Teri Chahat Main - 44 in Hindi Love Stories by Devika Singh books and stories PDF | तेरी चाहत मैं - 44

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तेरी चाहत मैं - 44

"कहा से आ रही हो रिया इतनी रत को! वक्त देखा है आपने। आज आप ऑफिस में भी नही थी। कहा मसरूफ हैं की आप को वक्त का भी ख्याल नहीं हैं! " मुकेश रॉय ने रिया को टोका जो काफी देर से घर मे दखिल हो रही थी। "ओह .. पापा आप जानते है की अगले हफ़्ते हमारा बर्थडे है। बस हम उसके लिए शॉपिंग कर रहे थे। हम आपकेवाय भी काभी कुछ लाए है। और पापा विक्रम था हमारे साथ तो , फिक्र कैसी? " रिया ने सामान रखते हुऐ ख़ुशी - ख़ुशी जवाब दीया।

""तुम्को पता है ना की सिकंदर ने किटना बड़ा धोखा दीया है हमको, और कई मामलों में विक्रम का भी हाथ सामने आया है। फिर भी तुम, विक्रम से मिल रही हो। " मुकेश रॉय ने गुस्से से कहा। "नही पापा, विक्रम ऐसा नही कर सकता, वह तो आपकी बहुत इज्जत करता है, ये सब जो कुछ हुआ उसमे विक्रम का नम गलती से आ गया है।" रिया ने विक्रम की तरफदारी करते हुऐ बोली।

"वो कितना शरीफ है, इसका अंदाजा हमको उसी दिन हो गया था जब कॉलेज मे उसको छटे हुए मवालियो के साथ पकड़ा था। एक बात सुन लो रिया, अब आप विक्रम से दुबारा नही मिलियेगा। हम नही चाहते की वह आप को कोई नुकसान पहुंचे। "मुकेश रॉय ने समझाते हुए काहा। "पापा आप जानते है की हम दोनों एक दूसरे को पसंद कारते है।" रिया गुस्से से बोली। "कान खोल के सुन लो रिया, विक्रम और तुम्हारा रिश्ता किसी भी कीमत पर नही होगा। आज के बाद हम इस मामले में और बहस नही करेंगे। " मुकेश रॉय फैसला कारते हुऐ वहा से चले गए। रिया गुस्से से वही खड़ी रही।

दूसरी सुबह ऑफिस में।

"अजय मेरे केबिन में आओ कुछ जरूरी बात करनी है। " मुकेश रॉय ने इंटरकॉम पे अजय से कहा अजय उठ कर मुकेश रॉय के केबिन की तराफ बड़ गया। "कैसे हो, काम काज सही चाल रहा है। कोई दिक्कत तो नहीं। " मुकेश रॉय ने मुस्कुराते हुये काहा।

"नही सर कोई दिक्कत नही है। सब सही है। " अजय ने जवाब दीया। "हम्म … अब जो मैं तुमसे बात करने वाला हु, उसको ध्यान से सुनना और सोच समझ के अपना फैसला देना।" मुकेश रॉय थोडा गंभीर होते हुऐ काहा। फिर एक मिनट बाम बोले "अगर कोई इन्सान भटका हुवा हो क्या उसको सही रास्ते पे लाने में उसकी मदद करनी चाहिए। वोह कोई ऐसा इंसान भी हो सकता है, जिससे आप की राय नही मिलती हां वोह अप्का गुनहगार भी हो सकता है ।"

"सर भटके हुए राही को राह दिखाना को हम सब का फर्ज़ है। अगर मेरी थोड़ी सी कोशिश से कोई शख्स सही रास्ते पे आ जाए तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा। अब अगर कोइ मेरा दुश्मन मेरी वजह से सुधर जाए तो अच्छा ही हैं, आने वाले में शायद वोह मेरा दोस्त भी हो सकता है । " अजय ने जवाब दीया।

"अजय रिया तुमको कैसी लग्ती है!" मुकेश रॉय ने एकदम से बात को पलट दिया। एक ऐसा सवाल पूछा जिसका अजय ने कभी ख्वाब में भी सोचा नही था। अजय के पास जवाब नहीं था।

"सर, रिया अच्छी है, बस थोडा गुस्सा ज्यादा कारती है। सर ये कैसा सवाल है! मुझे अभी भी समझ नहीं आया हैं आप मुझसे क्यू पूछ रहे है। आप उसके पापा है और आपसे ज्यादा कौन जानता होगा उसके बारेमें। " अरसालायन ने सोचते हुऐ जवाब दीया।"

