को हम सुधार रहे हैं, क्या तुम हमको एक मौका नहीं दे सकते, क्योंकि आने वाला वक्त हम दोनो को साथ देना है। हमारी जिंदगी हमारी अपनी होगी, हमारे मसले हमारे होंगे, उन्हें कोई दशहरा नहीं होगा। हम बस यही चाहते हैं की हम दोनो इस रिश्ते की शुरुआत एक भरोसा से करैं।” रिया ने काफ़ी गहरी बात कहीं अजय जिसका उसे बिलकुल अंदाज़ नहीं था।

“आप ठीक कह रही है, हम लोगों को कोशिश करनी चाहिए। पर एक दम से आपको ऐसा क्यों लगा की हम दोनो को इस बारे में कुछ करना चाहिए।” अजय ने रिया से कहा।
“जिस दिन मैंने तुम्हारा सर तोडने की कोशिश करी थी। पर जब तुमने मुझे मेरे वजूद को तलाशने को कहा तो मुझे लगा की अभी तक किसी ने मुझे कभी ये एहसास कराया ही नहीं।” रिया ने जवाब दिया।

"उस दिन के लिए मुझे बाद में काफ़ी बुरा भी लगा था, आख़िर मैंने आपकी बेइज़्ज़ती भी कर दी थी। मैं उस दिन के लिए मैं शर्मिंदा हूं।” अजय ने शर्मिंदगी से कहा।

“नहीं, वो दिन मेरे लिए एक सबक रहा है। और हमारे दिन के बाद ही मैंने दुनिया को सचाई की नजरों से देखना शुरू किया है। और मैं तुमसे कह चुकी हूं, की अब हमको पुरानी बातों को भूल जाना चाहिए, फिर क्यों तुम उन बातों को याद कर रहे हो।" रिया ने समझौता हुए कहा।

“ठीक है, पर एक बात बतायें की कल क्या हुआ था। कल आप मुझ पे क्यूं गुस्सा कर रही थी।" अजय ने कहा तो रिया बोली "सुधारने मैं थोड़ा वक्त तो लगता है, मैं अब एक दिन मे तो सुधर तो नहीं सकती। ऊपर से कल कितना दर्द हो रहा था मुझे, जानते हो ना।”

"हां कल सच मैं आपके जोड़ों के हालात काफ़ी बुरे थे।" अजय बोला
“और जब तुम मुझे कार मैं छोड़ के चले गए तब मुझे लगा की हम तो दर्द से मर जाएंगे। पर फिर तुम वापस आए और हमको डॉक्टर के पास ले के गए। कितना ख्याल किया तुमने हमारा। जब की हम हमें तुमसे कितनी बदतमीजी से पेश आते थे। "


To be continued
In Part 49