"सही कहा तुमने रिया के बारे मे, बचपना और जिद नही गई है उसकी। पर ये भी जानता हु की उसको सही रास्ते पे लाया जा सकता है। वोह असल में प्रैक्टिकल नही हुई है। जिंदगी की सच्चाई से दूर है। और इसमें उसकी गलती भी नही, मां बचपन में दुनिया से रुखसत हो गईं। हमने कोशिश की उस्को खुश रखे, उसको वक्त दे , पर काम की मसरूफियत थी और जिमेदारी भी थी। जब आपके लिये बहुत से लोग अपना जी जान लगा के काम कारते है, तब आपकी जिम्मेदारी भी बढ़ती है उन लोगों की तरफ़ । बस इन्हीं सब में रिया भटक गई। " मुकेश रॉय अपनी परेशानी बायन करते चले गए।

अजय को कुछ समझ नहीं आ राहा था आज मुकेश रॉय किस तरह बाते उससे कर रहें थे।

"अजय, मेरी रिया को सही रस्ता दिखाओ, वो भटक गई है क्युकी कोई सही रास्ता दिखाने वाला दोस्त हां हमसफर अभी तक उसको मिला नहीं हैं।" मुकेश रॉय एक दम से संजीदा होटे हुवे अजय से बोले।"

"पर सर, में केसे कुछ कर सकता हुं आपको शायद पता नही पर रिया की मुझसे बिल्कुल भी नही बनती। ऐसे में अगर रिया को कुछ समझाऊंगा तो कभी भी नही मानेगी। हम दोनो सिर्फ एक दूसरे के कोलिग्स है, बस इसलिए आफिस की बाते में वो मेरी बातो पर ध्यान देती हैं। " अजय ने बताया।

"एक कॉलिग की हैसियत से नही, एक हसबैंड की हैसियत से तुम उसको समझाओ और सही राह पे लाओ।" मुकेश रॉय ने एक धामका किया।

"क्या .... सर मैं रिया का हसबैंड। सर ये कैसे हो सकता है! " अजय ने अपने आप को संभाल्ते हुवे काहा।

"क्यूं नहीं हो सकता , तुम एक अच्छे इंसान हो, मेहनती हो, जिंदगी के फैसले समझदारी से कर रहे हो, और के देखता हैं कोई बाप अपनी बेटी की हुमसफर में मुकेश रॉय ने अजय से उल्टा पूछा ।

"सर, आपकी नज़र मे मैं इस काबिल हूं तोबमेर लिए खुशकिस्मती है, पर मैं और रिया आसमान और ज़मीन की तरह है। एक दूसरे के बिलकुल जुदा। " अजय ने अपनी बात कही।

"आसमान और ज़मीन भी एक छोर (क्षितिज) पर मिलते है। और इसके अलावा आसमान और ज़मीन का जब दिल करता है, तो एक दुसरे से दिल की बात कारते है, बरसात की बूंदों के जरिए। जब (इंद्रधनुष) की खूबसूरती बायन नही होती? "जब दोनो मिलते है।" मुकेश रॉय ने अजय को समझाते हुए कहा ।

"सर, आप जो कह रहे हैं जो गलत नही है, पर हम दोनो का कोई जोड़ नही है। अपका रुत्बा काफी है, रिया इस पूरे एंपायर की मलिक है। और में एक यतीम इंसान हु, जो आपके यहां सिर्फ़ एक नौकर हैं। मैं रिया के साथ जिंदगी की राह पे चलने की सोच भी नही सकता। ये प्रैक्टिकल नही है। " अजय बोला।

"ये बेकार की बाते है, बस अपने आप से पुछो की रिया तुमको अछी लगती है। तुम मुझे बस इतना बता दो । तुम अपने दिल में क्या कशिश को जगह दे सकते हो? बस यही चीज़ इंपोर्टेंट है। तुम सोच के बता देना। " मुकेश रॉय ने बिल्कुल सीधी बात करी।


"परर सर, मेरे राज़ी होने से क्या होगा, रिया की रज़ामंदी भी तो जरूरी है।" अजय ने कहा।

"रिया वहा शादी करेगी जहां मैं कहुंगा, मुझे उसपर इतना भरोसा है।" मुकेश रॉय ने कहा।

"तो सर, कब तक आपको जवाब देना है?" अजय के यह पूछने पर मुकेश रॉय मुसकुराते हुऐ बोले इस काम कोई कोई डेड लाइन नही हैं।"


अगले दिन सुबह

अजय ने मुकेश रॉय से कहा अगर रिया को मंजूर है तो मैं आपकी बात कभी नही टालूंगा पर बिना उसकी मंजूरी के यह रिश्ता निभाना हम दोनो के लिए मुश्किल होगा"



"हम खुश है तुम्हारी राय जान के।" मुकेश रॉय ने अजय को गले से लगाते हुऐ काहा।



To be continued
in 45th Part